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Book of Common Prayer

Daily Old and New Testament readings based on the Book of Common Prayer.
Duration: 861 days
Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)
Version
भजन संहिता 88

कोरह वंशियों के ओर से संगीत निर्देशक के लिये यातना पूर्ण व्याधि के विषय में एज्रा वंशी हेमान का एक कलापूर्ण स्तुति गीत।

हे परमेश्वर यहोवा, तू मेरा उद्धारकर्ता है।
    मैं तेरी रात दिन विनती करता रहा हूँ।
कृपा करके मेरी प्रार्थनाओं पर ध्यान दे।
    मुझ पर दया करने को मेरी प्रार्थनाएँ सुन।
मैं अपनी पीड़ाओं से तंग आ चुका हूँ।
    बस मैं जल्दी ही मर जाऊँगा।
लोग मेरे साथ मुर्दे सा व्यवहार करने लगे हैं।
    उस व्यक्ति की तरह जो जीवित रहने के लिये अति बलहीन हैं।
मेरे लिये मरे व्यक्तियों में ढूँढ़।
    मैं उस मुर्दे सा हूँ जो कब्र में लेटा है,
और लोग उसके बारे में सब कुछ ही भूल गए।
हे यहोवा, तूने मुझे धरती के नीचे कब्र में सुला दिया।
    तूने मुझे उस अँधेरी जगह में रख दिया।
हे परमेश्वर, तुझे मुझ पर क्रोध था,
    और तूने मुझे दण्डित किया।

मुझको मेरे मित्रों ने त्याग दिया है।
    वे मुझसे बचते फिरते हैं जैसे मैं कोई ऐसा व्यक्ति हूँ जिसको कोई भी छूना नहीं चाहता।
घर के ही भीतर बंदी बन गया हूँ। मैं बाहर तो जा ही नहीं सकता।
    मेरे दु:खों के लिये रोते रोते मेरी आँखे सूज गई हैं।
हे यहोवा, मैं तुझसे निरतंर प्रार्थना करता हूँ।
    तेरी ओर मैं अपने हाथ फैला रहा हूँ।
10 हे यहोवा, क्या तू अद्भुत कर्म केवल मृतकों के लिये करता है?
    क्या भूत (मृत आत्माएँ) जी उठा करते हैं और तेरी स्तुति करते हैं? नहीं।

11 मरे हुए लोग अपनी कब्रों के बीच तेरे प्रेम की बातें नहीं कर सकते।
    मरे हुए व्यक्ति मृत्युलोक के भीतर तेरी भक्ति की बातें नहीं कर सकते।
12 अंधकार में सोये हुए मरे व्यक्ति उन अद्भुत बातों को जिनको तू करता है, नहीं देख सकते हैं।
    मरे हुए व्यक्ति भूले बिसरों के जगत में तेरे खरेपन की बातें नहीं कर सकते।
13 हे यहोवा, मेरी विनती है, मुझको सहारा दे!
    हर अलख सुबह मैं तेरी प्रार्थना करता हूँ।
14 हे यहोवा, क्या तूने मुझको त्याग दिया?
    तूने मुझ पर कान देना क्यों छोड़ दिया?
15 मैं दुर्बल और रोगी रहा हूँ।
    मैंने बचपन से ही तेरे क्रोध को भोगा है। मेरा सहारा कोई भी नहीं रहा।
16 हे यहोवा, तू मुझ पर क्रोधित है
    और तेरा दण्ड मुझको मार रहा है।
17 मुझे ऐसा लगता है, जैसे पीड़ा और यातनाएँ सदा मेरे संग रहती हैं।
    मैं अपनी पीड़ाओं और यातनाओं में डूबा जा रहा हूँ।
18 हे यहोवा, तूने मेरे मित्रों और प्रिय लोगों को मुझे छोड़ चले जाने को विवश कर दिया।
    मेरे संग बस केवल अंधकार रहता है।

