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Book of Common Prayer

Daily Old and New Testament readings based on the Book of Common Prayer.
Duration: 861 days
Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)
Version
भजन संहिता 69

“कुमुदिनी” नामक धुन पर संगीत निर्देशक के लिए दाऊद का एक भजन।

हे परमेश्वर, मुझको मेरी सब विपतियों से बचा!
    मेरे मुँह तक पानी चढ़ आया है।
कुछ भी नहीं है जिस पर मैं खड़ा हो जाऊँ।
    मैं दलदल के बीच नीचे धँसता ही चला जा रहा हूँ।
मैं नीचे धंस रहा हूँ।
    मैं अगाध जल में हूँ और मेरे चारों तरफ लहरें पछाड़ खा रही है। बस, मैं डूबने को हूँ।
सहायता को पुकारते मैं दुर्बल होता जा रहा हूँ।
    मेरा गला दु:ख रहा है।
मैं बाट जोह रहा हूँ तुझसे सहायता पाने
    और देखते—देखते मेरी आँखें दु:ख रही है।
मेरे शत्रु! मेरे सिर के बालों से भी अधिक हैं।
    वे मुझसे व्यर्थ बैर रखते हैं।
    वे मेरे विनाश की जुगत बहुत करते हैं।
मेरे शत्रु मेरे विषय में झूठी बातें बनातें हैं।
    उन्होंने मुझको झूठे ही चोर बताया।
    और उन वस्तुओं की भरपायी करने को मुझे विवश किया, जिनको मैंने चुराया नहीं था।
हे परमेश्वर, तू तो जानता है कि मैंने कुछ अनुचित नहीं किया।
    मैं अपने पाप तुझसे नहीं छिपा सकता।
हे मेरे स्वमी, हे सर्वशक्तिमान यहोवा, तू अपने भक्तों को मेरे कारण लज्जित मत होने दें।
    हे इस्राएल के परमेश्वर, ऐसे उन लोगों को मेरे लिए असमंजस में मत डाल जो तेरी उपासना करते हैं।
मेरा मुख लाज से झुक गया।
    यह लाज मैं तेरे लिए ढोता हूँ।
मेरे ही भाई, मेरे साथ यूँ ही बर्ताव करते हैं। जैसे बर्ताव किसी अजनबी से करते हों।
    मेरे ही सहोदर, मुझे पराया समझते है।
तेरे मन्दिर के प्रति मेरी तीव्र लगन ही मुझे जलाये डाल रही है।
    वे जो तेरा उपहास करते हैं वह मुझ पर आन पडा है।
10 मैं तो पुकारता हूँ और उपवास करता हूँ,
    इसलिए वे मेरी हँसी उड़ाते हैं।
11 मैं निज शोक दर्शाने के लिए मोटे वस्रों को पहनता हूँ,
    और लोग मेरा मजाक उड़ाते हैं।
12 वे जनता के बीच मेरी चर्चायें करतें,
    और पियक्कड़ मेरे गीत रचा करते हैं।
13 हे यहोवा, जहाँ तक मेरी बात है, मेरी तुझसे यह विनती है कि
    मैं चाहता हूँ; तू मुझे अपना ले!
हे परमेश्वर, मैं चाहता हूँ कि तू मुझको प्रेम भरा उत्तर दे।
    मैं जानता हूँ कि मैं तुझ पर सुरक्षा का भरोसा कर सकता हूँ।
14 मुझको दलदल से उबार ले।
    मुझको दलदल के बीच मत डूबने दे।
मुझको मेरे बैरी लोगों से तू बचा ले।
    तू मुझको इस गहरे पानी से बचा ले।
