Book of Common Prayer
1 यहोवा की प्रशंसा करो!
यहोवा का धन्यवाद करो क्योंकि वह उत्तम है!
परमेश्वर का प्रेम सदा ही रहता है!
2 सचमुच यहोवा कितना महान है, इसका बखान कोई व्यक्ति कर नहीं सकता।
परमेश्वर की पूरी प्रशंसा कोई नहीं कर सकता।
3 जो लोग परमेश्वर का आदेश पालते हैं, वे प्रसन्न रहते हैं।
वे व्यक्ति हर समय उत्तम कर्म करते हैं।
4 यहोवा, जब तू निज भक्तों पर कृपा करे।
मुझको याद कर। मुझको भी उद्धार करने को याद कर।
5 यहोवा, मुझको भी उन भली बातों में हिस्सा बँटाने दे
जिन को तू अपने लोगों के लिये करता है।
तू अपने भक्तों के साथ मुझको भी प्रसन्न होने दे।
तुझ पर तेरे भक्तों के साथ मुझको भी गर्व करने दे।
6 हमने वैसे ही पाप किये हैं जैसे हमारे पूर्वजों ने किये।
हम अधर्मी हैं, हमने बुरे काम किये है!
7 हे यहोवा, मिस्र में हमारे पूर्वजों ने
आश्चर्य कर्मो से कुछ भी नहीं सीखा।
उन्होंने तेरे प्रेम को और तेरी करूणा को याद नहीं रखा।
हमारे पूर्वज वहाँ लाल सागर के किनारे तेरे विरूद्ध हुए।
8 किन्तु परमेश्वर ने निज नाम के हेतु हमारे पूर्वजों को बचाया था।
परमेश्वर ने अपनी महान शक्ति दिखाने को उनको बचाया था।
9 परमेश्वर ने आदेश दिया और लाल सागर सूखा।
परमेश्वर हमारे पूर्वजों को उस गहरे समुद्र से इतनी सूखी धरती से निकाल ले आया जैसे मरूभूमि हो।
10 परमेश्वर ने हमारे पूर्वजों को उनके शत्रुओं से बचाया!
परमेश्वर उनको उनके शत्रुओं से बचा कर निकाल लाया।
11 और फिर उनके शत्रुओं को उसी सागर के बीच ढ़ाँप कर डुबा दिया।
उनका एक भी शत्रु बच निकल नहीं पाया।
12 फिर हमारे पूर्वजों ने परमेश्वर पर विश्वास किया।
उन्होंने उसके गुण गाये।
13 किन्तु हमारे पूर्वज उन बातों को शीघ्र भूले जो परमेश्वर ने की थी।
उन्होंने परमेश्वर की सम्मति पर कान नहीं दिया।
14 हमारे पूर्वजों को जंगल में भूख लगी थी।
उस मरूभूमि में उन्होंने परमेश्वर को परखा।
15 किन्तु हमारे पूर्वजों ने जो कुछ भी माँगा परमेश्वर ने उनको दिया।
किन्तु परमेश्वर ने उनको एक महामारी भी दे दी थी।
16 लोग मूसा से डाह रखने लगे
और हारून से वे डाह रखने लगे जो यहोवा का पवित्र याजक था।
17 सो परमेश्वर ने उन ईर्ष्यालु लोगों को दण्ड दिया।
धरती फट गयी और दातान को निगला और फिर धरती बन्द हो गयी। उसने अविराम के समूह को निगल लिया।
18 फिर आग ने उन लोगों की भीड़ को भस्म किया।
उन दुष्ट लोगों को आग ने जाला दिया।
19 उन लोगों ने होरब के पहाड़ पर सोने का एक बछड़ा बनाया
और वे उस मूर्ति की पूजा करने लगे!
20 उन लोगों ने अपने महिमावान परमेश्वर को
एक बहुत जो घास खाने वाले बछड़े का था उससे बेच दिया!