भजन संहिता 91-92

तुम परम परमेश्वर की शरण में छिपने के लिये जा सकते हो।
    तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर की शरण में संरक्षण पाने को जा सकते हो।
मैं यहोवा से विनती करता हूँ, “तू मेरा सुरक्षा स्थल है मेरा गढ़,
    हे परमेश्वर, मैं तेरे भरोसे हूँ।”
परमेश्वर तुझको सभी छिपे खतरों से बचाएगा।
    परमेश्वर तुझको सब भयानक व्याधियों से बचाएगा।
तुम परमेश्वर की शरण में संरक्षण पाने को जा सकते हो।
    और वह तुम्हारी ऐसे रक्षा करेगा जैसे एक पक्षी अपने पंख फैला कर अपने बच्चों की रक्षा करता है।
    परमेश्वर तुम्हारे लिये ढाल और दीवार सा तुम्हारी रक्षा करेगा।
रात में तुमको किसी का भय नहीं होगा,
    और शत्रु के बाणों से तू दिन में भयभीत नहीं होगा।
तुझको अंधेरे में आने वाले रोगों
    और उस भयानक रोग से जो दोपहर में आता है भय नहीं होगा।
तू हजार शत्रुओं को पराजित कर देगा।
    तेरा स्वयं दाहिना हाथ दस हजार शत्रुओं को हरायेगा।
    और तेरे शत्रु तुझको छू तक नहीं पायेंगे।
जरा देख, और तुझको दिखाई देगा
    कि वे कुटिल व्यक्ति दण्डित हो चुके हैं।
क्यों? क्योंकि तू यहोवा के भरोसे है।
    तूने परम परमेश्वर को अपना शरणस्थल बनाया है।
10 तेरे साथ कोई भी बुरी बात नहीं घटेगी।
    कोई भी रोग तेरे घर में नहीं होगा।
11 क्योंकि परमेश्वर स्वर्गदूतों को तेरी रक्षा करने का आदेश देगा। तू जहाँ भी जाएगा वे तेरी रक्षा करेंगे।
12 परमेश्वर के दूत तुझको अपने हाथों पर ऊपर उठायेंगे।
    ताकि तेरा पैर चट्टान से न टकराए।
13 तुझमें वह शक्ति होगी जिससे तू सिंहों को पछाडेगा
    और विष नागों को कुचल देगा।
14 यहोवा कहता है, “यदि कोई जन मुझ में भरोसा रखता है तो मैं उसकी रक्षा करूँगा।
    मैं उन भक्तों को जो मेरे नाम की आराधना करते हैं, संरक्षण दूँगा।”
15 मेरे भक्त मुझको सहारा पाने को पुकरेंगे और मैं उनकी सुनूँगा।
    वे जब कष्ट में होंगे मैं उनके साथ रहूँगा।
    मैं उनका उद्धार करूँगा और उन्हें आदर दूँगा।
16 मैं अपने अनुयायियों को एक लम्बी आयु दूँगा
    और मैं उनकीरक्षा करूँगा।

सब्त के दिन के लिये एक स्तुति गीत।

यहोवा का गुण गाना उत्तम है।
    हे परम परमेश्वर, तेरे नाम का गुणगान उत्तम है।
भोर में तेरे प्रेम के गीत गाना
    और रात में तेरे भक्ति के गीत गाना उत्तम है।
हे परमेश्वर, तेरे लिये वीणा, दस तार वाद्य
    और सांरगी पर संगीत बजाना उत्तम है।
हे यहोवा, तू सचमुच हमको अपने किये कर्मो से आनन्दित करता है।
    हम आनन्द से भर कर उन गीतों को गाते हैं, जो कार्य तूने किये हैं।
हे यहोवा, तूने महान कार्य किये,
    तेरे विचार हमारे लिये समझ पाने में गंभीर हैं।
तेरी तुलना में मनुष्य पशुओं जैसे हैं।
    हम तो मूर्ख जैसे कुछ भी नहीं समझ पाते।
दुष्ट जन घास की तरह जीते और मरते हैं।
    वे जो भी कुछ व्यर्थ कार्य करते हैं, उन्हें सदा सर्वदा के लिये मिटाया जायेगा।
किन्तु हे यहोवा, अनन्त काल तक तेरा आदर रहेगा।
हे यहोवा, तेरे सभी शत्रु मिटा दिये जायेंगे।
    वे सभी व्यक्ति जो बुरा काम करते हैं, नष्ट किये जायेंगे।
10 किन्तु तू मुझको बलशाली बनाएगा।
    मैं शक्तिशाली मेंढ़े सा बन जाऊँगा जिसके कड़े सिंग होते हैं।
    तूने मुझे विशेष काम के लिए चुना है। तूने मुझ पर अपना तेल ऊँडेला है जो शीतलता देता है।
11 मैं अपने चारों ओर शत्रु देख रहा हूँ। वे ऐसे हैं जैसे विशालकाय सांड़ मुझ पर प्रहार करने को तत्पर है।
    वे जो मेरे विषय में बाते करते हैं उनको मैं सुनता हूँ।

