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Book of Common Prayer

Daily Old and New Testament readings based on the Book of Common Prayer.
Duration: 861 days
Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)
Version
भजन संहिता 18

यहोवा के दास दाऊद का एक पद: संगीत निर्देशक के लिये। दाऊद ने यह पद उस अवसर पर गाया था जब यहोवा ने शाऊल तथा अन्य शत्रुओं से उसकी रक्षा की थी।

उसने कहा, “यहोवा मेरी शक्ति है,
    मैं तुझ पर अपनी करुणा दिखाऊँगा!
यहोवा मेरी चट्टान, मेरा गढ़, मेरा शरणस्थल है।”
    मेरा परमेश्वर मेरी चट्टान है। मैं तेरी शरण मे आया हूँ।
उसकी शक्ति मुझको बचाती है।
    यहोवा ऊँचे पहाड़ों पर मेरा शरणस्थल है।

यहोवा को जो स्तुति के योग्य है,
    मैं पुकारुँगा और मैं अपने शत्रुओं से बचाया जाऊँगा।
मेरे शत्रुओं ने मुझे मारने का यत्न किया। मैं चारों ओर मृत्यु की रस्सियों से घिरा हूँ!
    मुझ को अधर्म की बाढ़ ने भयभीत कर दिया।
मेरे चारों ओर पाताल की रस्सियाँ थी।
    और मुझ पर मृत्यु के फँदे थे।
मैं घिरा हुआ था और यहोवा को सहायता के लिये पुकारा।
    मैंने अपने परमेश्वर को पुकारा।
परमेश्वर पवित्र निज मन्दिर में विराजा।
    उसने मेरी पुकार सुनी और सहायता की।
तब पृथ्वी हिल गई और काँप उठी;
    और पहाड़ों की नींव कंपित हो कर हिल गई
    क्योंकि यहोवा अति क्रोधित हुआ था!
परमेश्वर के नथनों से धुँआ निकल पड़ा।
    परमेश्वर के मुख से ज्वालायें फूट निकली,
    और उससे चिंगारियाँ छिटकी।
यहोवा स्वर्ग को चीर कर नीचे उतरा!
    सघन काले मेघ उसके पाँव तले थे।
10 उसने उड़ते करुब स्वर्गदूतों पर सवारी की वायु पर सवार हो
    वह ऊँचे उड़ चला।
11 यहोवा ने स्वयं को अँधेरे में छिपा लिया, उसको अम्बर का चँदोबा घिरा था।
    वह गरजते बादलों के सघन घटा—टोप में छिपा हुआ था।
12 परमेश्वर का तेज बादल चीर कर निकला।
    बरसा और बिजलियाँ कौंधी।
13 यहोवा का उद्घोष नाद अम्बर में गूँजा!
    परम परमेश्वर ने निज वाणी को सुनने दिया! फिर ओले बरसे और बिजलियाँ कौंध उठी।
14 यहोवा ने बाण छोड़े और शत्रु बिखर गये।
    उसके अनेक तड़ित बज्रों ने उनको पराजित किया।
15 हे यहोवा, तूने गर्जना की
    और मुख से आँधी प्रवाहित की।
जल पीछे हट कर दबा और समुद्र का जल अतल दिखने लगा,
    और धरती की नींव तक उधड़ी।

16 यहोवा ऊपर अम्बर से नीचे उतरा और मेरी रक्षा की।
    मुझको मेरे कष्टों से उबार लिया।
17 मेरे शत्रु मुझसे कहीं अधिक सशक्त थे।
    वे मुझसे कहीं अधिक बलशाली थे, और मुझसे बैर रखते थे। सो परमेश्वर ने मेरी रक्षा की।
18 जब मैं विपत्ति में था, मेरे शत्रुओं ने मुझ पर प्रहार किया
    किन्तु तब यहोवा ने मुझ को संभाला!
19 यहोवा को मुझसे प्रेम था, सो उसने मुझे बचाया
    और मुझे सुरक्षित ठौर पर ले गया।
20 मैं अबोध हूँ, सो यहोवा मुझे बचायेगा।
    मैंने कुछ बुरा नहीं किया। वह मेरे लिये उत्तम चीजें करेगा।
21 क्योंकि मैंने यहोवा की आज्ञा पालन किया!
    अपने परमेश्वर यहोवा के प्रति मैंने कोई भी बुरा काम नहीं किया।
22 मैं तो यहोवा के व्यवस्था विधानों को
    और आदेशों को हमेशा ध्यान में रखता हूँ!
23 स्वयं को मैं उसके सामने पवित्र रखता हूँ
    और अबोध बना रहता हूँ।
24 क्योंकि मैं अबोध हूँ! इसलिये मुझे मेरा पुरस्कार देगा!
    जैसा परमेश्वर देखता है कि मैंने कोई बुरा नहीं किया, अतःवह मेरे लिये उत्तम चीज़ें करेगा।

