Book of Common Prayer
बाँसुरी वादकों के निर्देशक के लिये दाऊद का गीत।
1 हे यहोवा, मेरे शब्द सुन
और तू उसकी सुधि ले जिसको तुझसे कहने का मैं यत्न कर रहा हूँ।
2 मेरे राजा, मेरे परमेश्वर
मेरी प्रार्थना सुन।
3 हे यहोवा, हर सुबह तुझको, मैं अपनी भेंटे अर्पित करता हूँ।
तू ही मेरा सहायक है।
मेरी दृष्टि तुझ पर लगी है और तू ही मेरी प्रार्थनाएँ हर सुबह सुनता है।
4 हे यहोवा, तुझ को बुरे लोगों की निकटता नहीं भाती है।
तू नहीं चाहता कि तेरे मन्दिर में कोई भी पापी जन आये।
5 तेरे निकट अविश्वासी नहीं आ सकते।
ऐसे मनुष्यों को तूने दूर भेज दिया जो सदा ही बुरे कर्म करते रहते हैं।
6 जो झूठ बोलते हैं उन्हें तू नष्ट करता है।
यहोवा ऐसे मनुष्यों से घृणा करता है, जो दूसरों को हानि पहुँचाने का षड़यन्त्र रचते हैं।
7 किन्तु हे यहोवा, तेरी महा करुणा से मैं तेरे मन्दिर में आऊँगा।
हे यहोवा, मुझ को तेरा डर है, मैं सम्मान तुझे देता हूँ। इसलिए मैं तेरे मन्दिर की ओर झुककर तुझे दण्डवत करुँगा।
8 हे यहोवा, तू मुझको अपनी नेकी का मार्ग दिखा।
तू अपनी राह को मेरे सामने सीधी कर
क्योंकि मैं शत्रुओं से घिरा हुआ हूँ।
9 वे लोग सत्य नहीं बोलते।
वे झूठे हैं, जो सत्य को तोड़ते मरोड़ते रहते हैं।
उनके मुख खुली कब्र के समान हैं।
वे औरों से उत्तम चिकनी—चुपड़ी बातें करते किन्तु वे उन्हें बस जाल में फँसाना चाहते हैं।
10 हे परमेश्वर, उन्हें दण्ड दे।
उनके अपने ही जालों में उनको उलझने दे।
ये लोग तेरे विरुद्ध हो गये हैं,
उन्हें उनके अपने ही बहुत से पापों का दण्ड दे।
11 किन्तु जो परमेश्वर के आस्थावान होते हैं, वे सभी प्रसन्न हों और वे सदा सर्वदा को आनन्दित रहें।
हे परमेश्वर, तू उनकी रक्षा कर और उन्हें तू शक्ति दे जो जन तेरे नाम से प्रीति रखते हैं।
12 हे यहोवा, तू निश्चय ही धर्मी को वरदान देता है।
अपनी कृपा से तू उनको एक बड़ी ढाल बन कर फिर ढक लेता है।
शौमिनिथ शैली के तारवाद्यों के निर्देशक के लिये दाऊद का एक गीत।
1 हे यहोवा, तू मुझ पर क्रोधित होकर मेरा सुधार मत कर।
मुझ पर कुपित मत हो और मुझे दण्ड मत दे।
2 हे यहोवा, मुझ पर दया कर।
मै रोगी और दुर्बल हूँ।
मेरे रोगों को हर ले।
मेरी हड्डियाँ काँप—काँप उठती हैं।
3 मेरी समूची देह थर—थर काँप रही है।
हे यहोवा, मेरा भारी दु:ख तू कब तक रखेगा।
4 हे यहोवा, मुझ को फिर से बलवान कर।
तू महा दयावाने है मेरी रक्षा कर।
5 मरे हुए लोग तुझे अपनी कब्रों के बीच याद नहीं करते हैं।
मृत्यु के देश में वे तेरी प्रशंसा नहीं करते हैं।
अतःमुझको चँगा कर।
6 हे यहोवा, सारी रात मैं तुझको पुकारता रहता हूँ।
मेरा बिछौना मेरे आँसुओं से भीग गया है।
मेरे बिछौने से आँसु टपक रहे हैं।
तेरे लिये रोते हुए मैं क्षीण हो गया हूँ।
7 मेरे शत्रुओं ने मुझे बहुतेरे दु:ख दिये।
इसने मुझे शोकाकुल और बहुत दु:खी कर डाला और अब मेरी आँखें रोने बिलखने से थकी हारी, दुर्बल हैं।
8 अरे ओ दुर्जनों, तुम मुझ से दूर हटो।
क्योंकि यहोवा ने मुझे रोते हुए सुन लिया है।
9 मेरी विनती यहोवा के कान तक पहुँच चुकी है
और मेरी प्रार्थनाओं को यहोवा ने सुनकर उत्तर दे दिया है।
10 मेरे सभी शत्रु व्याकुल और आशाहीन होंगे।
कुछ अचानक ही घटित होगा और वे सभी लज्जित होंगे।
वे मुझको छोड़ कर लौट जायेंगे।
1 हे यहोवा, तू इतनी दूर क्यों खड़ा रहता है?