12 सज्जन लोग तो लबानोन के विशाल देवदार वृक्ष की तरह है
    जो यहोवा के मन्दिर में रोपे गए हैं।
13 सज्जन लोग बढ़ते हुए ताड़ के पेड़ की तरह हैं,
    जो यहोवा के मन्दिर के आँगन में फलवन्त हो रहे हैं।
14 वे जब तक बूढ़े होंगे तब तक वे फल देते रहेंगे।
    वे हरे भरे स्वस्थ वृक्षों जैसे होंगे।
15 वे हर किसी को यह दिखाने के लिये वहाँ है
    कि यहोवा उत्तम है।
वह मेरी चट्टान है!
    वह कभी बुरा नहीं करता।

2 शमूएल 12:1-14

नातान दाऊद से बात करता है

12 यहोवा ने नातान को दाऊद के पास भेजा। नातान दाऊद के पास गया। नातान ने कहा, “नगर में दो व्यक्ति थे। एक व्यक्ति धनी था। किन्तु दूसरा गरीब था। धनी आदमी के पास बहुत अधिक भेड़ें और पशु थे। किन्तु गरीब आदमी के पास, एक छोटे मादा मेमने के अतिरिक्त जिसे उसने खरीदा था, कुछ न था। गरीब आदमी उस मेमने को खिलाता था। यह मेमना उस गरीब आदमी के भोजन में से खाता था और उसके प्याले में से पानी पीता था। मेमना गरीब आदमी की छाती से लग कर सोता था। मेमना उस व्यक्ति की पुत्री के समान था।

“तब एक यात्री धनी व्यक्ति से मिलने के लिये वहाँ आया। धनी व्यक्ति यात्री को भोजन देना चाहता था। किन्तु धनी व्यक्ति अपनी भेड़ या अपने पशुओं में से किसी को यात्री को खिलाने के लिये नहीं लेना चाहता था। उस धनी व्यक्ति ने उस गरीब से उसका मेमना ले लिया। धनी व्यक्ति ने उसके मेमने को मार डाला और अपने अतिथि के लिये उसे पकाया।”

दाऊद धनी आदमी पर बहुत क्रोधित हुआ। उसने नातान से कहा, “यहोवा शाश्वत है, निश्चय जिस व्यक्ति ने यह किया वह मरेगा। उसे मेमने की चौगुनी कीमत चुकानी पड़ेगी क्योंकि उसने यह भयानक कार्य किया और उसमें दया नहीं थी।”

नातान, दाऊद को उसके पाप के बारे में बताता है

तब नातान ने दाऊद से कहा, “तुम वो धनी पुरुष हो! यहोवा इस्राएल का परमेश्वर यह कहता है: ‘मैंने तुम्हारा अभिषेक इस्राएल के राजा के रूप में किया। मैंने तुम्हे शाऊल से बचाया। मैंने उसका परिवार और उसकी पत्नियाँ तुम्हें लेने दीं, और मैंने तुम्हें इस्राएल और यहूदा का राजा बनाया। जैसे वह पर्याप्त नहीं हो, मैंने तुम्हें अधिक से अधिक दिया। फिर तुमने यहोवा के आदेश की उपेक्षा क्यों की? तुमने वह क्यों किया जिसे वह पाप कहता है। तुमने हित्ती ऊरिय्याह को तलवार से मारा और तुमने उसकी पत्नी को अपनी पत्नी बनाने के लिये लिया। हाँ, तुमने ऊरिय्याह को अम्मोनियों की तलवार से मार डाला। 10 इसलिये सदैव तुम्हारे परिवार में कुछ लोग ऐसे होगें जो तलवार से मारे जायेंगे। तुमने ऊरिय्याह हित्ती की पत्नी ली। इस प्रकार तुमने यह प्रकट किया कि तुम मेरी परवाह नहीं करते।’

11 “यही है जो यहोवा कहता है: ‘मैं तुम्हारे विरुद्ध आपत्तियाँ ला रहा हूँ। यह आपत्ति तुम्हारे अपने परिवार से आएंगी। मैं तुम्हारी पत्नियों को ले लूँगा और उसे दूँगा जो तुम्हारे बहुत अधिक समीप है। यह व्यक्ति तुम्हारी पत्नियों के साथ सोएगा और इसे हर एक जानेगा। 12 तुम बतशेबा के साथ गुप्त रूप में सोये। किन्तु मैं यह करूँगा जिससे इस्राएल के सारे लोग इसे देख सकें।’”

13 तब दाऊद ने नातान से कहा, “मैंने यहोवा के विरुद्ध पाप किया है।”

