Read the New Testament in 24 Weeks
मसीह येशु पिलातॉस के न्यायालय में
(मत्ति 27:1-2; लूकॉ 22:66-71)
15 भोर होते ही प्रधान पुरोहितों, नेतागण तथा शास्त्रियों ने सारी महासभा का सत्र बुला कर विचार किया और मसीह येशु को, जो अभी भी बँधे हुए थे, ले जा कर पिलातॉस को सौंप दिया.
2 पिलातॉस ने मसीह येशु से पूछा, “क्या यहूदियों के राजा तुम हो?”
मसीह येशु ने इसके उत्तर में कहा, “सच्चाई वही है जो आपने कहा है.”
3 प्रधान याजक मसीह येशु पर अनेक आरोप लगाते रहे. 4 इस पर पिलातॉस ने मसीह येशु से पूछा, “कोई उत्तर नहीं दोगे? देखो, ये लोग तुम पर आरोप पर आरोप लगाते चले जा रहे हैं!”
5 किन्तु मसीह येशु ने कोई उत्तर न दिया. यह पिलातॉस के लिए आश्चर्य का विषय था.
6 उत्सव के अवसर पर वह किसी एक बन्दी को, लोगों की विनती के अनुसार, छोड़ दिया करता था. 7 कारागार में बार-अब्बास नामक एक बन्दी था. वह अन्य विद्रोहियों के साथ विद्रोह में हत्या के आरोप में बन्दी बनाया गया था. 8 भीड़ ने पिलातॉस के पास जा कर उनकी प्रथापूर्ति की विनती की.
9 इस पर पिलातॉस ने उनसे पूछा, “अच्छा, तो तुम यह चाह रहे हो कि मैं तुम्हारे लिए यहूदियों के राजा को छोड़ दूँ?” 10 अब तक पिलातॉस को यह मालूम हो चुका था कि प्रधान पुरोहितों ने मसीह येशु को जलनवश पकड़वाया था. 11 किन्तु प्रधान पुरोहितों ने भीड़ को उकसाया कि वे मसीह येशु के स्थान पर बार-अब्बास को छोड़ देने की विनती करें.
12 इस पर पिलातॉस ने उनसे पूछा, “तो फिर मैं इसका क्या करूँ, जिसे तुम यहूदियों का राजा कहते हो?”
13 उन्होंने चिल्लाते हुए उत्तर दिया, “मृत्युदण्ड!”
14 “क्यों,” पिलातॉस ने उनसे पूछा, “क्या अपराध किया है इसने?” इस पर वे उग्र हो बलपूर्वक चिल्लाते हुए बोले, “मृत्युदण्ड!”
15 भीड़ को सन्तुष्ट करने के उद्देश्य से पिलातॉस ने उनके लिए बार-अब्बास को विमुक्त कर दिया तथा मसीह येशु को कोड़े लगवाकर क्रूस-मृत्युदण्ड के लिए उनके हाथों में सौंप दिया.
मसीह येशु के सिर पर काँटों का मुकुट
(मत्ति 27:27-31)
16 मसीह येशु को सैनिक प्राइतोरियम अर्थात् किले के भीतर आंगण में ले गए और वहाँ उन्होंने सारी रोमी सैनिक टुकड़ी इकट्ठा कर ली. 17 उन्होंने मसीह येशु को वहाँ ले जा कर बैंगनी रंग का वस्त्र पहना दिया तथा काँटों को गूँथ कर मुकुट का रूप दे उसे उनके ऊपर रख दिया 18 और उन्हें प्रणाम करके कहने लगे, “यहूदियों के राजा, आपकी जय!” 19 वे मसीह येशु के सिर पर सरकण्डा मारते जा रहे थे. इसके अतिरिक्त वे उन पर थूक रहे थे और उपहास में उनके सामने घुटने टेक कर झुक रहे थे. 20 जब वे उपहास कर चुके, उन्होंने वह बैंगनी वस्त्र उतार लिया और उनके वस्त्र उन्हें दोबारा पहना दिए और उन्हें क्रूस पर चढ़ाने के लिए ले जाने लगे.
क्रूस-मार्ग पर मसीह येशु
(मत्ति 27:32-34; लूकॉ 23:26-31; योहन 19:17)
21 मार्ग में उन्हें कुरेनायॉस नगरवासी शिमोन नामक व्यक्ति मिला, जो अलेक्ज़ान्द्रॉस तथा रूफ़ॉस का पिता था, जिसे उन्होंने मसीह येशु का क्रूस उठा कर ले चलने के लिए विवश किया.
22 वे मसीह येशु को ले कर गोलगोथा नामक स्थल पर आए, जिसका अर्थ है खोपड़ी का स्थान. 23 उन्होंने मसीह येशु को गन्धरस मिला हुआ दाखरस देना चाहा किन्तु मसीह येशु ने उसे स्वीकार न किया. 24 तब उन्होंने मसीह येशु को क्रूस पर चढ़ा दिया. उन्होंने मसीह येशु के वस्त्र बाँटने के लिए पासा फेंका कि वस्त्र किसे मिलें.
