Read the New Testament in 24 Weeks
प्रेरित के अधिकार
9 क्या मैं स्वतन्त्र नहीं? क्या मैं प्रेरित नहीं? क्या मैंने हमारे प्रभु मसीह येशु को साक्षात नहीं देखा? क्या तुम प्रभु में मेरे परिश्रम का प्रतिफल नहीं? 2 भले ही मैं अन्यों के लिए प्रेरित नहीं किन्तु तुम्हारे लिए तो हूँ क्योंकि तुम प्रभु में मेरी प्रेरिताई की मोहर हो.
3 जो मुझ पर दोष लगाते हैं, उनसे अपने पक्ष में मेरा यह कहना है: 4 क्या हमें तुम्हारे भोजन में भाग लेने का अधिकार नहीं? 5 क्या अन्य प्रेरितों, प्रभु के भाइयों तथा कैफ़स की भांति ही हमें भी अपने साथ अपनी विश्वासी पत्नी को ले जाने का अधिकार नहीं? 6 क्या बारनबास और मैं ही ऐसे हैं, जो खुद अपनी कमाई करने के लिए मजबूर हैं?
7 कौन सैनिक ऐसा है, जो सेना में सेवा करते हुए अपना खर्च स्वयं उठाता है? कौन है, जो दाख की बारी को लगाता तो है और स्वयं उसका फल नहीं खाता? या कौन ऐसा पशुपालक है, जो अपने पशुओं के दूध का उपयोग न करता हो? 8 क्या मैं यह सिर्फ मनुष्य की रीति से कह रहा हूँ? क्या व्यवस्था भी यही नहीं कहती? 9 जैसा कि मोशेह की व्यवस्था में लिखा है: दवनी करते बैल का मुख न बांधो. क्या परमेश्वर को मात्र बैलों का ही ध्यान है? 10 क्या वह यह हमारे लिए भी नहीं कह रहे थे? निस्सन्देह यह हमारे हित में ही लिखा गया है: उचित है कि किसान आशा में खेत जोते तथा जो दवनी करता है, वह दवनी से ही उपज का भाग पाने की आशा करे. 11 यदि हमने तुममें आत्मिक बीज बोए हैं तो क्या तुमसे भौतिक उपज की आशा करना ज़्यादा उम्मीद करना है? 12 यदि तुम पर दूसरों का अधिकार है तो क्या तुम पर हमारा अधिकार उन सबसे बढ़कर नहीं?
फिर भी हमने इस अधिकार का उपयोग नहीं किया. इसके विपरीत हम सब कुछ धीरज के साथ सहते रहे कि मसीह के ईश्वरीय सुसमाचार के प्रचार में कोई बाधा न आए. 13 क्या तुम्हें मालूम नहीं कि मन्दिर में काम करने वालों का भरण-पोषण मन्दिर से ही होता है और जो बलि वेदी पर चढ़ाई जाती है, वे उसी बलि में से अपना भाग प्राप्त करते हैं? 14 इसी प्रकार प्रभु की आज्ञा है कि वे, जो ईश्वरीय सुसमाचार का प्रचार करते हैं, उसी के द्वारा अपनी रोज़ी रोटी कमाएं.
15 किन्तु मैंने इनमें से किसी भी अधिकार का उपयोग नहीं किया और न ही मैं इस उद्धेश्य से लिख रहा हूँ कि मेरे लिए कुछ किया जाए. इसके बजाय कि कोई मुझे मेरे इस गौरव से वंचित करे, मैं मर जाना उचित समझता हूँ, 16 तो यदि मैं ईश्वरीय सुसमाचार का प्रचार करता हूँ तो इसमें घमण्ड़ कैसा! यह तो मुझे सौंपी गई ज़िम्मेदारी है! धिक्कार है मुझ पर यदि मैं ईश्वरीय सुसमाचार का प्रचार न करूँ. 17 यदि मैं अपनी इच्छा से प्रचार करता हूँ तो मुझे उसका प्रतिफल प्राप्त होगा किन्तु यदि मैं प्रचार बिना इच्छा के करता हूँ तो यह मात्र ज़िम्मेदारी पूरी करना ही हुआ. 18 तब क्या है मेरा प्रतिफल? यही कि मैं ईश्वरीय सुसमाचार का प्रचार मुफ्त में करता रहूँ और इससे सम्बन्धित अपने अधिकारों का उपयोग न करूँ.
