Book of Common Prayer
1 हे यहोवा, क्रोध में मेरी आलोचना मत कर।
मुझको अनुशासित करते समय मुझ पर क्रोधित मत हो।
2 हे यहोवा, तूने मुझे चोट दिया है।
तेरे बाण मुझमें गहरे उतरे हैं।
3 तूने मुझे दण्डित किया और मेरी सम्पूर्ण काया दु:ख रही है,
मैंने पाप किये और तूने मुझे दण्ड दिया। इसलिए मेरी हड्डी दु:ख रही है।
4 मैं बुरे काम करने का अपराधी हूँ,
और वह अपराध एक बड़े बोझे सा मेरे कन्धे पर चढ़ा है।
5 मैं बना रहा मूर्ख,
अब मेरे घाव दुर्गन्धपूर्ण रिसते हैं और वे सड़ रहे हैं।
6 मैं झुका और दबा हुआ हूँ।
मैं सारे दिन उदास रहता हूँ।
7 मुझको ज्वर चढ़ा है,
और समूचे शरीर में वेदना भर गई है।
8 मैं पूरी तरह से दुर्बल हो गया हूँ।
मैं कष्ट में हूँ इसलिए मैं कराहता और विलाप करता हूँ।
9 हे यहोवा, तूने मेरा कराहना सुन लिया।
मेरी आहें तो तुझसे छुपी नहीं।
10 मुझको ताप चढ़ा है।
मेरी शक्ति निचुड़ गयी है। मेरी आँखों की ज्योति लगभग जाती रही।
11 क्योंकि मैं रोगी हूँ,
इसलिए मेरे मित्र और मेरे पड़ोसी मुझसे मिलने नहीं आते।
मेरे परिवार के लोग तो मेरे पास तक नहीं फटकते।
12 मेरे शत्रु मेरी निन्दा करते हैं।
वे झूठी बातों और प्रतिवादों को फैलाते रहते हैं।
मेरे ही विषय में वे हरदम बात चीत करते रहते हैं।
13 किन्तु मैं बहरा बना कुछ नहीं सुनता हूँ।
मैं गूँगा हो गया, जो कुछ नहीं बोल सकता।
14 मैं उस व्यक्ति सा बना हूँ, जो कुछ नहीं सुन सकता कि लोग उसके विषय क्या कह रहे हैं।
और मैं यह तर्क नहीं दे सकता और सिद्ध नहीं कर सकता की मेरे शत्रु अपराधी हैं।
15 सो, हे यहोवा, मुझे तू ही बचा सकता है।
मेरे परमेश्वर और मेरे स्वामी मेरे शत्रुओं को तू ही सत्य बता दे।
16 यदि मैं कुछ भी न कहूँ, तो मेरे शत्रु मुझ पर हँसेंगे।
मुझे खिन्न देखकर वे कहने लगेंगे कि मैं अपने कुकर्मो का फल भोग रहा हूँ।
17 मैं जानता हूँ कि मैं अपने कुकर्मो के लिए पापी हूँ।
मैं अपनी पीड़ा को भूल नहीं सकता हूँ।
18 हे यहोवा, मैंने तुझको अपने कुकर्म बता दिये।
मैं अपने पापों के लिए दु:खी हूँ।
19 मेरे शत्रु जीवित और पूर्ण स्वस्थ हैं।
उन्होंने बहुत—बहुत झूठी बातें बोली हैं।
20 मेरे शत्रु मेरे साथ बुरा व्यवहार करते हैं,
जबकि मैंने उनके लिये भला ही किया है।
मैं बस भला करने का जतन करता रहा,
किन्तु वे सब लोग मेरे विरद्ध हो गये हैं।
21 हे यहोवा, मुझको मत बिसरा!
मेरे परमेश्वर, मुझसे तू दूर मत रह!
22 देर मत कर, आ और मेरी सुधि ले!
हे मेरे परमेश्वर, मुझको तू बचा ले!
