Read the New Testament in 24 Weeks
पुस्तक तथा मेमना
5 जो सिंहासन पर बैठे थे, उनके दायें हाथ में मैंने एक पुस्तक देखी, जिसके पृष्ठों पर दोनों ओर लिखा हुआ था, तथा जो सात मोहरों द्वारा बन्द की हुई थी. 2 तब मैंने एक शक्तिशाली स्वर्गदूत को देखा, जो ऊँचे शब्द में यह घोषणा कर रहा था, “कौन है वह, जिसमें यह योग्यता है कि वह इन मोहरों को तोड़ सके तथा इस पुस्तक को खोल सके?” 3 न तो स्वर्ग में, न पृथ्वी पर और न ही पृथ्वी के नीचे कोई इस योग्य था कि इस पुस्तक को खोल या पढ़ सके. 4 मेरी आँखों से आँसू बहने लगे क्योंकि कोई भी ऐसा योग्य न निकला, जो इस पुस्तक को खोल या पढ़ सके. 5 तब उन पुरनियों में से एक ने मुझसे कहा, “बन्द करो यह रोना! देखो, यहूदा कुल का वह सिंह, दाविद वंश का मूल जयवन्त हुआ है कि वही इन सात मोहरों को तोड़े. वही इस पुस्तक को खोलने में सामर्थी है.”
6 तब मैंने एक मेमने को, मानो जिसका वध बलि के लिए कर दिया गया हो, सिंहासन, चारों प्राणियों तथा पुरनियों के बीच खड़े हुए देखा, जिसके सात सींग तथा सात आँखें थीं, जो सारी पृथ्वी पर भेजे गए परमेश्वर की सात आत्मा हैं. 7 मेम्ने ने आगे बढ़कर, उनके दायें हाथ से, जो सिंहासन पर विराजमान थे, इस पुस्तक को ले लिया. 8 जब उसने पुस्तक ली तो चारों प्राणी तथा चौबीसों प्राचीन उस मेमने के सामने नतमस्तक हो गए. उनमें से हरेक के हाथ में वीणा तथा धूप—पवित्र लोगों की प्रार्थनाओं—से भरे सोने के बर्तन थे. 9 वे यह नया गीत गा रहे थे:
“आप ही पुस्तक लेकर इसकी मोहरें खोलने के योग्य हैं.
आपका वध बलि के लिए किया गया तथा आपने अपने लहू द्वारा हर एक गोत्र,
भाषा, जन, राष्ट्र तथा मनुष्यों को परमेश्वर के लिए मोल लिया है.
10 आपने उन्हें परमेश्वर की प्रजा बनाया तथा परमेश्वर की सेवा के लिए
पुरोहित ठहराया गया है. वे इस पृथ्वी पर राज्य करेंगे.”
11 तब मैंने अनेकों स्वर्गदूतों का शब्द सुना, ये स्वर्गदूत अनगिनत थे—हज़ारों और हज़ारों. ये स्वर्गदूत सिंहासन, चारों प्राणियों तथा पुरनियों के चारों ओर खड़े हुए थे. 12 वे स्वर्गदूत ऊँचे शब्द में यह गा रहे थे:
“वह मेमना, जिसका वध किया गया,
सामर्थ्य, वैभव, ज्ञान, शक्ति, आदर,
महिमा और स्तुति का अधिकारी है.”
13 इसी प्रकार मैंने सारी सृष्टि—स्वर्ग में, इस पृथ्वी पर तथा इस पृथ्वी के नीचे, समुद्र तथा उसमें बसी हुई हर एक वस्तु को यह कहते सुना:
“मेमने का तथा उनका,
जो सिंहासन पर बैठे हैं,
स्तुति, आदर, महिमा तथा प्रभुता,
सदा-सर्वदा रहे.”
14 चारों प्राणियों ने कहा, “आमेन” तथा पुरनियों ने दण्डवत् हो आराधना की.
पहली मोहर
6 तब मैंने मेमने को सात मोहरों में से एक को तोड़ते देखा तथा उन चार प्राणियों में से एक को गर्जन-से शब्द में यह कहते सुना: “आओ!” 2 तभी वहाँ मुझे एक घोड़ा दिखाई दिया, जो सफ़ेद रंग का था. उसके हाथ में, जो घोड़े पर बैठा हुआ था, एक धनुष था. उसे एक मुकुट पहनाया गया और वह एक विजेता के समान विजय प्राप्त करने निकल पड़ा.
