Book of Common Prayer
आसाप के भक्ति गीतों में से एक पद।
1 ईश्वरों के परमेश्वर यहोवा ने कहा है,
पूर्व से पश्चिम तक धरती के सब मनुष्यों को उसने बुलाया।
2 सिय्योन से परमेश्वर की सुन्दरता प्रकाशित हो रही है।
3 हमारा परमेश्वर आ रहा है, और वह चुप नही रहेगा।
उसके सामने जलती ज्वाला है,
उसको एक बड़ा तूफान घेरे हुए है।
4 हमारा परमेश्वर आकाश और धरती को पुकार कर
अपने निज लोगों को न्याय करने बुलाता है।
5 “मेरे अनुयायियों, मेरे पास जुटों।
मेरे उपासकों आओ हमने आपस में एक वाचा किया है।”
6 परमेश्वर न्यायाधीश है,
आकाश उसकी धार्मिकता को घोषित करता है।
7 परमेश्वर कहता है, “सुनों मेरे भक्तों!
इस्राएल के लोगों, मैं तुम्हारे विरूद्ध साक्षी दूँगा।
मैं परमेश्वर हूँ, तुम्हारा परमेश्वर।
8 मुझको तुम्हारी बलियों से शिकायत नहीं।
इस्राएल के लोगों, तुम सदा होमबलियाँ मुझे चढ़ाते रहो। तुम मुझे हर दिन अर्पित करो।
9 मैं तेरे घर से कोई बैल नहीं लूँगा।
मैं तेरे पशु गृहों से बकरें नहीं लूँगा।
10 मुझे तुम्हारे उन पशुओं की आवश्यकता नहीं। मैं ही तो वन के सभी पशुओं का स्वामी हूँ।
हजारों पहाड़ों पर जो पशु विचरते हैं, उन सब का मैं स्वामी हूँ।
11 जिन पक्षियों का बसेरा उच्चतम पहाड़ पर है, उन सब को मैं जानता हूँ।
अचलों पर जो भी सचल है वे सब मेरे ही हैं।
12 मैं भूखा नहीं हूँ! यदि मैं भूखा होता, तो भी तुमसे मुझे भोजन नहीं माँगना पड़ता।
मैं जगत का स्वामी हूँ और उसका भी हर वस्तु जो इस जगत में है।
13 मैं बैलों का माँस खाया नहीं करता हूँ।
बकरों का रक्त नहीं पीता।”
14 सचमुच जिस बलि की परमेश्वर को अपेक्षा है, वह तुम्हारी स्तुति है। तुम्हारी मनौतियाँ उसकी सेवा की हैं।
सो परमेश्वर को निज धन्यवाद की भेटें चढ़ाओ। उस सर्वोच्च से जो मनौतियाँ की हैं उसे पूरा करो।
15 “इस्राएल के लोगों, जब तुम पर विपदा पड़े, मेरी प्रार्थना करो,
मैं तुम्हें सहारा दूँगा। तब तुम मेरा मान कर सकोगे।”
16 दुष्ट लोगों से परमेश्वर कहता है,
“तुम मेरी व्यवस्था की बातें करते हो,
तुम मेरे वाचा की भी बातें करते हो।
17 फिर जब मैं तुमको सुधारता हूँ, तब भला तुम मुझसे बैर क्यों रखते हो।
तुम उन बातों की उपेक्षा क्यों करते हो जिन्हें मैं तुम्हें बताता हूँ?
18 तुम चोर को देखकर उससे मिलने के लिए दौड़ जाते हो,
तुम उनके साथ बिस्तर में कूद पड़ते हो जो व्यभिचार कर रहे हैं।
19 तुम बुरे वचन और झूठ बोलते हो।
20 तुम दूसरे लोगों की यहाँ तक की
अपने भाईयों की निन्दा करते हो।
21 तुम बुरे कर्म करते हो, और तुम सोचते हो मुझे चुप रहना चाहिए।
तुम कुछ नहीं कहते हो और सोचते हो कि मुझे चुप रहना चहिए।
देखो, मैं चुप नहीं रहूँगा, तुझे स्पष्ट कर दूँगा।
तेरे ही मुख पर तेरे दोष बताऊँगा।
22 तुम लोग परमेश्वर को भूल गये हो।
इसके पहले कि मैं तुम्हे चीर दूँ, अच्छी तरह समझ लो।
जब वैसा होगा कोई भी व्यक्ति तुम्हें बचा नहीं पाएगा!
