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Read the New Testament in 24 Weeks

A reading plan that walks through the entire New Testament in 24 weeks of daily readings.
Duration: 168 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
प्रेरित 3-4

पेतरॉस द्वारा अपंग को चंगाई

एक दिन नवें घण्टे पर, जो प्रार्थना का निर्धारित समय था, पेतरॉस और योहन मन्दिर जा रहे थे. उसी समय जन्म से अपंग एक व्यक्ति को भी वहाँ ले जाया जा रहा था, जिसे प्रतिदिन मन्दिर के ओरियन अर्थात् सुन्दर नामक द्वार पर छोड़ दिया जाता था कि वह वहाँ प्रवेश करते व्यक्तियों से भिक्षा विनती कर सके. पेतरॉस और योहन को प्रवेश करते देख उसने उनसे भीख माँगी. पेतरॉस तथा योहन ने उसकी ओर सीधे, एकटक देखते हुए कहा, “हमारी ओर देखो.” उनसे कुछ पाने की आशा में वह उन्हें ताकने लगा.

पेतरॉस ने उससे कहा, “स्वर्ण और रजत तो मेरे पास है नहीं किन्तु मैं तुम्हें वह देता हूँ, जो मेरे पास है: नाज़रेथ के मसीह येशु के नाम में स्वस्थ हो जाओ और चलने लगो.” यह कहते हुए उन्होंने उसका दायाँ हाथ पकड़ कर उसे उठाया. उसी क्षण उसके पाँवों तथा टखनों में बल-संचार हुआ, वह उछल कर खड़ा हो गया और चलने लगा. उसने उनके साथ चलते, उछलते-कूदते, परमेश्वर का गुणगान करते हुए मन्दिर में प्रवेश किया. वहाँ सभी ने उसे चलते-फिरते और परमेश्वर का गुणगान करते हुए देखा. 10 यह जानकर कि यह वही भिक्षुक है, जो मन्दिर के सुन्दर नामक द्वार पर बैठा करता था, वे उसमें यह परिवर्तन देख अचम्भित और चकित रह गए.

भीड़ को पेतरॉस का भाषण

11 वह पेतरॉस और योहन का साथ छोड़ ही नहीं रहा था. वहाँ उपस्थित चकित भीड़ दौड़ती हुई उनके पास आकर शलोमोन के ओसारे में इकट्ठी होने लगी. 12 यह देख पेतरॉस, उन्हें सम्बोधित कर कहने लगे: “इस्राएली बन्धुओं, आप इस व्यक्ति या हम पर इतने चकित क्यों हैं? हमें ऐसे क्यों देख रहे हैं मानो हमने ही इसे अपने सामर्थ्य और भक्ति के द्वारा चलने योग्य बनाया है? 13 अब्राहाम, इसहाक और याक़ोब के परमेश्वर, हमारे पूर्वजों के परमेश्वर ने अपने सेवक मसीह येशु को महिमित किया, जिन्हें आप लोगों ने अस्वीकार करते हुए पिलातॉस के हाथों में सौंप दिया—जबकि पिलातॉस ने उन्हें छोड़ देने का निश्चय कर लिया था. 14 आप लोगों ने एक पवित्र और धर्मी व्यक्ति को अस्वीकार कर एक हत्यारे की छुड़ौती की विनती की. 15 तथा आपने जीवन के रचनेवाले को मार डाला, जिन्हें परमेश्वर ने मरे हुओं में से जीवित कर दिया. हम इसके प्रत्यक्ष साक्षी हैं. 16 मसीह येशु के नाम में विश्वास के कारण इस व्यक्ति में, जिसे आप जानते हैं, जिसे आप इस समय देख रहे हैं, बल-संचार हुआ है. यह व्यक्ति मसीह येशु के नाम में सशक्त किया गया और मसीह येशु में विश्वास के द्वारा पूरे रूप से स्वस्थ हुआ है, जैसा कि आप स्वयं देख सकते हैं.

17 “प्रियजन, मैं यह जानता हूँ कि आपने मसीह येशु के विरुद्ध यह सब अज्ञानतावश किया है, ठीक जैसा आपके शासकों ने भी किया था. 18 किन्तु परमेश्वर ने सभी भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा यह पहले से ही घोषणा कर दी थी कि उनके मसीह के लिए यह यातना निर्धारित है. यह उसी की पूर्ति है. 19 इसलिए पश्चाताप कीजिए, परमेश्वर की ओर मन फिराइए कि आपके पाप मिटा दिए जाएँ, 20 जिसके फलस्वरूप प्रभु की ओर से आपके लिए विश्राम और शान्ति का समय आ जाए और वह मसीह येशु को, जो आपके लिए पहले से ठहराए गए मसीह हैं, भेज दें, 21 जिनका स्वर्ग के द्वारा स्वीकार किया जाना निश्चित है, उनका उस समय तक स्वर्ग में ठहरे रहना आवश्यक है, जब तक परमेश्वर द्वारा हर एक वस्तु की पुनस्थापना का समय न आ जाए, जिसकी प्रतिज्ञा परमेश्वर ने प्राचीन काल में अपने भविष्यद्वक्ताओं के माध्यम से की थी. 22 मोशेह ने यह घोषणा की थी: प्रभु परमेश्वर तुम्हारे ही भाइयों में से तुम्हारे लिए मेरे जैसे एक भविष्यद्वक्ता का आगमन करेंगे. आवश्यक है कि वह जो कुछ कहे, उसका पालन किया जाए 23 तथा हर एक, जो उसके आदेशों को अनसुना करे, तुम्हारे बीच से पूरी तरह नाश कर दिया जाए.

