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Read the New Testament in 24 Weeks

A reading plan that walks through the entire New Testament in 24 weeks of daily readings.
Duration: 168 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
1 कोरिन्थॉस 7-8

विवाह और कौमार्य

अब वे विषय जिनके सम्बन्ध में तुमने मुझसे लिख कर पूछा है: पुरुष के लिए उचित तो यही है कि वह स्त्री का स्पर्श ही न करे किन्तु व्यभिचार से बचने के लिए हर एक पुरुष की अपनी पत्नी तथा हर एक स्त्री का अपना पति हो. यह आवश्यक है कि पति अपनी पत्नी के प्रति अपना कर्तव्य पूरा करे तथा इसी प्रकार पत्नी भी अपने पति के प्रति. पत्नी ने अपने पति को अपने शरीर पर अधिकार दिया है, वैसे ही पति ने अपनी पत्नी को अपने शरीर पर अधिकार दिया है. पति पत्नी एक दूसरे को शारीरिक सम्बन्धों से दूर न रखें—सिवाय आपसी सहमति से प्रार्थना के उद्धेश्य से सीमित अवधि के लिए. इसके तुरन्त बाद वे दोबारा साथ हो जाएँ कि कहीं संयम टूटने के कारण शैतान उन्हें परीक्षा में न फँसा ले. यह मैं सुविधा-अनुमति के रूप में कह रहा हूँ—आज्ञा के रूप में नहीं. वैसे तो मेरी इच्छा तो यही है कि सभी पुरुष ऐसे होते जैसा स्वयं मैं हूँ किन्तु परमेश्वर ने तुममें से हर एक को भिन्न-भिन्न क्षमताएँ प्रदान की हैं.

अविवाहितों तथा विधवाओं से मेरा कहना है कि वे अकेले ही रहें—जैसा मैं हूँ किन्तु यदि उनके लिए संयम रखना सम्भव नहीं तो वे विवाह कर लें—कामातुर होकर जलते रहने की बजाय विवाह कर लेना ही उत्तम है.

10 विवाहितों के लिए मेरा निर्देश है—मेरा नहीं परन्तु प्रभु का: पत्नी अपने पति से सम्बन्ध न तोड़े. 11 यदि पत्नी का सम्बन्ध टूट ही जाता है तो वह दोबारा विवाह न करे या पति से मेल-मिलाप कर ले. पति अपनी पत्नी का त्याग न करे. 12 मगर बाकियों से मेरा कहना है कि यदि किसी साथी विश्वासी की पत्नी विश्वासी न हो और वह उसके साथ रहने के लिए सहमत हो तो पति उसका त्याग न करे. 13 यदि किसी स्त्री का पति विश्वासी न हो और वह उसके साथ रहने के लिए राज़ी हो तो पत्नी उसका त्याग न करे; 14 क्योंकि अविश्वासी पति अपनी विश्वासी पत्नी के कारण पवित्र ठहराया जाता है. इसी प्रकार अविश्वासी पत्नी अपने विश्वासी पति के कारण पवित्र ठहराई जाती है. यदि ऐसा न होता तो तुम्हारी सन्तान अशुद्ध रह जाती; किन्तु इस स्थिति में वह परमेश्वर के लिए अलग की गई है.

15 फिर भी यदि अविश्वासी दम्पति अलग होना चाहे तो उसे जाने दिया जाए. कोई भी विश्वासी भाई या विश्वासी बहन इस बन्धन में बँधे रहने के लिए बाध्य नहीं. परमेश्वर ने हमें शान्ति से भरे जीवन के लिए बुलाया है. 16 पत्नी यह सम्भावना कभी भुला न दे: पत्नी अपने पति के उद्धार का साधन हो सकती है, वैसे ही पति अपनी पत्नी के उद्धार का.

