Read the New Testament in 24 Weeks
पाप के प्रति मरे हुए, परमेश्वर के लिए जीवित
6 तो फिर? क्या हम पाप करते जाएँ कि अनुग्रह बहुत होता जाए? 2 नहीं! बिलकुल नहीं! यह कैसे सम्भव है कि हम, जो पाप के प्रति मर चुके हैं, उसी में जीते रहें? 3 कहीं तुम इस सच्चाई से अनजान तो नहीं कि हम सभी, जो मसीह येशु में बपतिस्मा ले चुके हैं, उनकी मृत्यु में बपतिस्मा लिए हुए हैं? 4 इसलिए मृत्यु के बपतिस्मा में हम उनके साथ गाड़े जा चुके हैं कि जिस प्रकार मसीह येशु पिता के प्रताप में मरे हुओं में से जीवित किए गए, हम भी जीवन की नवीनता में व्यवहार करें.
5 यदि हम मसीह येशु की मृत्यु की समानता में उनके साथ जोड़े गए हैं तो निश्चित ही हम उनके पुनरुत्थान की समानता में भी उनके साथ जोड़े जाएँगे. 6 हमें यह मालूम है कि हमारा पहले का मनुष्यत्व मसीह येशु के साथ ही क्रूसित हो गया था कि हमारे पाप का शरीर निर्बल हो जाए और इसके बाद हम पाप के दास न रहें 7 क्योंकि जिसकी मृत्यु हो चुकी, वह पाप की अधीनता से अलग हो चुका.
8 अब, यदि मसीह येशु के साथ हमारी मृत्यु हो चुकी है, हमारा विश्वास है कि हम उनके साथ जीवित भी रहेंगे. 9 हम यह जानते हैं कि मरे हुओं में से जीवित मसीह येशु की मृत्यु अब कभी नहीं होगी. उन पर मृत्यु का अधिकार नहीं रहा. 10 उनकी यह मृत्यु हमेशा-हमेशा के लिए पाप के प्रति मृत्यु थी. अब उनका जीवन परमेश्वर से जुड़ा हुआ जीवन है.
11 इसलिए तुम भी अपने आप को पाप के प्रति मरा हुआ तथा मसीह येशु में परमेश्वर के प्रति जीवित समझो.
पाप नहीं परन्तु पवित्रता ही शासन करे
12 अतएव तुम अपने मरणशील शरीर में पाप का शासन न रहने दो कि उसकी लालसाओं के प्रति समर्पण करो. 13 अपने शरीर के अंगों को पाप के लिए अधर्म के साधन के रूप में प्रस्तुत न करते जाओ परन्तु स्वयं को मरे हुओं में से जीवितों के समान परमेश्वर के सामने प्रस्तुत करो तथा अपने शरीर के अंगों को परमेश्वर के लिए धार्मिकता के साधन के रूप में प्रस्तुत करो. 14 पाप की तुम पर प्रभुता नहीं रहेगी क्योंकि तुम व्यवस्था के नहीं परन्तु अनुग्रह के अधीन हो.
विश्वासी पाप के दासत्व से विमुक्त
15 तो? क्या हम पापमय जीवन में लीन रहें—क्योंकि अब हम व्यवस्था के नहीं परन्तु अनुग्रह के अधीन हैं? नहीं! बिलकुल नहीं! 16 क्या तुम्हें यह अहसास नहीं कि किसी के आज्ञापालन के प्रति समर्पित हो जाने पर तुम उसी के दास बन जाते हो, जिसका तुम आज्ञापालन करते हो? चाहे वह स्वामी पाप हो, जिसका अन्त है मृत्यु या आज्ञाकारिता, जिसका अन्त है धार्मिकता. 17 हम परमेश्वर के आभारी हैं कि तुम, जो पाप के दास थे, हृदय से उसी शिक्षा का पालन करने लगे हो, जिसके प्रति तुम समर्पित हुए थे 18 और अब पाप से छुटकारा पाकर तुम धार्मिकता के दास बन गए हो. 19 तुम्हारी शारीरिक दुर्बलताओं को ध्यान में रखते हुए मानवीय दृष्टि से मैं यह कह रहा हूँ: जिस प्रकार तुमने अपने अंगों को अशुद्धता और अराजकता के दासत्व के लिए समर्पित कर दिया था, जिसका परिणाम था दिनोंदिन बढ़ती अराजकता; अब तुम अपने अंगों को धार्मिकता के दासत्व के लिए समर्पित कर दो, जिसका परिणाम होगा परमेश्वर के लिए तुम्हारा अलग किया जाना.