24 “शमुएल भविष्यद्वक्ता से लेकर उनके बादवाले सभी भविष्यद्वक्ताओं द्वारा भी इन्हीं दिनों के विषय में घोषणा की गई है. 25 तुम सब उन भविष्यद्वक्ताओं तथा उस वाचा की सन्तान हो, जिसकी स्थापना परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों के साथ अब्राहाम से यह कहते हुए की थी.

पृथ्वी के सभी कुल आशीषित होंगे.

26 “परमेश्वर ने अपने सेवक को मरे हुओं में से उठाकर सबसे पहिले तुम्हारे पास भेज दिया कि वह तुममें से हरेक को तुम्हारी बुराइयों से फेरकर आशीष प्रदान करें.”

महासभा के सामने पेतरॉस तथा योहन

जब वे भीड़ को सम्बोधित कर ही रहे थे, कि अचानक याजकगण, मन्दिर रखवालों का प्रधान तथा सदूकी उनके पास आ पहुँचे. ये अत्यन्त क्रोधी थे क्योंकि प्रेरित भीड़ को शिक्षा देते हुए मसीह येशु में मरे हुओं के जी उठने की घोषणा कर रहे थे. उन्होंने उन्हें बन्दी बनाकर अगले दिन तक के लिए कारागार में डाल दिया क्योंकि दिन ढल चुका था. उनके सन्देश को सुनकर अनेकों ने विश्वास किया, जिनकी संख्या लगभग पाँच हज़ार तक पहुँच गई.

अगले दिन यहूदियों के राजा, पुरनिये और शास्त्री येरूशालेम में इकट्ठा थे. वहाँ महायाजक हन्ना, कायाफ़स, योहन, अलेक्सान्दरॉस तथा महायाजकीय वंश के सभी सदस्य इकट्ठा थे. उन्होंने प्रेरितों को सब के बीच खड़ा कर प्रश्न करना प्रारम्भ कर दिया: “तुमने किस अधिकार से या किस नाम में यह किया है?”

तब पवित्रात्मा से भरकर पेतरॉस ने उत्तर दिया: “सम्मान्य राजागण और समाज के पुरनियों! यदि आज हमारा परीक्षण इसलिए किया जा रहा है कि एक अपंग का कल्याण हुआ है और इसलिए कि यह व्यक्ति किस प्रक्रिया द्वारा स्वस्थ हुआ है, 10 तो आप सभी को तथा, सभी इस्राएल राष्ट्र को यह मालूम हो कि यह सब नाज़रेथवासी, मसीह येशु के द्वारा किया गया है, जिन्हें आपने क्रूस का मृत्युदण्ड दिया, किन्तु जिन्हें परमेश्वर ने मरे हुओं में से दोबारा जीवित किया. आज उन्हीं के नाम के द्वारा स्वस्थ किया गया यह व्यक्ति आपके सामने खड़ा है. 11 मसीह येशु ही वह चट्टान हैं

“‘जिन्हें आप भवन निर्माताओं ने ठुकरा कर अस्वीकृत कर दिया,
    जो कोने का प्रधान पत्थर बन गए.’

12 उद्धार किसी अन्य में नहीं है क्योंकि आकाश के नीचे मनुष्यों के लिए दूसरा कोई नाम दिया ही नहीं गया जिसके द्वारा हमारा उद्धार हो.”

13 पेतरॉस तथा योहन का यह साहस देख और यह जानकर कि वे दोनों अनपढ़ और साधारण व्यक्ति हैं, वे चकित रह गए. उन्हें धीरे-धीरे यह याद आया कि ये वे हैं, जो मसीह येशु के साथी रहे हैं. 14 किन्तु स्वस्थ हुए व्यक्ति की उपस्थिति के कारण वे कुछ न कह सके; 15 उन्होंने उन्हें सभागार से बाहर जाने की आज्ञा दी. तब वे आपस में विचार-विमर्श करने लगे, 16 “हम इनके साथ क्या करें? यह तो स्पष्ट है कि इनके द्वारा एक असाधारण चमत्कार अवश्य हुआ है और यह येरूशालेमवासियों को भी मालूम हो चुका है. इस सच को हम नकार नहीं सकते. 17 किन्तु लोगों में इस समाचार का और अधिक प्रसार न हो, हम इन्हें यह चेतावनी दें कि अब वे किसी से भी इस नाम का वर्णन करते हुए बातचीत न करें.”

