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Book of Common Prayer

Daily Old and New Testament readings based on the Book of Common Prayer.
Duration: 861 days
Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)
Version
भजन संहिता 55

वाद्यों की संगीत पर संगीत निर्देशक के लिए दाऊद का एक भक्ति गीत।

हे परमेश्वर, मेरी प्रार्थना सुन।
    कृपा करके मुझसे तू दूर मत हो।
हे परमेश्वर, कृपा करके मेरी सुन और मुझे उत्तर दे।
    तू मुझको अपनी व्यथा तुझसे कहने दे।
मेरे शत्रु ने मुझसे दुर्वचन बोले हैं। दुष्ट जनों ने मुझ पर चीखा।
    मेरे शत्रु क्रोध कर मुझ पर टूट पड़े हैं।
    वे मुझे नाश करने विपति ढाते हैं।
मेरा मन भीतर से चूर—चूर हो रहा है,
    और मुझको मृत्यु से बहुत डर लग रहा है।
मैं बहुत डरा हुआ हूँ।
    मैं थरथर काँप रहा हूँ। मैं भयभीत हूँ।
ओह, यदि कपोत के समान मेरे पंख होते,
    यदि मैं पंख पाता तो दूर कोई चैन पाने के स्थान को उड़ जाता।
    मैं उड़कर दूर निर्जन में जाता।

मैं दूर चला जाऊँगा
    और इस विपत्ति की आँधी से बचकर दूर भाग जाऊँगा।
हे मेरे स्वमी, इस नगर में हिँसा और बहुत दंगे और उनके झूठों को रोक जो मुझको दिख रही है।
10 इस नगर में, हर कहीं मुझे रात—दिन विपत्ति घेरे है।
    इस नगर में भयंकर घटनायें घट रही हैं।
11 गलियों में बहुत अधिक अपराध फैला है।
    हर कहीं लोग झूठ बोल बोल कर छलते हैं।

12 यदि यह मेरा शत्रु होता
    और मुझे नीचा दिखाता तो मैं इसे सह लेता।
यदि ये मेरे शत्रु होते,
    और मुझ पर वार करते तो मैं छिप सकता था।
13 ओ! मेरे साथी, मेरे सहचर, मेरे मित्र,
    यह किन्तु तू है और तू ही मुझे कष्ट पहूँचाता है।
14 हमने आपस में राज की बातें बाँटी थी।
    हमने परमेश्वर के मन्दिर में साथ—साथ उपासना की।

15 काश मेरे शत्रु अपने समय से पहले ही मर जायें।
    काश उन्हें जीवित ही गाड़ दिया जायें,
    क्योंकि वे अपने घरों में ऐसे भयानक कुचक्र रचा करते हैं।

16 मैं तो सहायता के लिए परमेश्वर को पुकारुँगा।
    यहोवा उसका उत्तर मुझे देगा।
17 मैं तो अपने दु:ख को परमेश्वर से प्रात,
    दोपहर और रात में कहूँगा। वह मेरी सुनेगा।
18 मैंने कितने ही युद्धों में लड़ायी लड़ी है।
    किन्तु परमेश्वर मेरे साथ है, और हर युद्ध से मुझे सुरक्षित लौटायेगा।
19 वह शाश्वत सम्राट परमेश्वर मेरी सुनेगा
    और उन्हें नीचा दिखायेगा।
मेरे शत्रु अपने जीवन को नहीं बदलेंगे।
    वे परमेश्वर से नहीं डरते, और न ही उसका आदर करते।

20 मेरे शत्रु अपने ही मित्रों पर वार करते।
    वे उन बातों को नहीं करते, जिनके करने को वे सहमत हो गये थे।
21 मेरे शत्रु सचमुच मीठा बोलते हैं, और सुशांति की बातें करते रहते हैं।
    किन्तु वास्तव में, वे युद्ध का कुचक्र रचते हैं।
उनके शब्द काट करते छुरी की सी
    और फिसलन भरे हैं जैसे तेल होता है।