23 यदि कोई व्यक्ति मेरी स्तुति और धन्यवादों की बलि चढ़ाये, तो वह सचमुच मेरा मान करेगा।
यदि कोई व्यक्ति अपना जीवन बदल डाले तो उसे मैं परमेश्वर की शक्ति दिखाऊँगा जो बचाती है।”
संगीत निर्देशक के लिये “नाश मत कर” धुन पर दाऊद का उस समय का एक भक्ति गीत जब शाऊल ने लोगों को दाऊद के घर पर निगरानी रखते हुए उसे मार डालने की जुगत करने के लिये भेजा था।
1 हे परमेश्वर, तू मुझको मेरे शत्रुओं से बचा ले।
मेरी सहायता उनसे विजयी बनने में कर जो मेरे विरूद्ध में युद्ध करने आये हैं।
2 ऐसे उन लोगों से, तू मुझको बचा ले।
तू उन हत्यारों से मुझको बचा ले जो बुरे कामों को करते रहते हैं।
3 देख! मेरी घात में बलवान लोग हैं।
वे मुझे मार डालने की बाट जोह रहे हैं।
इसलिए नहीं कि मैंने कोई पाप किया अथवा मुझसे कोई अपराध बन पड़ा है।
4 वे मेरे पीछे पड़े हैं, किन्तु मैंने कोई भी बुरा काम नहीं किया है।
हे यहोवा, आ! तू स्वयं अपने आप देख ले!
5 हे परमेश्वर! इस्राएल के परमेश्वर! तू सर्वशक्ति शाली है।
तू उठ और उन लोगों को दण्डित कर।
उन विश्वासघातियों उन दुर्जनों पर किंचित भी दया मत दिखा।
6 वे दुर्जन साँझ के होते ही
नगर में घुस आते हैं।
वे लोग गुरर्ते कुत्तों से नगर के बीच में घूमते रहते हैं।
7 तू उनकी धमकियों और अपमानों को सुन।
वे ऐसी क्रूर बातें कहा करते हैं।
वे इस बात की चिंता तक नहीं करते कि उनकी कौन सुनता है।
8 हे यहोवा, तू उनका उपहास करके
उन सभी लोगों को मजाक बना दे।
9 हे परमेश्वर, तू मेरी शक्ति है। मैं तेरी बाट जोह रहा हूँ।
हे परमेश्वर, तू ऊँचे पहाड़ों पर मेरा सुरक्षा स्थान है।
10 परमेश्वर, मुझसे प्रेम करता है, और वह जीतने में मेरा सहाय होगा।
वह मेरे शत्रुओं को पराजित करने में मेरी सहायता करेगा।
11 हे परमेश्वर, बस उनको मत मार डाल। नहीं तो सम्भव है मेरे लोग भूल जायें।
हे मेरे स्वमी और संरक्षक, तू अपनी शक्ति से उनको बिखेर दे और हरा दे।
12 वे बुरे लोग कोसते और झूठ बोलते रहते हैं।
उन बुरी बातों का दण्ड उनको दे, जो उन्होंने कही हैं।
उनको अपने अभिमान में फँसने दे।
13 तू अपने क्रोध से उनको नष्ट कर।
उन्हें पूरी तरह नष्ट कर!
लोग तभी जानेंगे कि परमेश्वर, याकूब के लोगों का और वह सारे संसर का राजा है।
14 फिर यदि वे लोग शाम को
इधर—उधर घूमते गुरर्तें कुत्तों से नगर में आवें,
15 तो वे खाने को कोई वस्तु ढूँढते फिरेंगे,
और खाने को कुछ भी नहीं पायेंगे और न ही सोने का कोई ठौर पायेंगे।
16 किन्तु मैं तेरी प्रशंसा के गीत गाऊँगा।
हर सुबह मैं तेरे प्रेम में आनन्दित होऊँगा।
क्यों क्योंकि तू पर्वतों के ऊपर मेरा शरणस्थल है।
मैं तेरे पास आ सकता हूँ, जब मुझे विपत्तियाँ घेरेंगी।
17 मैं अपने गीतों को तेरी प्रशंसा में गाऊँगा
क्योंकि पर्वतों के ऊपर मेरा शरणस्थल है।
तू परमेश्वर है, जो मुझको प्रेम करता है!