19 यद्यपि मैं किसी के भी अधीन नहीं हूँ फिर भी मैंने स्वयं को सबका दास बना लिया है कि मैं ज़्यादा से ज़्यादा को जीत सकूँ. 20 मैं यहूदियों के लिए यहूदियों जैसा बन गया कि मैं उन्हें जीत सकूँ. व्यवस्था के अधीनों के लिए मैं व्यवस्था के अधीन बन गया—यद्यपि मैं स्वयं व्यवस्था के अधीन नहीं—कि मैं उन्हें जीत सकूँ, जो व्यवस्था के अधीन हैं. 21 जो व्यवस्था के अधीन नहीं हैं, मैं उन्हीं के समान बन गया—यद्यपि मैं स्वयं परमेश्वर की व्यवस्था से स्वतन्त्र नहीं, मसीह की व्यवस्था के अधीनस्थ हूँ कि मैं उन्हें जीत सकूँ, जो व्यवस्था के अधीन नहीं हैं. 22 दुर्बलों के लिए मैं स्वयं दुर्बल बन गया कि मैं उन्हें जीत सकूँ—मैं हर एक प्रकार के व्यक्ति के लिए उन्हीं के अनुरूप बन गया कि किसी न किसी रीति से मेरे हर एक प्रयास द्वारा कुछ का उद्धार हो जाए. 23 मैं यह सब ईश्वरीय सुसमाचार के लिए करता हूँ कि मैं इसमें अन्यों का सहभागी बन जाऊँ.
24 क्या तुम नहीं जानते कि प्रतियोगिता में दौड़ते तो सभी हैं किन्तु पुरस्कार मात्र एक को ही मिलता है. तुम ऐसे दौड़ो कि पुरस्कार तुम्हें प्राप्त हो.
25 हर एक प्रतियोगी, जो प्रतियोगिता में भाग लेता है, कठोर संयम का पालन करता है. वे तो नाशमान मुकुट प्राप्त करने के उद्धेश्य से यह सब करते हैं किन्तु हम यह सब अविनाशी मुकुट प्राप्त करने के लिए करते हैं. 26 मैं लक्ष्यहीन व्यक्ति के समान नहीं दौड़ता. मैं हवा में घूँसे नहीं मारता. 27 मैं अपने शरीर को कष्ट देते हुए अपने वश में रखता हूँ—ऐसा न हो कि मैं दूसरों को तो उपदेश दूँ और स्वयं अयोग्य करार हो जाऊँ.
इस्राएल के इतिहास से शिक्षाएं और चेतावनी
10 प्रियजन, मैं नहीं चाहता कि तुम इस बात से अनजान रहो कि हमारे सारे पूर्वज बादल की छाया में यात्रा करते रहे, और सभी ने समुद्र पार किया. 2 उन सभी का मोशेह में, बादल में और समुद्र में बपतिस्मा हुआ. 3 सबने एक ही आत्मिक भोजन किया, 4 सबने एक ही आत्मिक जल पिया क्योंकि वे सब एक ही आत्मिक चट्टान में से पिया करते थे, जो उनके साथ-साथ चलती थी और वह चट्टान थे मसीह. 5 यह सब होने पर भी परमेश्वर उनमें से बहुतों से संतुष्ट न थे इसलिए जंगल में ही उनके प्राण ले लिए गए.
6 ये सभी घटनाएँ हमारे लिए चेतावनी थीं कि हम बुराई की लालसा न करें, जैसे हमारे पूर्वजों ने की थी. 7 न ही तुम मूर्तिपूजक बनो, जैसे उनमें से कुछ थे, जैसा पवित्रशास्त्र का लेख है: वे बैठे तो खाने-पीने के लिए और उठे तो नाचने के लिए. 8 हम वेश्यागामी में लीन न हों, जैसे उनमें से कुछ हो गए थे और परिणामस्वरूप एक ही दिन में तेईस हज़ार की मृत्यु हो गई. 9 न हम प्रभु को परखें, जैसे उनमें से कुछ ने किया और साँपों के ड़सने से उनका नाश हो गया. 10 न ही तुम कुड़कुड़ाओ, जैसा उनमें से कुछ ने किया और नाश करने वाले द्वारा नाश किए गए.
11 उनके साथ घटी हुई ये घटनाएँ चिन्ह थीं, जो हमारे लिए चेतावनी के रूप में लिखी गईं क्योंकि हम उस युग में हैं, जो अन्त के पास है. 12 इसलिए वह, जो यह समझता है कि वह स्थिर है, सावधान रहे कि कहीं गिर न पड़े. 13 कोई ऐसी परीक्षा तुम पर नहीं आई, जो सभी के लिए सामान्य न हो. परमेश्वर विश्वासयोग्य हैं. वह तुम्हें किसी ऐसी परीक्षा में नहीं पड़ने देंगे, जो तुम्हारी क्षमता के परे हो परन्तु वह परीक्षा के साथ उपाय भी करेंगे कि तुम स्थिर रह सको.
