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Book of Common Prayer

Daily Old and New Testament readings based on the Book of Common Prayer.
Duration: 861 days
Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)
Version
भजन संहिता 37

दाऊद को समर्पित।

दुर्जनों से मत घबरा,
    जो बुरा करते हैं ऐसे मनुष्यों से ईर्ष्या मत रख।
दुर्जन मनुष्य घास और हरे पौधों की तरह
    शीघ्र पीले पड़ जाते हैं और मर जाते हैं।
यदि तू यहोवा पर भरोसा रखेगा और भले काम करेगा तो तू जीवित रहेगा
    और उन वस्तुओं का भोग करेगा जो धरती देती है।
यहोवा की सेवा में आनन्द लेता रह,
    और यहोवा तुझे तेरा मन चाहा देगा।
यहोवा के भरोसे रह। उसका विश्वास कर।
    वह वैसा करेगा जैसे करना चाहिए।
दोपहर के सूर्य सा, यहोवा तेरी नेकी
    और खरेपन को चमकाए।
यहोवा पर भरोसा रख और उसके सहारे की बाट जोह।
    तू दुष्टों की सफलता देखकर घबराया मत कर। तू दुष्टों की दुष्ट योजनाओं को सफल होते देख कर मत घबरा।
तू क्रोध मत कर! तू उन्मादी मत बन! उतना मत घबरा जा कि तू बुरे काम करना चाहे।
क्योंकि बुरे लोगों को तो नष्ट किया जायेगा।
    किन्तु वे लोग जो यहोवा पर भरोसे हैं, उस धरती को पायेंगे जिसे देने का परमेश्वर ने वचन दिया।
10 थोड़े ही समय बाद कोई दुर्जन नहीं बचेगा।
    ढूँढने से भी तुमको कोई दुष्ट नहीं मिलेगा!
11 नम्र लोग वह धरती पाएंगे जिसे परमेश्वर ने देने का वचन दिया है।
    वे शांति का आनन्द लेंगे।

12 दुष्ट लोग सज्जनों के लिये कुचक्र रचते हैं।
    दुष्ट जन सज्जनों के ऊपर दाँत पीसकर दिखाते हैं कि वे क्रोधित हैं।
13 किन्तु हमारा स्वामी उन दुर्जनों पर हँसता है।
    वह उन बातों को देखता है जो उन पर पड़ने को है।
14 दुर्जन तो अपनी तलवारें उठाते हैं और धनुष साधते हैं। वे दीनों, असहायों को मारना चाहते हैं।
    वे सच्चे, सज्जनों को मारना चाहते हैं।
15 किन्तु उनके धनुष चूर चूर हो जायेंगे।
    और उनकी तलवारें उनके अपने ही हृदयों में उतरेंगी।
16 थोड़े से भले लोग,
    दुर्जनों की भीड़ से भी उत्तम है।
17 क्योंकि दुर्जनों को तो नष्ट किया जायेगा।
    किन्तु भले लोगों का यहोवा ध्यान रखता है।
18 शुद्ध सज्जनों को यहोवा उनके जीवन भर बचाता है।
    उनका प्रतिफल सदा बना रहेगा।
19 जब संकट होगा,
    सज्जन नष्ट नहीं होंगे।
जब अकाल पड़ेगा,
    सज्जनों के पास खाने को भरपूर होगा।
20 किन्तु बुरे लोग यहोवा के शत्रु हुआ करते हैं।
    सो उन बुरे जनों को नष्ट किया जाएगा,
उनकी घाटियाँ सूख जाएंगी और जल जाएंगी।
    उनको तो पूरी तरह से मिटा दिया जायेगा।
21 दुष्ट तो तुरंत ही धन उधार माँग लेता है, और उसको फिर कभी नहीं चुकाता।
    किन्तु एक सज्जन औरों को प्रसन्नता से देता रहता है।
22 यदि कोई सज्जन किसी को आशीर्वाद दे, तो वे मनुष्य उस धरती को जिसे परमेश्वर ने देने का वचन दिया है, पाएंगे।
    किन्तु यदि वह शाप दे मनुष्यों को, तो वे मनुष्य नाश हो जाएंगे।
23 यहोवा, सैनिक की सावधानी से चलने में सहायता करता है।
    और वह उसको पतन से बचाता है।
24 सैनिक यदि दौड़ कर शत्रु पर प्रहार करें,
    तो उसके हाथ को यहोवा सहारा देता है, और उसको गिरने से बचाता है।
25 मैं युवक हुआ करता था पर अब मैं बूढा हूँ।
    मैंने कभी यहोवा को सज्जनों को असहाय छोड़ते नहीं देखा।
    मैंने कभी सज्जनों की संतानों को भीख माँगते नहीं देखा।
26 सज्जन सदा मुक्त भाव से दान देता है।
    सज्जनों के बालक वरदान हुआ करते हैं।
27 यदि तू कुकर्मो से अपना मुख मोड़े, और यदि तू अच्छे कामों को करता रहे,
    तो फिर तू सदा सर्वदा जीवित रहेगा।
28 यहोवा खरेपन से प्रेम करता है,
    वह अपने निज भक्त को असहाय नहीं छोड़ता।
यहोवा अपने निज भक्तों की सदा रक्षा करता है,
    और वह दुष्ट जन को नष्ट कर देता है।
29 सज्जन उस धरती को पायेंगे जिसे देने का परमेश्वर ने वचन दिया है,
    वे उस में सदा सर्वदा निवास करेंगे।
30 भला मनुष्य तो खरी सलाह देता है।
    उसका न्याय सबके लिये निष्पक्ष होता है।
31 सज्जन के हृदय (मन) में यहोवा के उपदेश बसे हैं।
    वह सीधे मार्ग पर चलना नहीं छोड़ता।

