Book of Common Prayer
1 यहोवा का मान करो क्योंकि वह परमेश्वर है।
उसका सच्चा प्रेम सदा ही अटल रहता है!
2 इस्राएल यह कहता है,
“उसका सच्चा प्रेम सदा ही अटल रहता है!”
3 याजक ऐसा कहते हैं,
“उसका सच्चा प्रेम सदा ही अटल रहता है!”
4 तुम लोग जो यहोवा की उपासना करते हो, कहा करते हो,
“उसका सच्चा प्रेम सदा ही अटल रहता है!”
5 मैं संकट में था सो सहारा पाने को मैंने यहोवा को पुकारा।
यहोवा ने मुझको उत्तर दिया और यहोवा ने मुझको मुक्त किया।
6 यहोवा मेरे साथ है सो मैं कभी नहीं डरूँगा।
लोग मुझको हानि पहुँचाने कुछ नहीं कर सकते।
7 यहोवा मेरा सहायक है।
मैं अपने शत्रुओं को पराजित देखूँगा।
8 मनुष्यों पर भरोसा रखने से
यहोवा पर भरोसा रखना उत्तम है।
9 अपने मुखियाओं पर भरोसा रखने से
यहोवा पर भरोसा रखना उत्तम है।
10 मुझको अनेक शत्रुओं ने घेर लिया है।
यहोवा की शक्ति से मैंने अपने बैरियों को हरा दिया।
11 शत्रुओं ने मुझको फिर घेर लिया।
यहोवा की शक्ति से मैंने उनको हराया।
12 शत्रुओं ने मुझे मधु मक्खियों के झुण्ड सा घेरा।
किन्तु, वे एक शीघ्र जलती हुई झाड़ी के समान नष्ट हुआ।
यहोवा की शक्ति से मैंने उनको हराया।
13 मेरे शत्रुओं ने मुझ पर प्रहार किया और मुझे लगभग बर्बाद कर दिया
किन्तु यहोवा ने मुझको सहारा दिया।
14 यहोवा मेरी शक्ति और मेरा विजय गीत है।
यहोवा मेरी रक्षा करता है।
15 सज्जनों के घर में जो विजय पर्व मन रहा तुम उसको सुन सकते हो।
देखो, यहोवा ने अपनी महाशक्ति फिर दिखाई है।
16 यहोवा की भुजाये विजय में उठी हुई हैं।
देखो यहोवा ने अपनी महाशक्ति फिर से दिखाई।
17 मैं जीवित रहूँगा, मैं मरूँगा नहीं,
और जो कर्म यहोवा ने किये हैं, मैं उनका बखान करूँगा।
18 यहोवा ने मुझे दण्ड दिया
किन्तु मरने नहीं दिया।
19 हे पुण्य के द्वारों तुम मेरे लिये खुल जाओ
ताकि मैं भीतर आ पाऊँ और यहोवा की आराधना करूँ।
20 वे यहोवा के द्वार है।
बस केवल सज्जन ही उन द्वारों से होकर जा सकते हैं।
21 हे यहोवा, मेरी विनती का उत्तर देने के लिये तेरा धन्यवाद।
मेरी रक्षा के लिये मैं तुझे धन्यवाद देता हूँ।
22 जिसको राज मिस्त्रियों ने नकार दिया था
वही पत्थर कोने का पत्थर बन गया।
23 यहोवा ने इसे घटित किया
और हम तो सोचते हैं यह अद्भुत है!
24 यहोवा ने आज के दिन को बनाया है।
आओ हम हर्ष का अनुभव करें और आज आनन्दित हो जाये!
25 लोग बोले, “यहोवा के गुण गाओ!
यहोवा ने हमारी रक्षा की है!
26 उस सब का स्वागत करो जो यहोवा के नाम में आ रहे हैं।”
याजकों ने उत्तर दिया, “यहोवा के घर में हम तुम्हारा स्वागत करते हैं!
27 यहोवा परमेश्वर है, और वह हमें अपनाता है।
बलि के लिये मेमने को बाँधों और वेदी के कंगूरों पर मेमने को ले जाओ।”
28 हे यहोवा, तू हमारा परमेश्वर है, और मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ।
मैं तेरे गुण गाता हूँ!
