Book of Common Prayer
लोगों को याद दिलाने के लिये संगीत निर्देशक को दाऊद का एक पद।
1 हे परमेश्वर, मेरी रक्षा कर!
हे परमेश्वर, जल्दी कर और मुझको सहारा दे!
2 लोग मुझे मार डालने का जतन कर रहे हैं।
उन्हें निराश
और अपमानित कर दे!
ऐसा चाहते हैं कि लोग मेरा बुरा कर डाले।
उनका पतन ऐसा हो जाये कि वे लज्जित हो।
3 लोगों ने मुझको हँसी ठट्टों में उड़ाया।
मैं उनकी पराजय की आस करता हूँ और इस बात की कि उन्हें लज्जा अनुभव हो।
4 मुझको यह आस है कि ऐसे वे सभी लोग जो तेरी आराधना करते हैं,
वह अति प्रसन्न हों।
वे सभी लोग तेरी सहायता की आस रहते हैं
वे तेरी सदा स्तुती करते रहें।
5 हे परमेश्वर, मैं दीन और असहाय हूँ।
जल्दी कर! आ, और मुझको सहारा दे!
हे परमेश्वर, तू ही बस ऐसा है जो मुझको बचा सकता है,
अधिक देर मत कर!
1 हे यहोवा, मुझको तेरा भरोसा है,
इसलिए मैं कभी निराश नहीं होऊँगा।
2 अपनी नेकी से तू मुझको बचायेगा। तू मुझको छुड़ा लेगा।
मेरी सुन। मेरा उद्धार कर।
3 तू मेरा गढ़ बन।
सुरक्षा के लिए ऐसा गढ़ जिसमें मैं दौड़ जाऊँ।
मेरी सुरक्षा के लिए तू आदेश दे, क्योंकि तू ही तो मेरी चट्टान है; मेरा शरणस्थल है।
4 मेरे परमेश्वर, तू मुझको दुष्ट जनों से बचा ले।
तू मुझको क्रूरों कुटिल जनों से छुड़ा ले।
5 मेरे स्वामी, तू मेरी आशा है।
मैं अपने बचपन से ही तेरे भरोसे हूँ।
6 जब मैं अपनी माता के गर्भ में था, तभी से तेरे भरोसे था।
जिस दिन से मैंने जन्म धारण किया, मैं तेरे भरोसे हूँ।
मैं तेरी प्रर्थना सदा करता हूँ।
7 मैं दूसरे लोगों के लिए एक उदाहरण रहा हूँ।
क्योंकि तू मेरा शक्ति स्रोत रहा है।
8 उन अद्भुत कर्मो को सदा गाता रहा हूँ, जिनको तू करता है।
9 केवल इस कारण की मैं बूढ़ा हो गया हूँ मुझे निकाल कर मत फेंक।
मैं कमजोर हो गया हूँ मुझे मत छोड़।
10 सचमुच, मेरे शत्रुओं ने मेरे विरूद्ध कुचक्र रच डाले हैं।
सचमुच वे सब इकटठे हो गये हैं, और उनकी योजना मुझको मार डालने की है।
11 मेरे शत्रु कहते हैं, “परमेश्वर, ने उसको त्याग दिया है। जा, उसको पकड़ ला!
कोई भी व्यक्ति उसे सहायता न देगा।”
12 हे परमेश्वर, तू मुझको मत बिसरा!
हे परमेश्वर, जल्दी कर! मुझको सहारा दे!
13 मेरे शत्रुओं को तू पूरी तरह से पराजित कर दे!
तू उनका नाश कर दे!
मुझे कष्ट देने का वे यत्न कर रहे हैं।
वे लज्जा अनुभव करें ओर अपमान भोगें।
14 फिर मैं तो तेरे ही भरोसे, सदा रहूँगा।
और तेरे गुण मैं अधिक और अधिक गाऊँगा।
15 सभी लोगों से, मैं तेरा बखान करूंगा कि तू कितना उत्तम है।
उस समय की बातें मैं उनको बताऊँगा,
जब तूने ऐसे मुझको एक नहीं अनगिनित अवसर पर बचाया था।
16 हे यहोवा, मेरे स्वामी। मैं तेरी महानता का वर्णन करूँगा।
बस केवल मैं तेरी और तेरी ही अच्छाई की चर्चा करूँगा।
17 हे परमेश्वर, तूने मुझको बचपन से ही शिक्षा दी।
मैं आज तक बखानता रहा हूँ, उन अद्भुत कर्मो को जिनको तू करता है!
