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Read the New Testament in 24 Weeks

A reading plan that walks through the entire New Testament in 24 weeks of daily readings.
Duration: 168 days
Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)
Version
मत्ती 23

यीशु द्वारा यहूदी धर्म-नेताओं की आलोचना

(मरकुस 12:38-40; लूका 11:37-52; 20:45-47)

23 यीशु ने फिर अपने शिष्यों और भीड़ से कहा। उसने कहा, “यहूदी धर्म शास्त्री और फ़रीसी मूसा के विधान की व्याख्या के अधिकारी हैं। इसलिए जो कुछ वे कहें उस पर चलना और उसका पालन करना। किन्तु जो वे करते हैं वह मत करना। मैं यह इसलिए कहता हूँ क्योंकि वे बस कहते हैं पर करते नहीं हैं। वे लोगों के कंधों पर इतना बोझ लाद देते हैं कि वे उसे उठा कर चल ही न सकें और लोगों पर दबाव डालते हैं कि वे उसे लेकर चलें। किन्तु वे स्वयं उनमें से किसी पर भी चलने के लिए पाँव तक नहीं हिलाते।

“वे अच्छे कर्म इसलिए करते हैं कि लोग उन्हें देखें। वास्तव में वे अपने ताबीज़ों और पोशाकों की झालरों को इसलिये बड़े से बड़ा करते रहते हैं ताकि लोग उन्हें धर्मात्मा समझें। वे उत्सवों में सबसे महत्वपूर्ण स्थान पाना चाहते हैं। आराधनालयों में उन्हें प्रमुख आसन चाहिये। बाज़ारों में वे आदर के साथ नमस्कार कराना चाहते हैं। और चाहते हैं कि लोग उन्हें ‘रब्बी’ कहकर संबोधित करें।

“किन्तु तुम लोगों से अपने आप को ‘रब्बी’ मत कहलवाना क्योंकि तुम्हारा सच्चा गुरु तो बस एक है। और तुम सब केवल भाई बहन हो। धरती पर लोगों को तुम अपने में से किसी को भी ‘पिता’ मत कहने देना। क्योंकि तुम्हारा पिता तो बस एक ही है, और वह स्वर्ग में है। 10 न ही लोगों को तुम अपने को स्वामी कहने देना क्योंकि तुम्हारा स्वामी तो बस एक ही है और वह मसीह है। 11 तुममें सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति वही होगा जो तुम्हारा सेवक बनेगा। 12 जो अपने आपको उठायेगा, उसे नीचा किया जाएगा और जो अपने आपको नीचा बनाएगा, उसे उठाया जायेगा।

13 “अरे कपटी धर्मशास्त्रियों! और फरीसियों! तुम्हें धिक्कार है। तुम लोगों के लिए स्वर्ग के राज्य का द्वार बंद करते हो। न तो तुम स्वयं उसमें प्रवेश करते हो और न ही उनको जाने देते हो जो प्रवेश के लिए प्रयत्न कर रहे हैं। 14 [a]

15 “अरे कपटी धर्मशास्त्रियों और फरीसियों! तुम्हें धिक्कार है। तुम किसी को अपने पंथ में लाने के लिए धरती और समुद्र पार कर जाते हो। और जब वह तुम्हारे पंथ में आ जाता है तो तुम उसे अपने से भी दुगुना नरक का पात्र बना देते हो!

16 “अरे अंधे रहनुमाओं! तुम्हें धिक्कार है जो कहते हो यदि कोई मन्दिर की सौगंध खाता है तो उसे उस शपथ को रखना आवश्यक नहीं है किन्तु यदि कोई मन्दिर के सोने की शपथ खाता है तो उसे उस शपथ का पालन आवश्यक है। 17 अरे अंधे मूर्खो! बड़ा कौन है? मन्दिर का सोना या वह मन्दिर जिसने उस सोने को पवित्र बनाया।

18 “तुम यह भी कहते हो ‘यदि कोई वेदी की सौगंध खाता है तो कुछ नहीं,’ किन्तु यदि कोई वेदी पर रखे चढ़ावे की सौगंध खाता है तो वह अपनी सौगंध से बँधा है। 19 अरे अंधो! कौन बड़ा है? वेदी पर रखा चढ़ावा या वह वेदी जिससे वह चढ़ावा पवित्र बनता है? 20 इसलिये यदि कोई वेदी की शपथ लेता है तो वह वेदी के साथ वेदी पर जो रखा है, उस सब की भी शपथ लेता है। 21 वह जो मन्दिर है, उसकी भी शपथ लेता है। वह मन्दिर के साथ जो मन्दिर के भीतर है, उसकी भी शपथ लेता है। 22 और वह जो स्वर्ग की शपथ लेता है, वह परमेश्वर के सिंहासन के साथ जो उस सिंहासन पर विराजमान हैं उसकी भी शपथ लेता है।