29 यहोवा की प्रशंसा करो क्योंकि वह उत्तम है।
उसकी सत्य करूणा सदा बनी रहती है।
दाऊद की एक प्रार्थना।
1 हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे राजा, मैं तेरा गुण गाता हूँ!
मैं सदा-सदा तेरे नाम को धन्य कहता हूँ।
2 मैं हर दिन तुझको सराहता हूँ।
मैं तेरे नाम की सदा-सदा प्रशंसा करता हूँ।
3 यहोवा महान है। लोग उसका बहुत गुणगान करते हैं।
वे अनगिनत महाकार्य जिनको वह करता है हम उनको नहीं गिन सकते।
4 हे यहोवा, लोग उन बातों की गरिमा बखानेंगे जिनको तू सदा और सर्वदा करता हैं।
दूसरे लोग, लोगों से उन अद्भुत कर्मो का बखान करेंगे जिनको तू करता है।
5 तेरे लोग अचरज भरे गौरव और महिमा को बखानेंगे।
मैं तेरे आश्चर्यपूर्ण कर्मों को बखानूँगा।
6 हे यहोवा, लोग उन अचरज भरी बातों को कहा करेंगे जिनको तू करता है।
मैं उन महान कर्मो को बखानूँगा जिनको तू करता है।
7 लोग उन भली बातों के विषय में कहेंगे जिनको तू करता है।
लोग तेरी धार्मिकता का गान किया करेंगे।
8 यहोवा दयालु है और करुणापूर्ण है।
यहोवा तू धैर्य और प्रेम से पूर्ण है।
9 यहोवा सब के लिये भला है।
परमेश्वर जो कुछ भी करता है उसी में निजकरुणा प्रकट करता है।
10 हे यहोवा, तेरे कर्मो से तुझे प्रशंसा मिलती है।
तुझको तेरे भक्त धन्य कहा करते हैं।
11 वे लोग तेरे महिमामय राज्य का बखान किया करते हैं।
तेरी महानता को वे बताया करते हैं।
12 ताकि अन्य लोग उन महान बातों को जाने जिनको तू करता है।
वे लोग तेरे महिमामय राज्य का मनन किया करते हैं।
13 हे यहोवा, तेरा राज्य सदा—सदा बना रहेगा
तू सर्वदा शासन करेगा।
14 यहोवा गिरे हुए लोगों को ऊपर उठाता है।
यहोवा विपदा में पड़े लोगों को सहारा देता है।
15 हे यहोवा, सभी प्राणी तेरी ओर खाना पाने को देखते हैं।
तू उनको ठीक समय पर उनका भोजन दिया करता है।
16 हे यहोवा, तू निज मुट्ठी खोलता है,
और तू सभी प्राणियों को वह हर एक वस्तु जिसकी उन्हें आवश्यकता देता है।
17 यहोवा जो भी करता है, अच्छा ही करता है।
यहोवा जो भी करता, उसमें निज सच्चा प्रेम प्रकट करता है।
18 जो लोग यहोवा की उपासना करते हैं, यहोवा उनके निकट रहता है।
सचमुच जो उसकी उपासना करते है, यहोवा हर उस व्यक्ति के निकट रहता है।
19 यहोवा के भक्त जो उससे करवाना चाहते हैं, वह उन बातों को करता है।
यहोवा अपने भक्तों की सुनता है।
वह उनकी प्रार्थनाओ का उत्तर देता है और उनकी रक्षा करता है।
20 जिसका भी यहोवा से प्रेम है, यहोवा हर उस व्यक्ति को बचाता है,
किन्तु यहोवा दुष्ट को नष्ट करता है।
21 मैं यहोवा के गुण गाऊँगा!