संगीत निर्देशक के लिये “वाचा की कुमुदिनी धुन” पर उस समय का दाऊद का एक उपदेश गीत जब दाऊद ने अरमहरैन और अरमसोबा से युद्ध किया तथा जब योआब लौटा और उसने नमक की घाटी में बारह हजार स्वामी सैनिकों को मार डाला।
1 हे परमेश्वर, तूने हमको बिसरा दिया।
तूने हमको विनष्ट कर दिया। तू हम पर कुपित हुआ।
तू कृपा करके वापस आ।
2 तूने धरती कँपाई और उसे फाड़ दिया।
हमारा जगत बिखर रहा,
कृपया तू इसे जोड़।
3 तूने अपने लोगों को बहुत यातनाएँ दी है।
हम दाखमधु पिये जन जैसे लड़खड़ा रहे और गिर रहे हैं।
4 तूने उन लोगों को ऐसे चिताया, जो तुझको पूजते हैं।
वे अब अपने शत्रु से बच निकल सकते हैं।
5 तू अपने महाशक्ति का प्रयोग करके हमको बचा ले!
मेरी प्रार्थना का उतर दे और उस जन को बचा जो तुझको प्यारा है!
6 परमेश्वर ने अपने मन्दिर में कहा:
“मेरी विजय होगी और मैं विजय पर हर्षित होऊँगा।
मैं इस धरती को अपने लोगों के बीच बाँटूंगा।
मैं शकेम और सुक्कोत
घाटी का बँटवारा करूँगा।
7 गिलाद और मनश्शे मेरे बनेंगे।
एप्रेम मेरे सिर का कवच बनेगा।
यहूदा मेरा राजदण्ड बनेगा।
8 मैं मोआब को ऐसा बनाऊँगा, जैसा कोई मेरे चरण धोने का पात्र।
एदोम एक दास सा जो मेरी जूतियाँ उठता है।
मैं पलिश्ती लोगों को पराजित करूँगा और विजय का उद्धोष करूँगा।”
9-10 कौन मुझे उसके विरूद्ध युद्ध करने को सुरक्षित दृढ़ नगर में ले जायेगा मुझे कौन एदोम तक ले जायेगा
हे परमेश्वर, बस तू ही यह करने में मेरी सहायता कर सकता है।
किन्तु तूने तो हमको बिसरा दिया! परमेश्वर हमारे साथ में नहीं जायेगा!
और वह हमारी सेना के साथ नहीं जायेगा।
11 हे परमेश्वर, तू ही हमको इस संकट की भूमि से उबार सकता है!
मनुष्य हमारी रक्षा नहीं कर सकते!
12 किन्तु हमें परमेश्वर ही मजबूत बना सकता है।
परमेश्वर हमारे शत्रुओं को परजित कर सकता है!
1 यहोवा का मान करो क्योंकि वह परमेश्वर है।
उसका सच्चा प्रेम सदा ही अटल रहता है!
2 इस्राएल यह कहता है,
“उसका सच्चा प्रेम सदा ही अटल रहता है!”
3 याजक ऐसा कहते हैं,
“उसका सच्चा प्रेम सदा ही अटल रहता है!”
4 तुम लोग जो यहोवा की उपासना करते हो, कहा करते हो,
“उसका सच्चा प्रेम सदा ही अटल रहता है!”
5 मैं संकट में था सो सहारा पाने को मैंने यहोवा को पुकारा।
यहोवा ने मुझको उत्तर दिया और यहोवा ने मुझको मुक्त किया।
6 यहोवा मेरे साथ है सो मैं कभी नहीं डरूँगा।
लोग मुझको हानि पहुँचाने कुछ नहीं कर सकते।
7 यहोवा मेरा सहायक है।
मैं अपने शत्रुओं को पराजित देखूँगा।
8 मनुष्यों पर भरोसा रखने से
यहोवा पर भरोसा रखना उत्तम है।
9 अपने मुखियाओं पर भरोसा रखने से
यहोवा पर भरोसा रखना उत्तम है।
10 मुझको अनेक शत्रुओं ने घेर लिया है।
यहोवा की शक्ति से मैंने अपने बैरियों को हरा दिया।
11 शत्रुओं ने मुझको फिर घेर लिया।
यहोवा की शक्ति से मैंने उनको हराया।
12 शत्रुओं ने मुझे मधु मक्खियों के झुण्ड सा घेरा।
किन्तु, वे एक शीघ्र जलती हुई झाड़ी के समान नष्ट हुआ।
यहोवा की शक्ति से मैंने उनको हराया।
13 मेरे शत्रुओं ने मुझ पर प्रहार किया और मुझे लगभग बर्बाद कर दिया
किन्तु यहोवा ने मुझको सहारा दिया।
14 यहोवा मेरी शक्ति और मेरा विजय गीत है।
यहोवा मेरी रक्षा करता है।
