Read the New Testament in 24 Weeks
जीवनदायी शब्द
1 जीवन देने वाले उस वचन के विषय में, जो आदि से था, जिसे हमने सुना, जिसे हमने अपनी आँखों से देखा, ध्यान से देखा और जिसको हमने छुआ. 2 जब यह जीवन प्रकट हुआ, तब हमने उसे देखा और अब हम उसके गवाह हैं. हम तुम्हें उसी अनन्त जीवन का सन्देश सुना रहे हैं, जो पिता के साथ था और जो हम पर प्रकट किया गया. 3 हमारे समाचार का विषय वही है, जिसे हमने देखा और सुना है. यह हम तुम्हें भी सुना रहे हैं कि हमारे साथ तुम्हारी भी संगति हो. वास्तव में हमारी यह संगति पिता और उनके पुत्र मसीह येशु के साथ है. 4 यह सब हमने इसलिए लिखा है कि हमारा आनन्द पूरा हो जाए.
ज्योति में स्वभाव
5 यही है वह समाचार, जो हमने उनसे सुना और अब हम तुम्हें सुनाते हैं: परमेश्वर ज्योति हैं. अन्धकार उनमें ज़रा सा भी नहीं. 6 यदि हम यह दावा करते हैं कि हमारी उनके साथ संगति है और फिर भी हम अन्धकार में चलते हैं तो हम झूठे हैं और सच पर नहीं चलते. 7 किन्तु यदि हम ज्योति में चलते हैं, जैसे वह स्वयं ज्योति में हैं, तो हमारी संगति आपसी है और उनके पुत्र मसीह येशु का लहू हमें सभी पापों से शुद्ध कर देता है.
8 यदि हम पापहीन होने का दावा करते हैं, तो हमने स्वयं को धोखे में रखा है और सच हममें है ही नहीं. 9 यदि हम अपने पापों को स्वीकार करें तो वह हमारे पापों को क्षमा करने तथा हमें सभी अधर्मों से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी हैं. 10 यदि हम यह दावा करते हैं कि हमने पाप किया ही नहीं तो हम परमेश्वर को झूठा ठहराते हैं तथा उनके वचन का हमारे अन्दर वास है ही नहीं.
2 मेरे बच्चों, मैं यह सब तुम्हें इसलिए लिख रहा हूँ कि तुम पाप न करो किन्तु यदि किसी से पाप हो ही जाए तो पिता के पास हमारे लिए एक सहायक है मसीह येशु, जो धर्मी हैं. 2 वही हमारे पापों के लिए प्रायश्चित-बलि हैं—मात्र हमारे ही पापों के लिए नहीं परन्तु सारे संसार के पापों के लिए.
दूसरी ज़रूरत: आदेशों का पालन
3 परमेश्वर के आदेशों का पालन करना इस बात का प्रमाण है कि हमने परमेश्वर को जान लिया है. 4 वह, जो यह कहता तो रहता है, “मैं परमेश्वर को जानता हूँ”, किन्तु उनके आदेशों और आज्ञाओं के पालन नहीं करता, झूठा है और उसमें सच है ही नहीं 5 परन्तु जो कोई उनकी आज्ञा का पालन करता है, उसमें परमेश्वर का प्रेम वास्तव में सिद्धता तक पहुँचा दिया गया है. परमेश्वर में हमारे स्थिर बने रहने का प्रमाण यह है: 6 जो कोई यह दावा करता है कि वह मसीह येशु में स्थिर है, तो वह उन्हीं के समान चाल-चलन भी करे.
7 प्रियजन, मैं तुम्हें कोई नई आज्ञा नहीं परन्तु वही आज्ञा लिख रहा हूँ, जो प्रारम्भ ही से थी; यह वही समाचार है, जो तुम सुन चुके हो. 8 फिर भी मैं तुम्हें एक नईं आज्ञा लिख रहा हूँ, जो मसीह में सच था तथा तुममें भी सच है. अन्धकार मिट रहा है तथा वास्तविक ज्योति चमकी है.
9 वह, जो यह दावा करता है कि वह ज्योति में है, फिर भी अपने भाई से घृणा करता है, अब तक अन्धकार में है. 10 जो साथी विश्वासी से प्रेम करता है, उसका वास ज्योति में है, तथा उसमें ऐसा कुछ भी नहीं जिससे वह ठोकर खाए. 11 परन्तु वह, जो साथी विश्वासी से घृणा करता है, अन्धकार में है, अन्धकार में ही चलता है तथा नहीं जानता कि वह किस दिशा में बढ़ रहा है क्योंकि अन्धकार ने उसे अंधा बना दिया है.