मेरी यह इच्छा है कि हर कोई उसके पवित्र नाम के गुण सदा और सर्वदा गाये।
अहीतोपेल दाऊद के बारे में सलाह देता है
17 अहीतोपेल ने अबशालोम से यह भी कहा, “मुझे अब बारह हजार सैनिक चुनने दो। तब मैं आज की रात दाऊद का पीछा करूँगा 2 मैं उसे तब पकडूँगा जब वह थका कमजोर होगा। मैं उसे भयभीत करूँगा। और उसके सभी व्यक्ति उसे छोड़ भागेंगे। किन्तु मैं केवल राजा दाऊद को मारूँगा। 3 तब मैं सभी लोगों को तुम्हारे पास वापस लाऊँगा। यदि दाऊद मर गया तो शेष सब लोगों को शान्ति प्राप्त होगी।”
4 यह योजना अबशालोम और इस्राएल के सभी प्रमुखों को पसन्द आई। 5 किन्तु अबशालोम ने कहा, “एरेकी हूशै को अब बुलाओ। मैं उससे भी सुनना चाहता हूँ कि वह क्या कहता है।”
हूशै अहीतोपेल की सलाह नष्ट करता है
6 हूशै अबशालोम के पास आया। अबशालोम ने हूशै से कहा, “अहीतोपेल ने यह योजना बताई है। क्या हम लोग इस पर अमल करें? यदि नहीं तो हमें, अपनी बताओ।”
7 हुशै ने अबशालोम से कहा, “इस समय अहीतोपेल की सलाह ठीक नहीं है।” 8 उसने आगे कहा, “तुम जानते हो कि तुम्हारे पिता और उनके आदमी शक्तिशाली हैं। वे उस रीछनी की तरह खुंखार हैं जिसके बच्चे छीन लिये गये हों। तुम्हारा पिता कुशल योद्धा है। वह सारी रात लोगों के साथ नहीं ठहरेगा। 9 वह पहले ही से संभवत: किसी गुफा या अन्य स्थान पर छिपा है। यदि तुम्हारा पिता तुम्हारे व्यक्तियों पर पहले आक्रमण करता है तो लोग इसकी सूचना पांएगे, और वे सोचेंगे, ‘अबशालोम के समर्थक हार रहे हैं!’ 10 तब वे लोग भी जो सिंह की तरह वीर हैं, भयभीत हो जाएँगे। क्यों? क्योंकि सभी इस्राएली जानते हैं कि तुम्हारा पिता शक्तिशाली योद्धा है और उसके आदमी वीर हैं।
11 “मेरा सुझाव यह है: तुम्हें दान से लेकर बेर्शेबा तक के सभी इस्राएलियों को इकट्ठा करना चाहिये। तब बड़ी संख्या में लोग समुद्र की रेत के कणों समान होंगे। तब तुम्हें स्वयं युद्ध में जाना चाहिये। 12 हम दाऊद को उस स्थान से, जहाँ वह छिपा है, पकड़ लेंगे। हम दाऊद पर उस प्रकार टूट पड़ेंगे जैसे ओस भूमि पर पड़ती है। हम लोग दाऊद और उसके सभी व्यक्तियों को मार डालेंगे। कोई व्यक्ति जीवित नहीं छोड़ा जायेगा। 13 यदि दाऊद किसी नगर में भागता है तो सभी इस्राएली उस नगर में रस्सियाँ लाएंगे और हम लोग उस नगर की दिवारों को घसीट लेगें। उस नगर का एक पत्थर भी नहीं छोड़ा जाएगा।”
14 अबशालोम और इस्राएलियों ने कहा, “एरेकी हूशै की सलाह अहीतोपेल की सलाह से अच्छी है।” उन्होंने ऐसा कहा क्योंकि यह यहोवा की योजना थी। यहोवा नें अहीतोपेल की सलाह की व्यर्थ करने को योजना बनाई थी। इस प्रकार यहोवा अबशालोम को डण्ड दे सकता था।
हूशै दाऊद के पास चेतावनी भेजता है
15 हूशै ने वे बातें याजक सादोक और एब्यातार से कहीं। हूशै ने उस योजना के बारे में उन्हें बताया जिसे अहीतोपेल ने अबशालोम और इस्राएल के प्रमुखों को सुझाया था। हूशै ने सादोक और एब्यातार को वह योजना भी बताई जिसे उसने सुझाया था। हूशै ने कहा, 16 “शीघ्र! दाऊद को सूचना भेजो। उससे कहो कि आज की रात वह उन स्थानों पर न रहे जहाँ से लोग मरूभूमि को पार करते हैं। अपितु यरदन नदी को तुरन्त पार कर ले। यदि वह नदी को पार कर लेता है तो राजा और उसके लोग नहीं पकड़े जायेंगे।”
17 याजकों के पुत्र योनातन और अहीमास, एनरोगेल पर प्रतीक्षा कर रहे थे। वे नगर में जाते हुए दिखाई नहीं पड़ना चाहते थे, अत: एक गुलाम लड़की उनके पास आई। उसने उन्हें सन्देश दिया। तब योनातन और अहीमास गए और उन्होंने यह सन्देश राजा दाऊद को दिया।
18 किन्तु एक लड़के ने योनातन और अहीमास को देखा। लड़का अबशालोम से कहने के लिये दौड़ा। योनातन और अहीमास तेजी से भाग निकले। वे बहारीम में एक व्यक्ति के घर पहुँचे। उस व्यक्ति के आँगन में एक कुँआ था। योनातन और अहीमास इस कुँए में उतर गये। 19 उस व्यक्ति की पत्नी ने उस पर एक चादर डाल दी। तब उसने पूरे कुँए को अन्न से ढक दिया। कुँआ अन्न की ढेर जैसा दिखता था, इसलिये कोई व्यक्ति यह नहीं जान सकता था के योनातन और अहीमास वहाँ छिपे हैं। 20 अबशालोम के सेवक उस घर की स्त्री के पास आए। उन्होंने पूछा, “योनातन और अहीमास कहाँ हैं?”