कि संकट में पड़े लोग तुझे नहीं देख पाते।
2 अहंकारी दुष्ट जन दुर्बल को दु:ख देते हैं।
वे अपने षड़यन्त्रों को रचने रहते हैं।
3 दुष्ट जन उन वस्तुओं पर गर्व करते हैं, जिनकी उन्हें अभिलाषा है और लालची जन परमेश्वर को कोसते हैं।
इस प्रकार दुष्ट दर्शाते हैं कि वे यहोवा से घृणा करते हैं।
4 दुष्ट जन इतने अभिमानी होते हैं कि वे परमेश्वर का अनुसरण नहीं कर सकते। वे बुरी—बुरी योजनाएँ रचते हैं।
वे ऐसे कर्म करते हैं, जैसे परमेश्वर का कोई अस्तित्व ही नहीं।
5 दुष्ट जन सदा ही कुटिल कर्म करते हैं।
वे परमेश्वर की विवेकपूर्ण व्यवस्था और शिक्षाओं पर ध्यान नहीं देते।
हे परमेश्वर, तेरे सभी शत्रु तेरे उपदेशों की उपेक्षा करते हैं।
6 वे सोचते हैं, जैसे कोई बुरी बात उनके साथ नहीं घटेगी।
वे कहा करते हैं, “हम मौज से रहेंगे और कभी भी दण्डित नहीं होंगे।”
7 ऐसे दुष्ट का मुख सदा शाप देता रहता है। वे दूसरे जनों की निन्दा करते हैं
और काम में लाने को सदैव बुरी—बुरी योजनाएँ रचते रहते हैं।
8 ऐसे लोग गुप्त स्थानों में छिपे रहते हैं,
और लोगों को फँसाने की प्रतीक्षा करते हैं।
वे लोगों को हानि पहुँचाने के लिये छिपे रहते हैं और निरपराधी लोगों की हत्या करते हैं।
9 दुष्ट जन सिंह के समान होते हैं जो
उन पशुओं को पकड़ने की घात में रहते हैं। जिन्हें वे खा जायेंगे।
दुष्ट जन दीन जनों पर प्रहार करते हैं।
उनके बनाये गये जाल में असहाय दीन फँस जाते हैं।
10 दुष्ट जन बार—बार दीन पर घात करता और उन्हें दु:ख देता है।
11 अत: दीन जन सोचने लगते हैं, “परमेश्वर ने हमको भुला ही दिया है!
हमसे तो परमेश्वर सदा—सदा के लिये दूर हो गया है।
जो कुछ भी हमारे साथ घट रहा, उससे परमेश्वर ने दृष्टि फिरा ली है!”
12 हे यहोवा, उठ और कुछ तो कर!
हे परमेश्वर, ऐसे दुष्ट जनों को दण्ड दे!
और इन दीन दुखियों को मत बिसरा!
13 दुष्ट जन क्यों परमेश्वर के विरुद्ध होते हैं?