22 अपनी चिंताये तुम यहोवा को सौंप दो।
    फिर वह तुम्हारी रखवाली करेगा।
    यहोव सज्जन को कभी हारने नहीं देगा।
23 इससे पहले कि उनकी आधी आयु बीते।
    हे परमेश्वर उन हत्यारों को और उन झूठों को कब्रों में भेज!
जहाँ तक मेरा है, मैं तो तुझ पर ही भरोसा रखूँगा।

भजन संहिता 138:1-139:23

दाऊद का एक पद।

हे परमेश्वर, मैं अपने पूर्ण मन से तेरे गीत गाता हूँ।
    मैं सभी देवों के सामने मैं तेरे पद गाऊँगा।
हे परमेश्वर, मैं तेरे पवित्र मन्दिर की और दण्डवत करुँगा।
    मैं तेरे नाम, तेरा सत्य प्रेम, और तेरी भक्ति बखानूँगा।
तू अपने वचन की शक्ति के लिये प्रसिद्ध है। अब तो उसे तूने और भी महान बना दिया।
हे परमेश्वर, मैंने तुझे सहायता पाने को पुकारा।
    तूने मुझे उत्तर दिया! तूने मुझे बल दिया।

हे यहोवा, मेरी यह इच्छा है कि धरती के सभी राजा तेरा गुण गायें।
    जो बातें तूने कहीं हैं उन्होंने सुनीं हैं।
मैं तो यह चाहता हूँ, कि वे सभी राजा
    यहोवा की महान महिमा का न करें।
परमेश्वर महान है,
    किन्तु वह दीन जन का ध्यान रखता है।
परमेश्वर को अहंकारी लोगों के कामों का पता है
    किन्तु वह उनसे दूर रहता है।
हे परमेश्वर, यदि मैं संकट में पडूँ तो मुझको जीवित रख।
    यदि मेरे शत्रु मुझ पर कभी क्रोध करे तो उन से मुझे बचा ले।
हे यहोवा, वे वस्तुएँ जिनको मुझे देने का वचन दिया है मुझे दे।
    हे यहोवा, तेरा सच्चा प्रेम सदा ही बना रहता है।
    हे यहोवा, तूने हमको रचा है सो तू हमको मत बिसरा।

संगीत निर्देशक के लिये दाऊद का स्तुति गीत।

हे यहोवा, तूने मुझे परखा है।
    मेरे बारे में तू सब कुछ जानता है।
तू जानता है कि मैं कब बैठता और कब खड़ा होता हूँ।
    तू दूर रहते हुए भी मेरी मन की बात जानता है।
हे यहोवा, तुझको ज्ञान है कि मैं कहाँ जाता और कब लेटता हूँ।
    मैं जो कुछ करता हूँ सब को तू जानता है।
हे यहोवा, इससे पहले की शब्द मेरे मुख से निकले तुझको पता होता है
    कि मैं क्या कहना चाहता हूँ।
हे यहोवा, तू मेरे चारों ओर छाया है।
    मेरे आगे और पीछे भी तू अपना निज हाथ मेरे ऊपर हौले से रखता है।
मुझे अचरज है उन बातों पर जिनको तू जानता है।
    जिनका मेरे लिये समझना बहुत कठिन है।
हर जगह जहाँ भी मैं जाता हूँ, वहाँ तेरी आत्मा रची है।
    हे यहोवा, मैं तुझसे बचकर नहीं जा सकता।
हे यहोवा, यदि मैं आकाश पर जाऊँ वहाँ पर तू ही है।
    यदि मैं मृत्यु के देश पाताल में जाऊँ वहाँ पर भी तू है।
हे यहोवा, यदि मैं पूर्व में जहाँ सूर्य निकलता है जाऊँ
    वहाँ पर भी तू है।
10 वहाँ तक भी तेरा दायाँ हाथ पहुँचाता है।
    और हाथ पकड़ कर मुझको ले चलता है।