दालथ्
25 मैं शीघ्र मर जाऊँगा।
हे यहोवा, तू आदेश दे और मुझे जीने दे।
26 मैंने तुझे अपने जीवन के बारे में बताया है, तूने मुझे उत्तर दिया है।
अब तू मुझको अपना विधान सिखा।
27 हे यहोवा, मेरी सहायता कर ताकि मैं तेरी व्यवस्था का विधान समझूँ।
मुझे उन अद्भुत कर्मो का चिंतन करने दे जिन्हें तूने किया है।
28 मैं दु:खी और थका हूँ।
मुझको आदेश दे और अपने वचन के अनुसार मुझको तू फिर सुदृढ़ बना दे।
29 हे यहोवा, मुझे कोई झूठ मत जीने दे।
अपनी शिक्षाओं से मुझे राह दिखा दे।
30 हे यहोवा, मैंने चुना है कि तेरे प्रति निष्ठावान रहूँ।
मैं तेरे विवेकपूर्ण निर्णयों का सावधानी से पाठ किया करता हूँ।
31 हे यहोवा, तेरी वाचा के संग मेरी लगन लगी है।
तू मुझको निराश मत कर।
32 मैं तेरे आदेशों का पालन प्रसन्नता के संग किया करूँगा।
हे यहोवा, तेरे आदेश मुझे अति प्रसन्न करते हैं।
हेथ्
33 हे यहोवा, तू मुझे अपनी व्यवस्था सिखा
तब मैं उनका अनुसरण करूँगा।
34 मुझको सहारा दे कि मैं उनको समझूँ
और मैं तेरी शिक्षाओं का पालन करुँगा।
मैं पूरी तरह उनका पालन करूँगा।
35 हे यहोवा, तू मुझको अपने आदेशों की राह पर ले चल।
मुझे सचमुच तेरे आदेशों से प्रेम है। मेरा भला कर और मुझे जीने दे।
36 मेरी सहायता कर कि मैं तेरे वाचा का मनन करूँ,
बजाय उसके कि यह सोचता रहूँ कि कैसे धनवान बनूँ।
37 हे यहोवा, मुझे अद्भुत वस्तुओं पाने को
कठिन जतन मत करने दे।
38 हे यहोवा, मैं तेरा दास हूँ। सो उन बातों को कर जिनका वचन तूने दिये है।
तूने उन लोगों को जो पूर्वज हैं उन बातों को वचन दिया था।
39 हे यहोवा, जिस लाज से मुझको भय उसको तू दूर कर दे।
तेरे विवेकपूर्ण निर्णय अच्छे होते हैं।
40 देख मुझको तेरे आदेशोंसे प्रेम है।
मेरा भला कर और मुझे जीने दे।
वाव्
41 हे यहोवा, तू सच्चा निज प्रेम मुझ पर प्रकट कर।
मेरी रक्षा वैसे ही कर जैसे तूने वचन दिया।
42 तब मेरे पास एक उत्तर होगा। उनके लिये जो लोग मेरा अपमान करते हैं।
हे यहोवा, मैं सचमुच तेरी उन बातों के भरोसे हूँ जिनको तू कहता है।
43 तू अपनी शिक्षाएँ जो भरोसे योग्य है, मुझसे मत छीन।
हे यहोवा, तेरे विवेकपूर्ण निर्णयों का मुझे भरोसा है।
44 हे यहोवा, मैं तेरी शिक्षाओं का पालन सदा और सदा के लिये करूँगा।
45 सो मैं सुरक्षित जीवन जीऊँगा।
क्यों मैं तेरी व्यवस्था को पालने का कठिन जतन करता हूँ।
46 यहोवा के वाचा की चर्चा मैं राजाओं के साथ करूँगा
और वे मुझे संकट में कभी न डालेंगे।
47 हे यहोवा, मुझे तेरी व्यवस्थाओं का मनन भाता है।
तेरी व्यवस्थाओं से मुझको प्रेम है।
48 हे यहोवा, मैं तेरी व्यवस्थाओं के गुण गाता हूँ,
वे मुझे प्यारी हैं और मैं उनका पाठ करूँगा।
दर्शन में पके फल
8 यहोवा ने मुझे यह दिखाया: मैंने ग्रीष्म के फलों की एक टोकरी देखी: 2 यहोवा ने पूछा, “आमोस, तुम क्या देखते हो”
मैंने कहा, “ग्रीष्म के फलों की एक टोकरी।”
तब यहोवा ने मुझसे कहा, “मेरे लोग इस्राएलियों का अन्त आ गया है। मैं उनके पापों को और अनदेखा नहीं कर सकता। 3 मन्दिर के गीत शोक गीत बन जाएंगे। मेरे स्वामी यहोवा ने यह सब कहा। सर्वत्र शव ही होंगे। सन्नाटे में लोग शवों को ले जाएंगे और उनके ढेर लगा देंगे।”