क्योंकि वे सोचते हैं कि परमेश्वर उन्हें कभी नहीं दण्डित करेगा।
14 हे यहोवा, तू निश्चय ही उन बातों को देखता है, जो क्रूर और बुरी हैं। जिनको दुर्जन किया करते हैं।
इन बातों को देख और कुछ तो कर!
दु:खों से घिरे लोग सहायता माँगने तेरे पास आते हैं।
हे यहोवा, केवल तू ही अनाथ बच्चों का सहायक है, अत: उन की रक्षा कर!
15 हे यहोवा, दुष्ट जनों को तू नष्ट कर दे।
16 तू उन्हें अपनी धरती से ढकेल बाहर कर
17 हे यहोवा, दीन दु:खी लोग जो चाहते हैं वह तूने सुन ली।
उनकी प्रार्थनाएँ सुन और उन्हें पूरा कर जिनको वे माँगते हैं!
18 हे यहोवा, अनाथ बच्चों की तू रक्षा कर।
दु:खी जनों को और अधिक दु:ख मत पाने दे।
दुष्ट जनों को तू इतना भयभीत कर दे कि वे यहाँ न टिक पायें।
संगित निर्देशक के लिये दाऊद का पद।
1 मैं यहोवा पर भरोसा करता हूँ।
फिर तू मुझसे क्यों कहता है कि मैं भाग कर कहीं जाऊँ?
तू कहता है मुझसे कि, “पक्षी की भाँति अपने पहाड़ पर उड़ जा!”
2 दुष्ट जन शिकारी के समान हैं। वे अन्धकार में छिपते हैं।
वे धनुष की डोर को पीछे खींचते हैं।
वे अपने बाणों को साधते हैं और वे अच्छे, नेक लोगों के ह्रदय में सीधे बाण छोड़ते हैं।
3 क्या होगा यदि वे समाज की नींव को उखाड़ फेंके?
फिर तो ये अच्छे लोग कर ही क्या पायेंगे?
4 यहोवा अपने विशाल पवित्र मन्दिर में विराजा है।
यहोवा स्वर्ग में अपने सिंहासन पर बैठता है।
यहोवा सब कुछ देखता है, जो भी घटित होता है।
यहोवा की आँखें लोगों की सज्जनता व दुर्जनता को परखने में लगी रहती हैं।
5 यहोवा भले व बुरे लोगों को परखता है,
और वह उन लोगों से घृणा करता है, जो हिसा से प्रीति रखते हैं।
6 वह गर्म कोयले और जलती हुई गन्धक को वर्षा की भाँति उन बुरे लोगों पर गिरायेगा।
उन बुरे लोगों के भाग में बस झुलसाती पवन आयेगी
7 किन्तु यहोवा, तू उत्तम है। तुझे उत्तम जन भाते हैं।
उत्तम मनुष्य यहोवा के साथ रहेंगे और उसके मुख का दर्शन पायेंगे।
परमेश्वर का बुलावा और योना का भागना
1 अमित्तै के पुत्र योना से यहोवा ने कहा। यहोवा ने कहा, 2 “नीनवे एक बड़ा नगर है। वहाँ के लोग जो पाप कर्म कर रहे हैं, उनमें बहुत से कुकर्मों के बारे में मैंने सुना है। इसलिये तू उस नगर में जा और वहाँ के लोगों को बता कि वे उन बुरे कर्मों का करना त्याग दें।”
3 योना परमेश्वर की बातें नहीं मानना चाहता था, सो योना ने यहोवा से कहीं दूर भाग जाने का प्रयत्न किया। सो योना यापो की ओर चला गया। योना ने एक नौका ली जो सुदूर नगर तर्शीश को जा रही थी। योना ने अपनी यात्रा के लिये धन दिया और वह नाव पर जा चढ़ा। योना चाहता था कि इस नाव पर वह लोगों के साथ तर्शीश चला जाये और यहोवा से कहीं दूर भाग जाये।
भयानक तूफान
4 किन्तु यहोवा ने सागर में एक भयानक तूफान उठा दिया। आँधी से सागर में थपेड़े उठने लगे। तूफान इतना प्रबल था कि वह नाव जैसे बस टूक टूक होने जा रही थी। 5 लोग चाहते थे कि नाव को डूबने से बचाने के लिये उसे कुछ हलका कर दिया जाये। सो वे नाव के सामान को उठाकर समुद्र में फेंकने लगे। मल्लाह बहुत डरे हुए थे। हर व्यक्ति अपने अपने देवता से प्रार्थना करने लगा।
योना सोने के लिये नीचे चला गया था। योना सो रहा था। 6 नाव के प्रमुख खिवैया ने योना को इस रूप में देख कर कहा, “उठ! तू क्यों सो रहा है अपने देवता से प्रार्थना कर! हो सकता है, तेरा देवता तेरी प्रार्थना सुन ले और हमें बचा ले!”