25 हे यहोवा, तू विश्वसनीय लोगों के साथ विश्वसनीय
    और खरे लोगों के साथ तू खरा है।
26 हे यहोवा शुद्ध के साथ तू अपने को शुद्ध दिखाता है, और टेढ़ों के साथ तू तिछर बनता है।
    किन्तु, तू नीच और कुटिल जनों से भी चतुर है।
27 हे यहोवा, तू नम्र जनों के लिये सहाय है,
    किन्तु जिनमें अहंकार भरा है उन मनुष्यों को तू बड़ा नहीं बनने देता।
28 हे यहोवा, तू मेरा जलता दीप है।
    हे मेरे परमेश्वर तू मेरे अधंकार को ज्योति में बदलता है!
29 हे यहोवा, तेरी सहायता से, मैं सैनिकों के साथ दौड़ सकता हूँ।
    तेरी ही सहायता से, मैं शत्रुओं के प्राचीर लाँघ सकता हूँ।

30 परमेश्वर के विधान पवित्र और उत्तम हैं और यहोवा के शब्द सत्यपूर्ण होते हैं।
    वह उसको बचाता है जो उसके भरोसे हैं।
31 यहोवा को छोड़ बस और कौन परमेश्वर है?
    मात्र हमारे परमेश्वर के और कौन चट्टान है?
32 मुझको परमेश्वर शक्ति देता है।
    मेरे जीवन को वह पवित्र बनाता है।
33 परमेश्वर मेरे चरणों को हिरण की सी तीव्र गति देता है।
    वह मुझे स्थिर बनाता और मुझे चट्टानी शिखरों से गिरने से बचाता है।
34 हे यहोवा, मुझको सिखा कि युद्ध मैं कैसे लडूँ?
    वह मेरी भुजाओं को शक्ति देता है जिससे मैं काँसे के धनुष की डोरी खींच सकूँ।

35 हे परमेश्वर, अपनी ढाल से मेरी रक्षा कर।
    तू मुझको अपनी दाहिनी भुजा से
    अपनी महान शक्ति प्रदान करके सहारा दे।
36 हे परमेश्वर, तू मेरे पाँवों को और टखनों को दृढ़ बना
    ताकि मैं तेजी से बिना लड़खड़ाहट के बढ़ चलूँ।

37 फिर अपने शत्रुओं का पीछा करुँ, और उन्हें पकड़ सकूँ।
    उनमें से एक को भी नहीं बच पाने दूँगा।
38 मैं अपने शत्रुओं को पराजित करुँगा।
    उनमें से एक भी फिर खड़ा नहीं होगा।
    मेरे सभी शत्रु मेरे पाँवों पर गिरेंगे।
39 हे परमेश्वर, तूने मुझे युद्ध में शक्ति दी,
    और मेरे सब शत्रुओं को मेरे सामने झुका दिया।
40 तूने मेरे शत्रुओं की पीठ मेरी ओर फेर दी,
    ताकि मैं उनको काट डालूँ जो मुझ से द्वेष रखते हैं!
41 जब मेरे बैरियों ने सहायता को पुकारा,
    उन्हें सहायता देने आगे कोई नहीं आया।
यहाँ तक कि उन्होंने यहोवा तक को पुकारा,
    किन्तु यहोवा से उनको उत्तर न मिला।
42 मैं अपने शत्रुओं को कूट कूट कर धूल में मिला दूँगा, जिसे पवन उड़ा देती है।
    मैंने उनको कुचल दिया और मिट्टी में मिला दिया।

43 मुझे उनसे बचा ले जो मुझसे युद्ध करते हैं।
    मुझे उन जातियों का मुखिया बना दे,
    जिनको मैं जानता तक नहीं हूँ ताकि वे मेरी सेवा करेंगे।
44 फिर वे लोग मेरी सुनेंगे और मेरे आदेशों को पालेंगे,
    अन्य राष्टों के जन मुझसे डरेंगे।
45 वे विदेशी लोग मेरे सामने झुकेंगे क्योंकि वे मुझसे भयभीत होंगे।
    वे भय से काँपते हुए अपने छिपे स्थानों से बाहर निकल आयेंगे।

46 यहोवा सजीव है!
    मैं अपनी चट्टान के यश गीत गाता हूँ।
    मेरा महान परमेश्वर मेरी रक्षा करता है।
47 धन्य है, मेरा पलटा लेने वाला परमेश्वर
    जिसने देश—देश के लोगों को मेरे बस में कर दिया है।
48     यहोवा, तूने मुझे शत्रुओं से छुड़ाया है।

