Read the New Testament in 24 Weeks
लँगड़े भिखारी का अच्छा किया जाना
3 दोपहर बाद तीन बजे प्रार्थना के समय पतरस और यूहन्ना मन्दिर जा रहे थे। 2 तभी एक ऐसे व्यक्ति को जो जन्म से ही लँगड़ा था, ले जाया जा रहा था। वे हर दिन उसे मन्दिर के सुन्दर नामक द्वार पर बैठा दिया करते थे। ताकि वह मन्दिर में जाने वाले लोगों से भीख के पैसे माँग लिया करे। 3 इस व्यक्ति ने जब देखा कि यूहन्ना और पतरस मन्दिर में प्रवेश करने ही वाले हैं तो उसने उनसे पैसे माँगे।
4 यूहन्ना के साथ पतरस उसकी ओर एकटक देखते हुए बोला, “हमारी तरफ़ देख।” 5 सो उसने उनसे कुछ मिल जाने की आशा करते हुए उनकी ओर देखा। 6 किन्तु पतरस ने कहा, “मेरे पास सोना या चाँदी तो है नहीं किन्तु जो कुछ है, मैं तुझे दे रहा हूँ। नासरी यीशु मसीह के नाम में खड़ा हो जा और चल दे।”
7 फिर उसका दाहिना हाथ पकड़ कर उसने उसे उठाया। तुरन्त उसके पैरों और टखनों में जान आ गयी। 8 और वह अपने पैरों के बल उछला और चल पड़ा। वह उछलते कूदते चलता और परमेश्वर की स्तुति करता उनके साथ ही मन्दिर में गया। 9 सभी लोगों ने उसे चलते और परमेश्वर की स्तुति करते देखा। 10 लोगों ने पहचान लिया कि यह तो वही है जो मन्दिर के सुन्दर द्वार पर बैठ कर भीख माँगता था। उसके साथ जो कुछ घटा था उस पर वे आश्चर्य और विस्मय से भर उठे।
पतरस का प्रवचन
11 वह व्यक्ति अभी पतरस और यूहन्ना के साथ-साथ ही था। सो सभी लोग अचरज में भर कर उस स्थान पर उनके पास दौड़े-दौड़े आये जो सुलैमान की डयोढ़ी कहलाता था।
12 पतरस ने जब यह देखा तो वह लोगों से बोला, “हे इस्राएल के लोगों, तुम इस बात पर चकित क्यों हो रहे हो? ऐसे घूर घूर कर हमें क्यों देख रहे हो, जैसे मानो हमने ही अपनी शक्ति या भक्ति के बल पर इस व्यक्ति को चलने फिरने योग्य बना दिया है। 13 इब्राहीम, इसहाक और याकूब के परमेश्वर, हमारे पूर्वजों के परमेश्वर ने अपने सेवक यीशु को महिमा से मण्डित किया। और तुमने उसे मरवा डालने को पकड़वा दिया। और फिर पिलातुस के द्वारा उसे छोड़ दिये जाने का निश्चय करने पर पिलातुस के सामने ही तुमने उसे नकार दिया। 14 उस पवित्र और नेक बंदे को तुमने अस्वीकार किया और यह माँगा कि एक हत्यारे को तुम्हारे लिये छोड़ दिया जाये। 15 लोगों को जीवन की राह दिखाने वाले को तुमने मार डाला किन्तु परमेश्वर ने मरे हुओं में से उसे फिर से जिला दिया है। हम इसके साक्षी हैं।
16 “क्योंकि हम यीशु के नाम में विश्वास करते हैं इसलिये यह उसका नाम ही है जिसने इस व्यक्ति में जान फूँकी है जिसे तुम देख रहे हो और जानते हो। हाँ, उसी विश्वास ने जो यीशु से प्राप्त होता है, तुम सब के सामने इस व्यक्ति को पूरी तरह चंगा किया है।
17 “हे भाईयों, अब मैं जानता हूँ कि जैसे अनजाने में तुमने वैसा किया, वैसे ही तुम्हारे नेताओं ने भी किया। 18 परमेश्वर ने अपने सब भविष्यवक्ताओं के मुख से पहले ही कहलवा दिया था कि उसके मसीह को यातनाएँ भोगनी होंगी। उसने उसे इस तरह पूरा किया। 19 इसलिये तुम अपना मन फिराओ और परमेश्वर की ओर लौट आओ ताकि तुम्हारे पाप धुल जायें। 20 ताकि प्रभु की उपस्थिति में आत्मिक शांति का समय आ सके और प्रभु तुम्हारे लिये मसीह को भेजे जिसे वह तुम्हारे लिये चुन चुका है, यानी यीशु को।