यह तूफान क्यों आया
7 लोग फिर आपस में कहने लगे, “हमें यह जानने के लिये कि हम पर ये विपत्तियाँ किसके कारण पड़ रही हैं, हमें पासे फेंकने चाहियें।”
सो लोगों ने पासे फेंके। पासों से यह प्रकट हुआ कि यह विपत्ति योना के कारण आई है। 8 इस पर लोगों ने योना से कहा, “यह किसका दोष है, जिसके कारण यह विपत्ति हम पर पड़ रही है! सो तूने जो किया है, उसे तू हमें बता। हमें बता तेरा काम धन्धा क्या है तू कहाँ से आ रहा है तेरा देश कौन सा है तेरे अपने लोग कौन हैं”
9 योना ने लोगों से कहा, “मैं एक हीब्रू (यहूदी) हूँ और स्वर्ग के परमेश्वर यहोवा की उपासना करता हूँ। वह वही परमेश्वर है, जिसने सागर और धरती को रचा है।”
10 योना ने लोगों से कहा कि, वह यहोवा से दूर भाग रहा है। जब लोगों को इस बात का पता चला, तो वह बहुत अधिक डर गये। लोगों ने योना से पूछा, “तूने अपने परमेश्वर के विरूद्ध क्या बुरी बात की है”
11 उधर आँधी तूफान और समुद्र की लहरें प्रबल से प्रबलतर होती चली जा रही थीं। सो लोगों ने योना से कहा, “हमें अपनी रक्षा के लिये क्या करना चाहिये समुद्र को शांत करने के लिये तेरे साथ क्या करना चाहिये”
12 योना ने लोगों से कहा, “मैं जानता हूँ कि मेरे कारण ही समुद्र में यह तूफान आया है। सो तुम लोग मुझे समुद्र में फेंक दो। इससे तूफान शांत हो जायेगा।”
13 किन्तु लोग योना को समुद्र में फेंकना नहीं चाहते थे। लोग नाव को तट पर वापस लाने के लिये, उसे खेने का प्रयत्न करने लगे। किन्तु वे वैसा नहीं कर पाये, क्योंकि आँधी, तूफान और सागर की लहरें बहुत शक्तिशाली थीं और वे प्रबल से प्रबल होती चली जा रही थीं!
योना का दण्ड
14 सो लोगों ने यहोवा को पुकारते हुए कहा, “हे यहोवा, इस पुरूष को हम इसके उन बुरे कामों के लिए समुद्र में फेंक रहे हैं, जो इसने किये हैं। कृपा कर के, तू हमें किसी निरपराध व्यक्ति का हत्यारा मत कहना। इसके वध के लिये तू हमें मत मार डालना। हम जानते हैं कि तू यहोवा है और तू जैसा चाहेगा, वैसा ही करेगा। किन्तु कृपा करके हम पर दयालु हो।”
15 सो लोगों ने योना को समुद्र में फेंक दिया। तूफान रूक गया, सागर शांत हो गया! 16 जब लोगों ने यह देखा, तो वे यहोवा से डरने लगे और उसका सम्मान करने लगे। लोगों ने एक बलि अर्पित की, और यहोवा से विशेष मन्नते माँगी।
17 योना जब समुद्र में गिरा, तो यहोवा ने योना को निगल जाने के लिये एक बहुत बड़ी मछली भेजी। योना तीन दिन और तीन रात तक उस मछली के पेट में रहा।
पौलुस द्वारा अग्रिप्पा का भ्रम दूर करने का यत्न
24 वह अपने बचाव में जब इन बातों को कह ही रहा था कि फेस्तुस ने चिल्ला कर कहा, “पौलुस, तेरा दिमागख़राब हो गया है! तेरी अधिक पढ़ाई तुझे पागल बनाये डाल रही है!”