15 सज्जनों के घर में जो विजय पर्व मन रहा तुम उसको सुन सकते हो।
देखो, यहोवा ने अपनी महाशक्ति फिर दिखाई है।
16 यहोवा की भुजाये विजय में उठी हुई हैं।
देखो यहोवा ने अपनी महाशक्ति फिर से दिखाई।
17 मैं जीवित रहूँगा, मैं मरूँगा नहीं,
और जो कर्म यहोवा ने किये हैं, मैं उनका बखान करूँगा।
18 यहोवा ने मुझे दण्ड दिया
किन्तु मरने नहीं दिया।
19 हे पुण्य के द्वारों तुम मेरे लिये खुल जाओ
ताकि मैं भीतर आ पाऊँ और यहोवा की आराधना करूँ।
20 वे यहोवा के द्वार है।
बस केवल सज्जन ही उन द्वारों से होकर जा सकते हैं।
21 हे यहोवा, मेरी विनती का उत्तर देने के लिये तेरा धन्यवाद।
मेरी रक्षा के लिये मैं तुझे धन्यवाद देता हूँ।
22 जिसको राज मिस्त्रियों ने नकार दिया था
वही पत्थर कोने का पत्थर बन गया।
23 यहोवा ने इसे घटित किया
और हम तो सोचते हैं यह अद्भुत है!
24 यहोवा ने आज के दिन को बनाया है।
आओ हम हर्ष का अनुभव करें और आज आनन्दित हो जाये!
25 लोग बोले, “यहोवा के गुण गाओ!
यहोवा ने हमारी रक्षा की है!
26 उस सब का स्वागत करो जो यहोवा के नाम में आ रहे हैं।”
याजकों ने उत्तर दिया, “यहोवा के घर में हम तुम्हारा स्वागत करते हैं!
27 यहोवा परमेश्वर है, और वह हमें अपनाता है।
बलि के लिये मेमने को बाँधों और वेदी के कंगूरों पर मेमने को ले जाओ।”
28 हे यहोवा, तू हमारा परमेश्वर है, और मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ।
मैं तेरे गुण गाता हूँ!
29 यहोवा की प्रशंसा करो क्योंकि वह उत्तम है।
उसकी सत्य करूणा सदा बनी रहती है।
13 हे आकाशों, हे धरती, तुम प्रसन्न हो जाओ!
हे पर्वतों, आनन्द से जयकारा बोलो!
क्यों क्योंकि यहोवा अपने लोगों को सुख देता है।
यहोवा अपने दीन हीन लोगों के लिये बहुत दयालु है।
सिय्योन: त्यागी गई स्त्री
14 किन्तु अब सिय्योन ने कहा, “यहोवा ने मुझको त्याग दिया।
मेरा स्वामी मुझको भूल गया।”
15 किन्तु यहोवा कहता है, “क्या कोई स्त्री अपने ही बच्चों को भूल सकती है नहीं!
क्या कोई स्त्री उस बच्चे को जो उसकी ही कोख से जन्मा है, भूल सकती है नहीं!
सम्भव है कोई स्त्री अपनी सन्तान को भूल जाये।
परन्तु मैं (यहोवा) तुझको नहीं भूल सकता हूँ।
16 देखो जरा, मैंने अपनी हथेली पर तेरा नाम खोद लिया है।
मैं सदा तेरे विषय में सोचा करता हूँ।
17 तेरी सन्तानें तेरे पास लौट आयेंगी।
जिन लोगों ने तुझको पराजित किया था, वे ही व्यक्ति तुझको अकेला छोड़ जायेंगे।”
इस्राएलियों की वापसी
18 ऊपर दृष्टि करो, तुम चारों ओर देखो! तेरी सन्तानें सब आपस में इकट्ठी होकर तेरे पास आ रही हैं।
यहोवा का यह कहना है,
“अपने जीवन की शपथ लेकर मैं तुम्हें ये वचन देता हूँ, तेरी सन्तानें उन रत्नों जैसी होंगी जिनको तू अपने कंठ में पहनता है।
तेरी सन्तानें वैसी ही होंगी जैसा वह कंठहार होता है जिसे दुल्हिन पहनती है।
19 आज तू नष्ट है और आज तू पराजित है।
तेरी धरती बेकार है किन्तु कुछ ही दिनों बाद तेरी धरती पर बहुत बहुत सारे लोग होंगे और वे लोग जिन्होंने तुझे उजाड़ा था, दूर बहुत दूर चले जायेंगे।
20 जो बच्चे तूने खो दिये, उनके लिये तुझे बहुत दु:ख हुआ किन्तु वही बच्चे तुझसे कहेंगे।
‘यह जगह रहने को बहुत छोटी है!