21 “मसीह को उस समय तक स्वर्ग में रहना होगा जब तक सभी बातें पहले जैसी न हो जायें जिनके बारे में बहुत पहले से ही परमेश्वर ने अपने पवित्र नबियों के मुख से बता दिया था। 22 मूसा ने कहा था, ‘प्रभु परमेश्वर तुम्हारे लिये, तुम्हारे अपने लोगों में से ही एक मेरे जैसा नबी खड़ा करेगा। वह तुमसे जो कुछ कहे, तुम उसी पर चलना, 23 और जो कोई व्यक्ति उस नबी की बातों को नहीं सुनेगा, उनको पूरी तरह नष्ट कर दिया जायेगा।’(A)
24 “हाँ! शमूएल और उसके बाद आये सभी नबियों ने जब कभी कुछ कहा तो इन ही दिनों की घोषणा की। 25 और तुम तो उन नबियों और उस करार के उत्तराधिकारी हो जिसे परमेश्वर ने तुम्हारे पूर्वजों के साथ किया था। उसने इब्राहीम से कहा था, ‘तेरी संतानों से धरती के सभी लोग आशीर्वाद पायेंगे।’(B) 26 परमेश्वर ने जब अपने सेवक को पुनर्जीवित किया तो पहले-पहले उसे तुम्हारे पास भेजा ताकि तुम्हें तुम्हारे बुरे रास्तों से हटा कर आशीर्वाद दे।”
पतरस और यूहन्ना: यहूदी सभा के सामने
4 अभी पतरस और यूहन्ना लोगों से बात कर रहे थे कि याजक, मन्दिर के सिपाहियों का मुखिया और कुछ सदूकी उनके पास आये। 2 वे उनसे इस बात पर चिढ़े हुए थे कि पतरस और यूहन्ना लोगों को उपदेश देते हुए यीशु के मरे हुओं में से जी उठने के द्वारा पुनरुत्थान का प्रचार कर रहे थे। 3 सो उन्होंने उन्हें बंदी बना लिया और क्योंकि उस समय साँझ हो चुकी थी, इसलिये अगले दिन तक हिरासत में रख छोड़ा। 4 किन्तु जिन्होंने वह संदेश सुना उनमें से बहुतों ने उस पर विश्वास किया और इस प्रकार उनकी संख्या लगभग पाँच हजार पुरूषों तक जा पहुँची।
5 अगले दिन उनके नेता, बुजुर्ग और यहूदी धर्मशास्त्री यरूशलेम में इकट्ठे हुए। 6 महायाजक हन्ना, कैफ़ा, यूहन्ना, सिकन्दर और महायाजक के परिवार के सभी लोग भी वहाँ उपस्थित थे। 7 वे इन प्रेरितों को उनके सामने खड़ा करके पूछने लगे, “तुमने किस शक्ति या अधिकार से यह कार्य किया?”
8 फिर पवित्र आत्मा से भावित होकर पतरस ने उनसे कहा, “हे लोगों के नेताओ और बुजुर्ग नेताओं! 9 यदि आज हमसे एक लँगड़े व्यक्ति के साथ की गयी भलाई के बारे में यह पूछताछ की जा रही है कि वह अच्छा कैसे हो गया 10 तो तुम सब को और इस्राएल के लोगों को यह पता हो जाना चाहिये कि यह काम नासरी यीशु मसीह के नाम से हुआ है जिसे तुमने क्रूस पर चढ़ा दिया और जिसे परमेश्वर ने मरे हुओं में से पुनर्जीवित कर दिया है। उसी के द्वारा पूरी तरह से ठीक हुआ यह व्यक्ति तुम्हारे सामने खड़ा है। 11 यह यीशु वही,
‘वह पत्थर जिसे तुम राजमिस्त्रियों ने नाकारा ठहराया था,
वही अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पत्थर बन गया है।’(C)
12 किसी भी दूसरे में उद्धार निहित नहीं है। क्योंकि इस आकाश के नीचे लोगों को कोई दूसरा ऐसा नाम नहीं दिया गया है जिसके द्वारा हमारा उद्धार हो पाये।”
13 उन्होंने जब पतरस और यूहन्ना की निर्भीकता को देखा और यह समझा कि वे बिना पढ़े लिखे और साधारण से मनुष्य हैं तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ। फिर वे जान गये कि ये यीशु के साथ रह चुके लोग हैं। 14 और क्योंकि वे उस व्यक्ति को जो चंगा हुआ था, उन ही के साथ खड़ा देख पा रहे थे सो उनके पास कहने को कुछ नहीं रहा।
15 उन्होंने उनसे यहूदी महासभा से निकल जाने को कहा और फिर वे यह कहते हुए आपस में विचार-विमर्श करने लगे, 16 “इन लोगों के साथ कैसा व्यवहार किया जाये? क्योंकि यरूशलेम में रहने वाला हर कोई जानता है कि इनके द्वारा एक उल्लेखनीय आश्चर्यकर्म किया गया है और हम उसे नकार भी नहीं सकते। 17 किन्तु हम इन्हें चेतावनी दे दें कि वे इस नाम की चर्चा किसी और व्यक्ति से न करें ताकि लोगों में इस बात को और फैलने से रोका जा सके।”