25 पौलुस ने कहा, “हे परमगुणी फेस्तुस, मैं पागल नहीं हूँ बल्कि जो बातें मैं कह रहा हूँ, वे सत्य हैं और संगत भी। 26 स्वयं राजा इन बातों को जानता है और मैं मुक्त भाव से उससे कह सकता हूँ। मेरा निश्चय है कि इनमें से कोई भी बात उसकी आँखों से ओझल नहीं है। मैं ऐसा इसलिये कह रहा हूँ कि यह बात किसी कोने में नहीं की गयी। 27 हे राजन अग्रिप्पा! नबियों ने जो लिखा है, क्या तू उसमें विश्वास रखता है? मैं जानता हूँ कि तेरा विश्वास है।”
28 इस पर अग्रिप्पा ने पौलुस से कहा, “क्या तू यह सोचता है कि इतनी सरलता से तू मुझे मसीही बनने को मना लेगा?”
29 पौलुस ने उत्तर दिया, “थोड़े समय में, चाहे अधिक समय में, परमेश्वर से मेरी प्रार्थना है कि न केवल तू बल्कि वे सब भी, जो आज मुझे सुन रहे हैं, वैसे ही हो जायें, जैसा मैं हूँ, सिवाय इन ज़ंजीरों के।”
30 फिर राजा खड़ा हो गया और उसके साथ ही राज्यपाल, बिरनिके और साथ में बेठे हुए लोग भी उठ खड़े हुए। 31 वहाँ से बाहर निकल कर वे आपस में बात करते हुए कहने लगे, इस व्यक्ति ने तो ऐसा कुछ नहीं किया है, जिससे इसे मृत्युदण्ड या कारावास मिल सके। 32 अग्रिप्पा ने फेस्तुस से कहा, “यदि इसने कैसर के सामने पुनर्विचार की प्रार्थना न की होती, तो इस व्यक्ति को छोड़ा जा सकता था।”
पौलुस को रोम भेजा जाना
27 जब यह निश्चय हो गया कि हमें जहाज़ से इटली जाना है तो पौलुस तथा कुछ दूसरे बंदियों को सम्राट की सेना के यूलियस नाम के एक सेनानायक को सौंप दिया गया। 2 अद्रमुत्तियुम से हम एक जहाज़ पर चढ़े जो एशिया के तटीय क्षेत्रों से हो कर जाने वाला था और समुद्र यात्रा पर निकल पड़े। थिस्सलुनीके निवासी एक मकदूनी, जिसका नाम अरिस्तर्खुस था, भी हमारे साथ था।
3 अगले दिन हम सैदा में उतरे। वहाँ यूलियस ने पौलुस के साथ अच्छा व्यवहार किया और उसे उसके मित्रों का स्वागत सत्कार ग्रहण करने के लिए उनके यहाँ जाने की अनुमति दे दी। 4 वहाँ से हम समुद्र-मार्ग से फिर चल पड़े। हम साइप्रस की आड़ लेकर चल रहे थे क्योंकि हवाएँ हमारे प्रतिकूल थीं। 5 फिर हम किलिकिया और पंफूलिया के सागर को पार करते हुए लुकिया और मीरा पहुँचे। 6 वहाँ सेनानायक को सिकन्दरिया का इटली जाने वाला एक जहाज़ मिला। उसने हमें उस पर चढ़ा दिया।
7 कई दिन तक हम धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए बड़ी कठिनाई के साथ कनिदुस के सामने पहुँचे क्योंकि हवा हमें अपने मार्ग पर नहीं बने रहने दे रही थी, सो हम सलभौने के सामने से क्रीत की ओट में अपनी नाव बढ़ाने लगे। 8 क्रीत के किनारे-किनारे बड़ी कठिनाई से नाव को आगे बढ़ाते हुए हम एक ऐसे स्थान पर पहुँचे जिसका नाम था सुरक्षित बंदरगाह। यहाँ से लसेआ नगर पास ही था।