18 मैं अब बूढा हो गया हूँ और मेरे केश श्वेत है। किन्तु मैं जानता हूँ कि तू मुझको नहीं तजेगा।
हर नयी पीढ़ी से, मैं तेरी शक्ति का और तेरी महानता का वर्णन करूँगा।
19 हे परमेश्वर, तेरी धार्मिकता आकाशों से ऊँची है।
हे परमेश्वर, तेरे समान अन्य कोई नहीं।
तूने अदभुत आश्चर्यपूर्ण काम किये हैं।
20 तूने मुझे बुरे समय और कष्ट देखने दिये।
किन्तु तूने ही मुझे उन सब से बचा लिया और जीवित रखा है।
इसका कोई अर्थ नहीं, मैं कितना ही गहरा डूबा तूने मुझको मेरे संकटों से उबार लिया।
21 तू ऐसे काम करने की मुझको सहायता दे जो पहले से भी बड़े हो।
मुझको सुख चैन देता रह।
22 वीणा के संग, मैं तेरे गुण गाऊँगा।
हे मेरे परमेश्वर, मैं यह गाऊँगा कि तुझ पर भरोसा रखा जा सकता है।
मैं उसके लिए गीत अपनी सितार पर बजाया करूँगा जो इस्रएल का पवित्र यहोवा है।
23 मेरे प्राणों की तूने रक्षा की है।
मेरा मन मगन होगा और अपने होंठों से, मैं प्रशंसा का गीत गाऊँगा।
24 मेरी जीभ हर घड़ी तेरी धार्मिकता के गीत गाया करेगी।
ऐसे वे लोग जो मुझको मारना चाहते हैं,
वे पराजित हो जायेंगे और अपमानित होंगे।
आसाप का एक प्रगीत।
1 हे परमेश्वर, क्या तूने हमें सदा के लिये बिसराया है?
क्योंकि तू अभी तक अपने निज जनों से क्रोधित है?
2 उन लोगों को स्मरण कर जिनको तूने बहुत पहले मोल लिया था।
हमको तूने बचा लिया था। हम तेरे अपने हैं।
याद कर तेरा निवास सिय्योन के पहाड़ पर था।
3 हे परमेश्वर, आ और इन अति प्राचीन खण्डहरों से हो कर चल।
तू उस पवित्र स्थान पर लौट कर आजा जिसको शत्रु ने नष्ट कर दिया है।
4 मन्दिर में शत्रुओं ने विजय उद्घोष किया।
उन्होंने मन्दिर में निज झंडों को यह प्रकट करने के लिये गाड़ दिया है कि उन्होंने युद्ध जीता है।
5 शत्रुओं के सैनिक ऐसे लग रहे थे,
जैसे कोई खुरपी खरपतवार पर चलाती हो।
6 हे परमेश्वर, इन शत्रु सैनिकों ने निज कुल्हाडे और फरसों का प्रयोग किया,
और तेरे मन्दिर की नक्काशी फाड़ फेंकी।
7 परमेश्वर इन सैनिकों ने तेरा पवित्र स्थान जला दिया।
तेरे मन्दिर को धूल में मिला दिया,
जो तेरे नाम को मान देने हेतु बनाया गया था।
8 उस शत्रु ने हमको पूरी तरह नष्ट करने की ठान ली थी।
सो उन्होंने देश के हर पवित्र स्थल को फूँक दिया।
9 कोई संकेत हम देख नहीं पाये।
कोई भी नबी बच नहीं पाया था।
कोई भी जानता नहीं था क्या किया जाये।
10 हे परमेश्वर, ये शत्रु कब तक हमारी हँसी उड़ायेंगे?
क्या तू इन शत्रुओं को तेरे नाम का अपमान सदा सर्वदा करने देगा?
11 हे परमेश्वर, तूने इतना कठिन दण्ड हमकों क्यों दिया?
तूने अपनी महाशक्ति का प्रयोग किया और हमें पूरी तरह नष्ट किया!