तीसरी ज़रूरत: संसार में मन न लगाना
12 बच्चों, यह सब मैं तुम्हें इसलिए लिख रहा हूँ कि मसीह येशु के नाम के लिए
तुम्हारे पाप-क्षमा किए गए हैं.
13 तुम्हें, जो पिता हो,
मैं यह इसलिए लिख रहा हूँ कि तुम उन्हें जानते हो, जो आदि से हैं.
तुम्हें, जो युवा हो, इसलिए कि तुमने उस दुष्ट को हरा दिया है.
14 प्रभु में नए जन्मे शिशुओं, तुम्हें इसलिए कि तुम पिता को जानते हो.
तुम्हें, जो पिता हो, मैं इसलिए लिख रहा हूँ कि तुम उन्हें जानते हो,
जो आदि से हैं.
तुम्हें, जो नौजवान हो, इसलिए कि तुम बलवन्त हो,
तुम में परमेश्वर के शब्द का वास है
और तुमने उस दुष्ट को हरा दिया है.
संसार से प्रेम मत करो
15 न तो संसार से प्रेम रखो और न ही सांसारिक वस्तुओं से. यदि कोई संसार से प्रेम रखता है, उसमें पिता का प्रेम होता ही नहीं. 16 वह सब, जो संसार में समाया हुआ है—शरीर की अभिलाषा, आँखों की लालसा तथा जीवनशैली का घमण्ड़—पिता की ओर से नहीं परन्तु संसार की ओर से है. 17 संसार अपनी अभिलाषाओं के साथ मिट रहा है, किन्तु वह, जो परमेश्वर की इच्छा पूरी करता है, सर्वदा बना रहता है.
चौथी ज़रूरत: मसीह-विरोधियों से सावधानी
18 प्रभु में नए जन्मे शिशुओं, यह अन्तिम समय है और ठीक जैसा तुमने सुना ही है कि मसीह-विरोधी प्रकट होने पर है, इस समय भी अनेक मसीह-विरोधी उठ खड़े हुए हैं, जिससे यह साबित होता है कि यह अन्तिम समय है. 19 वे हमारे बीच ही से बाहर चले गए—वास्तव में वे हमारे थे ही नहीं—यदि वे हमारे होते तो हमें छोड़ कर न जाते. उनका हमें छोड़ कर जाना ही यह स्पष्ट कर देता है कि उनमें से कोई भी हमारा न था 20 किन्तु तुम्हारा अभिषेक उन पवित्र मसीह येशु से है, इसका तुम्हें अहसास भी है.
21 मेरा यह सब लिखने का उद्धेश्य यह नहीं कि तुम सच्चाई से अनजान हो परन्तु यह कि तुम इससे परिचित हो. किसी भी झूठ का जन्म सच से नहीं होता. 22 झूठा कौन है, सिवाय उसके, जो येशु के मसीह होने की बात को अस्वीकार करता है? यही मसीह-विरोधी है, जो पिता और पुत्र को अस्वीकार करता है. 23 हर एक, जो पुत्र को अस्वीकार करता है, पिता भी उसके नहीं हो सकते. जो पुत्र का अंगीकार करता है, पिता परमेश्वर भी उसके हैं. 24 इसका ध्यान रखो कि तुम में वही शिक्षा स्थिर रहे, जो तुमने प्रारम्भ से सुनी है. यदि वह शिक्षा, जो तुमने प्रारम्भ से सुनी है, तुम में स्थिर है तो तुम भी पुत्र और पिता में बने रहोगे. 25 अनन्त जीवन ही उनके द्वारा हमसे की गई प्रतिज्ञा है. 26 यह सब मैंने तुम्हें उनके विषय में लिखा है, जो तुम्हें मार्ग से भटकाने का प्रयास कर रहे हैं.
27 तुम्हारी स्थिति में प्रभु के द्वारा किया गया वह अभिषेक का तुममें स्थिर होने के प्रभाव से यह ज़रूरी ही नहीं कि कोई तुम्हें शिक्षा दे. उनके द्वारा किया गया अभिषेक ही तुम्हें सभी विषयों की शिक्षा देता है. यह शिक्षा सच है, झूठ नहीं. ठीक जैसी शिक्षा तुम्हें दी गई है, तुम उसी के अनुसार मसीह में स्थिर बने रहो.
परमेश्वर में स्थिर रहना
28 बच्चों, उनमें स्थिर रहो कि जब वह प्रकट हों तो हम निड़र पाए जाएँ तथा उनके आगमन पर हमें लज्जित न होना पड़े. 29 यदि तुम्हें यह अहसास है कि वह धर्मी हैं तो यह जान लो कि हर एक धर्मी व्यक्ति भी उन्हीं से उत्पन्न हुआ है.
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