18 सो उन्होंने उन्हें अन्दर बुलाया और आज्ञा दी कि यीशु के नाम पर वे न तो किसी से कोई ही चर्चा करें और न ही कोई उपदेश दें। 19 किन्तु पतरस और यूहन्ना ने उन्हें उत्तर दिया, “तुम ही बताओ, क्या परमेश्वर के सामने हमारे लिये यह उचित होगा कि परमेश्वर की न सुन कर हम तुम्हारी सुनें? 20 हम, जो कुछ हमने देखा है और सुना है, उसे बताने से नहीं चूक सकते।”
21-22 फिर उन्होंने उन्हें और धमकाने के बाद छोड़ दिया। उन्हें दण्ड देने का उन्हें कोई रास्ता नहीं मिल सका क्योंकि जो घटना घटी थी, उसके लिये सभी लोग परमेश्वर की स्तुति कर रहे थे। जिस व्यक्ति पर अच्छा करने का यह आश्चर्यकर्म किया गया था, उसकी आयु चालीस साल से ऊपर थी।
पतरस और यूहन्ना की वापसी
23 जब उन्हें छोड़ दिया गया तो वे अपने ही लोगों के पास आ गये और उनसे जो कुछ प्रमुख याजकों और बुजुर्ग यहूदी नेताओं ने कहा था, वह सब उन्हें कह सुनाया। 24 जब उन्होंने यह सुना तो मिल कर ऊँचे स्वर में वे परमेश्वर को पुकारते हुए बोले, “स्वामी, तूने ही आकाश, धरती, समुद्र और उनके अन्दर जो कुछ है, उसकी रचना की है। 25 तूने ही पवित्र आत्मा के द्वारा अपने सेवक, हमारे पूर्वज दाऊद के मुख से कहा था:
‘इन जातियों ने जाने क्यों अपना अहंकार दिखाया?
लोगों ने व्यर्थ ही षड़यन्त्र क्यों रच डाले?
26 ‘धरती के राजाओं ने, उसके विरुद्ध युद्ध करने को तैयार किया।
और शासक प्रभु और उसके मसीह के विरोध में एकत्र हुए।’(D)
27 हाँ, हेरोदेस और पुन्तियुस पिलातुस भी इस नगर में ग़ैर यहूदियों और इस्राएलियों के साथ मिल कर तेरे पवित्र सेवक यीशु के विरोध में, जिसे तूने मसीह के रूप में अभिषिक्त किया था, वास्तव में एकजुट हो गये थे। 28 वे इकट्ठे हुए ताकि तेरी शक्ति और इच्छा के अनुसार जो कुछ पहले ही निश्चित हो चुका था, वह पूरा हो। 29 और अब हे प्रभु, उनकी धमकियों पर ध्यान दे और अपने सेवकों को निर्भयता के साथ तेरे वचन सुनाने की शक्ति दे। 30 जबकि चंगा करने के लिये तू अपना हाथ बढ़ाये और चिन्ह तथा अद्भुत कर्म तेरे पवित्र सेवकों द्वारा यीशु के नाम पर किये जा रहे हों।”
31 जब उन्होंने प्रार्थना पूरी की तो जिस स्थान पर वे एकत्र थे, वह हिल उठा और उन सब में पवित्र आत्मा समा गया, और वे निर्भयता के साथ परमेश्वर के वचन बोलने लगे।
विश्वासियों का सहयोगी जीवन
32 विश्वासियों का यह समूचा दल एक मन और एक तन था। कोई भी यह नहीं कहता था कि उसकी कोई भी वस्तु उसकी अपनी है। उनके पास जो कुछ होता, उस सब कुछ को वे बाँट लेते थे। 33 और वे प्रेरित समूची शक्ति के साथ प्रभु यीशु के फिर से जी उठने की साक्षी दिया करते थे। परमेश्वर का महान वरदान उन सब पर बना रहता। 34 उस दल में से किसी को भी कोई कमी नहीं थी। क्योंकि जिस किसी के पास खेत या घर होते, वे उन्हें बेच दिया करते थे और उससे जो धन मिलता, उसे लाकर 35 प्रेरितों के चरणों में रख देते और जिसको जितनी आवश्यकता होती, उसे उतना धन दे दिया जाता था।
36 उदाहरण के लिये यूसुफ नाम का, साइप्रस में पैदा हुआ, एक लेवी था जिसे प्रेरित बरनाबास (अर्थात चैन का पुत्र) भी कहा करते थे। 37 उसने एक खेत बेच दिया जिसका वह मालिक था और उस धन को लाकर प्रेरितों के चरणों पर रख दिया।
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