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Read the New Testament in 24 Weeks

A reading plan that walks through the entire New Testament in 24 weeks of daily readings.
Duration: 168 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
लूकॉ 22

मसीह येशु की हत्या का षड्यन्त्र

(मत्ति 26:1-5; मारक 14:1, 2)

22 अख़मीरी रोटी का उत्सव, जो फ़सह पर्व कहलाता है, पास आ रहा था. प्रधान याजक तथा शास्त्री इस खोज में थे कि मसीह येशु को किस प्रकार मार डाला जाए, किन्तु उन्हें लोगों का भय था.

शैतान ने कारियोतवासी यहूदाह में, जो बारह शिष्यों में से एक था, प्रवेश किया. उसने प्रधान पुरोहितों तथा अधिकारियों से मिल कर निश्चित किया कि वह किस प्रकार मसीह येशु को पकड़वा सकता है. इस पर प्रसन्न हो वे उसे इसका दाम देने पर सहमत हो गए. यहूदाह मसीह येशु को उनके हाथ पकड़वा देने के ऐसे सुअवसर की प्रतीक्षा करने लगा, जब आसपास भीड़ न हो.

फ़सह भोज की तैयारी

(मत्ति 26:17-19; मारक 14:12-16)

तब अख़मीरी रोटी का उत्सव आ गया, जब फ़सह का मेमना बलि किया जाता था. मसीह येशु ने पेतरॉस और योहन को इस आज्ञा के साथ भेजा, “जाओ और हमारे लिए फ़सह की तैयारी करो.”

उन्होंने उनसे प्रश्न किया, “प्रभु, हम किस स्थान पर इसकी तैयारी करें, आप क्या चाहते हैं?”

10 मसीह येशु ने उन्हें उत्तर दिया, “नगर में प्रवेश करते ही तुम्हें एक व्यक्ति पानी का घड़ा ले जाता हुआ मिलेगा. उसका पीछा करते हुए तुम उस घर में चले जाना, 11 जिस घर में वह प्रवेश करेगा. उस घर के स्वामी से कहना, ‘गुरु ने पूछा है, “वह अतिथि कक्ष कहाँ है जहाँ मैं अपने शिष्यों के साथ फ़सह खाऊँगा?” ’ 12 वह तुमको एक विशाल, सुसज्जित ऊपरी कक्ष दिखाएगा; तुम वहीं सारी तैयारी करना.”

13 यह सुन वे दोनों वहाँ से चले गए और सब कुछ ठीक वैसा ही पाया जैसा मसीह येशु ने कहा था. उन्होंने वहाँ फ़सह तैयार किया.

14 नियत समय पर मसीह येशु अपने प्रेरितों के साथ भोज पर बैठे. 15 उन्होंने प्रेरितों से कहा, “मेरी बड़ी लालसा थी कि मैं अपने दुःख-भोग के पहले यह फ़सह तुम्हारे साथ खाऊँ. 16 क्योंकि सच यह है कि मैं इसे दोबारा तब तक नहीं खाऊँगा जब तक यह परमेश्वर के राज्य में पूरा न हो.”

17 तब उन्होंने प्याला उठाया, परमेश्वर के प्रति धन्यवाद दिया और कहा, “इसे लो, आपस में बांट लो 18 क्योंकि यह निर्धारित है कि जब तक परमेश्वर के राज्य का आगमन न हो जाए, मैं दाखरस दोबारा नहीं पिऊँगा.”

प्रभु-भोज का प्रतिष्ठापन

19 तब उन्होंने रोटी ली, धन्यवाद देते हुए उसे तोड़ा और शिष्यों को यह कहते हुए दे दी, “यह मेरा शरीर है, जो तुम्हारे लिए दिया जा रहा है. मेरी याद में तुम ऐसा ही किया करना.”

20 इसी प्रकार इसके बाद मसीह येशु ने प्याला उठाया और कहा, “यह प्याला मेरे लहू में, जो तुम्हारे लिए बहाया जा रहा है, नई वाचा है.

21 “वह, जो मुझे पकड़वाएगा हमारे साथ इस भोज में शामिल है. 22 मैं ये सब इसलिए कह रहा हूँ कि मनुष्य का पुत्र, जैसा उसके लिए तय किया गया है, ठीक उसी के अनुसार आगे बढ़ रहा है किन्तु धिक्कार है उस व्यक्ति पर जिसके द्वारा मनुष्य का पुत्र पकड़वाया जा रहा है!” 23 यह सुन वे आपस में विचार-विमर्श करने लगे कि वह कौन हो सकता है, जो यह करने पर है.