11 हे यहोवा, सम्भव है, मैं तुझसे छिपने का जतन करुँ और कहने लगूँ,
    “दिन रात में बदल गया है
    तो निश्चय ही अंधकार मुझको ढक लेगा।”
12 किन्तु यहोवा अन्धेरा भी तेरे लिये अंधकार नहीं है।
    तेरे लिये रात भी दिन जैसी उजली है।
13 हे यहोवा, तूने मेरी समूची देह को बनाया।
    तू मेरे विषय में सबकुछ जानता था जब मैं अभी माता की कोख ही में था।
14 हे यहोवा, तुझको उन सभी अचरज भरे कामों के लिये मेरा धन्यवाद,
    और मैं सचमुच जानता हूँ कि तू जो कुछ करता है वह आश्चर्यपूर्ण है।

15 मेरे विषय में तू सब कुछ जानता है।
    जब मैं अपनी माता की कोख में छिपा था, जब मेरी देह रूप ले रही थी तभी तूने मेरी हड्डियों को देखा।
16 हे यहोवा, तूने मेरी देह को मेरी माता के गर्भ में विकसते देखा। ये सभी बातें तेरी पुस्तक में लिखीं हैं।
    हर दिन तूने मुझ पर दृष्टी की। एक दिन भी तुझसे नहीं छूटा।
17 हे परमेश्वर, तेरे विचार मेरे लिये कितने महत्वपूर्ण हैं।
    तेरा ज्ञान अपरंपार है।
18 तू जो कुछ जानता है, उन सब को यदि मैं गिन सकूँ तो वे सभी धरती के रेत के कणों से अधिक होंगे।
    किन्तु यदि मैं उनको गिन पाऊँ तो भी मैं तेरे साथ में रहूँगा।

19 हे परमेश्वर, दुर्जन को नष्ट कर।
उन हत्यारों को मुझसे दूर रख।
20     वे बुरे लोग तेरे लिये बुरी बातें कहते हैं।
    वे तेरे नाम की निन्दा करते हैं।
21 हे यहोवा, मुझको उन लोगों से घृणा है!
    जो तुझ से घृणा करते हैं मुझको उन लोगों से बैर है जो तुझसे मुड़ जाते हैं।
22 मुझको उनसे पूरी तरह घृणा है!
    तेरे शत्रु मेरे भी शत्रु हैं।
23 हे यहोवा, मुझ पर दृष्टि कर और मेरा मन जान ले।
    मुझ को परख ले और मेरा इरादा जान ले।

उत्पत्ति 18:1-16

तीम अतिथि

18 बाद में यहोवा फिर इब्राहीम के सामने प्रकट हुआ। इब्राहीम मस्रे के बांज के पेड़ों के पास रहता था। एक दिन, दिन के सबसे गर्म पहर में इब्राहीम अपने तम्बू के दरवाज़े पर बैठा था। इब्राहीम ने आँख उठा कर देखा और अपने सामने तीन पुरुषों को खड़े पाया। जब इब्राहीम ने उनको देखा, वह उनके पास गया और उन्हें प्रणाम किया। इब्राहीम ने कहा, “महोदयों,[a] आप अपने इस सेवक के साथ ही थोड़ी देर ठहरें। मैं आप लोगों के पैर धोने के लिए पानी लाता हूँ। आप पेड़ों के नीचे आराम करें। मैं आप लोगों के लिए कुछ भोजन लाता हूँ और आप लोग जितना चाहें खाएं। इसके बाद आप लोग अपनी यात्रा आरम्भ कर सकते हैं।”

तीनों ने कहा, “यह बहुत अच्छा है। तुम जैसा कहते हो, करो।”

इब्राहीम जल्दी से तम्बू में घुसा। इब्राहीम ने सारा से कहा, “जल्दी से तीन रोटियों के लिए आटा तैयार करो।” तब इब्राहीम अपने मवेशियों की ओर दौड़ा। इब्राहीम ने सबसे अच्छा एक जवान बछड़ा लिया। इब्राहीम ने बछड़ा नौकर को दिया। इब्राहीम ने नौकर से कहा कि तुम जल्दी करो, इस बछड़े को मारो और भोजन के लिए तैयार करो। इब्राहीम ने तीनों को भोजन के लिए माँस दिया। उसने दूध और मक्खन दिया। जब तक तीनों पुरुष खाते रहे तब तक इब्राहीम पेड़ के नीचे उनके पास खड़ा रहा।

उन व्यक्तियों ने इब्राहीम से कहा, “तुम्हारी पत्नी सारा कहाँ है?”