17 परमेश्वर ने जिसे जैसी स्थिति में रखा है तथा जिस रूप में उसे बुलाया है, वह उसी में बना रहे. सभी कलीसियाओं के लिए मेरा यही निर्देश है. 18 क्या किसी ऐसे व्यक्ति को बुलाया गया है, जिसका पहले से ही ख़तना हुआ था? वह अब खतनारहित न बने. क्या किसी ऐसे व्यक्ति को बुलाया गया है, जो ख़तनारहित है? वह अपना ख़तना न कराए. 19 न तो ख़तना कराने का कोई महत्व है और न ख़तनारहित होने का. महत्व है तो मात्र परमेश्वर की आज्ञा-पालन का. 20 हर एक उसी अवस्था में बना रहे, जिसमें उसको बुलाया गया था. 21 क्या तुम्हें उस समय बुलाया गया था, जब तुम दास थे? यह तुम्हारे लिए चिन्ता का विषय न हो किन्तु यदि दासत्व से स्वतन्त्र होने का सुअवसर आए तो इस सुअवसर का लाभ अवश्य उठाओ. 22 वह, जिसको उस समय बुलाया गया, जब वह दास था, अब प्रभु में स्वतन्त्र किया हुआ व्यक्ति है; इसी प्रकार, जिसको उस समय बुलाया गया, जब वह स्वतन्त्र था, अब वह मसीह का दास है. 23 तुम दाम देकर मोल लिए गए हो इसलिए मनुष्य के दास न बन जाओ. 24 प्रियजन, तुममें से हर एक उसी अवस्था में, जिसमें उसे बुलाया गया था, परमेश्वर के साथ जुड़ा रहे.

25 कुँवारियों के सम्बन्ध में मेरे पास परमेश्वर की ओर से कोई आज्ञा नहीं है किन्तु मैं, जो परमेश्वर की कृपा के कारण विश्वसनीय हूँ, अपनी ओर से यह कहना चाहता हूँ: 26 वर्तमान संकट के कारण मेरे विचार से पुरुष के लिए उत्तम यही होगा कि वह जिस स्थिति में है, उसी में बना रहे. 27 यदि तुम विवाहित हो तो पत्नी का त्याग न करो. यदि अविवाहित हो तो पत्नी खोजने का प्रयास न करो. 28 यदि तुम विवाह करते ही हो तो भी पाप नहीं करते. यदि कोई कुँवारी कन्या विवाह करती है तो यह पाप नहीं है. फिर भी इनके साथ सामान्य वैवाहिक जीवन सम्बन्धी झंझट लगे रहेंगे और मैं वास्तव में तुम्हें इन्हीं से बचाने का प्रयास कर रहा हूँ.

29 प्रियजन, मेरा मतलब यह है कि थोड़ा ही समय शेष रह गया है इसलिए अब से वे, जो विवाहित हैं ऐसे रहें, मानो अविवाहित हों. 30 जो शोकित हैं उनका शोक प्रकट न हो; जो आनन्दित हैं उनका आनन्द छुपा रहे और जो मोल ले रहे हैं, वे ऐसे हो जाएँ मानो उनके पास कुछ भी नहीं है. 31 जिनका लेन-देन सांसारिक वस्तुओं से है, वे उनमें लीन न हो जाएँ क्योंकि संसार के इस वर्तमान स्वरूप का नाश होता चला जा रहा है.

32 मेरी इच्छा है कि तुम सांसारिक जीवन की अभिलाषाओं से मुक्त रहो. उसके लिए, जो अविवाहित है, प्रभु सम्बन्धी विषयों का ध्यान रखना सम्भव है कि वह प्रभु को संतुष्ट कैसे कर सकता है; 33 किन्तु वह, जो विवाहित है, उसका ध्यान संसार सम्बन्धित विषयों में ही लगा रहता है कि वह अपनी पत्नी को प्रसन्न कैसे करे, 34 उसकी रुचियां बँटी रहती हैं. उसी प्रकार पतिहीन तथा कुँवारी स्त्री की रुचियां प्रभु से सम्बन्धित विषयों में सीमित रह सकती हैं—और इसके लिए वह शरीर और आत्मा में पवित्र रहने में प्रयास करती रहती है, किन्तु वह स्त्री, जो विवाहित है, संसार सम्बन्धी विषयों का ध्यान रखती है कि वह अपने पति को प्रसन्न कैसे करे. 35 मैं यह सब तुम्हारी भलाई के लिए ही कह रहा हूँ—किसी प्रकार से फँसाने के लिए नहीं परन्तु इसलिए कि तुम्हारी जीवनशैली आदर्श हो तथा प्रभु के प्रति तुम्हारा समर्पण एक चित्त होकर रहे.