पाप का परिणाम तथा पवित्रता का ईनाम
20 इसलिए कि जब तुम पाप के दास थे, तो धर्म की ओर से स्वतंत्र थे 21 इसलिए जिनके लिए तुम आज लज्जित हो, उन सारे कामों से तुम्हें कौनसा लाभांश उपलब्ध हुआ? क्योंकि उनका अंत तो मृत्यु है. 22 किन्तु अब तुम पाप से अलग होकर परमेश्वर के दास होकर वह लाभ कमा रहे हो, जिसका परिणाम है परमेश्वर के लिए अलग किया जाना और इसका अन्त है अनन्त जीवन. 23 क्योंकि पाप की मज़दूरी मृत्यु है किन्तु हमारे प्रभु मसीह येशु में परमेश्वर का वरदान अनन्त जीवन है.
शिष्य व्यवस्था से नहीं मसीह से जुड़े हैं
7 प्रियजन, तुम्हें, जो व्यवस्था से परिचित हो, क्या यह मालूम नहीं कि किसी भी व्यक्ति पर व्यवस्था की प्रभुता उसी समय तक रहती है जब तक वह जीवित है? 2 कानूनी तौर पर विवाहित स्त्री अपने पति से उसी समय तक बंधी रहती है जब तक उसका पति जीवित है किन्तु पति की मृत्यु होने पर वह कानूनी रूप से अपने पति से मुक्त हो जाती है. 3 यदि अपने पति के जीवित रहते हुए वह किसी अन्य पुरुष से संबंध बनाती है तो वह व्यभिचारिणी कहलाती है किन्तु अपने पति की मृत्यु के बाद वह कानूनी रूप से स्वतंत्र हो जाती है और अन्य पुरुष से विवाह करने पर व्यभिचारिणी नहीं कहलाती.
4 इसलिए मेरे प्रियजन, तुम भी मसीह के शरीर के द्वारा व्यवस्था के प्रति मरे हुए हो कि तुम अन्य से जुड़ जाओ—उनसे, जो मरे हुओं में से जीवित किए गए कि परमेश्वर के लिए हमारा जीवन फलदायी हो. 5 जिस समय हम पाप के स्वभाव द्वारा नियंत्रित थे, पाप की लालसायें, जो व्यवस्था द्वारा उत्तेजित की जाती थी, मृत्यु के फल के लिए हमारे अंगों में सक्रिय थी, 6 किन्तु अब हम उस के प्रति मरे सरीखे होकर, जिसने हमें बाँध रखा था, व्यवस्था से स्वतंत्र कर दिए गए हैं कि हम व्यवस्था द्वारा स्थापित पुरानी रीति पर नहीं परन्तु पवित्रात्मा द्वारा एक नई रीति में सेवा करने लग जाएँ.