इब्राहीम ने कहा, “वह तम्बू में है।”

10 तब यहोवा ने कहा, “मैं बसन्त में फिर आऊँगा उस समय तुम्हारी पत्नी सारा एक पुत्र को जन्म देगी।”

सारा तम्बू में सुन रही थी और उसने इन बातों को सुना। 11 इब्राहीम और सारा दोनों बहुत बूढ़े थे। सारा प्रसव की उम्र को पार कर चुकी थी। 12 सारा मन ही मन मुस्कुरायी। उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। उसने अपने आप से कहा, “मैं और मेरे पति दोनों ही बूढे हैं। मैं बच्चा जनने के लिए काफी बूढ़ी हूँ।”

13 तब यहोवा ने इब्राहीम से कहा, “सारा हंसी और बोली, ‘मैं इतनी बूढ़ी हूँ कि बच्चा जन नहीं सकती।’ 14 क्या यहोवा के लिए कुछ भी असम्भव है? नही, मैं फिर बसन्त में अपने बताए समय पर आऊँगा और तुम्हारी पत्नी सारा पुत्र जनेगी।”

15 लेकिन सारा ने कहा, “मैं हंसी नहीं।” (उसने ऐसा कहा, क्योंकि वह डरी हुई थी।)

लेकिन यहोवा ने कहा, “नहीं, मैं मानता हूँ कि तुम्हारा कहना सही नहीं है। तुम ज़रूर हँसी।”

16 तब वे पुरुष जाने के लिए उठे। उन्होंने सदोम की ओर देखा और उसी ओर चल पड़े। इब्राहीम उनको विदा करने के लिए कुछ दूर तक उनके साथ गया।

इब्रानियों 10:26-39

मसीह से मुँह मत फेरो

26 सत्य का ज्ञान पा लेने के बाद भी यदि हम जानबूझ कर पाप करते ही रहते हैं फिर तो पापों के लिए कोई बलिदान बचा ही नहीं रहता। 27 बल्कि फिर तो न्याय की भयानक प्रतीक्षा और भीषण अग्नि ही शेष रह जाती है जो परमेश्वर के विरोधियों को चट कर जाएगी। 28 जो कोई मूसा की व्यवस्था के विधान का पालन करने से मना करता है, उसे बिना दया दिखाए दो या तीन साक्षियों की साक्षी पर मार डाला जाता है। 29 सोचो, वह मनुष्य कितने अधिक कड़े दण्ड का पात्र है, जिसने अपने पैरों तले परमेश्वर के पुत्र को कुचला, जिसने वाचा के उस लहू को, जिसने उसेपवित्र किया था, एक अपवित्र वस्तु माना और जिसने अनुग्रह की आत्मा का अपमान किया। 30 क्योंकि हम उसे जानते हैं जिसने कहा था: “बदला लेना काम है मेरा, मैं ही बदला लूँगा।”(A) और फिर, “प्रभु अपने लोगों का न्याय करेगा।”(B) 31 किसी पापी का सजीव परमेश्वर के हाथों में पड़ जाना एक भयानक बात है।