तूने मेरी सहायता की ताकि मैं उन लोगों को हरा सकूँ जो मेरे विरुद्ध खड़े हुए।
    तूने मुझे कठोर व्यक्तियों से बचाया है।
49 हे यहोवा, इसी कारण मैं देशों के बीच तेरी स्तुति करता हूँ।
    इसी कारण मैं तेरे नाम का भजन गाता हूँ।

50 यहोवा अपने राजा की सहायता बहुत से युद्धों को जीतने में करता है!
    वह अपना सच्चा प्रेम, अपने चुने हुए राजा पर दिखाता है।
    वह दाऊद और उसके वंशजों के लिये सदा विश्वास योग्य रहेगा!

आमोस 4:6-13

“मैंने तुम्हें अपने पास बुलाने के लिये कई काम किये। मैंने तुम्हें खाने को कुछ भी नहीं दिया। तुम्हारे किसी भी नगर में भोजन नहीं था। किन्तु तुम मेरे पास वापस नहीं लौटे।” यहोवा ने यह सब कहा।

“मैंने वर्षा भी बन्द की और यह फसल पकने के तीन महीने पहले हुआ। अत: कोई फसल नहीं हुई। तब मैंने एक नगर पर वर्षा होने दी किन्तु दूसरे नगर पर नहीं। वर्षा देश के एक हिस्से में हुई। किन्तु देश के अन्य भागों में भूमि बहुत सूख गई। अत: दो या तीन नगरों से लोग पानी लेने के लिये दूसरे नगरों को लड़खड़ाते हुए गए किन्तु वहाँ भी हर एक व्यक्ति के लिये पर्याप्त जल नहीं मिला। तो भी तुम मेरे पास सहायता के लिये नहीं आए।” यहोवा ने यह सब कहा।

“मैंने तुम्हारी फसलों को गर्मी और बीमारी से मार डाला। मैंने तुम्हारे बागों और अंगूर के बगीचों को नष्ट किया। टिड्डियों ने तुम्हारे अंजीर के पेड़ों और जैतून के पेड़ों को खा डाला। किन्तु तुम फिर भी मेरे पास सहायता के लिये नहीं आए।” यहोवा ने यह सब कहा।

10 “मैंने तुम्हारे विरूद्ध महामारियाँ वैसे ही भेजीं जैसे मैंने मिस्र में भेजी थीं। मैंने तुम्हारे युवकों को तलवार के घाट उतार दिया। मैंने तुम्हारे घोड़े ले लिये। मैंने तुम्हारे डेरों को शवों की दुर्गन्ध से भरा। किन्तु तब भी तुम मेरे पास सहायता को वापस नहीं लौटे।” यहोवा ने यह सब कहा।

11 “मैने तुम्हें वैसे ही नष्ट किया जैसे मैंने सदोम और अमोरा को नष्ट किया था और वे नगर पूरी तरह नष्ट किये गये थे। तुम आग से खींची गई जलती लकड़ी की तरह थे। किन्तु तुम फिर भी सहायता के लिये मेरे पास नही लौटे।” यहोवा ने यह सब कहा।

12 “अत: इस्राएल, मैं तुम्हारे साथ यह सब करूँगा। मैं तुम्हारे साथ यह करूँगा। इस्राएल, अपने परमेश्वर से मिलने के लिये तैयार हो जाओ!”

13 मैं कौन हूँ मैं वही हूँ जिसने पर्वतों को बनाया।
    मैंने तुम्हारा प्राण बनाया।
    मैंने लोगों को अपने विचार बनाए।
मैं ही सुबह को शाम में बदलता हूँ।
    मैं पृथ्वी के ऊपर के पर्वतों पर चलता हूँ।
    मैं कौन हूँ मेरा नाम यहोवा, सेनाओं का परमेश्वर है।

2 पतरस 3:11-18

11 क्योंकि जब ये सभी वस्तुएँ इस प्रकार नष्ट होने को जा रही हैं तो सोचो तुम्हें किस प्रकार का बनना चाहिए? तुम्हें पवित्र जीवन जीना चाहिए, पवित्र जीवन जो परमेश्वर को अर्पित है तथा हर प्रकार के उत्तम कर्म करने चाहिए। 12 और तुम्हें परमेश्वर के दिन की बाट जोहनी चाहिए और उस दिन को लाने के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। उस दिन के आते ही आकाश लपटों में जल कर नष्ट हो जाएगा और आकाशीय पिण्ड उस ताप से पिघल उठेंगे। 13 किन्तु हम परमेश्वर के वचन के अनुसार ऐसे नए आकाश और नई धरती की बाट जोह रहे हैं जहाँ धार्मिकता निवास करती है।