15 बाढ की लहरों को मुझे डुबाने न दे।
    गहराई को मुझे निगलने न दे।
    कब्र को मेरे ऊपर अपना मुँह बन्द न करने दे।
16 हे यहोवा, तेरी करूण खरी है। तू मुझको निज सम्पूर्ण प्रेम से उत्तर दे।
    मेरी सहायता के लिए अपनी सम्पूर्ण कृपा के साथ मेरी ओर मुख कर!
17 अपने दास से मत मुख मोड़।
    मैं संकट में पड़ा हूँ! मुझको शीघ्र सहारा दे।
18 आ, मेरे प्राण बचा ले।
    तू मुझको मेरे शत्रुओं से छुड़ा ले।
19 तू मेरा निरादर जानता है।
    तू जानता है कि मेरे शत्रुओं ने मुझे लज्जित किया है।
    उन्हें मेरे संग ऐसा करते तूने देखा है।
20 निन्दा ने मुझको चकनाचूर कर दिया है!
    बस निन्दा के कारण मैं मरने पर हूँ।
मैं सहानुभूति की बाट जोहता रहा, मैं सान्त्वना की बाट जोहता रहा,
    किन्तु मुझको तो कोई भी नहीं मिला।
21 उन्होंने मुझे विष दिया, भोजन नहीं दिया।
    सिरका मुझे दे दिया, दाखमधु नहीं दिया।
22 उनकी मेज खानों से भरी है वे इतना विशाल सहभागिता भोज कर रहे हैं।
    मैं आशा करता हूँ कि वे खाना उन्हें नष्ट करें।
23 वे अंधे हो जायें और उनकी कमर झुक कर दोहरी हो जाये।
24 ऐसे लगे कि उन पर
    तेरा भरपूर क्रोध टूट पड़ा है।
25 उनके घरों को तू खाली बना दे।
    वहाँ कोई जीवित न रहे।
26 उनको दण्ड दे, और वे दूर भाग जायें।
    फिर उनके पास, उनकी बातों के विषय में उनके दर्द और घाव हो।
27 उनके बुरे कर्मों का उनको दण्ड दे, जो उन्होंने किये हैं।
    उनको मत दिखला कि तू और कितना भला हो सकता है।
28 जीवन की पुस्तक से उनके नाम मिटा दे।
    सज्जनों के नामों के साथ तू उनके नाम उस पुस्तक में मत लिख।
29 मैं दु:खी हूँ और दर्द में हूँ।
    हे परमेश्वर, मुझको उबार ले। मेरी रक्षा कर!
30 मैं परमेश्वर के नाम का गुण गीतों में गाऊँगा।
    मैं उसका यश धन्यवाद के गीतों से गाऊँगा।
31 परमेश्वर इससे प्रसन्न हो जायेगा।
    ऐसा करना एक बैल की बलि या पूरे पशु की ही बलि चढ़ाने से अधिक उत्तम है।
32 अरे दीन जनों, तुम परमेश्वर की आराधना करने आये हो।
    अरे दीन लोगों! इन बातों को जानकर तुम प्रसन्न हो जाओगे।
33 यहोवा, दीनों और असहायों की सुना करता है।
    यहोवा उन्हें अब भी चाहता है, जो लोग बंधन में पड़े हैं।
34 हे स्वर्ग और हे धरती,
    हे सागर और इसके बीच जो भी समाया है। परमेश्वर की स्तुती करो!
35 यहोवा सिय्योन की रक्षा करेगा!
    यहोवा यहूदा के नगर का फिर निर्माण करेगा।
वे लोग जो इस धरती के स्वामी हैं, फिर वहाँ रहेंगे!
36     उसके सेवकों की संताने उस धरती को पायेगी।
    और ऐसे वे लोग निवास करेंगे जिन्हें उसका नाम प्यारा है।