32 किन्तु दुर्जन सज्जन को दु:ख पहुँचाने का रास्ता ढूँढता रहता है, और दुर्जन सज्जन को मारने का यत्न करते हैं।
33 किन्तु यहोवा दुर्जनों को मुक्त नहीं छोड़ेगा।
    वह सज्जन को अपराधी नहीं ठहरने देगा।
34 यहोवा की सहायता की बाट जोहते रहो।
    यहोवा का अनुसरण करते रहो। दुर्जन नष्ट होंगे। यहोवा तुझको महत्वपूर्ण बनायेगा।
    तू वह धरती पाएगा जिसे देने का यहोवा ने वचन दिया है।

35 मैंने दुष्ट को बलशाली देखा है।
    मैंने उसे मजबूत और स्वस्थ वृक्ष की तरह शक्तिशाली देखा।
36 किन्तु वे फिर मिट गए।
    मेरे ढूँढने पर उनका पता तक नहीं मिला।
37 सच्चे और खरे बनो,
    क्योंकि इसी से शांति मिलती है।
38 जो लोग व्यवस्था नियम तोड़ते हैं
    नष्ट किये जायेंगे।
39 यहोवा नेक मनुष्यों की रक्षा करता है।
    सज्जनों पर जब विपत्ति पड़ती है तब यहोवा उनकी शक्ति बन जाता है।
40 यहोवा नेक जनों को सहारा देता है, और उनकी रक्षा करता है।
    सज्जन यहोवा की शरण में आते हैं और यहोवा उनको दुर्जनों से बचा लेता है।

1 शमूएल 20:24-42

24 तब दाऊद मैदान में जा छिपा।

उत्सव में शाऊल के इरादे

नया चाँद के उत्सव का समय आया और राजा भोजन करने बैठा। 25 राजा दीवार के निकट वहीं बैठा जहाँ वह प्राय: बैठा करता था। योनातान शाऊल के दूसरी ओर सामने बैठा। अब्नेर शाऊल के बाद बैठा। किन्तु दाऊद का स्थान खाली था। 26 उस दिन शाऊल ने कुछ नहीं कहा। उसने सोचा, “सम्भव है दाऊद को कुछ हुआ हो और वह शुद्ध न हो।”

27 अगले दिन, महीने के दूसरे दिन, दाऊद का स्थान फिर खाली था। तब शाऊल ने अपने पुत्र योनातान से पूछा, “यिशै का पुत्र नया चाँद के उत्सव में कल या आज क्यों नहीं आया?”

28 योनातान ने उत्तर दिया, “दाऊद ने मुझसे बेतलेहेम जाने देने के लिये कहा था। 29 उसने कहा, ‘मुझे जाने दो। मेरा परिवार बेतलेहेम में एक बलि—भेंट कर रहा है। मेरे भाई ने वहाँ रहने का आदेश दिया है। अब यदि मैं तुम्हारा मित्र हूँ तो मुझे जाने दो और भाईयों से मिलने दो।’ यही कारण है कि दाऊद राजा की मेज पर नहीं आया है।”

30 शाऊल योनातान पर बहुत क्रोधित हुआ। उसने योनातान से कहा, “तुम उस एक दासी के पुत्र हो, जो आज्ञा पालन करने से इन्कार करती है और तुम ठीक उसी तरह के हो। मैं जानता हूँ कि तुम दाऊद के पक्ष में हो। तुम अपनी माँ और अपने लिये लज्जा का कारण हो। 31 जब तक यिशै का पुत्र जीवित रहेगा तब तक तुम कभी राजा नहीं बनोगे, न तुम्हारा राज्य होगा। अब दाऊद को हमारे पास लाओ। वह एक मरा व्यक्ति है!”