व्यवस्था का उद्देश्य
7 तब क्या इससे यह सिद्ध होता है कि व्यवस्था दोषी है? नहीं! बिलकुल नहीं! इसके विपरीत, व्यवस्था के बिना मेरे लिए पाप को पहचानना ही असम्भव होता. मुझे लोभ के विषय में ज्ञान ही न होता यदि व्यवस्था यह आज्ञा न देता: लोभ मत करो. 8 पाप ने ही आज्ञा के माध्यम से अच्छा अवसर मिलने पर मुझमें हर एक प्रकार का लालच उत्पन्न कर दिया. यही कारण है कि व्यवस्था के बिना पाप मृत है. 9 एक समय था जब मैं व्यवस्था से स्वतंत्र अवस्था में जीवित था किन्तु जब आज्ञा का आगमन हुआ, पाप जीवित हुआ 10 और मेरी मृत्यु हो गई, और वह आज्ञा जिससे मुझे जीवित होना था, मेरी मृत्यु का कारण बनी 11 क्योंकि पाप ने, आज्ञा में के अवसर का लाभ उठाते हुए मुझे भटका दिया और इसी के माध्यम से मेरी हत्या भी कर दी. 12 इसलिए व्यवस्था पवित्र है और आज्ञा पवित्र, धर्मी और भली है.
13 तब, क्या वह, जो भला है, मेरे लिए मृत्यु का कारण हो गया? नहीं! बिलकुल नहीं! भलाई के द्वारा पाप ने मुझमें मृत्यु उत्पन्न कर दी कि पाप को पाप ही के रूप में प्रदर्शित किया जाए तथा आज्ञा के द्वारा यह बहुत ही पापमय हो जाए.
दो स्वभावों में द्वन्द्व
14 यह तो हमें मालूम ही है कि व्यवस्था आत्मिक है किन्तु मैं हूँ शारीरिक—पाप के दासत्व में पूरी तरह बिका हुआ! 15 यह इसलिए कि यह मेरी समझ से हमेशा से परे है कि मैं क्या करता हूँ—मैं वह नहीं करता, जो मैं करना चाहता हूँ परन्तु मैं वही करता हूँ, जिससे मुझे घृणा है. 16 इसलिए यदि मैं वही सब करता हूँ, जो मुझे अप्रिय है तो सच यह है कि मैं व्यवस्था से सहमत हूँ और स्वीकार करता हूँ कि यह सही है. 17 इसलिए अब ये काम मैं नहीं, मुझमें बसा हुआ पाप करता है. 18 यह तो मुझे मालूम है कि मुझ में अर्थात् मेरे शरीर में अंदर छिपा हुआ ऐसा कुछ भी नहीं, जो उत्तम हो. अभिलाषा तो मुझ में है किन्तु उसका करना मुझसे हो नहीं पाता. 19 वह हित, जिसकी मुझ में अभिलाषा है, मुझसे करते नहीं बनता परन्तु हो वह जाता है, जिसे मैं करना नहीं चाहता. 20 तब यदि मैं वह करता हूँ, जो मैं करना नहीं चाहता, तब वह मैं नहीं, परन्तु मुझमें बसा हुआ पाप ही है, जो यह सब करता है.
21 यहाँ मुझे इस सच का अहसास होता है कि जब भी मैं भलाई के लिए उतारू होता हूँ, वहाँ मुझसे बुराई हो जाती है. 22 मेरा भीतरी मनुष्यत्व तो परमेश्वर की व्यवस्था में प्रसन्न है 23 किन्तु मैं अपने शरीर के अंगों में एक दूसरी व्यवस्था देख रहा हूँ. यह मेरे मस्तिष्क में मौजूद व्यवस्था के विरुद्ध लड़ती है. इसने मुझे पाप की व्यवस्था का, जो मेरे शरीर के अंगों में मौजूद है, बन्दी बना रखा है. 24 कैसी दयनीय स्थिति है मेरी! कौन मुझे मेरी इस मृत्यु के शरीर से छुड़ाएगा? 25 धन्यवाद हो हमारे प्रभु मसीह येशु के द्वारा परमेश्वर का!
एक ओर तो मैं स्वयं अपने मस्तिष्क में परमेश्वर की व्यवस्था का दास हूँ किन्तु दूसरी ओर अपने शरीर में अपने पाप के स्वभाव का.
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