23 “अरे कपटी यहूदी धर्मशास्त्रियों और फरीसियों! तुम्हारा जो कुछ है, तुम उसका दसवाँ भाग, यहाँ तक कि अपने पुदीने, सौंफ और जीरे तक के दसवें भाग को परमेश्वर को देते हो। फिर भी तुम व्यवस्था की महत्वपूर्ण बातों यानी न्याय, दया और विश्वास का तिरस्कार करते हो। तुम्हें उन बातों की उपेक्षा किये बिना इनका पालन करना चाहिये था। 24 ओ अंधे रहनुमाओं! तुम अपने पानी से मच्छर तो छानते हो पर ऊँट को निगल जाते हो।

25 “अरे कपटी यहूदी धर्मशास्त्रियों! और फरीसियों! तुम्हें धिक्कार है। तुम अपनी कटोरियाँ और थालियाँ बाहर से तो धोकर साफ करते हो पर उनके भीतर जो तुमने छल कपट या अपने लिये रियासत में पाया है, भरा है। 26 अरे अंधे फरीसियों! पहले अपने प्याले को भीतर से माँजो ताकि भीतर के साथ वह बाहर से भी स्वच्छ हो जाये।

27 “अरे कपटी यहूदी धर्मशास्त्रियों! और फरीसियों! तुम्हें धिक्कार है। तुम लिपी-पुती समाधि के समान हो जो बाहर से तो सुंदर दिखती हैं किन्तु भीतर से मरे हुओं की हड्डियों और हर तरह की अपवित्रता से भरी होती हैं। 28 ऐसे ही तुम बाहर से तो धर्मात्मा दिखाई देते हो किन्तु भीतर से छलकपट और बुराई से भरे हुए हो।

29 “अरे कपटी यहूदी धर्मशास्त्रियों! और फरीसियों! तुम नबियों के लिये स्मारक बनाते हो और धर्मात्माओं की कब्रों को सजाते हो। 30 और कहते हो कि ‘यदि तुम अपने पूर्वजों के समय में होते तो नबियों को मारने में उनका हाथ नहीं बटाते।’ 31 मतलब यह कि तुम मानते हो कि तुम उनकी संतान हो जो नबियों के हत्यारे थे। 32 सो जो तुम्हारे पुरखों ने शुरु किया, उसे पूरा करो।

33 “अरे साँपों और नागों की संतानों! तुम कैसे सोचते हो कि तुम नरक भोगने से बच जाओगे। 34 इसलिये मैं तुम्हें बताता हूँ कि मैं तुम्हारे पास नबियों, बुद्धिमानों और गुरुओं को भेज रहा हूँ। तुम उनमें से बहुतों को मार डालोगे और बहुतों को क्रूस पर चढ़ाओगे। कुछ एक को तुम अपनी आराधनालयों में कोड़े लगवाओगे और एक नगर से दूसरे नगर उनका पीछा करते फिरोगे।

35 “परिणामस्वरूप निर्दोष हाबील से लेकर बिरिक्याह के बेटे जकरयाह तक जिसे तुमने मन्दिर के गर्भ गृह और वेदी के बीच मार डाला था, हर निरपराध व्यक्ति की हत्या का दण्ड तुम पर होगा। 36 मैं तुम्हें सत्य कहता हूँ इस सब कुछ के लिये इस पीढ़ी के लोगों को दंड भोगना होगा।”

यरूशलेम के लोगों पर यीशु को खेद

(लूका 13:34-35)

37 “ओ यरूशलेम, यरूशलेम! तू वह है जो नबियों की हत्या करता है और परमेश्वर के भेजे दूतों को पत्थर मारता है। मैंने कितनी बार चाहा है कि जैसे कोई मुर्गी अपने चूज़ों को अपने पंखों के नीचे इकट्ठा कर लेती है वैसे ही मैं तेरे बच्चों को एकत्र कर लूँ। किन्तु तुम लोगों ने नहीं चाहा। 38 अब तेरा मन्दिर पूरी तरह उजड़ जायेगा। 39 सचमुच मैं तुम्हें बताता हूँ तुम मुझे तब तक फिर नहीं देखोगे जब तक तुम यह नहीं कहोगे: ‘धन्य है वह जो प्रभु के नाम पर आ रहा है!’(A)

Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)

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