21 हमारे पूर्वज परमेश्वर को भूले जिसने उन्हें बचाया था।
वे परमेशवर के विषय में भूले जिसने मिस्र में आश्चर्य कर्म किये थे।
22 परमेश्वर ने हाम के देश में आश्चर्य कर्म किये थे।
परमेश्वर ने लाल सागर के पास भय विस्मय भरे काम किये थे।
23 परमेश्वर उन लोगों को नष्ट करना चाहता था,
किन्तु परमेश्वर के चुने दास मूसा ने उनको रोक दिया।
परमेश्वर बहुत कुपित था किन्तु मूसा आड़े आया
कि परमेश्वर उन लोगों का कहीं नाश न करे।
24 फिर उन लोगों ने उस अद्भुत देश कनान में जाने से मना कर दिया।
लोगों को विश्वास नहीं था कि परमेश्वर उन लोगों को हराने में सहायता करेगा जो उस देश में रह रहे थे।
25 अपने तम्बुओं में वे शिकायत करते रहे!
हमारे पूर्वजों ने परमेश्वर की बात मानने से नकारा।
26 सो परमेश्वर ने शपथ खाई कि वे मरूभुमि में मर जायेंगे।
27 परमेश्वर ने कसम खाई कि उनकी सन्तानों को अन्य लोगों को हराने देगा।
परमेश्वर ने कसम उठाई कि वह हमारे पूर्वजों को देशों में छितरायेगा।
28 फिर परमेश्वर के लोग बालपोर में बाल के पूजने में सम्मिलित हो गये।
परमेश्वर के लोग वह माँस खाने लगे जिस को निर्जीव देवताओं पर चढ़ाया गया था।
29 परमेश्वर अपने जनों पर अति कुपित हुआ। और परमेश्वर ने उनको अति दुर्बल कर दिया।
30 किन्तु पीनहास ने विनती की
और परमेश्वर ने उस व्याधि को रोका।
31 किन्तु परमेश्वर जानता था कि पीनहास ने अति उत्तम कर्म किया है।
और परमेश्वर उसे सदा सदा याद रखेगा।
32 मरीब में लोग भड़क उठे
और उन्होंने मूसा से बुरा काम कराया।
33 उन लोगों ने मूसा को अति व्याकुल किया।
सो मूसा बिना ही विचारे बोल उठा।
34 यहोवा ने लोगों से कहा कि कनान में रह रहे अन्य लोगों को वे नष्ट करें।
किन्तु इस्राएली लोगों ने परमेश्वर की नहीं मानी।
35 इस्राएल के लोग अन्य लोगों से हिल मिल गये,
और वे भी वैसे काम करने लगे जैसे अन्य लोग किया करते थे।
36 वे अन्य लोग परमेश्वर के जनों के लिये फँदा बन गये।
परमेश्वर के लोग उन देवों को पूजने लगेजिनकी वे अन्य लोग पूजा किया करते थे।
37 यहाँ तक कि परमेश्वर के जन अपने ही बालकों की हत्या करने लगे।
और वे उन बच्चों को उन दानवों की प्रतिमा को अर्पित करने लगे।
38 परमेश्वर के लोगों ने अबोध भोले जनों की हत्या की।
उन्होंने अपने ही बच्चों को मार डाला
और उन झूठे देवों को उन्हें अर्पित किया।
39 इस तरह परमेश्वर के जन उन पापों से अशुद्ध हुए जो अन्य लोगों के थे।
वे लोग अपने परमेश्वर के अविश्वासपात्र हुए। और वे लोग वैसे काम करने लगे जैसे अन्य लोग करते थे।
40 परमेश्वर अपने उन लोगों पर कुपित हुआ।
परमेश्वर उनसे तंग आ चुका था!