मूर्तियों से सम्बन्धित उत्सव और प्रभु भोज
14 इसलिए प्रियजन, मूर्तिपूजा से दूर भागो. 15 यह मैं तुम्हें बुद्धिमान मानते हुए कह रहा हूँ: मैं जो कह रहा हूँ उसको परखो. 16 वह धन्यवाद का प्याला, जिसे हम धन्यवाद करते हैं, क्या मसीह के लहू में हमारी सहभागिता नहीं? वह रोटी, जो हम आपस में बाँटते हैं, क्या मसीह के शरीर में हमारी सहभागिता नहीं? 17 एक रोटी में हमारी सहभागिता हमारे अनेक होने पर भी हमारे एक शरीर होने का प्रतीक है. 18 इस्राएलियों के विषय में सोचो, जो वेदी पर चढ़ाई हुई बलि खाते हैं, क्या इसके द्वारा वे एक नहीं हो जाते? 19 क्या है मेरे कहने का मतलब? क्या मूर्ति को चढ़ाई हुई वस्तु का कोई महत्व है या उस मूर्ति का कोई महत्व है? 20 बिलकुल नहीं! मेरी मान्यता तो यह है कि जो वस्तुएं अन्यजाति चढ़ाते हैं, वे उन्हें प्रेतों को चढ़ाते हैं—परमेश्वर को नहीं. 21 यह हो ही नहीं सकता कि तुम प्रभु के प्याले में से पियो और प्रेतों के प्याले में से भी; इसी प्रकार यह भी नहीं हो सकता कि तुम प्रभु की मेज़ में सहभागी हो और प्रेतों की मेज़ में भी. 22 क्या हम प्रभु में जलन पैदा करने का दुस्साहस कर रहे हैं? क्या हम प्रभु से अधिक शक्तिशाली हैं?
मूर्तियों को समर्पित भोजन
23 उचित तो सभी कुछ है किन्तु सभी कुछ लाभदायक नहीं. उचित तो सभी कुछ है किन्तु सभी कुछ उन्नति के लिए नहीं. 24 तुम में से हरेक अपने भले का ही नहीं परन्तु दूसरे के भले का भी ध्यान रखे.
25 अपनी अन्तरात्मा की भलाई के लिए बिना कोई प्रश्न किए माँस विक्रेताओं के यहाँ से जो कुछ उपलब्ध हो, वह खा लो, 26 क्योंकि पृथ्वी और पृथ्वी में जो कुछ भी है सभी कुछ प्रभु का ही है.
27 यदि किसी अविश्वासी के आमन्त्रण पर उसके यहाँ भोजन के लिए जाना ज़रूरी हो जाए तो अपनी अन्तरात्मा की भलाई के लिए, बिना कोई भी प्रश्न किए वह खा लो, जो तुम्हें परोसा जाए. 28 किन्तु यदि कोई तुम्हें यह बताए, “यह मूर्तियों को भेंट बलि है,” तो उसे न खाना—उसकी भलाई के लिए, जिसने तुम्हें यह बताया है तथा विवेक की भलाई के लिए. 29 मेरा मतलब तुम्हारे अपने विवेक से नहीं परन्तु उस अन्य व्यक्ति के विवेक से है—मेरी स्वतन्त्रता भला क्यों किसी दूसरे के विवेक द्वारा नापी जाए? 30 यदि मैं धन्यवाद देकर भोजन में शामिल होता हूँ तो उसके लिए मुझ पर दोष क्यों लगाया जाता है, जिसके लिए मैंने परमेश्वर के प्रति धन्यवाद प्रकट किया?
31 इसलिए तुम चाहे जो कुछ करो, चाहे जो कुछ खाओ या पियो, वह परमेश्वर की महिमा के लिए हो. 32 तुम न यहूदियों के लिए ठोकर का कारण बनो, न यूनानियों के लिए और न ही परमेश्वर की कलीसिया के लिए; 33 ठीक जिस प्रकार मैं भी सबको सब प्रकार से प्रसन्न रखता हूँ और मैं अपने भले का नहीं परन्तु दूसरों के भले का ध्यान रखता हूँ कि उन्हें उद्धार प्राप्त हो.
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