नातान ने दाऊद से कहा, “यहोवा तुम्हें क्षमा कर देगा, यहाँ तक की इस पाप के लिये भी तुम मरोगे नहीं। 14 किन्तु इस पाप को जो तुमने किया है उससे यहोवा के शत्रुओं ने यहोवा का सम्मान करना छोड़ दिया है। अत: इस कारण जो तुम्हारा पुत्र उत्पन्न हुआ है, मर जाएगा।”

प्रेरितों के काम 19:21-41

पौलुस की यात्रा योजना

21 इन घटनाओं के बाद पौलुस ने अपने मन में मकिदुनिया और अखाया होते हुए यरूशलेम जाने का निश्चय किया। उसने कहा, “वहाँ जाने के बाद मुझे रोम भी देखना चाहिए।” 22 सो उसने अपने तिमुथियुस और इरासतुस नामक दो सहायकों को मकिदुनिया भेज दिया और स्वयं एशिया में थोड़ा समय और बिताया।

इफ़िसुस में उपद्रव

23 उन्हीं दिनों इस पँथ को लेकर वहाँ बड़ा उपद्रव हुआ। 24 वहाँ देमेत्रियुस नाम का एक चाँदी का काम करने वाला सुनार हुआ करता था। वह अरतिमिस के चाँदी के मन्दिर बनवाता था जिससे कारीगरों को बहुत कारोबार मिलता था।

25 उसने उन्हें और इस काम से जुड़े हुए दूसरे कारीगरों को इकट्ठा किया और कहा, “देखो लोगो, तुम जानते हो कि इस काम से हमें एक अच्छी आमदनी होती है। 26 तुम देख सकते हो और सुन सकते हो कि इस पौलुस ने न केवल इफिसुस में बल्कि लगभग एशिया के समूचे क्षेत्र में लोगों को बहका फुसला कर बदल दिया है। वह कहता है कि मनुष्य के हाथों के बनाये देवता सच्चे देवता नहीं है। 27 इससे न केवल इस बात का भय है कि हमारा व्यवसाय बदनाम होगा बल्कि महान देवी अरतिमिस के मन्दिर की प्रतिष्ठा समाप्त हो जाने का भी डर है। और जिस देवी की उपासना समूचे एशिया और संसार द्वारा की जाती है, उसकी गरिमा छिन जाने का भी डर है।”

28 जब उन्होंने यह सुना तो वे बहुत क्रोधित हुए और चिल्ला चिल्ला कर कहने लगे, “इफ़िसियों की देवी अरतिमिस महान है!” 29 उधर सारे नगर में अव्यवस्था फैल गयी। सो लोगों ने मकिदुनिया से आये तथा पौलुस के साथ यात्रा कर रहे गयुस और अरिस्तर्रवुस को धर दबोचा और उन्हें रंगशाला[a] में ले भागे। 30 पौलुस लोगों के सामने जाना चाहता था किन्तु शिष्यों ने उसे नहीं जाने दिया। 31 कुछ प्रांतीय अधिकारियों ने जो उसके मित्र थे, उससे कहलवा भेजा कि वह वहाँ रंगशाला में आने का दुस्साहस न करे।

32 अब देखो कोई कुछ चिल्ला रहा था, और कोई कुछ, क्योंकि समूची सभा में हड़बड़ी फैली हुई थी। उनमें से अधिकतर यह नहीं जानते थे कि वे वहाँ एकत्र क्यों हुए हैं। 33 यहूदियों ने सिकन्दर को जिसका नाम भीड़ में से उन्होंने सुझाया था, आगे खड़ा कर रखा था। सिकन्दर ने अपने हाथों को हिला हिला कर लोगों के सामने बचाव पक्ष प्रस्तुत करना चाहा। 34 किन्तु जब उन्हें यह पता चला कि वह एक यहूदी है तो वे सब कोई दो घण्टे तक एक स्वर में चिल्लाते हुए कहते रहे, “इफिसुसियों की देवी अरतिमिस महान है।”

35 फिर नगर लिपिक ने भीड़ को शांत करके कहा, “हे इफिसुस के लोगों क्या संसार में कोई ऐसा व्यक्ति है जो यह नहीं जानता कि इफिसुस नगर महान देवी अतरिमिस और स्वर्ग से गिरी हुई पवित्र शिला का संरक्षक है? 36 क्योंकि इन बातों से इन्कार नहीं किया जा सकता। इसलिए तुम्हें शांत रहना चाहिए और बिना विचारे कुछ नहीं करना चाहिए।