भजन संहिता 73

तीसरा भाग

(भजनसंहिता 73–89)

आसाप का स्तुति गीत।

सचमुच, इस्राएल के प्रति परमेश्वर भला है।
    परमेश्वर उन लोगों के लिए भला होता है जिनके हृदय स्वच्छ है।
मैं तो लगभग फिसल गया था
    और पाप करने लगा।
जब मैंने देखा कि पापी सफल हो रहे हैं
    और शांति से रह रहे हैं, तो उन अभिमानी लोगों से मुझको जलन हुयी।
वे लोग स्वस्थ हैं
    उन्हें जीवन के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ता है।
वे अभिमानी लोग पीड़ायें नहीं उठाते है।
    जैसे हम लोग दु:ख झेलते हैं, वैसे उनको औरों की तरह यातनाएँ नहीं होती।
इसलिए वे अहंकार से भरे रहते हैं।
    और वे घृणा से भरे हुए रहते हैं। ये वैसा ही साफ दिखता है, जैसे रत्न और वे सुन्दर वस्त्र जिनको वे पहने हैं।
वे लोग ऐसे है कि यदि कोई वस्तु देखते हैं और उनको पसन्द आ जाती है, तो उसे बढ़कर झपट लेते हैं।
    वे वैसे ही करते हैं, जैसे उन्हें भाता है।
वे दूसरों के बारें में क्रूर बातें और बुरी बुरी बातें कहते है। वे अहंकारी और हठी है।
    वे दूसरे लोगों से लाभ उठाने का रास्ता बनाते है।
अभिमानी मनुष्य सोचते हैं वे देवता हैं!
    वे अपने आप को धरती का शासक समझते हैं।
10 यहाँ तक कि परमेश्वर के जन, उन दुष्टों की ओर मुड़ते और जैसा वे कहते है,
    वैसा विश्वास कर लेते हैं।
11 वे दुष्ट जन कहते हैं, “हमारे उन कर्मो को परमेश्वर नहीं जानता!
    जिनकों हम कर रहे हैं!”

12 वे मनुष्य अभिमान और कुटिल हैं,
    किन्तु वे निरन्तर धनी और अधिक धनी होते जा रहे हैं।
13 सो मैं अपना मन पवित्र क्यों बनाता रहूँ?
    अपने हाथों को सदा निर्मल क्यों करता रहूँ?
14 हे परमेश्वर, मैं सारे ही दिन दु:ख भोगा करता हूँ।
    तू हर सुबह मुझको दण्ड देता है।

15 हे परमेश्वर, मैं ये बातें दूसरो को बताना चाहता था।
    किन्तु मैं जानता था और मैं ऐसे ही तेरे भक्तों के विरूद्ध हो जाता था।
16 इन बातों को समझने का, मैंने जतन किया
    किन्तु इनका समझना मेरे लिए बहुत कठिन था,
17 जब तक मैं तेरे मन्दिर में नहीं गया।
    मैं परमेश्वर के मन्दिर में गया और तब मैं समझा।
18 हे परमेश्वर, सचमुच तूने उन लोगों को भयंकर परिस्थिति में रखा है।
    उनका गिर जाना बहुत ही सरल है। उनका नष्ट हो जाना बहुत ही सरल है।
19 सहसा उन पर विपत्ति पड़ सकती है,
    और वे अहंकारी जन नष्ट हो जाते हैं।
उनके साथ भयंकर घटनाएँ घट सकती हैं,
    और फिर उनका अंत हो जाता है।
20 हे यहोवा, वे मनुष्य ऐसे होंगे
    जैसे स्वप्न जिसको हम जागते ही भुल जाते हैं।
तू ऐसे लोगों को हमारे स्वप्न के भयानक जन्तु की तरह
    अदृश्य कर दे।