18 तब उन्होंने उन्हें भीतर बुलाकर आज्ञा दी कि वे न तो येशु नाम का वर्णन करें और न ही उसके विषय में कोई शिक्षा दें. 19 किन्तु पेतरॉस और योहन ने उन्हें उत्तर दिया, “आप स्वयं निर्णय कीजिए कि परमेश्वर की दृष्टि में उचित क्या है: आपकी आज्ञा का पालन या परमेश्वर की आज्ञा का. 20 हमसे तो यह हो ही नहीं सकता कि जो कुछ हमने देखा और सुना है उसका वर्णन न करें.”

21 इस पर यहूदी प्रधानों ने उन्हें दोबारा धमकी दे कर छोड़ दिया. उन्हें यह सूझ ही नहीं रहा था कि उन्हें किस आधार पर दण्ड दिया जाए क्योंकि सभी लोग इस घटना के लिए परमेश्वर की स्तुति कर रहे थे. 22 उस व्यक्ति की उम्र, जो अद्भुत रूप से स्वस्थ हुआ था, चालीस वर्ष से अधिक थी.

सताहट के समय प्रेरितों की प्रार्थना

23 मुक्त होने पर प्रेरितों ने अपने साथियों को जा बताया कि प्रधान पुरोहितों और पुरनियों ने उनसे क्या-क्या कहा था. 24 यह विवरण सुन कर उन सबने एक मन हो ऊँचे शब्द से परमेश्वर की वन्दना की: “परम प्रधान प्रभु,” आप ही हैं जिन्होंने स्वर्ग, पृथ्वी, समुद्र और इनमें निवास कर रहे प्राणियों की सृष्टि की है. 25 आपने ही पवित्रात्मा से अपने सेवक, हमारे पूर्वज दाविद के द्वारा कहा:

“‘राष्ट्र क्रोधित क्यों होते हैं
    जातियां व्यर्थ योजनाएँ क्यों करती हैं?
26 पृथ्वी के राजा मोर्चा बान्धते
    और शासक प्रभु के विरुद्ध
और उनके अभिषिक्त के विरुद्ध.’”

27 एकजुट हो उठ खड़े होते हैं. “यह एक सच्चाई है कि इस नगर में हेरोदेस तथा पोन्तियुस पिलातॉस दोनों ही इस्राएलियों तथा अन्यजातियों के साथ मिलकर आपके द्वारा अभिषिक्त, आपके पवित्र सेवक मसीह येशु के विरुद्ध एकजुट हो गए 28 कि जो कुछ आपके सामर्थ्य और उद्देश्य के अनुसार पहले से निर्धारित था, वही हो. 29 प्रभु, उनकी धमकियों की ओर ध्यान दीजिए और अपने दासों को यह सामर्थ दीजिए कि वे आपके वचन का प्रचार बिना डर के कर सकें 30 जब आप अपने सामर्थी स्पर्श के द्वारा चंगा करते तथा अपने पवित्र सेवक मसीह येशु के द्वारा अद्भुत चिह्नों का प्रदर्शन करते जाते हैं.”

31 उनकी यह प्रार्थना समाप्त होते ही वह भवन, जिसमें वे इकट्ठा थे, थरथरा गया और वे सभी पवित्रात्मा से भर गए और बिना डर के परमेश्वर के सन्देश का प्रचार करने लगे.

शिष्यों का धन

32 शिष्यों के इस समुदाय में सभी एक मन और एक प्राण थे. कोई भी अपने धन पर अपना अधिकार नहीं जताता था. उन सभी का धन एक में मिला हुआ था. 33 प्रेरितगण असाधारण सामर्थ के साथ प्रभु मसीह येशु के दोबारा जी उठने की गवाही दिया करते थे और परमेश्वर का असीम अनुग्रह उन पर बना था. 34 उनमें कोई भी निर्धन नहीं था क्योंकि उनमें जो खेतों व मकानों के स्वामी थे, अपनी सम्पत्ति बेच कर उससे प्राप्त धनराशि लाते 35 और प्रेरितों के चरणों में रख देते थे, जिसे ज़रूरत के अनुसार निर्धनों में बांट दिया जाता था.

बारनबास की उदारता

36 योसेफ़ नामक एक कुप्रोसवासी लेवी थे, जिन्हें प्रेरितों द्वारा बारनबास नाम दिया गया था, जिसका अर्थ है प्रोत्साहन का पुत्र, 37 उन्होंने अपनी भूमि को बेच दिया और उससे प्राप्त धन लाकर प्रेरितों के चरणों में रख दिया.

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