32 योनातान ने अपने पिता से पूछा, “दाऊद को क्यों मार डाला जाना चाहिये? उसने क्या अपराध किया है?”

33 किन्तु शाऊल ने अपना भाला योनातान पर चलाया और उसे मार डालने का प्रयन्त किया। अत: योनातान ने समझ लिया कि मेरा पिता दाऊद को निश्चित रूप से मार डालने का इच्चुक है। 34 योनातान क्रोधित हुआ और उसने मेज छोड़ दी। योनातान इतना घबरा गया और अपने पिता पर इतना क्रोधित हुआ कि उसने दावत के दूसरे दिन कुछ भी भोजन करना अस्वीकार कर दिया। योनातान इसलिये क्रोधित हुआ क्योंकि शाऊल ने उसे अपमानित किया था और शाऊल दाऊद को मार डालना चाहता था।

दाऊद और योनातान का विदा लेना

35 अगली सुबह योनातान मैदान में गया। वह दाऊद से मिलने गया, जैसा उन्होंने तय किया था। योनातान एक शस्त्रवाहक लड़के को अपने साथ लाया। 36 योनातान ने लडके से कहा, “दौड़ो, और जो बाण मैं चलाता हूँ, उनहें लाओ।” लड़के ने दौड़ना आरम्भ किया और योनातान ने उसके सिर के ऊपर से बाण चलाए। 37 लड़का उस स्थान को दौड़ा, जहाँ बाण गिरा था। किन्तु योनातान ने पुकारा, “बाण बहुत दूर है!” 38 तब योनातान जोर से चिल्लाया “जल्दी कारो! उन्हें लाओ! वहीं पर खड़े न रहो!” लड़के ने बाणों को उठाया और अपने स्वामी के पास वापस लाया। 39 लड़के को कुछ पता न चला कि हुआ क्या। केवल योनातान और दाऊद जान सके। 40 योनातान ने अपना धनुष बाण लड़के को दिया। तब योनातान ने लड़के से कहा, “नगर को लौट जाओ।”

41 लड़का चल पड़ा, और दाऊद अपने उस छिपने के स्थान से बाहर आया जो पहाड़ी के दूसरी ओर था। दाऊद ने भूमि तक अपने सिर को झुकाकर योनातान के सामने प्रणाम किया। दाऊद तीन बार झुका। तब दाऊद और योनातान ने एक दूसरे का चुम्बन लिया। वे दोनों एक साथ रोये, किन्तु दाऊद योनातान से अधिक रोया।

42 योनातान ने दाऊद से कहा, “शान्तिपूर्वक जाओ। हम लोगों ने यहोवा का नाम लेकर मित्र होने की प्रतिज्ञा की थी। हम लोगों ने कहा था कि यहोवा हम लोगों और हमारे वंशजों के बीच सदा साक्षी रहेगा।”

प्रेरितों के काम 13:1-12

बरनाबास और शाऊल का चुना जाना

13 अन्ताकिया के कलीसिया में कुछ नबी और बरनाबास, काला कहलाने वाला शमौन, कुरेन का लूकियुस, देश के चौथाई भाग के राजा हेरोदेस के साथ पालितपोषित मनाहेम और शाऊल जैसे कुछ शिक्षक थे। वे जब उपवास करते हुए प्रभु की उपासना में लगे हुए थे, तभी पवित्र आत्मा ने कहा, “बरनाबास और शाऊल को जिस काम के लिये मैंने बुलाया है, उसे करने के लिये मेरे निमित्त, उन्हें अलग कर दो।”

सो जब शिक्षक और नबी अपना उपवास और प्रार्थना पूरी कर चुके तो उन्होंने बरनाबास और शाऊल पर अपने हाथ रखे और उन्हें विदा कर दिया।

बरनाबास और शाऊल की साइप्रस यात्रा

पवित्र आत्मा के द्वारा भेजे हुए वे सिलुकिया गये जहाँ से जहाज़ में बैठ कर वे साइप्रस पहुँचें। फिर जब वे सलमीस पहुँचे तो उन्होंने यहूदियों के आराधनालयों में परमेश्वर के वचन का प्रचार किया। यूहन्ना सहायक के रूप में उनके साथ था।