37 “तुम इन लोगों को पकड़ कर यहाँ लाये हो यद्यपि उन्होंने न तो कोई मन्दिर लूटा है और न ही हमारी देवी का अपमान किया है। 38 फिर भी देमेत्रियुस और उसके साथी कारीगरों को किसी के विरुद्ध कोई शिकायत है तो अदालतें खुली हैं और वहाँ राज्यपाल हैं। वहाँ आपस में एक दूसरे पर वे अभियोग चला सकते हैं।

39 “किन्तु यदि तुम इससे कुछ अधिक जानना चाहते हो तो उसका फैसला नियमित सभा में किया जायेगा। 40 जो कुछ है उसके अनुसार हमें इस बात का डर है कि आज के उपद्रवों का दोष कहीं हमारे सिर न मढ़ दिया जाये। इस दंगे के लिये हमारे पास कोई भी हेतु नहीं है जिससे हम इसे उचित ठहरा सकें।” 41 इतना कहने के बाद उसने सभा विसर्जित कर दी।

मरकुस 9:14-29

बीमार लड़के को चंगा करना

(मत्ती 17:14-20; लूका 9:37-43)

14 जब वे दूसरे शिष्यों के पास आये तो उन्होंने उनके आसपास जमा एक बड़ी भीड़ देखी। उन्होंने देखा कि उनके साथ धर्मशास्त्री विवाद कर रहे हैं। 15 और जैसे ही सब लोगों ने यीशु को देखा, वे चकित हुए। और स्वागत करने उसकी तरफ़ दौड़े।

16 फिर उसने उनसे पूछा, “तुम उनसे किस बात पर विवाद कर रहे हो?”

17 भीड़ में से एक व्यक्ति ने उत्तर दिया, “हे गुरु, मैं अपने बेटे को तेरे पास लाया था। उस पर एक दुष्टात्मा सवार है, जो उसे बोलने नहीं देती। 18 जब कभी वह दुष्टात्मा इस पर आती है, इसे नीचे पटक देती है और इसके मुँह से झाग निकलने लगते हैं और यह दाँत पीसने लगता है और अकड़ जाता है। मैंने तेरे शिष्यों से इस दुष्ट आत्मा को बाहर निकालने की प्रार्थना की किन्तु वे उसे नहीं निकाल सके।”

19 फिर यीशु ने उन्हें उत्तर दिया और कहा, “ओ अविश्वासी लोगो, मैं तुम्हारे साथ कब तक रहूँगा? और कब तक तुम्हारी सहूँगा? लड़के को मेरे पास ले आओ!”

20 तब वे लड़के को उसके पास ले आये और जब दुष्टात्मा ने यीशु को देखा तो उसने तत्काल लड़के को मरोड़ दिया। वह धरती पर जा पड़ा और चक्कर खा गया। उसके मुँह से झाग निकल रहे थे।

21 तब यीशु ने उसके पिता से पूछा, “यह ऐसा कितने दिनों से है?”

पिता ने उत्तर दिया, “यह बचपन से ही ऐसा है। 22 दुष्टात्मा इसे मार डालने के लिए कभी आग में गिरा देती है तो कभी पानी में। क्या तू कुछ कर सकता है? हम पर दया कर, हमारी सहायता कर।”

23 यीशु ने उससे कहा, “तूने कहा, ‘क्या तू कुछ कर सकता है?’ विश्वासी व्यक्ति के लिए सब कुछ सम्भव है।”

24 तुरंत बच्चे का पिता चिल्लाया और बोला, “मैं विश्वास करता हूँ। मेरे अविश्वास को हटा!”

25 यीशु ने जब देखा कि भीड़ उन पर चढ़ी चली आ रही है, उसने दुष्टात्मा को ललकारा और उससे कहा, “ओ बच्चे को बहरा गूँगा कर देने वाली दुष्टात्मा, मैं तुझे आज्ञा देता हूँ इसमें से बाहर निकल आ और फिर इसमें दुबारा प्रवेश मत करना!”

26 तब दुष्टात्मा चिल्लाई। बच्चे पर भयानक दौरा पड़ा। और वह बाहर निकल गयी। बच्चा मरा हुआ सा दिखने लगा, बहुत लोगों ने कहा, “वह मर गया!” 27 फिर यीशु ने लड़के को हाथ से पकड़ कर उठाया और खड़ा किया। वह खड़ा हो गया।

28 इसके बाद यीशु अपने घर चला गया। अकेले में उसके शिष्यों ने उससे पूछा, “हम इस दुष्टात्मा को बाहर क्यों नहीं निकाल सके?”

29 इस पर यीशु ने उनसे कहा, “ऐसी दुष्टात्मा प्रार्थना के बिना बाहर नहीं निकाली जा सकती थी।”[a]

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