उस स्त्री ने अबशालोम के सेवकों से कहा, “वे पहले ही नाले को पार कर गए हैं।”
अबशालोम के सेवक तब योनातन और अहीमास की खोज में चले गए। किन्तु वे उनको न पा सके। अत: अबशालोम के सेवक यरूशलेम लौट गए।
21 जब अबशालोम के सेवक चले गए, योनातन और अहीमास कुँए से बाहर आए। वे गए और उन्होंने दाऊद से कहा, “शीघ्रता करें, नदी को पार कर जाएँ। अहीतोपेल ने ये बातें आपके विरुद्ध कही हैं।”
22 तब दाऊद और उसके सभी लोग यरदन नदी के पार चले गए। सूर्य निकलने के पहले दाऊद के सभी लोग यरदन नदी को पार कर चुके थे।
अहीतोपेल आत्महत्या करता है
23 अहीतोपेल ने देखा कि इस्राएली उसकी सलाह नहीं मानते। अहीतोपेल ने अपने गधे पर काठी रखी। वह अपने नगर को घर चला गया। उसने अपने परिवार के लिये योजना बनाई। तब उसने अपने को फाँसी लगा ली। जब अहीतोपेल मर गया, लोगों ने उसे उसकी पिता की कब्र में दफना दिया।
6 यह वैसे ही है जैसे कि इब्राहीम के विषय में शास्त्र कहता है: “उसने परमेश्वर में विश्वास किया और यह उसके लिये धार्मिकता गिनी गई।”(A) 7 तो फिर तुम यह जान लो, इब्राहीम के सच्चे वंशज वे ही हैं जो विश्वास करते हैं। 8 शास्त्र ने पहले ही बता दिया था, “परमेश्वर ग़ैर यहूदियों को भी उनके विश्वास के कारण धर्मी ठहरायेगा। और इन शब्दों के साथ पहले से ही इब्राहीम को परमेश्वर द्वारा सुसमाचार से अवगत करा दिया गया था।”(B) 9 इसीलिए वे लोग जो विश्वास करते हैं विश्वासी इब्राहीम के साथ आशीष पाते हैं।
10 किन्तु वे सभी लोग जो व्यवस्था के विधानों के पालन पर निर्भर रहते हैं, वे तो किसी अभिशाप के अधीन हैं। शास्त्र में लिखा है: “ऐसा हर व्यक्ति शापित है जो व्यवस्था के विधान की पुस्तक में लिखी हर बात का लगन के साथ पालन नहीं करता।”(C) 11 अब यह स्पष्ट है कि व्यवस्था के विधान के द्वारा परमेश्वर के सामने कोई भी नेक नहीं ठहरता है। क्योंकि शास्त्र के अनुसार “धर्मी व्यक्ति विश्वास के सहारे जीयेगा।”[a]
12 किन्तु व्यवस्था का विधान तो विश्वास पर नहीं टिका है बल्कि शास्त्र के अनुसार, जो व्यवस्था के विधान को पालेगा, वह उन ही के सहारे जीयेगा।[b] 13 मसीह ने हमारे शाप को अपने ऊपर ले कर व्यवस्था के विधान के शाप से हमें मुक्त कर दिया। शास्त्र कहता है: “हर कोई जो वृक्ष पर टाँग दिया जाता है, शापित है।”(D) 14 मसीह ने हमें इसलिए मुक्त किया कि, इब्राहीम को दी गयी आषीष मसीह यीशु के द्वारा ग़ैर यहूदियों को भी मिल सके ताकि विश्वास के द्वारा हम उस आत्मा को प्राप्त करें, जिसका वचन दिया गया था।