21-22 मैं अज्ञान था।
    मैंने धनिकों और दुष्ट लोगों पर विचारा, और मैं व्याकुल हो गया।
हे परमेश्वर, मैं तुझ पर क्रोधित हुआ!
    मैं निर्बुद्धि जानवर सा व्यवहार किया।
23 वह सब कुछ मेरे पास है, जिसकी मुझे अपेक्षा है। मैं तेरे साथ हरदम हूँ।
    हे परमेश्वर, तू मेरा हाथ थामें है।
24 हे परमेश्वर, तू मुझे मार्ग दिखलाता, और मुझे सम्मति देता है।
    अंत में तू अपनी महिमा में मेरा नेतृत्व करेगा।
25 हे परमेश्वर, स्वर्ग में बस तू ही मेरा है,
    और धरती पर मुझे क्या चाहिए, जब तू मेरे साथ है
26 चाहे मेरा मन टूट जाये और मेरी काया नष्ट हो जाये
    किन्तु वह चट्टान मेरे पास है, जिसे मैं प्रेम करता हूँ।
    परमेश्वर मेरे पास सदा है!
27 परमेश्वर, जो लोग तुझको त्यागते हैं, वे नष्ट हो जाते है।
    जिनका विश्वास तुझमें नहीं तू उन लोगों को नष्ट कर देगा।
28 किन्तु, मैं परमेश्वर के निकट आया।
    मेरे साथ परमेश्वर भला है, मैंने अपना सुरक्षास्थान अपने स्वामी यहोवा को बनाया है।
    हे परमेश्वर, मैं उन सभी बातों का बखान करूँगा जिनको तूने किया है।

सभोपदेशक 11:9-12:14

युवावस्था में ही परमेश्वर की सेवा करो

सो हे युवकों! जब तक तुम जवान हो, आनन्द मनाओ। प्रसन्न रहो! और जो तुम्हारा मन चाहे, वही करो। जो तुम्हारी इच्छा हो वह करो। किन्तु याद रखो तुम्हारे प्रत्येक कार्य के लिये परमेश्वर तुम्हारा न्याय करेगा। 10 क्रोध को स्वयं पर काबू मत पाने दो और अपने शरीर को भी कष्ट मत दो। तुम अधिक समय तक जवान नहीं बने रहोगे।

बुढ़ापे की समस्याएँ

12 बचपन से ही अपने बनाने वाले का स्मरण करो। इससे पहले कि बुढ़ापे के बुरे दिन तुम्हें आ घेरें। पहले इसके कि तुम्हें यह कहना पड़े कि “हाय, में जीवन का रस नहीं ले सका।”

बचपन से ही अपने बनाने वाले का स्मरण कर। जब तुम बुढ़े होगे तो सूर्य चन्द्रमा और सितारों की रोशनी तुम्हें अंधेरी लगेगीं। तुम्हारा जीवन विपत्तयों से भर जाएगा। ये विपत्तियाँ उन बादलों की तरह ही होंगीं जो आकाश में वर्षा करते हैं और फिर कभी नहीं छँटते।

उस समय तुम्हारी बलशाली भुजाएँ निर्बल हो जायेंगी। तुम्हारे सुदृढ़ पैर कमजोर हो जाएँगे और तुम अपना खाना तक चबा नहीं सकोगे। आँखों से साफ दिखाई तक नहीं देगा। तुम बहरे हो जाओगे। बाजार का शोर भी तुम सुन नहीं पाओगे। चलती चक्की भी तुम्हें बहुत शांत दिखाई देगी। तुम बड़ी मुश्किल से लोगों को गाते सुन पाओगे। तुम्हें अच्छी नींद तो आएगी ही नहीं। जिससे चिड़ियाँ की चहचहाहट भोर के तड़के तुम्हें जगा देगी।

चढ़ाई वाले स्थानों से तुम डरने लगोगे। रास्ते की हर छोटी से छोटी वस्तु से तुम डरने लगोगे कि तुम कहीं उस पर लड़खड़ा न जाओ। तुम्हारे बाल बादाम के फूलों के जैसे सफेद हो जायेंगे। तुम जब चलोगे तो उस प्रकार घिसटते चलोगे जैसे कोई टिड्डा हो। तुम इतने बूढ़े हो जाओगे कि तुम्हारी भूख जाती रहेगी। फिर तुम्हें अपने नए घर यानि कब्र में नित्य निवास के लिये जाना होगा और तुम्हारी मुर्दनी में शामिल लोगों की भीड़ से गलियाँ भर जायेंगी।