रोगी स्त्री का अच्छा होना और मृत लड़की को जीवनदान
(मत्ती 9:18-26; मरकुस 5:21-43)
40 अब देखो जब यीशु लौटा तो जन समूह ने उसका स्वागत किया क्योंकि वे सभी उसकी प्रतीक्षा में थे। 41 तभी याईर नाम का एक व्यक्ति वहाँ आया। वह वहाँ के यहूदी आराधनालय का मुखिया था। वह यीशु के चरणों में गिर पड़ा और उससे अपने घर चलने की विनती करने लगा। 42 क्योंकि उसके बारह साल की एक एकलौती बेटी थी, वह मरने वाली थी।
सो यीशु जब जा रहा था तो भीड़ उसे कुचले जा रही थी। 43 वहीं एक स्त्री थी जिसे बारह साल से खून बह रहा था। जो कुछ उसके पास था, उसने चिकित्सकों पर खर्च कर दिया था, पर वह किसी से भी ठीक नहीं हो पायी थी।[a] 44 वह उसके पीछे आयी और उसने उसके चोगे की कन्नी छू ली। और उसका खून जाना तुरन्त रुक गया। 45 तब यीशु ने पूछा, “वह कौन है जिसने मुझे छुआ है?”
जब सभी मना कर रहे थे, पतरस बोला, “स्वामी, सभी लोगों ने तो तुझे घेर रखा है और वे सभी तो तुझ पर गिर पड़ रहे है।”
46 किन्तु यीशु ने कहा, “किसी ने मुझे छुआ है क्योंकि मुझे लगा है जैसे मुझ में से शक्ति निकली हो।” 47 उस स्त्री ने जब देखा कि वह छुप नहीं पायी है, तो वह काँपती हुई आयी और यीशु के सामने गिर पड़ी। वहाँ सभी लोगों के सामने उसने बताया कि उसने उसे क्यों छुआ था। और कैसे तत्काल वह अच्छी हो गयी। 48 इस पर यीशु ने उससे कहा, “पुत्री, तेरे विश्वास ने तेरा उद्धार किया है। चैन से जा।”
49 वह अभी बोल ही रहा था कि यहूदी आराधनालय के मुखिया के घर से वहाँ कोई आया और बोला, “तेरी बेटी मर चुकी है। सो गुरु को अब और कष्ट मत दे।”
50 यीशु ने यह सुन लिया। सो वह उससे बोला, “डर मत! विश्वास रख। वह बच जायेगी।”
51 जब यीशु उस घर में आया तो उसने अपने साथ पतरस, यूहन्ना, याकूब और बच्ची के माता-पिता को छोड़ कर किसी और को अपने साथ भीतर नहीं आने दिया। 52 सभी लोग उस लड़की के लिये रो रहे थे और विलाप कर रहे थे। यीशु बोला, “रोना बंद करो। यह मरी नहीं है, बल्कि सो रही है।”
53 इस पर लोगों ने उसकी हँसी उड़ाई। क्योंकि वे जानते थे कि लड़की मर चुकी है। 54 किन्तु यीशु ने उसका हाथ पकड़ा और पुकार कर कहा, “बच्ची, खड़ी हो जा!” 55 उसकी आत्मा लौट आयी, और वह तुरंत उठ बैठी। यीशु ने आज्ञा दी, “इसे कुछ खाने को दिया जाये।” 56 इस पर लड़की के माता पिता को बहुत अचरज हुआ किन्तु यीशु ने उन्हें आदेश दिया कि जो घटना घटी है, उसे वे किसी को न बतायें।
© 1995, 2010 Bible League International