41 फिर परमेश्वर ने अपने उन लोगों को अन्य जातियों को दे दिया।
परमेश्वर ने उन पर उनके शत्रुओं का शासन करा दिया।
42 परमेश्वर के जनों के शत्रुओं ने उन पर अधिकार किया
और उनका जीना बहुत कठिन कर दिया।
43 परमेश्वर ने निज भक्तों को बहुत बार बचाया, किन्तु उन्होंने परमेश्वर से मुख मोड़ लिया।
और वे ऐसी बातें करने लगे जिन्हें वे करना चाहते थे।
परमेश्वर के लोगों ने बहुत बहुत बुरी बातें की।
44 किन्तु जब कभी परमेश्वर के जनों पर विपद पड़ी उन्होंने सदा ही सहायाता पाने को परमेश्वर को पुकारा।
परमेश्वर ने हर बार उनकी प्रार्थनाएँ सुनी।
45 परमेश्वर ने सदा अपनी वाचा को याद रखा।
परमेश्वर ने अपने महा प्रेम से उनको सदा ही सुख चैन दिया।
46 परमेश्वर के भक्तों को उन अन्य लोगों ने बंदी बना लिया,
किन्तु परमेश्वर ने उनके मन में उनके लिये दया उपजाई।
47 यहोवा हमारे परमेश्वर, ने हमारी रक्षा की।
परमेश्वर उन अन्य देशों से हमको एकत्र करके ले आया,
ताकि हम उसके पवित्र नाम का गुण गान कर सके:
ताकि हम उसके प्रशंसा गीत गा सकें।
48 इस्राएल के परमेश्वर यहोवा को धन्य कहो।
परमेश्वर सदा ही जीवित रहता आया है। वह सदा ही जीवित रहेगा।
और सब जन बोले, “आमीन।”
यहोवा के गुण गाओ।
शमूएल, शाऊल को राजा घोषित करता है
17 शमूएल ने इस्राएल के सभी लोगों से मिस्पा में यहोवा से मिलने के लिये एक साथ इकट्ठा होने को कहा। 18 शमूएल ने कहा, “इस्राएल का परमेश्वर यहोवा कहता है, ‘मैंने इस्राएल को मिस्र से बाहर निकाला। मैंने तुम्हें मिस्र की अधीनता से और उन अन्य राष्ट्रों से भी बचाया जो तुम्हें चोट पहुँचाना चाहते थे।’ 19 किन्तु आज तुमने अपने परमेश्वर को अस्वीकार कर दिया है। तुम्हारा परमेश्वर तुम्हें तुम्हारे सभी कष्टों और समस्याओं से बचाता है। किन्तु तुमने कहा, ‘नहीं हम अपने ऊपर शासन करने के लिये एक राजा चाहते हैं।’ अब आओ और यहोवा के सामने अपने परिवारों और अपने परिवार समूहों में खड़े हो जाओ।”
20 शमूएल इस्राएल के सभी परिवार समूहों को निकट लाया। तब शमूएल ने नया राजा चुनना आरम्भ किया। प्रथम बिन्यामीन का परिवार समूह चुना गया। 21 शमूएल ने बिन्यामीन के परिवार समूह के हर एक परिवार को एक एक करके आगे से निकलने को कहा। मत्री का परिवार चुना गया। तब शमूएल ने मत्री के परिवार के हर एक व्यक्ति को एक एक करके उसके आगे से निकलने को कहा। इस प्रकार कीश का पुत्र शाऊल चुना गया।
किन्तु जब लोगों ने शाऊल की खोज की, तो वे उसे पा नहीं सके। 22 तब उन्होंने यहोवा से पूछा, “क्या शाऊल अभी तक यहाँ नहीं आया है?”
यहोवा ने कहा, “शाऊल भेंट सामग्री के पीछे छिपा है।”
23 लोग दौड़ पड़े और शाऊल को भेंट सामग्री के पीछे से ले आये। शाऊल लोगों के बीच खड़ा हुआ। शाऊल इतना लम्बा था कि सभी लोग बस उस के कंधे तक आ रहे थे।
24 शमूएल ने सभी लोगों से कहा, “उस व्यक्ति को देखो जिसे यहोवा ने चुना है। लोगों में कोई व्यक्ति शाऊल के समान नहीं है।”
तब लोगों ने नारा लगाया, “राजा दीर्घायु हो!”