मृत्यु

अभी जब तू युवा है, अपने बनानेवाले को याद रख।
    इसके पहले कि चाँदी की जीवन डोर टूट जाये और सोने का पात्र टूटकर बिखर जाये।
इसके पहले कि तेरा जीवन बेकार हो जाये जैसे किसी कुएँ पर पात्र टूट पड़ा हो।
    इसके पहले कि तेरा जीवन बेकार हो जाये ऐसे, जैसे टूटा पत्थर जो किसी को ढकता है और उसी में टूटकर गिर जाता है।
तेरी देह मिट्टी से उपजी है और,
    जब मृत्यु होगे तो तेरी वह देह वापस मिट्टी हो जायेगी।
किन्तु यह प्राण तेरे प्राण परमेश्वर से आया है
    और जब तू मरेगा, तेरा यह प्राण तेरा वापस परमेश्वर के पास जायेगा।

सब कुछ बेकार है, उपदेशक कहता है कि सब कुछ व्यर्थ है!

निष्कर्ष

उपदेशक बहुत बुद्धिमान था। वह लोगों को शिक्षा देने में अपनी बुद्धि का प्रयोग किया करता था। उपदेशक ने बड़ी सावधानी के साथ अध्ययन किया और अनेक सूक्तियों को व्यवस्थित किया। 10 उपदेशक ने उचित शब्दों के वचन के लिये कठिन परिश्रम किया और उसने उन शिक्षाओं को लिखा जो सच्ची है और जिन पर भरोसा किया जा सकता है।

11 विवेकी पुरुषों के वचन उन नुकीली छड़ियों के जैसे होते हैं जिनका उपयोग पशुओं को उचित मार्ग पर चलाने के लिये किया जाता है। ये उपदेशक उन मज़बूत खूँटों के समान होते हैं जो कभी टूटते नहीं। जीवन का उचित मार्ग दिखाने के लिये तुम इन उपदेशकों पर विश्वास कर सकते हो। वे सभी विवेक पूर्ण शिक्षायें उसी गड़रिये (परमेश्वर) से आतीं है। 12 सो पुत्र! एक चेतावनी और लोग तो सदा पुस्तकें लिखते ही रहते हैं। बहुत ज्यादा अध्ययन तुझे बहुत थका देगा।

13-14 इस सब कुछ को सुन लेने के बाद अब एक अन्तिम बात यह बतानी है कि परमेश्वर का आदर करो और उसके आदेशों पर चलो क्योंकि यह नियम हर व्यक्ति पर लागू होता है। क्योंकि लोग जो करते हैं, उसे यहाँ तक कि उनकी छिपी से छिपी बातों को भी परमेश्वर जानता है। वह उनकी सभी अच्छी बातों और बुरी बातों के विषय में जानता है। मनुष्य जो कुछ भी करते हैं उस प्रत्येक कर्म का वह न्याय करेगा।

गलातियों 5:25-6:10

25 क्योंकि जब हमारे इस नये जीवन का स्रोत आत्मा है तो आओ आत्मा के ही अनुसार चलें। 26 हम अभिमानी न बनें। एक दूसरे को न चिढायें। और न ही परस्पर ईर्ष्या रखें।