हमें तू कोई विस्तृत स्थान दे!’
21 फिर तू स्वयं अपने आप से कहेगा,
‘इन सभी बच्चों को मेरे लिये किसने जन्माया यह तो बहुत अच्छा है।
मैं दु:खी था और अकेला था।
मैं हारा हुआ था।
मैं अपने लोगों से दूर था।
सो ये बच्चे मेरे लिये किसने पाले हैं देखो जरा,
मैं अकेला छोड़ा गया।
ये इतने सब बच्चे कहाँ से आ गये?’”
22 मेरा स्वामी यहोवा कहता है,
“देखो, अपना हाथ उठाकर हाथ के इशारे से मैं सारे ही देशों को बुलावे का संकेत देता हूँ।
मैं अपना झण्डा उठाऊँगा कि सब लोग उसे देखें।
फिर वे तेरे बच्चों को तेरे पास लायेंगे।
वे लोग तेरे बच्चों को अपने कन्धे पर उठायेंगे और वे उनको अपनी बाहों में उठा लेंगे।
23 राजा तेरे बच्चों के शिक्षक होंगे और राजकन्याएँ उनका ध्यान रखेंगी।
वे राजा और उनकी कन्याएँ दोनों तेरे सामने माथा नवायेंगे।
वे तेरे पाँवों भी धूल का चुम्बन करेंगे।
तभी तू जानेगा कि मैं यहोवा हूँ।
तभी तुझको समझ में आयेगा कि हर ऐसा व्यक्ति जो मुझमें भरोसा रखता है, निराश नहीं होगा।”
परमेश्वर का वरदान विश्वास से मिलता है
3 हे मूर्ख गलातियो, तुम पर किसने जादू कर दिया है? तुम्हें तो, सब के सामने यीशु मसीह को क्रूस पर कैसे चढ़ाया गया था, इसका पूरा विवरण दे दिया गया था। 2 मैं तुमसे बस इतना जानना चाहता हूँ कि तुमने आत्मा का वरदान क्या व्यवस्था के विधान को पालने से पाया था, अथवा सुसमाचार के सुनने और उस पर विश्वास करने से? 3 क्या तुम इतने मूर्ख हो सकते हो कि जिस जीवन को तुमने आत्मा से आरम्भ किया, उसे अब हाड़-माँस के शरीर की शक्ति से पूरा करोगे? 4 तुमने इतने कष्ट क्या बेकार ही उठाये? आशा है कि वे बेकार नहीं थे। 5 परमेश्वर, जो तुम्हें आत्मा प्रदान करता है और जो तुम्हारे बीच आश्चर्य कर्म करता है, वह यह इसलिए करता है कि तुम व्यवस्था के विधान को पालते हो या इसलिए कि तुमने सुसमाचार को सुना है और उस पर विश्वास किया है।
6 यह वैसे ही है जैसे कि इब्राहीम के विषय में शास्त्र कहता है: “उसने परमेश्वर में विश्वास किया और यह उसके लिये धार्मिकता गिनी गई।”(A) 7 तो फिर तुम यह जान लो, इब्राहीम के सच्चे वंशज वे ही हैं जो विश्वास करते हैं। 8 शास्त्र ने पहले ही बता दिया था, “परमेश्वर ग़ैर यहूदियों को भी उनके विश्वास के कारण धर्मी ठहरायेगा। और इन शब्दों के साथ पहले से ही इब्राहीम को परमेश्वर द्वारा सुसमाचार से अवगत करा दिया गया था।”(B) 9 इसीलिए वे लोग जो विश्वास करते हैं विश्वासी इब्राहीम के साथ आशीष पाते हैं।
10 किन्तु वे सभी लोग जो व्यवस्था के विधानों के पालन पर निर्भर रहते हैं, वे तो किसी अभिशाप के अधीन हैं। शास्त्र में लिखा है: “ऐसा हर व्यक्ति शापित है जो व्यवस्था के विधान की पुस्तक में लिखी हर बात का लगन के साथ पालन नहीं करता।”(C) 11 अब यह स्पष्ट है कि व्यवस्था के विधान के द्वारा परमेश्वर के सामने कोई भी नेक नहीं ठहरता है। क्योंकि शास्त्र के अनुसार “धर्मी व्यक्ति विश्वास के सहारे जीयेगा।”[a]