24 उनके बीच यह विवाद भी उठ खड़ा हुआ कि उनमें से सबसे बड़ा कौन है. 25 यह जान मसीह येशु ने उनसे कहा, “अन्यजातियों के राजा उन पर शासन करते हैं और वे, जिन्हें उन पर अधिकार है, उनके हितैषी कहलाते हैं. 26 किन्तु तुम वह नहीं हो—तुममें जो बड़ा है, वह सबसे छोटे के समान हो जाए और राजा सेवक समान. 27 बड़ा कौन है—क्या वह, जो भोजन पर बैठा है या वह, जो खड़ा हुआ सेवा कर रहा है? तुम्हारे मध्य मैं सेवक के समान हूँ.

28 “तुम्हीं हो, जो मेरे विषम समयों में मेरा साथ देते रहे हो. 29 इसलिए जैसा मेरे पिता ने मुझे एक राज्य प्रदान किया है, 30 वैसा ही मैं भी तुम्हें यह अधिकार देता हूँ कि तुम मेरे राज्य में मेरी मेज़ पर बैठ कर मेरे साथ संगति करो, और सिंहासनों पर बैठ कर इस्राएल के बारह वंशों का न्याय.

31 “शिमोन, शिमोन, सुनो! शैतान ने तुम सबको गेहूं के समान अलग करने की आज्ञा प्राप्त कर ली है. 32 किन्तु शिमोन, तुम्हारे लिए मैंने प्रार्थना की है कि तुम्हारे विश्वास का पतन न हो. जब तुम पहले जैसी स्थिति पर लौट आओ तो अपने भाइयों को भी विश्वास में मजबूत करना.”

33 पेतरॉस ने मसीह येशु से कहा, “प्रभु, मैं तो आपके साथ दोनों ही को स्वीकारने के लिए तत्पर हूँ—बन्दीगृह तथा मृत्यु!”

34 मसीह येशु ने इसके उत्तर में कहा, “सुनो, पेतरॉस, आज रात, मुर्ग तब तक बाँग न देगा, जब तक तुम तीन बार इस सच को कि तुम मुझे जानते हो, नकार न चुके होगे.”

35 मसीह येशु ने उनसे प्रश्न किया, “यह बताओ, जब मैंने तुम्हें बिना बटुए, बिना झोले और बिना जूती के बाहर भेजा था, क्या तुम्हें कोई अभाव हुआ था?”

“बिल्कुल नहीं,” उन्होंने उत्तर दिया.

36 तब मसीह येशु ने उनसे कहा, “किन्तु अब जिस किसी के पास बटुआ है, वह उसे साथ ले ले. इसी प्रकार झोला भी और जिसके पास तलवार नहीं है, वह अपना वस्त्र बेच कर तलवार मोल ले. 37 मैं तुम्हें बताना चाहता हूँ कि यह जो लेख लिखा है—उसकी गिनती अपराधियों में हुई—का मुझमें पूरा होना ज़रूरी है क्योंकि मुझसे सम्बन्धित सभी लेखों का पूरा होना अवश्य है.”

38 शिष्यों ने कहा, “प्रभु, देखिए, ये दो तलवारें हैं.” मसीह येशु ने उत्तर दिया, “पर्याप्त हैं.”

गेतसेमनी उद्यान में मसीह येशु की अवर्णनीय वेदना

(मत्ति 26:36-46)

39 तब मसीह येशु बाहर निकल कर ज़ैतून पर्वत पर चले गए, जहाँ वह प्रायः जाया करते थे. उनके शिष्य भी उनके साथ थे. 40 उस स्थान पर पहुँच कर मसीह येशु ने उनसे कहा, “प्रार्थना करो कि तुम परीक्षा में न फँसो.”

41 तब मसीह येशु शिष्यों से कुछ ही दूरी पर गए और उन्होंने घुटने टेक कर यह प्रार्थना की: 42 “पिताजी, यदि सम्भव हो तो यातना का यह प्याला मुझसे दूर कर दीजिए फिर भी मेरी नहीं, आपकी इच्छा पूरी हो.” 43 उसी समय स्वर्ग से एक स्वर्गदूत ने आ कर उनमें बल का संचार किया. 44 प्राण निकलने के समान दर्द में वह और भी अधिक कातर भाव में प्रार्थना करने लगे. उनका पसीना लहू के समान भूमि पर टपक रहा था.

45 जब वह प्रार्थना से उठे और शिष्यों के पास आए तो उन्हें सोता हुआ पाया. उदासी के मारे शिष्य सो चुके थे. 46 मसीह येशु ने शिष्यों से कहा, “सो क्यों रहे हो? उठो! प्रार्थना करो कि तुम किसी परीक्षा में न फँसो.”

मसीह येशु का बन्दी बनाया जाना

(मत्ति 26:47-56; मारक 14:43-52; योहन 18:1-11)

47 मसीह येशु जब यह कह ही रहे थे, तभी एक भीड़ वहाँ आ पहुंची. उनमें यहूदाह, जो बारह शिष्यों में से एक था, सबसे आगे था. वह मसीह येशु को चूमने के लिए आगे बढ़ा 48 किन्तु मसीह येशु ने उससे कहा, “यहूदाह! क्या मनुष्य के पुत्र को तुम इस चुम्बन के द्वारा पकड़वा रहे हो?”