25 शमूएल ने राज्य के नियमों को लोगों को समझाया। उसने उन नियमों को एक पुस्तक में लिखा। उसने पुस्तक को यहोवा के सामने रखा। तब शमूएल ने लोगों को अपने—अपने घर जाने के लिये कहा।
26 शाऊल भी गिबा में अपने घर चला गया। परमेश्वर ने वीर पुरुषों के हृदय का स्पर्श किया और ये वीर व्यक्ति शाऊल का अनुसरण करने लगे। 27 किन्तु कुछ उत्पातियों ने कहा, “यह व्यक्ति हम लोगों की रक्षा कैसे कर सकता है।?” उन्होंने शाऊल की निन्दा की और उसे उपहार देने से इन्कार किया। किन्तु शाऊल ने कुछ नहीं कहा।
अम्मोनियों का राजा नाहाश
अम्मोनियों का राजा नाहाश गिलाद और याबेश के परिवार समूह को कष्ट दे रहा था। नाहाश ने उनके हर एक पुरुष की दायीं आँख निकलवा डाली थी। नाहाश किसी को उनकी सहायता नहीं करने देता था। अम्मोनियों के राजा नाहाश ने यरदन नदी के पूर्व रहने वाले हर एक इस्राएली पुरुष की दायीं आँख निकलवा ली थी। किन्तु सत्तर हजार इस्राएली पुरुष अम्मोनियों के यहाँ से भाग निकले और याबेश गिलाद में आ गये।
44 “साक्षी का तम्बू भी उस वीराने में हमारे पूर्वजों के साथ था। यह तम्बू उसी नमूने पर बनाया गया था जैसा कि उसने देखा था और जैसा कि मूसा से बात करने वाले ने बनाने को उससे कहा था। 45 हमारे पूर्वज उसे प्राप्त करके तभी वहाँ से आये थे जब यहोशू के नेतृत्त्व में उन्होंने उन जातियों से यह धरती ले ली थी जिन्हें हमारे पूर्वजों के सम्मुख परमेश्वर ने निकाल बाहर किया था। दाऊद के समय तक वह वहीं रहा। 46 दाऊद ने परमेश्वर के अनुग्रह का आनन्द उठाया। उसने चाहा कि वह याकूब के लोगों[a] के लिए एक मन्दिर बनवा सके 47 किन्तु वह सुलैमान ही था जिसने उसके लिए मन्दिर बनवाया।
48 “कुछ भी हो परम परमेश्वर तो हाथों से बनाये भवनों में नहीं रहता। जैसा कि नबी ने कहा है:
49 ‘प्रभु ने कहा,
स्वर्ग मेरा सिंहासन है,
और धरती चरण की चौकी बनी है।
किस तरह का मेरा घर तुम बनाओगे?
कहीं कोई जगह ऐसी है, जहाँ विश्राम पाऊँ?
50 क्या यह सभी कुछ, मेरे करों की रचना नहीं रही?’”(A)
51 “हे बिना ख़तने के मन और कान वाले हठीले लोगो! तुमने सदा ही पवित्र आत्मा का विरोध किया है। तुम अपने पूर्वजों के जैसे ही हो। 52 क्या कोई भी ऐसा नबी था, जिसे तुम्हारे पूर्वजों ने नहीं सताया? उन्होंने तो उन्हें भी मार डाला जिन्होंने बहुत पहले से ही उस धर्मी के आने की घोषणा कर दी थी, जिसे अब तुमने धोखा देकर पकड़वा दिया और मरवा डाला। 53 तुम वही हो जिन्होंने स्वर्गदूतों द्वारा दिये गये व्यवस्था के विधान को पा तो लिया किन्तु उस पर चले नहीं।”
स्तिफनुस की हत्या
54 जब उन्होंने यह सुना तो वे क्रोध से आगबबूला हो उठे और उस पर दाँत पीसने लगे। 55 किन्तु पवित्र आत्मा से भावित स्तिफनुस स्वर्ग की ओर देखता रहा। उसने देखा परमेश्वर की महिमा को और परमेश्वर के दाहिने खड़े यीशु को। 56 सो उसने कहा, “देखो। मैं देख रहा हूँ कि स्वर्ग खुला हुआ है और मनुष्य का पुत्र परमेश्वर के दाहिने खड़ा है।”