12 हे परमेश्वर, बहुत दिनों से तू ही हमारा शासक रहा।
इस देश में तूने अनेक युद्ध जीतने में हमारी सहायता की।
13 हे परमेश्वर, तूने अपनी महाशक्ति से लाल सागर के दो भाग कर दिये।
14 तूने विशालकाय समुद्री दानवों को पराजित किया!
तूने लिव्यातान के सिर कुचल दिये, और उसके शरीर को जंगली पशुओं को खाने के लिये छोड़ दिया।
15 तूने नदी, झरने रचे, फोड़कर जल बहाया।
तूने उफनती हुई नदियों को सुखा दिया।
16 हे परमेश्वर, तू दिन का शासक है, और रात का भी शासक तू ही है।
तूने ही चाँद और सूरज को बनाया।
17 तू धरती पर सब की सीमाएं बाँधता है।
तूने ही गर्मी और सर्दी को बनाया।
18 हे परमेश्वर, इन बातों को याद कर। और याद कर कि शत्रु ने तेरा अपमान किया है।
वे मूर्ख लोग तेरे नाम से बैर रखते हैं!
19 हे परमेश्वर, उन जंगली पशुओं को निज कपोत मत लेने दे!
अपने दीन जनों को तू सदा मत बिसरा।
20 हमने जो आपस में वाचा की है उसको याद कर,
इस देश में हर किसी अँधेरे स्थान पर हिंसा है।
21 हे परमेश्वर, तेरे भक्तों के साथ अत्याचार किये गये,
अब उनको और अधिक मत सताया जाने दे।
तेरे असहाय दीन जन, तेरे गुण गाते है।
22 हे परमेश्वर, उठ और प्रतिकार कर!
स्मरण कर की उन मूर्ख लोगों ने सदा ही तेरा अपमान किया है।
23 वे बुरी बातें मत भूल जिन्हें तेरे शत्रुओं ने प्रतिदिन तेरे लिये कही।
भूल मत कि वे किस तरह से युद्ध करते समय गुर्राये।
निर्भीक होकर भविष्य का सामना करो
11 तुम जहाँ भी जाओ, वहाँ उत्तम कार्य करो। थोड़े समय बाद तुम्हारे उत्तम कार्य वापस लौट कर तुम्हारे पास आएंगे।
2 जो कुछ तुम्हारे पास है उसका कुछ भाग सात आठ लोगों को दे दो। तुम जान ही नहीं सकते कि इस धरती पर कब क्या बुरा घट जाए?
3 कुछ बातें ऐसी हैं जिनके बारे में तुम निश्चित हो सकते हो। जैसे बादल वर्षा से भरे हैं तो वे धरती पर पानी बरसाएंगे ही। यदि कोई पेड़ गिरता है चाहे दाहिनी तरफ गिरे, या बायीं तरफगिरता है। वह वहीं पड़ा रहेगा जहाँ वह गिरा है।
4 किन्तु कुछ बातें ऐसी होती हैं जिनके बारे में तुम निश्चित नहीं हो सकते। फिर भी तुम्हें एक अवसर तो लेना ही चाहिये। जैसे यदि कोई व्यक्ति पूरी तरह से उत्तम मौसम का इंतजार करता रहता है तो वह अपने बीज बो ही नहीं सकता है और इसी तरह कोई व्यक्ति इस बात से डरता रहता है कि हर बादल बरसेगा ही तो वह अपनी फसल कभी नहीं काट सकेगा।
5 हवा का रूख कहाँ होगा तुम नहीं जान सकते। तुम नहीं जानते कि माँ के गर्भ में बच्चा प्राण कैसे पाता है? इसी प्रकार तुम यह भी नहीं जान सकते कि परमेश्वर क्या करेगा? सब कुछ को घटित करने वाला तो वही है।
6 इसलिये सुबह होते ही रूपाई शुरू कर दो और दिन ढले तक काम मत रोको। क्योंकि तुम नहीं जानते कि कौन सी बात तुम्हें धनवान बना देगी। हो सकता है तुम जो कुछ करो सब में सफल हो।