एक दूसरे की सहायता करो

हे भाईयों, तुममें से यदि कोई व्यक्ति कोई पाप करते पकड़ा जाए तो तुम आध्यात्मिक जनों को चाहिये कि नम्रता के साथ उसे धर्म के मार्ग पर वापस लाने में सहायता करो। और स्वयं अपने लिये भी सावधानी बरतो कि कहीं तुम स्वयं भी किसी परीक्षा में न पड़ जाओ। परस्पर एक दूसरे का भार उठाओ। इस प्रकार तुम मसीह की व्यवस्था का पालन करोगे। यदि कोई व्यक्ति महत्त्वपूर्ण न होते हुए भी अपने को महत्त्वपूर्ण समझता है तो वह अपने को धोखा देता है। अपने कर्म का मूल्यांकन हर किसी को स्वयं करते रहना चाहिये। ऐसा करने पर ही उसे अपने आप पर, किसी दूसरे के साथ तुलना किये बिना, गर्व करने का अवसर मिलेगा। क्योंकि अपना दायित्त्व हर किसी को स्वयं ही उठाना है।

जीवन खेत-बोने जैसा है

जिसे परमेश्वर का वचन सुनाया गया है, उसे चाहिये कि जो उत्तम वस्तुएँ उसके पास हैं, उनमें अपने उपदेशक को साझी बनाए।

अपने आपको मत छलो। परमेश्वर को कोई बुद्धू नहीं बना सकता क्योंकि जो जैसा बोयेगा, वैसा ही काटेगा। जो अपनी काया के लिए बोयेगा, वह अपनी काया से विनाश की फसल काटेगा। किन्तु जो आत्मा के खेत में बीज बोएगा, वह आत्मा के द्वारा अनन्त जीवन की फसल काटेगा। इसलिए आओ हम भलाई करते कभी न थकें, क्योंकि यदि हम भलाई करते ही रहेंगे तो उचित समय आने पर हमें उसका फल मिलेगा। 10 सो जैसे ही कोई अवसर मिले, हमें सभी के साथ भलाई करनी चाहिये, विशेषकर अपने धर्म-भाइयों के साथ।

मत्ती 16:21-28

यीशु द्वारा अपनी मृत्यु की भविष्यवाणी

(मरकुस 8:31-9:1; लूका 9:22-27)

21 उस समय यीशु अपने शिष्यों को बताने लगा कि, उसे यरूशलेम जाना चाहिये। जहाँ उसे यहूदी धर्मशास्त्रियों, बुज़ुर्ग यहूदी नेताओं और प्रमुख याजकों द्वारा यातनाएँ पहुँचा कर मरवा दिया जायेगा। फिर तीसरे दिन वह मरे हुओं में से जी उठेगा।

22 तब पतरस उसे एक तरफ ले गया और उसकी आलोचना करता हुआ उससे बोला, “हे प्रभु! परमेश्वर तुझ पर दया करे। तेरे साथ ऐसा कभी न हो!”

23 फिर यीशु उसकी तरफ मुड़ा और बोला, “पतरस, मेरे रास्ते से हट जा। अरे शैतान! तू मेरे लिए एक अड़चन है। क्योंकि तू परमेश्वर की तरह नहीं लोगों की तरह सोचता है।”

24 फिर यीशु ने अपने शिष्यों से कहा, “यदि कोई मेरे पीछे आना चाहता है, तो वह अपने आपको भुलाकर, अपना क्रूस स्वयं उठाये और मेरे पीछे हो ले। 25 जो कोई अपना जीवन बचाना चाहता है, उसे वह खोना होगा। किन्तु जो कोई मेरे लिये अपना जीवन खोयेगा, वही उसे बचाएगा। 26 यदि कोई अपना जीवन देकर सारा संसार भी पा जाये तो उसे क्या लाभ? अपने जीवन को फिर से पाने के लिए कोई भला क्या दे सकता है? 27 मनुष्य का पुत्र दूतों सहित अपने परमपिता की महिमा के साथ आने वाला है। जो हर किसी को उसके कर्मों का फल देगा। 28 मैं तुम से सत्य कहता हूँ यहाँ कुछ ऐसे हैं जो तब तक नहीं मरेंगे जब तक वे मनुष्य के पुत्र को उसके राज्य में आते न देख लें।”

Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)

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