57 इस पर उन्होंने चिल्लाते हुए अपने कान बन्द कर लिये और फिर वे सभी उस पर एक साथ झपट पड़े। 58 वे उसे घसीटते हुए नगर से बाहर ले गये और उस परपथराव करने लगे। तभी गवाहों ने अपने वस्त्र उतार कर शाउल नाम के एक युवक के चरणों में रख दिये। 59 स्तिफ़नुस पर जब से उन्होंने पत्थर बरसाना प्रारम्भ किया, वह यह कहते हुए प्रार्थना करता रहा, “हे प्रभु यीशु, मेरी आत्मा को स्वीकार कर।” 60 फिर वह घुटनों के बल गिर पड़ा और ऊँचे स्वर में चिल्लाया, “प्रभु, इस पाप कोउनके विरुद्ध मत ले।” इतना कह कर वह चिर निद्रा में सो गया।
8 1-3 इस तरह शाऊल ने स्तिफनुस की हत्या का समर्थन किया।
विश्वासियों पर अत्याचार
उसी दिन से यरूशलेम की कलीसिया पर घोर अत्याचार होने आरम्भ हो गये। प्रेरितों को छोड़ वे सभी लोग यहूदिया और सामरिया के गाँवों में तितर-बितर हो कर फैल गये। कुछ भक्त जनों ने स्तिफनुस को दफना दिया और उसके लिये गहरा शोक मनाया। शाऊल ने कलीसिया को नष्ट करना आरम्भ कर दिया। वह घर-घर जा कर औरत और पुरूषों को घसीटते हुए जेल में डालने लगा।
52 फिर यीशु ने उस पर चढ़ाई करने आये प्रमुख याजकों, मन्दिर के अधिकारियों और बुजुर्ग यहूदी नेताओं से कहा, “क्या तुम तलवारें और लाठियाँ ले कर किसी डाकू का सामना करने निकले हो? 53 मन्दिर में मैं हर दिन तुम्हारे ही साथ था, किन्तु तुमने मुझ पर हाथ नहीं डाला। पर यह समय तुम्हारा है। अन्धकार के शासन का काल।”
पतरस का इन्कार
(मत्ती 26:57-58, 69-75; मरकुस 14:53-54, 66-72; यूहन्ना 18:12-18, 25-27)
54 उन्होंने उसे बंदी बना लिया और वहाँ से ले गये। फिर वे उसे प्रमुख याजक के घर ले गये। पतरस कुछ दूरी पर उसके पीछे पीछे आ रहा था। 55 आँगन के बीच उन्होंने आग सुलगाई और एक साथ नीचे बैठ गये। पतरस भी वही उन्हीं में बैठा था। 56 आग के प्रकाश में एक दासी ने उसे वहाँ बैठे देखा। उसने उस पर दृष्टि गढ़ाते हुए कहा, “यह आदमी भी उसके साथ था।”
57 किन्तु पतरस ने इन्कार करते हुए कहा, “हे स्त्री, मैं उसे नहीं जानता।” 58 थोड़ी देर बाद एक दूसरे व्यक्ति ने उसे देखा और कहा, “तू भी उन्हीं में से एक है।”
किन्तु पतरस बोला, “भले आदमी, मैं वह नहीं हूँ।”
59 कोई लगभग एक घड़ी बीती होगी कि कोई और भी बलपूर्वक कहने लगा, “निश्चय ही यह व्यक्ति उसके साथ भी था। क्योंकि देखो यह गलील वासी भी है।”
60 किन्तु पतरस बोला, “भले आदमी, मैं नहीं जानता तू किसके बारे में बात कर रहा है।”
उसी घड़ी, वह अभी बातें कर ही रहा था कि एक मुर्गे ने बाँग दी। 61 और प्रभु ने मुड़ कर पतरस पर दृष्टि डाली। तभी पतरस को प्रभु का वह वचन याद आया जो उसने उससे कहा था, “आज मुर्गे के बाँग देने से पहले तू मुझे तीन बार नकार चुकेगा।” 62 तब वह बाहर चला आया और फूट-फूट कर रो पड़ा।
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