7 जीवित रहना उत्तम है। सूर्य का प्रकाश देखना अच्छा है। 8 तुम्हें अपने जीवन के हर दिन का आनन्द उठाना चाहिये! तुम चाहे कितनी ही लम्बी आयु पाओ। पर याद रखना कि तुम्हें मरना है और तुम जितने समय तक जिए हो उससे कहीं अधिक समय तक तुम्हें मृत रहना है और मर जाने के बाद तो तुम कुछ कर नहीं सकते।
मानव-प्रकृति और आत्मा
16 किन्तु मैं कहता हूँ कि आत्मा के अनुशासन के अनुसार आचरण करो और अपनी पाप पूर्ण प्रकृति की इच्छाओं की पूर्ति मत करो। 17 क्योंकि शारीरिक भौतिक अभिलाषाएँ पवित्र आत्मा की अभिलाषाओं के और पवित्र आत्मा की अभिलाषाएँ शारीरिक भौतिक अभिलाषाओं के विपरीत होती हैं। इनका आपस में विरोध है। इसलिए तो जो तुम करना चाहते हो, वह कर नहीं सकते। 18 किन्तु यदि तुम पवित्र आत्मा के अनुशासन में चलते हो तो फिर व्यवस्था के विधान के अधीन नहीं रहते।
19 अब देखो! हमारे शरीर की पापपूर्ण प्रकृति के कामों को तो सब जानते हैं। वे हैं: व्यभिचार अपवित्रता, भोगविलास, 20 मूर्ति पूजा, जादू-टोना, बैर भाव, लड़ाई-झगड़ा, डाह, क्रोध, स्वार्थीपन, मतभेद, फूट, ईर्ष्या, 21 नशा, लंपटता या ऐसी ही और बातें। अब मैं तुम्हें इन बातों के बारे में वैसे ही चेता रहा हूँ जैसे मैंने तुम्हें पहले ही चेता दिया था कि जो लोग ऐसी बातों में भाग लेंगे, वे परमेश्वर के राज्य का उत्तराधिकार नहीं पायेंगे। 22 जबकि पवित्र आत्मा, प्रेम, प्रसन्नता, शांति, धीरज, दयालुता, नेकी, विश्वास, 23 नम्रता और आत्म-संयम उपजाता है। ऐसी बातों के विरोध में कोई व्यवस्था का विधान नहीं है। 24 उन लोगों ने जो यीशु मसीह के हैं, अपने पापपूर्ण मानव-स्वभाव को वासनाओं और इच्छाओं समेत क्रूस पर चढ़ा दिया है।
यीशु मसीह है
(मरकुस 8:27-30; लूका 9:18-21)
13 जब यीशु कैसरिया फिलिप्पी के प्रदेश में आया तो उसने अपने शिष्यों से पूछा, “लोग क्या कहते हैं, कि मैं कौन हूँ?”[a]
14 वे बोले, “कुछ कहते हैं कि तू बपतिस्मा देने वाला यूहन्ना है, और दूसरे कहते हैं कि तू एलिय्याह[b] है और कुछ अन्य कहते हैं कि तू यिर्मयाह[c] या भविष्यवक्ताओं में से कोई एक है।”
15 यीशु ने उनसे कहा, “और तुम क्या कहते हो कि मैं कौन हूँ?”
16 शमौन पतरस ने उत्तर दिया, “तू मसीह है, साक्षात परमेश्वर का पुत्र।”
17 उत्तर में यीशु ने उससे कहा, “योना के पुत्र शमौन! तू धन्य है क्योंकि तुझे यह बात किसी मनुष्य ने नहीं, बल्कि स्वर्ग में स्थित मेरे परम पिता ने दर्शाई है। 18 मैं कहता हूँ कि तू पतरस है। और इसी चट्टान पर मैं अपनी कलीसिया बनाऊँगा। मृत्यु की शक्ति[d] उस पर प्रबल नहीं होगी। 19 मैं तुझे स्वर्ग के राज्य की कुंजियाँ दे रहा हूँ। ताकि धरती पर जो कुछ तू बाँधे, वह परमेश्वर के द्वारा स्वर्ग में बाँधा जाये और जो कुछ तू धरती पर छोड़े, वह स्वर्ग में परमेश्वर के द्वारा छोड़ दिया जाये।”
20 फिर उसने अपने शिष्यों को कड़ा आदेश दिया कि वे किसी को यह ना बतायें कि वह मसीह है।
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