इस्राएल के व्यापारी केवल धन बनाने में लगे रहना चाहते हैं
4 मेरी सुनो! लोगों तुम असहायों को कुचलते हो।
तुम इस देश के गरीबों को नष्ट करना चाहते हो।
5 व्यापारियों, तुम कहते हो,
“नवचन्द्र कब बीतेगा, जिससे हम अन्न बेच सकेंगे
सब्त कब बीतेगा,
जिससे हम अपना गेहूँ बेचने को ला सकेंगे
हम कीमतें बढ़ा सकेंगे,
बाटों को हलका कर सकेंगे,
और हम तराजुओं को ऐसा व्यवस्थित कर लेंगे
कि लोगों को ठग सकें।
6 गरीब अपना ऋण वापस नहीं कर सकते अत:
हम उन्हें दास के रूप में खरीदेंगे।
हम उऩ गरीबों को
एक जोड़ी जूतों की कीमत में खरीदेंगे।
अहो! हम उस खराब गेहूँ को भी बेच सकते हैं,
जो फर्श पर बिखर गया हो।”
7 यहोवा ने प्रतिज्ञा की। उसने “याकूब गर्व” नामक अपने नाम का उपयोग किया और यह प्रतिज्ञा की:
“मैं उन लोगों के किये कामों के लिये उन्हें क्षमा नहीं कर सकता।
8 उन कामों के कारण पूरा देश काँप जाएगा।
इस देश का हर एक निवासी मृतकों के लिये रोयेगा।
पूरा देश मिस्र में नील नदी की तरह उमड़ेगा और नीचे गिरेगा।
पूरा देश चारों ओर उछाल दिया जायेगा।”
9 यहोवा ने ये बाते भी कहीं:
“उस समय, मैं सूरज दोपहर में ही अस्त करूँगा।
मैं प्रकाश भरे दिन में पृथ्वी को अन्धकारपूर्ण करूँगा।
10 मैं तुम्हारे पवित्र दिनों को मृतकों के लिये शोक—दिवस में बदलूँगा।
तुम्हारे सभी गीत मृतकों के लिये शोक गीत बनेंगे।
मैं हर एक को शोक वस्त्र पहनाऊँगा।
मैं हर एक सिर को मुँड़वा दूँगा।
मैं ऐसा गहरा शोक भरा रोना बनाऊँगा
मानो वह एक मात्र पुत्र के शोक का हो।
यह एक अत्यन्त कटु अन्त होगा।”
परमेश्वर के संसार के लिए भयंकर भुखमरी पूर्ण भविष्य
11 यहोवा कहता है:
“देखो, वे दिन समीप आ रहा है,
जब मैं देश में भुखमरी लाऊँगा,
लोग रोटी के भूखे
और पानी के प्यासे नहीं होंगे,
बल्कि लोग यहोवा के वचन के भूखे होंगे।
12 लोग एक सागर से दूसरे सागर तक भटकेंगे।
वे उत्तर से दक्षिण तक भटकेंगे।
वे लोग यहोवा के सन्देश के लिये आगे बढ़ेंगे, पीछे हटेंगे,
किन्तु वे उसे पाएंगे नहीं।
13 उस समय सुन्दर युवतियाँ और युवक
प्यास के कारण बेहोश हो जाएंगे।
14 उन लोगों ने शोमरोन के पाप के नाम पर प्रतिज्ञायें की।
उन्होंने कहा,
‘दान तुम्हारे देवता की सत्ता निश्चित सत्य है, इससे हम प्रतिज्ञा करते हैं …,
और बेर्शेबा के देवता की सत्ता निश्चित सत्य है, इससे हम प्रतिज्ञा करते है …’
अत: उन लोगों का पतन होगा
और वे फिर कभी उठेंगे नहीं।”
17 मैंने जब उसे देखा तो मैं उसके चरणों पर मरे हुए के समान गिर पड़ा। फिर उसने मुझ पर अपना दाहिना हाथ रखते हुए कहा, “डर मत, मैं ही प्रथम हूँ और मैं ही अंतिम भी हूँ। 18 और मैं ही वह हूँ, जो जीवित है। मैं मर गया था, किन्तु देख, अब मैं सदा-सर्वदा के लिए जीवित हूँ। मेरे पास मृत्यु और अधोलोक[a] की कुंजियाँ हैं। 19 सो जो कुछ तूने देखा है, जो कुछ घट रहा है, और जो भविष्य में घटने जा रहा है, उसे लिखता जा। 20 ये जो सात तारे हैं जिन्हें तूने मेरे हाथ में देखा है और ये जो सात दीपाधार हैं, इनका रहस्यपूर्ण अर्थ है: ये सात तारे सात कलीसियाओं के दूत हैं तथा ये सात दीपाधार सात कलीसियाएँ हैं।