3 जब उसने दूसरी मोहर तोड़ी तो मैंने दूसरे प्राणी को यह कहते सुना: “यहाँ आओ!” 4 तब मैंने वहाँ एक अन्य घोड़े को निकलते हुए देखा, जो आग के समान लाल रंग का था. उसे, जो उस पर बैठा हुआ था, एक बड़ी तलवार दी गई थी तथा उसे पृथ्वी पर से शान्ति उठा लेने की आज्ञा दी गई कि लोग एक दूसरे का वध करें.
5 जब उसने तीसरी मोहर तोड़ी तो मैंने तीसरे प्राणी को यह कहते हुए सुना: “यहाँ आओ!” तब मुझे वहाँ एक घोड़ा दिखाई दिया, जो काले रंग का था. उसके हाथ में, जो उस पर बैठा हुआ था, एक तराज़ू था. 6 तब मैंने मानो उन चारों प्राणियों के बीच से यह शब्द सुना, “एक दिन की मज़दूरी का एक किलो गेहूं, एक दिन की मज़दूरी का तीन किलो जौ किन्तु तेल और दाखरस की हानि न होने देना.”
7 जब उसने चौथी मोहर खोली, तब मैंने चौथे प्राणी को यह कहते हुए सुना “यहाँ आओ!” 8 तब मुझे वहाँ एक घोड़ा दिखाई दिया, जो गन्दले हरे-से रंग का था. जो उस पर बैठा था, उसका नाम था मृत्यु. अधोलोक उसके पीछे-पीछे चला आ रहा था. उसे पृथ्वी के एक चौथाई भाग को तलवार, अकाल, महामारी तथा जंगली पशुओं द्वारा नाश करने का अधिकार दिया गया.
9 जब उसने पाँचवीं मोहर तोड़ी तो मैंने वेदी के नीचे उनकी आत्माओं को देखा, जिनका परमेश्वर के वचन के कारण तथा स्वयं उनमें दी गई गवाही के कारण वध कर दिया गया था. 10 वे आत्माएँ ऊँचे शब्द में पुकार उठीं, “कब तक, सबसे महान प्रभु! सच पर चलनेवाले और पवित्र! आप न्याय शुरु करने के लिए कब तक ठहरे रहेंगे और पृथ्वी पर रहने वालों से हमारे लहू का बदला कब तक न लेंगे?” 11 उनमें से हरेक को सफ़ेद वस्त्र देकर उनसे कहा गया कि वे कुछ और प्रतीक्षा करें, जब तक उनके उन सहकर्मियों और भाइयों की तय की गई संख्या पूरी न हो जाए, जिनकी हत्या उन्हीं की तरह की जाएगी.
12 मैंने उसे छठी मोहर तोड़ते हुए देखा. तभी एक भीषण भूकम्प आया. सूर्य ऐसा काला पड़ गया, जैसे बालों से बनाया हुआ कम्बल और पूरा चन्द्रमा ऐसा लाल हो गया जैसे लहू. 13 तारे पृथ्वी पर ऐसे आ गिरे जैसे आँधी आने पर कच्चे अंजीर भूमि पर आ गिरते हैं. 14 आकाश फट कर ऐसा हो गया जैसे चमड़े का पत्र लिपट जाता है. हर एक पहाड़ और द्वीप अपने स्थान से हटा दिये गये.
15 तब पृथ्वी के राजा, महापुरुष, सेनानायक, सम्पन्न तथा बलवन्त, सभी दास तथा स्वतन्त्र व्यक्ति गुफ़ाओं तथा पहाड़ों के पत्थरों में जा छिपे, 16 वे पहाड़ों तथा पत्थरों से कहने लगे, “हम पर आ गिरो और हमें मेमने के क्रोध से बचा लो तथा उनकी उपस्थिति से छिपा लो, जो सिंहासन पर बैठे हैं, 17 क्योंकि उनके क्रोध का भयानक दिन आ पहुँचा है और कौन इसे सह सकेगा?”
New Testament, Saral Hindi Bible (नए करार, सरल हिन्दी बाइबल) Copyright © 1978, 2009, 2016 by Biblica, Inc.® All rights reserved worldwide.