उस समूचे द्वीप की यात्रा करते हुए वे पाफुस तक जा पहुँचे। वहाँ उन्हें एक जादूगर मिला, वह झूठा नबी था। उस यहूदी का नाम था बार-यीशु। वह एक अत्यंत बुद्धिमान पुरुष था। वह राज्यपाल सिरगियुस पौलुस का सेवक था जिसने परमेश्वर का वचन फिर सुनने के लिये बरनाबास और शाऊल को बुलाया था। किन्तु इलीमास जादूगर ने उनका विरोध किया। (यह बार-यीशु का अनुवादित नाम है।) उसने नगर-पति के विश्वास को डिगाने का जतन किया। फिर शाऊल ने (जिसे पौलुस भी कहा जाता था,) पवित्र आत्मा से अभिभूत होकर इलीमास पर पैनी दृष्टि डालते हुए कहा, 10 “सभी प्रकार के छलों और धूर्तताओं से भरे, और शैतान के बेटे, तू हर नेकी का शत्रु है। क्या तू प्रभु के सीधे-सच्चे मार्ग को तोड़ना मरोड़ना नहीं छोड़ेगा? 11 अब देख प्रभु का हाथ तुझ पर आ पड़ा है। तू अंधा हो जायेगा और कुछ समय के लिये सूर्य तक को नहीं देख पायेगा।”

तुरन्त एक धुंध और अँधेरा उस पर छा गया और वह इधर-उधर टटोलने लगा कि कोई उसका हाथ पकड़ कर उसे चलाये। 12 सो नगर-पति ने, जो कुछ घटा था, जब उसे देखा तो उसने विश्वास धारण किया। वह प्रभु सम्बन्धी उपदेशों से बहुत चकित हुआ।

मरकुस 2:23-3:6

यहूदियों द्वारा यीशु और उसके शिष्यों की आलोचना

(मत्ती 12:1-8; लूका 6:1-5)

23 ऐसा हुआ कि सब्त के दिन यीशु खेतों से होता हुआ जा रहा था। जाते जाते उसके शिष्य खेतों से अनाज की बालें तोड़ने लगे। 24 इस पर फ़रीसी यीशु से कहने लगे, “देख सब्त के दिन वे ऐसा क्यों कर रहे हैं जो उचित नहीं है?”

25 इस पर यीशु ने उनसे कहा, “क्या तुमने कभी दाऊद के विषय में नहीं पढ़ा कि उसने क्या किया था जब वह और उसके साथी संकट में थे और उन्हें भूख लगी थी? 26 क्या तुमने नहीं पढ़ा कि, जब अबियातार महायाजक था तब वह परमेश्वर के मन्दिर में कैसे गया और परमेश्वर को भेंट में चढ़ाई रोटियाँ उसने कैसे खाईं (जिनका खाना महायाजक को छोड़ कर किसी को भी उचित नहीं है) कुछ रोटियाँ उसने उनको भी दी थीं जो उसके साथ थे?”

27 यीशु ने उनसे कहा, “सब्त मनुष्य के लिये बनाया गया है, न कि मनुष्य सब्त के लिये। 28 इसलिये मनुष्य का पुत्र सब्त का भी प्रभु है।”

सूखे हाथ वाले को चंगा करना

(मत्ती 12:9-14; लूका 6:6-11)

एक बार फिर यीशु यहूदी आराधनालय में गया। वहाँ एक व्यक्ति था जिसका एक हाथ सूख चुका था। कुछ लोग घात लगाये थे कि वह उसे ठीक करता है कि नहीं, ताकि उन्हें उस पर दोष लगाने का कोई कारण मिल जाये। यीशु ने सूखे हाथ वाले व्यक्ति से कहा, “लोगों के सामने खड़ा हो जा।”

और लोगों से पूछा, “सब्त के दिन किसी का भला करना उचित है या किसी को हानि पहुँचाना? किसी का जीवन बचाना ठीक है या किसी को मारना?” किन्तु वे सब चुप रहे।

फिर यीशु ने क्रोध में भर कर चारों ओर देखा और उनके मन की कठोरता से वह बहुत दुखी हुआ। फिर उसने उस मनुष्य से कहा, “अपना हाथ आगे बढ़ा।” उसने हाथ बढ़ाया, उसका हाथ पहले जैसा ठीक हो गया। तब फ़रीसी वहाँ से चले गये और हेरोदियों के साथ मिल कर यीशु के विरुद्ध षड़यन्त्र रचने लगे कि वे उसकी हत्या कैसे कर सकते हैं।

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