इफिसुस की कलीसिया को मसीह का सन्देश
2 “इफिसुस की कलीसिया के स्वर्गदूत के नाम यह लिख:
“वह जो अपने दाहिने हाथ में सात तारों को धारण करता है तथा जो सात दीपाधारों के बीच विचरण करता है; इस प्रकार कहता है:
2 “मैं तेरे कर्मों कठोर परिश्रम और धैर्यपूर्ण सहनशीलता को जानता हूँ तथा मैं यह भी जानता हूँ कि तू बुरे लोगों को सहन नहीं कर पाता है तथा तूने उन्हें परखा है जो कहते हैं कि वे प्रेरित हैं किन्तु हैं नहीं। तूने उन्हें झूठा पाया है। 3 मैं जानता हूँ कि तुझमें धीरज है और मेरे नाम पर तूने कठिनाइयाँ झेली हैं और तू थका नहीं है।
4 “किन्तु मेरे पास तेरे विरोध में यह है: तूने वह प्रेम त्याग दिया है जो आरम्भ में तुझमें था। 5 सो याद कर कि तू कहाँ से गिरा है, मनफिरा तथा उन कर्मों को कर जिन्हें तू प्रारम्भ में किया करता था, नहीं तो, यदि तूने मन न फिराया, तो मैं तेरे पास आऊँगा और तेरे दीपाधार को उसके स्थान से हटा दूँगा। 6 किन्तु यह बात तेरे पक्ष में है कि तू नीकुलइयों[b] के कामों से घृणा करता है, जिनसे मैं भी घृणा करता हूँ।
7 “जिसके पास कान हैं, वह उसे सुने जो आत्मा कलीसियाओं से कह रहा है। जो विजय पाएगा मैं उसे परमेश्वर के उपवन में लगे जीवन के वृक्ष से फल खाने का अधिकार दूँगा।
यीशु द्वारा यहूदी धर्म-नेताओं की आलोचना
(मरकुस 12:38-40; लूका 11:37-52; 20:45-47)
23 यीशु ने फिर अपने शिष्यों और भीड़ से कहा। 2 उसने कहा, “यहूदी धर्म शास्त्री और फ़रीसी मूसा के विधान की व्याख्या के अधिकारी हैं। 3 इसलिए जो कुछ वे कहें उस पर चलना और उसका पालन करना। किन्तु जो वे करते हैं वह मत करना। मैं यह इसलिए कहता हूँ क्योंकि वे बस कहते हैं पर करते नहीं हैं। 4 वे लोगों के कंधों पर इतना बोझ लाद देते हैं कि वे उसे उठा कर चल ही न सकें और लोगों पर दबाव डालते हैं कि वे उसे लेकर चलें। किन्तु वे स्वयं उनमें से किसी पर भी चलने के लिए पाँव तक नहीं हिलाते।
5 “वे अच्छे कर्म इसलिए करते हैं कि लोग उन्हें देखें। वास्तव में वे अपने ताबीज़ों और पोशाकों की झालरों को इसलिये बड़े से बड़ा करते रहते हैं ताकि लोग उन्हें धर्मात्मा समझें। 6 वे उत्सवों में सबसे महत्वपूर्ण स्थान पाना चाहते हैं। आराधनालयों में उन्हें प्रमुख आसन चाहिये। 7 बाज़ारों में वे आदर के साथ नमस्कार कराना चाहते हैं। और चाहते हैं कि लोग उन्हें ‘रब्बी’ कहकर संबोधित करें।
8 “किन्तु तुम लोगों से अपने आप को ‘रब्बी’ मत कहलवाना क्योंकि तुम्हारा सच्चा गुरु तो बस एक है। और तुम सब केवल भाई बहन हो। 9 धरती पर लोगों को तुम अपने में से किसी को भी ‘पिता’ मत कहने देना। क्योंकि तुम्हारा पिता तो बस एक ही है, और वह स्वर्ग में है। 10 न ही लोगों को तुम अपने को स्वामी कहने देना क्योंकि तुम्हारा स्वामी तो बस एक ही है और वह मसीह है। 11 तुममें सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति वही होगा जो तुम्हारा सेवक बनेगा। 12 जो अपने आपको उठायेगा, उसे नीचा किया जाएगा और जो अपने आपको नीचा बनाएगा, उसे उठाया जायेगा।
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