25 यह दिन का तीसरा घण्टा था जब उन्होंने मसीह येशु को क्रूस पर चढ़ाया था. 26 उनके दोषपत्र पर लिखा था: यहूदियों का राजा. 27 मसीह येशु के साथ दो राजद्रोहियों को भी क्रूस पर चढ़ाया गया था—एक उनकी दायीं ओर, दूसरा बायीं ओर. 28 यह होने पर पवित्रशास्त्र का यह लेख पूरा हो गया: उसकी गिनती अपराधियों के साथ की गई.
29 आते-जाते यात्री उपहास-मुद्रा में सिर हिला-हिला कर मज़ाक उड़ा रहे थे, “अरे ओ मन्दिर को नाश कर तीन दिन में उसको दुबारा बनानेवाले! 30 बचा ले अपने आपको—उतर आ क्रूस से!”
31 इसी प्रकार प्रधान याजक भी शास्त्रियों के साथ मिल कर आपस में उनका उपहास कर रहे थे, “अन्यों को तो बचाता रहा, स्वयं को नहीं बचा सकता! 32 यह मसीह—यह इस्राएल का राजा, अभी क्रूस से नीचे उतरे, तो हम उस में विश्वास कर लेंगे!” मसीह येशु के साथ क्रूस पर चढ़ाए गए राजद्रोही भी उनकी ऐसी ही निन्दा कर रहे थे.
मसीह येशु की मृत्यु
(मत्ति 27:45-56; लूकॉ 23:44-49; योहन 19:28-37)
33 छठे घण्टे सारे क्षेत्र पर अन्धकार छा गया, जो नवें घण्टे तक छाया रहा. 34 नवें घण्टे मसीह येशु ने ऊँचे शब्द में पुकारते हुए कहा, “एलोई, एलोई लमा सबख़थानी?” अर्थात् मेरे परमेश्वर! मेरे परमेश्वर! आपने मुझे क्यों छोड़ दिया है!
35 पास खड़े व्यक्तियों ने यह सुन कर कहा, “सुनो! सुनो! वह एलियाह को पुकार रहा है!”
36 यह सुन एक व्यक्ति ने दौड़ कर एक स्पंज को दाख के सिरके में डुबा कर उसे सरकण्डे पर रख यह कहते हुए मसीह येशु को पीने के लिए दिया, “चलो देखें, क्या एलियाह इसे क्रूस से नीचे उतारने आते हैं या नहीं.”
37 ऊँचे शब्द में पुकारने के साथ मसीह येशु ने अपने प्राण त्याग दिए.
38 मन्दिर का परदा ऊपर से नीचे तक फट कर दो भागों में बांट दिया गया. 39 क्रूस के सामने खड़े रोमी सैन्य अधिकारी ने मसीह येशु को इस रीति से प्राण त्यागते देख कहा, “इसमें कोई सन्देह नहीं कि यह व्यक्ति परमेश्वर का पुत्र था.”
40 कुछ महिलाएं दूर खड़ी हुई यह सब देख रही थीं. इनमें मगदालावासी मरियम, कनिष्ठ याक़ोब और योसेस की माता मरियम तथा शालोमे थीं. 41 मसीह येशु के गलील प्रवास के समय ये ही उनके पीछे चलते हुए उनकी सेवा करती रही थीं. अन्य अनेक स्त्रियाँ भी थीं, जो मसीह येशु के साथ येरूशालेम आई हुई थीं.
मसीह येशु को क़ब्र में रखा जाना
(मत्ति 27:57-61; लूकॉ 23:50-56; योहन 19:38-42)
42 यह शब्बाथ के पहले का तैयारी का दिन था. शाम हो गई थी. 43 अरिमथिया नगरवासी योसेफ़ ने, जो महासभा के प्रतिष्ठित सदस्य थे और स्वयं परमेश्वर के राज्य की प्रतीक्षा कर रहे थे, साहसपूर्वक पिलातॉस से मसीह येशु का शव ले जाने की अनुमति माँगी. 44 पिलातॉस को विश्वास नहीं हो रहा था कि मसीह येशु के प्राण निकल चुके हैं इसलिए उसने सैन्य अधिकारी को बुलाकर उससे प्रश्न किया कि क्या मसीह येशु की मृत्यु हो चुकी है? 45 सैन्य अधिकारी से आश्वस्त हो कर पिलातॉस ने योसेफ़ को मसीह येशु का शव ले जाने की अनुमति दे दी. 46 योसेफ़ ने एक कफ़न मोल लिया, मसीह येशु का शव उतारा, उसे कफ़न में लपेटा और चट्टान में खोदी गई एक कन्दरा-क़ब्र में रख कर क़ब्र द्वार पर एक बड़ा पत्थर लुढ़का दिया. 47 मगदालावासी मरियम तथा योसेस की माता मरियम यह देख रही थीं कि मसीह येशु के शव को कहाँ रखा गया था.
