Read the New Testament in 24 Weeks
सम्बोधन
1 परमेश्वर हमारे उद्धारकर्ता तथा हमारी आशा मसीह येशु की आज्ञा के अनुसार मसीह येशु के प्रेरित पौलॉस की ओर से,
2 विश्वास में मेरे वास्तविक पुत्र तिमोथियॉस को:
पिता परमेश्वर तथा हमारे प्रभु मसीह येशु की ओर से अनुग्रह, कृपा और शान्ति.
झूठे शिक्षकों के दमन की आज्ञा
3 मैंने मकेदोनिया प्रदेश जाते समय तुमसे विनती की थी कि तुम इफ़ेसॉस नगर में ही रह जाओ और कुछ बताए हुए व्यक्तियों को चेतावनी दो कि वे न तो भरमानेवाली शिक्षा दें 4 और न पुरानी कहानियों और अन्तहीन वंशावलियों में लीन रहें. इनसे विश्वास पर आधारित परमेश्वर की योजना के उन्नत होने की बजाय मतभेद उत्पन्न होता है. 5 हमारी आज्ञा का उद्धेश्य है निर्मल हृदय से उत्पन्न प्रेम, शुद्ध अन्तरात्मा तथा निष्कपट विश्वास. 6 कुछ हैं, जो रास्ते से भटक कर व्यर्थ के वाद-विवाद में फँस गए हैं. 7 वे व्यवस्था के शिक्षक बनने की अभिलाषा तो करते हैं परन्तु वे जो कहते हैं और जिन विषयों का वे दृढ़ विश्वासपूर्वक दावा करते हैं, स्वयं ही उन्हें नहीं समझते.
व्यवस्था का उद्देश्य
8 हमें यह मालूम है कि व्यवस्था भली है—यदि इसका प्रयोग उचित रीति से किया जाए. 9 इस सच्चाई के प्रकाश में कि व्यवस्था का बनाया जाना धर्मियों के लिए नहीं परन्तु अधर्मी, निरंकुश, दुराचारी, पापी, अपवित्र, ठग, माता-पिता के घात करने वाले, हत्यारे, 10 व्यभिचारी, समलैंगिक, अपहरण करने वाले, झूठ बोलने वाले, झूठे गवाह तथा शेष सब कुछ के लिए किया गया है, जो खरे उपदेश के विरोध में है, 11 जो धन्य परमेश्वर के महिमित ईश्वरीय सुसमाचार के अनुसार है, जो मुझे सौंपी गई है.
पौलॉस की बुलाहट का स्पष्टीकरण
12 मैं हमारे प्रभु मसीह येशु के प्रति, जिन्होंने मुझे सामर्थ्य प्रदान किया है, धन्यवाद करता हूँ कि उन्होंने मुझे विश्वासयोग्य समझा और अपनी सेवा में चुना, 13 हालांकि पहले मैं परमेश्वर की निन्दा करनेवाला था, अत्याचारी तथा अधर्मी था किन्तु मुझ पर कृपा की गई क्योंकि अपनी अज्ञानता में उनमें अविश्वास के कारण मैंने यह सब किया था. 14 मसीह येशु में हमारे प्रभु का बहुत अधिक अनुग्रह विश्वास और प्रेम के साथ मुझ पर हुआ.
15 यह बात सच है, जो हर प्रकार से मानने योग्य है: मसीह येशु पापियों के उद्धार के लिए संसार में आए. इनमें सबसे ज़्यादा पापी मैं हूँ. 16 किन्तु मुझ पर कृपा इसलिए हुई कि मुझ बड़े पापी में मसीह येशु आदर्श के रूप में अपनी पूरी सहनशीलता का प्रमाण उनके हित में प्रस्तुत करें, जो अनन्त जीवन के लिए उनमें विश्वास करेंगे. 17 सनातन राजा, अविनाशी, अनदेखे तथा एकमात्र परमेश्वर का आदर और महिमा सदा-सर्वदा होती रहे. आमेन.
तिमोथियॉस की ज़िम्मेदारी
18 मेरे पुत्र, तिमोथियॉस, मैं तुम्हें यह आज्ञा तुम्हारे विषय में पहले से की गई भविष्यद्वाणियों के अनुसार सौंप रहा हूँ कि उनकी प्रेरणा से तुम निरन्तर संघर्ष कर सको 19 तथा विश्वास और अच्छे विवेक को थामे रखो, कुछ ने जिसकी उपेक्षा की और अपने विश्वास का सर्वनाश कर बैठे. 20 ह्यूमैनेऑस तथा अलेक्सान्दरॉस इन्हीं में से हैं, जिन्हें मैंने शैतान को सौंप दिया है कि उन्हें परमेश्वर-निन्दा न करने का पाठ सिखा दिया जाए.
प्रार्थना पद्धति
2 इसलिए सबसे पहिली विनती यह है कि सभी के लिए विनती, प्रार्थनाएँ, दूसरों के लिए प्रार्थनाएँ और धन्यवाद प्रस्तुत किए जाएँ, 2 राजाओं तथा अधिकारियों के लिए कि हमारा जीवन सम्मान तथा परमेश्वर की भक्ति में शान्ति और चैन से हो. 3 यह परमेश्वर, हमारे उद्धारकर्ता को प्रिय तथा ग्रहणयोग्य है, 4 जिनकी इच्छा है कि सभी मनुष्यों का उद्धार हो तथा वे सच को उसकी भरपूरी में जानें. 5 परमेश्वर एक ही हैं तथा परमेश्वर और मनुष्यों के मध्यस्थ भी एक ही हैं—देहधारी मसीह येशु; 6 जिन्होंने स्वयं को सबके छुटकारे के लिए बलिदान कर दिया—ठीक समय पर प्रस्तुत एक सबूत. 7 इसी उद्धेश्य के लिए मेरा चुनाव प्रचारक और प्रेरित के रूप में अन्यजातियों में विश्वास और सच्चाई की शिक्षा देने के लिए किया गया. मैं सच कह रहा हूँ—झूठ नहीं.
8 मैं चाहता हूँ कि हर जगह सभाओं में पुरुष, बिना क्रोध तथा विवाद के, परमेश्वर को समर्पित हाथों को ऊपर उठाकर प्रार्थना किया करें.
स्त्रियों के लिए सभा सम्बन्धी निर्देश
9 इसी प्रकार स्त्रियों का संवारना समय के अनुसार हो—शालीनताभरा तथा विवेकशील—सिर्फ बाल-सजाने तथा स्वर्ण, मोतियों या कीमती वस्त्रों से नहीं 10 परन्तु अच्छे कामों से, जो परमेश्वर-भक्त स्त्रियों के लिए उचित है. 11 स्त्री, मौन रह कर पूरी अधीनता में सिद्धांत-शिक्षा ग्रहण करे. 12 मेरी ओर से स्त्री को पुरुष पर प्रभुता जताने और शिक्षा देने की आज्ञा नहीं है. वह मौन रहे 13 क्योंकि आदम की सृष्टि हव्वा से पहले हुई थी. 14 छल आदम के साथ नहीं परन्तु स्त्री के साथ हुआ, जो आज्ञा न मानने की अपराधी हुई. 15 किन्तु स्त्रियाँ सन्तान उत्पन्न करने के द्वारा उद्धार प्राप्त करेंगी—यदि वे संयम के साथ विश्वास, प्रेम तथा पवित्रता में स्थिर रहती हैं.
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