36 यदि किसी को यह लगे कि वह अपनी पुत्री के विवाह में देरी करने के द्वारा उसके साथ अन्याय कर रहा है, क्योंकि उसकी आयु ढल रही है, वह वही करे, जो वह सही समझता है—वह उसे विवाह करने दे. यह कोई पाप नहीं है. 37 किन्तु वह, जो बिना किसी बाधा के दृढ़संकल्प है, अपनी इच्छा अनुसार निर्णय लेने की स्थिति में है तथा जिसने अपनी पुत्री का विवाह न करने का निश्चय कर लिया है, उसका निर्णय सही है. 38 इसलिए जो अपनी पुत्री का विवाह करता है, उसका निर्णय भी सही है तथा जो उसका विवाह न कराने का निश्चय करता है, वह और भी सही है.

39 पत्नी तब तक पति से जुड़ी रहती है, जब तक पति जीवित है. यदि पति की मृत्यु हो जाए तो वह अपनी इच्छा के अनुसार विवाह करने के लिए स्वतन्त्र है—किन्तु ज़रूरी यह है कि वह पुरुष भी प्रभु में विश्वासी ही हो. 40 मेरा व्यक्तिगत मत यह है कि वह स्त्री उसी स्थिति में बनी रहे, जिसमें वह इस समय है. वह इसी स्थिति में सुखी रहेगी. यह मैं इस विश्वास के अन्तर्गत कह रहा हूँ कि मुझ में भी परमेश्वर की आत्मा वास करती है.

सामान्य सिद्धान्त

अब मूर्तियों को चढ़ाई हुई वस्तुओं के सम्बन्ध में: हम जानते हैं कि हम सब ज्ञानी हैं. वास्तव में तो ज्ञान हमें घमण्ड़ी बनाता है जबकि प्रेम हमें उन्नत करता है. यदि कोई यह समझता है कि वह ज्ञानवान है तो वास्तव में वह अब तक वैसा जान ही नहीं पाया, जैसा जानना उसके लिए ज़रूरी है. वह, जो परमेश्वर से प्रेम करता है, परमेश्वर का परिचित हो जाता है.

जहाँ तक मूर्तियों को चढ़ाई हुई वस्तुओं को खाने का प्रश्न है, हम इस बात को भली-भांति जानते हैं कि सारे संसार में कहीं भी मूर्तियों में परमेश्वर नहीं है तथा एक के अतिरिक्त और कोई परमेश्वर नहीं है. यद्यपि आकाश और पृथ्वी पर अनेक तथाकथित देवता हैं, जैसे कि अनेक देवता और अनेकों प्रभु भी हैं किन्तु हमारे लिए तो परमेश्वर मात्र एक ही हैं—वह पिता—जिनमें हम सब सृष्ट हैं, और हम उसी के लिए हैं. प्रभु एक ही हैं—मसीह येशु—इन्हीं के द्वारा सब कुछ है, इन्हीं के द्वारा हम हैं.

प्रेम के दावे

किन्तु सभी को यह बात मालूम नहीं हैं. कुछ व्यक्ति ऐसे हैं, जो अब तक मूर्तियों से जुड़े हैं तथा वे इस भोजन को मूर्तियों को भेंट किया हुआ भोजन मानते हुए खाते हैं. उनका कमज़ोर विवेक अशुद्ध हो गया है. हमें परमेश्वर के पास ले जाने में भोजन का कोई योगदान नहीं होता—भोजन से न तो कोई हानि सम्भव है और न ही कोई लाभ.

किन्तु सावधान रहना कि तुम्हारी यह स्वतंत्रता निर्बलों के लिए ठोकर का कारण न बने. 10 यदि किसी का विवेक कमज़ोर है और वह तुम जैसे ज्ञानी व्यक्ति को मूर्ति के मन्दिर में भोजन करते देख ले तो क्या उसे भी मूर्ति को चढ़ाई हुई वस्तुएं खाने का साहस न मिलेगा? 11 इसमें तुम्हारा ज्ञानी होना उसके विनाश का कारण हो गया, जिसके लिए मसीह येशु ने प्राण दिया. 12 इस प्रकार विश्वासियों के विरुद्ध पाप करने तथा उनके विवेक को, जो कमज़ोर हैं, चोट पहुंचाने के द्वारा तुम मसीह येशु के विरुद्ध पाप करते हो. 13 इसलिए यदि भोजन किसी के लिए ठोकर का कारण बनता है तो मैं माँस का भोजन कभी न करूँगा कि मैं विश्वासियों के लिए ठोकर का कारण न बनूँ.

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