14 इसलिए हे प्रिय मित्रों, क्योंकि तुम इन बातों की बाट जोह रहे हो, पूरा प्रयत्न करो कि प्रभु की दृष्टि में और शांति में निर्दोष और कलंक रहित पाए जाओ। 15 हमारे प्रभु के धीरज को उद्धार समझो। जैसा कि हमारे प्रिय बन्धु पौलुस ने परमेश्वर के द्वारा दिए गए विवेक के अनुसार तुम्हें लिखा था। 16 अपने अन्य सभी पत्रों के समान उस पत्र में उसने इन बातों के विषय में कहा है। उन पत्रों में कुछ बातें ऐसी हैं जिनका समझना कठिन है। अज्ञानी और अस्थिर लोग उनके अर्थ का अनर्थ करते हैं। दूसरे शास्त्रों के साथ भी वे ऐसा ही करते हैं। इससे वे अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारते हैं।

17 सो हे प्रिय मित्रो, क्योंकि तुम्हें ये बातें पहले से ही पता हैं इसलिए सावधान रहो कि तुम बुराइयों और व्यवस्थाहीन लोगों के द्वारा भटक कर अपनी स्थिर स्थिति से डिग न जाओ। 18 बल्कि हमारे प्रभु तथा उद्धारकर्ता यीशु मसीह की अनुग्रह और ज्ञान में तुम आगे बढ़ते जाओ। अब और अनन्त समय तक उसकी महिमा होती रहे।

मत्ती 21:33-46

परमेश्वर का अपने पुत्र को भेजना

(मरकुस 12:1-12; लूका 20:9-19)

33 “एक और दृष्टान्त सुनो: एक ज़मींदार था। उसने अंगूरों का एक बगीचा लगाया और उसके चारों ओर बाड़ लगा दी। फिर अंगूरों का रस निकालने का गरठ लगाने को एक गडढ़ा खोदा और रखवाली के लिए एक मीनार बनायी। फिर उसे बटाई पर देकर वह यात्रा पर चला गया। 34 जब अंगूर उतारने का समय आया तो बगीचे के मालिक ने किसानों के पास अपने दास भेजे ताकि वे अपने हिस्से के अंगूर ले आयें।

35 “किन्तु किसानों ने उसके दासों को पकड़ लिया। किसी की पिटाई की, किसी पर पत्थर फेंके और किसी को तो मार ही डाला। 36 एक बार फिर उसने पहले से और अधिक दास भेजे। उन किसानों ने उनके साथ भी वैसा ही बर्ताव किया। 37 बाद में उसने उनके पास अपने बेटे को भेजा। उसने कहा, ‘वे मेरे बेटे का तो मान रखेंगे ही।’

38 “किन्तु उन किसानों ने जब उसके बेटे को देखा तो वे आपस में कहने लगे, ‘यह तो उसका उत्तराधिकारी है, आओ इसे मार डालें और उसका उत्तराधिकार हथिया लें।’ 39 सो उन्होंने उसे पकड़ कर बगीचे के बाहर धकेल दिया और मार डाला।

40 “तुम क्या सोचते हो जब वहाँ अंगूरों के बगीचे का मालिक आयेगा तो उन किसानों के साथ क्या करेगा?”

41 उन्होंने उससे कहा, “क्योंकि वे निर्दय थे इसलिए वह उन्हें बेरहमी से मार डालेगा और अंगूरों के बगीचे को दूसरे किसानों को बटाई पर दे देगा जो फसल आने पर उसे उसका हिस्सा देंगें।”

42 यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुमने शास्त्र का वह वचन नहीं पढ़ा:

‘जिस पत्थर को मकान बनाने वालों ने बेकार समझा, वही कोने का सबसे अधिक महत्वपूर्ण पत्थर बन गया?
ऐसा प्रभु के द्वारा किया गया जो हमारी दृष्टि में अद्भुत है।’(A)

43 “इसलिये मैं तुमसे कहता हूँ परमेश्वर का राज्य तुमसे छीन लिया जायेगा और वह उन लोगों को दे दिया जायेगा जो उसके राज्य के अनुसार बर्ताव करेंगे। 44 जो इस चट्टान पर गिरेगा, टुकड़े टुकड़े हो जायेगा और यदि यह चट्टान किसी पर गिरेगी तो उसे रौंद डालेगी।”

45 जब प्रमुख याजकों और फरीसियों ने यीशु की दृष्टान्त कथाएँ सुनीं तो वे ताड़ गये कि वह उन्हीं के बारे में कह रहा था। 46 सो उन्होंने उसे पकड़ने का जतन किया किन्तु वे लोगों से डरते थे क्योंकि लोग यीशु को नबी मानते थे।

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