विश्वास बनाए रखो

32 आरम्भ के उन दिनों को याद करो जब तुमने प्रकाश पाया था, और उसके बाद जब तुम कष्टों का सामना करते हुए कठोर संघर्ष में दृढ़ता के साथ डटे रहे थे। 33 तब कभी तो सब लोगों के सामने तुम्हें अपमानित किया गया और सताया गया और कभी जिनके साथ ऐसा बर्ताव किया जा रहा था, तुमने उनका साथ दिया। 34 तुमने, जो बंदीगृह में पड़े थे, उनसे सहानुभूति की तथा अपनी सम्पत्ति का जब्त किया जाना सहर्ष स्वीकार किया क्योंकि तुम यह जानते थे कि स्वयं तुम्हारे अपने पास उनसे अच्छी और टिकाऊ सम्पत्तियाँ हैं।

35 सो अपने निडर विश्वास को मत त्यागो क्योंकि इसका भरपूर प्रतिफल दिया जाएगा। 36 तुम्हें धैर्य की आवश्यकता है ताकि तुम जब परमेश्वर की इच्छा पूरी कर चुको तो जिसका वचन उसने दिया है, उसे तुम पा सको। 37 क्योंकि बहुत शीघ्र ही,

“जिसको आना है
    वह शीघ्र ही आएगा,
38 मेरा धर्मी जन विश्वास से जियेगा
    और यदि वह पीछे हटेगा तो
मैं उससे प्रसन्न न रहूँगा।”(C)

39 किन्तु हम उनमें से नहीं हैं जो पीछे हटते हैं और नष्ट हो जाते हैं बल्कि उनमें से हैं जो विश्वास करते हैं और उद्धार पाते हैं।

यूहन्ना 6:16-27

यीशु का पानी पर चलना

(मत्ती 14:22-27; मरकुस 6:45-52)

16 जब शाम हुई उसके शिष्य झील पर गये 17 और एक नाव में बैठकर वापस झील के पार कफरनहूम की तरफ़ चल पड़े। अँधेरा काफ़ी हो चला था किन्तु यीशु अभी भी उनके पास नहीं लौटा था। 18 तूफ़ानी हवा के कारण झील में लहरें तेज़ होने लगी थीं। 19 जब वे कोई पाँच-छः किलोमीटर आगे निकल गये, उन्होंने देखा कि यीशु झील पर चल रहा है और नाव के पास आ रहा है। इससे वे डर गये। 20 किन्तु यीशु ने उनसे कहा, “यह मैं हूँ, डरो मत।” 21 फिर उन्होंने तत्परता से उसे नाव में चढ़ा लिया, और नाव शीघ्र ही वहाँ पहुँच गयी जहाँ उन्हें जाना था।

यीशु की ढूँढ

22 अगले दिन लोगों की उस भीड़ ने जो झील के उस पार रह गयी थी, देखा कि वहाँ सिर्फ एक नाव थी और अपने चेलों के साथ यीशु उस पर सवार नहीं हुआ था, बल्कि उसके शिष्य ही अकेले रवाना हुए थे। 23 तिबिरियास की कुछ नाव उस स्थान के पास आकर रुकीं, जहाँ उन्होंने प्रभु को धन्यवाद देने के बाद रोटी खायी थी। 24 इस तरह जब उस भीड़ ने देखा कि न तो वहाँ यीशु है और न ही उसके शिष्य, तो वे नावों पर सवार हो गये और यीशु को ढूँढते हुए कफरनहूम की तरफ चल पड़े।

यीशु, जीवन की रोटी

25 जब उन्होंने यीशु को झील के उस पार पाया तो उससे कहा, “हे रब्बी, तू यहाँ कब आया?”

26 उत्तर में यीशु ने उनसे कहा, “मैं तुम्हें सत्य बताता हूँ, तुम मुझे इसलिए नहीं खोज रहे हो कि तुमने आश्चर्यपूर्ण चिन्ह देखे हैं बल्कि इसलिए कि तुमने भर पेट रोटी खायी थी। 27 उस खाने के लिये परिश्रम मत करो जो सड़ जाता है बल्कि उसके लिये जतन करो जो सदा उत्तम बना रहता है और अनन्त जीवन देता है, जिसे तुम्हें मानव-पुत्र देगा। क्योंकि परमपिता परमेश्वर ने अपनी मोहर उसी पर लगायी है।”

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