12 किन्तु व्यवस्था का विधान तो विश्वास पर नहीं टिका है बल्कि शास्त्र के अनुसार, जो व्यवस्था के विधान को पालेगा, वह उन ही के सहारे जीयेगा।[b] 13 मसीह ने हमारे शाप को अपने ऊपर ले कर व्यवस्था के विधान के शाप से हमें मुक्त कर दिया। शास्त्र कहता है: “हर कोई जो वृक्ष पर टाँग दिया जाता है, शापित है।”(D) 14 मसीह ने हमें इसलिए मुक्त किया कि, इब्राहीम को दी गयी आषीष मसीह यीशु के द्वारा ग़ैर यहूदियों को भी मिल सके ताकि विश्वास के द्वारा हम उस आत्मा को प्राप्त करें, जिसका वचन दिया गया था।
यीशु का पाँच हजार से अधिक को भोजन कराना
(मत्ती 14:13-21; लूका 9:10-17; यूहन्ना 6:1-14)
30 फिर दिव्य संदेश का प्रचार करने वाले प्रेरितों ने यीशु के पास इकट्ठे होकर जो कुछ उन्होंने किया था और सिखाया था, सब उसे बताया। 31 फिर यीशु ने उनसे कहा, “तुम लोग मेरे साथ किसी एकांत स्थान पर चलो और थोड़ा आराम करो।” क्योंकि वहाँ बहुत लोगों का आना जाना लगा हुआ था और उन्हें खाने तक का मौका नहीं मिल पाता था।
32 इसलिये वे अकेले ही एक नाव में बैठ कर किसी एकांत स्थान को चले गये। 33 बहुत से लोगों ने उन्हें जाते देखा और पहचान लिया कि वे कौन थे। इसलिये वे सारे नगरों से धरती के रास्ते चल पड़े और उनसे पहले ही वहाँ जा पहुँचे। 34 जब यीशु नाव से बाहर निकला तो उसने एक बड़ी भीड़ देखी। वह उनके लिए बहुत दुखी हुआ क्योंकि वे बिना चरवाहे की भेड़ों जैसे थे। सो वह उन्हें बहुत सी बातें सिखाने लगा।
35 तब तक बहुत शाम हो चुकी थी। इसलिये उसके शिष्य उसके पास आये और बोले, “यह एक सुनसान जगह है और शाम भी बहुत हो चुकी है। 36 लोगों को आसपास के गाँवों और बस्तियों में जाने दो ताकि वे अपने लिए कुछ खाने को मोल ले सकें।”
37 किन्तु उसने उत्तर दिया, “उन्हें खाने को तुम दो।”
तब उन्होंने उससे कहा, “क्या हम जायें और दो सौ दीनार की रोटियाँ मोल ले कर उन्हें खाने को दें?”
38 उसने उनसे कहा, “जाओ और देखो, तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?”
पता करके उन्होंने कहा, “हमारे पास पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ हैं।”
39 फिर उसने आज्ञा दी, “हरी घास पर सब को पंक्ति में बैठा दो।” 40 तब वे सौ-सौ और पचास-पचास की पंक्तियों में बैठ गये।
41 और उसने वे पाँच रोटियाँ और दो मछलियाँ उठा कर स्वर्ग की ओर देखते हुए धन्यवाद दिया और रोटियाँ तोड़ कर लोगों को परोसने के लिए, अपने शिष्यों को दीं। और उसने उन दो मछलियों को भी उन सब लोगों में बाँट दिया।
42 सब ने खाया और तृप्त हुए। 43 और फिर उन्होंने बची हुई रोटियों और मछलियों से भर कर, बारह टोकरियाँ उठाईं। 44 जिन लोगों ने रोटियाँ खाईं, उनमे केवल पुरुषों की ही संख्या पांच हज़ार थी।
यीशु का पानी पर चलना
(मत्ती 14:22-23; यूहन्ना 6:16-21)
45 फिर उसने अपने चेलों को तुरंत नाव पर चढ़ाया ताकि जब तक वह भीड़ को बिदा करे, वे उससे पहले ही परले पार बैतसैदा चले जायें। 46 उन्हें बिदा करके, प्रार्थना करने के लिये वह पहाड़ी पर चला गया।
© 1995, 2010 Bible League International