49 यह पता चलने पर कि क्या होने पर है शिष्यों ने मसीह येशु से पूछा, “प्रभु, क्या हम तलवार चलाएं?” 50 उनमें से एक ने तो महायाजक के दास पर वार कर उस दास का दाहिना कान ही उड़ा दिया.

51 मसीह येशु इस पर बोले, “बस! बहुत हुआ” और उन्होंने उस दास के कान का स्पर्श कर उसे पहले जैसा कर दिया.

52 तब मसीह येशु ने प्रधान पुरोहितों, मन्दिर के पहरुओं तथा वहाँ उपस्थित पुरनियों को सम्बोधित करते हुए कहा, “तलवारें और लाठियाँ ले कर क्या आप किसी राजद्रोही को पकड़ने आए हैं? 53 आपने मुझे तब तो नहीं पकड़ा जब मैं मन्दिर आँगन में प्रतिदिन आपके साथ हुआ करता था! यह इसलिए कि यह क्षण आपका है—अन्धकार के हाकिम का.”

पेतरॉस का नकारना

(मत्ति 26:69-75; मारक 14:66-72; योहन 18:25-27)

54 वे मसीह येशु को पकड़ कर महायाजक के घर पर ले गए. पेतरॉस दूर ही दूर से उनके पीछे-पीछे चलते रहे. 55 जब लोग आँगन में आग जलाए हुए बैठे थे, पेतरॉस भी उनके साथ बैठ गए. 56 एक सेविका ने पेतरॉस को आग की रोशनी में देखा और उनको एकटक देखते हुए कहा, “यह व्यक्ति भी उसके साथ था!”

57 पेतरॉस ने नकारते हुए कहा, “नहीं! हे स्त्री, मैं उसे नहीं जानता!”

58 कुछ समय बाद किसी अन्य ने उन्हें देख कर कहा.

“तुम भी तो उनमें से एक हो!”

“नहीं भाई, नहीं!” पेतरॉस ने उत्तर दिया.

59 लगभग एक घण्टे बाद एक अन्य व्यक्ति ने बल देते हुए कहा, “निस्सन्देह यह व्यक्ति भी उसके साथ था क्योंकि यह भी गलीलवासी है.”

60 पेतरॉस ने उत्तर दिया, “महोदय, मेरी समझ में नहीं आ रहा कि आप क्या कह रहे हैं!” जब वह यह कह ही रहे थे कि एक मुर्ग ने बाँग दी. 61 उसी समय प्रभु ने मुड़ कर पेतरॉस की ओर दृष्टि की और पेतरॉस को प्रभु की पहले कही हुई बात याद आ गई: “इसके पहले कि मुर्ग बाँग दे, तुम आज तीन बार मुझे नकार चुके होगे.” 62 पेतरॉस बाहर चले गए और फूट-फूट कर रोने लगे.

सिपाहियों द्वारा मसीह येशु का मज़ाक उड़ाया जाना

63 जिन्होंने मसीह येशु को पकड़ा था, वे उनको ठठ्ठों में उड़ाते हुए उन पर वार करते जा रहे थे. 64 उन्होंने मसीह येशु की आँखों पर पट्टी बांधी और उनसे पूछने लगे, “अपनी भविष्यवाणी से बता, किसने वार किया है तुझ पर?” 65 इसके अतिरिक्त वे उनकी निन्दा करते हुए उनके लिए अनेक अपमानजनक शब्द भी कहे जा रहे थे.

मसीह येशु पिलातॉस के न्यायालय में

(मत्ति 27:1, 2; मारक 15:1)

66 पौ फटने पर पुरनिये लोगों ने प्रधान पुरोहितों तथा शास्त्रियों की एक सभा बुलाई और मसीह येशु को महासभा में ले गए. 67 उन्होंने मसीह येशु से प्रश्न किया, “यदि तुम ही मसीह हो तो हमें बता दो.” 68 मसीह येशु ने उत्तर दिया, “यदि मैं आपको यह बताऊँगा तो भी आप इसका विश्वास नहीं करेंगे और यदि मैं आप से कोई प्रश्न करूँ तो आप उसका उत्तर ही न देंगे; 69 किन्तु अब इसके बाद मनुष्य का पुत्र सर्वशक्तिमान परमेश्वर की दायीं ओर बैठाया जाएगा.”

70 उन्होंने प्रश्न किया, “तो क्या तुम परमेश्वर के पुत्र हो?” मसीह येशु ने उत्तर दिया, “जी हाँ, मैं हूँ.”

71 यह सुन वे कहने लगे, “अब हमें गवाहों की ज़रूरत ही न रही—स्वयं हमने यह इसके मुख से सुन लिया है.” इस पर सारी सभा उठ खड़ी हुई और वे मसीह येशु को राज्यपाल पिलातॉस के पास ले गए.

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