मसीह येशु का मरे हुओं में से जी उठना
(मत्ति 28:1-7; लूकॉ 24:1-12; योहन 20:1-10)
16 शब्बाथ समाप्त होते ही मगदालावासी मरियम, याक़ोब की माता मरियम तथा शालोमे ने मसीह येशु के शरीर के तेल से अभिषेक के उद्देश्य से शव का अभिषेक करने केलिए सुगन्ध-द्रव्य मोल लिए. 2 सप्ताह के पहिले दिन भोर के समय जब सूर्य उदय हो ही रहा था, वे क़ब्र की गुफ़ा पर आ गईं. 3 वे आपस में यह विचार कर रही थीं, “क़ब्र के द्वार पर से हमारे लिए पत्थर कौन हटाएगा?”
4 किन्तु जब उन्होंने क़ब्र की ओर दृष्टि की तो पाया कि क़ब्र द्वार पर से पत्थर लुढ़का हुआ था, जबकि वह बहुत बड़ा था. 5 क़ब्र में प्रवेश करने पर उन्होंने दायीं ओर एक युवा व्यक्ति को बैठे हुए देखा, जो उज्ज्वल, सफ़ेद वस्त्रों में था. वे हैरान रह गईं.
6 उस व्यक्ति ने उन्हें बुलाकर कहा, “आश्चर्य मत कीजिए. आप यहाँ नाज़रेथवासी येशु को, जिन्हें क्रूस पर चढ़ाया गया था, खोज रही हैं. वह मरे हुओं में से जीवित हो गए हैं. वह यहाँ नहीं है. यह देखिए, यही है वह जगह, जहाँ उन्हें रखा गया था. 7 मगर अब उनके शिष्यों और पेतरॉस को यह सूचना दे दीजिए कि वह उनके पहले ही गलील प्रदेश पहुँच जाएँगे. उनसे आपकी भेंट वहीं होगी—ठीक जैसा उन्होंने स्वयं कहा था.”
8 काँपते हुए तथा भौंचक्का वे बाहर आईं और क़ब्र की गुफ़ा से भागीं. डर के कारण उन्होंने किसी से कुछ न कहा.
9 जब सप्ताह के पहिले दिन तड़के मसीह येशु जीवित हुए, उन्होंने सबसे पहिले स्वयं को मगदालावासी मरियम पर प्रकट किया, जिसमें से उन्होंने सात प्रेतों को निकाला था. 10 उसने जा कर विलाप तथा रोते हुए अपने साथियों को इसका समाचार दिया. 11 उन्होंने इस पर विश्वास नहीं किया कि मसीह येशु अब जीवित हैं तथा मरियम ने उन्हें देखा है.
मसीह येशु का दो यात्रियों को दिखाई देना
(लूकॉ 24:13-34)
12 इसके बाद मसीह येशु दो अन्यों पर भी, जब वे अपने गाँव की ओर जा रहे थे, प्रकट हुए. 13 इन्होंने जा कर अन्यों को भी इस विषय में बताया किन्तु उन्होंने भी इस पर विश्वास न किया.
14 तब वह ग्यारह शिष्यों पर भी प्रकट हुए. वे सब चौकी पर बैठे हुए थे. उन्होंने शिष्यों के अविश्वास तथा मन की कठोरता की उल्लाहना की क्योंकि उन्होंने उनके जीवित होने के बाद देखनेवालों का विश्वास नहीं किया था.
सर्वोच्च आयोग
(मत्ति 28:16-20)
15 मसीह येशु ने उन्हें आदेश दिया, “सारे जगत में जा कर सारी सृष्टि में सुसमाचार का प्रचार करो. 16 वह, जिसने विश्वास किया है तथा जिसका बपतिस्मा हो चुका है, बचा रहेगा; किन्तु वह, जिसने विश्वास नहीं किया है, दण्डित होगा. 17 जिन्होंने विश्वास किया है, उन्हें ये अद्भुत चमत्कार चिह्न दिखाने की क्षमता प्रदान की जाएगी: मेरे नाम में वे प्रेतों को निकालेंगे, वे अन्य भाषाओं में बातें करेंगे, 18 वे साँपों को अपने हाथों में ले लेंगे, घातक विष पी लेने पर भी उनकी कोई हानि न होगी और वे रोगियों पर हाथ रखेंगे और वे स्वस्थ हो जाएँगे.”
मसीह येशु का स्वर्गारोहण
(लूकॉ 24:50-53)
19 मसीह येशु जब उनसे यह कह चुके, वह स्वर्ग में उठा लिए गए. वहाँ वह परमेश्वर की दायीं ओर बैठ गए. 20 शिष्य लौट गए तथा सभी जगह इसकी घोषणा की. प्रभु उनके साथ सक्रिय थे तथा वह अपनी प्रतिज्ञा की सच्चाई अद्भुत चमत्कारों के द्वारा करते रहे.
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