30 “मैं स्वयं अपने आपसे कुछ नहीं कर सकता। मैं परमेश्वर से जो सुनता हूँ उसी के आधार पर न्याय करता हूँ और मेरा न्याय उचित है क्योंकि मैं अपनी इच्छा से कुछ नहीं करता बल्कि उसकी इच्छा से करता हूँ जिसने मुझे भेजा है।
यीशु का यहूदियों से कथन
31 “यदि मैं अपनी तरफ से साक्षी दूँ तो मेरी साक्षी सत्य नहीं है। 32 मेरी ओर से साक्षी देने वाला एक और है। और मैं जानता हूँ कि मेरी ओर से जो साक्षी वह देता है, सत्य है।
33 “तुमने लोगों को यूहन्ना के पास भेजा और उसने सत्य की साक्षी दी। 34 मैं मनुष्य की साक्षी पर निर्भर नहीं करता बल्कि यह मैं इसलिए कहता हूँ जिससे तुम्हारा उद्धार हो सके। 35 यूहन्ना उस दीपक की तरह था जो जलता है और प्रकाश देता है। और तुम कुछ समय के लिए उसके प्रकाश का आनन्द लेना चाहते थे।
36 “पर मेरी साक्षी यूहन्ना की साक्षी से बड़ी है क्योंकि परम पिता ने जो काम पूरे करने के लिए मुझे सौंपे हैं, मैं उन्हीं कामों को कर रहा हूँ और वे काम ही मेरे साक्षी हैं कि परम पिता ने मुझे भेजा है। 37 परम पिता ने जिसने मुझे भेजा है, मेरी साक्षी दी है। तुम लोगों ने उसका वचन कभी नहीं सुना और न तुमने उसका रूप देखा है। 38 और न ही तुम अपने भीतर उसका संदेश धारण करते हो। क्योंकि तुम उसमें विश्वास नहीं रखते हो जिसे परम पिता ने भेजा है। 39 तुम शास्त्रों का अध्ययन करते हो क्योंकि तुम्हारा विचार है कि तुम्हें उनके द्वारा अनन्त जीवन प्राप्त होगा। किन्तु ये सभी शास्त्र मेरी ही साक्षी देते हैं। 40 फिर भी तुम जीवन प्राप्त करने के लिये मेरे पास नहीं आना चाहते।
41 “मैं मनुष्य द्वारा की गयी प्रशंसा पर निर्भर नहीं करता। 42 किन्तु मैं जानता हूँ कि तुम्हारे भीतर परमेश्वर का प्रेम नहीं है। 43 मैं अपने पिता के नाम से आया हूँ फिर भी तुम मुझे स्वीकार नहीं करते किन्तु यदि कोई और अपने ही नाम से आए तो तुम उसे स्वीकार कर लोगे। 44 तुम मुझमें विश्वास कैसे कर सकते हो, क्योंकि तुम तो आपस में एक दूसरे से प्रशंसा स्वीकार करते हो। उस प्रशंसा की तरफ देखते तक नहीं जो एकमात्र परमेश्वर से आती है। 45 ऐसा मत सोचो कि मैं परम पिता के आगे तुम्हें दोषी ठहराऊँगा। जो तुम्हें दोषी सिद्ध करेगा वह तो मूसा होगा जिस पर तुमने अपनी आशाएँ टिकाई हुई हैं। यदि तुम वास्तव में मूसा में विश्वास करते 46 तो तुम मुझमें भी विश्वास करते क्योंकि उसने मेरे बारे में लिखा है। 47 जब तुम, जो उसने लिखा है उसी में विश्वास नहीं करते, तो मेरे वचन में विश्वास कैसे करोगे?”
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