Book of Common Prayer
आलेफ
1 जो लोग पवित्र जीवन जीते हैं, वे प्रसन्न रहते हैं।
ऐसे लोग यहोवा की शिक्षाओं पर चलते हैं।
2 लोग जो यहोवा की विधान पर चलते हैं, वे प्रसन्न रहते हैं।
अपने समग्र मन से वे यहोवा की मानते हैं।
3 वे लोग बुरे काम नहीं करते।
वे यहोवा की आज्ञा मानते हैं।
4 हे यहोवा, तूने हमें अपने आदेश दिये,
और तूने कहा कि हम उन आदेशों का पूरी तरह पालन करें।
5 हे यहोवा, यादि मैं सदा
तेरे नियमों पर चलूँ,
6 जब मैं तेरे आदेशों को विचारूँगा
तो मुझे कभी भी लज्जित नहीं होना होगा।
7 जब मैं तेरे खरेपन और तेरी नेकी को विचारता हूँ
तब सचमुच तुझको मान दे सकता हूँ।
8 हे यहोवा, मैं तेरे आदेशों का पालन करूँगा।
सो कृपा करके मुझको मत बिसरा!
वेथ्
9 एक युवा व्यक्ति कैसे अपना जीवन पवित्र रख पाये
तेरे निर्देशों पर चलने से।
10 मैं अपने पूर्ण मन से परमेश्वर कि सेवा का जतन करता हूँ।
परमेश्वर, तेरे आदेशों पर चलने में मेरी सहायता कर।
11 मैं बड़े ध्यान से तेरे आदेशों का मनन किया करता हूँ।
क्यों ताकि मैं तेरे विरूद्ध पाप पर न चलूँ।
12 हे यहोवा, तेरा धन्यवाद!
तू अपने विधानों की शिक्षा मुझको दे।
13 तेरे सभी निर्णय जो विवेकपूर्ण हैं। मैं उनका बखान करूँगा।
14 तेरे नियमों पर मनन करना,
मुझको अन्य किसी भी वस्तु से अधिक भाता है।
15 मैं तेरे नियमों की चर्चा करता हूँ,
और मैं तेरे समान जीवन जीता हूँ।
16 मैं तेरे नियमों में आनन्द लेता हूँ।
मैं तेरे वचनों को नहीं भूलूँगा।
गिमेल्
17 तेरे दास को योग्यता दे
और मैं तेरे नियमों पर चलूँगा।
18 हे यहोवा, मेरी आँख खोल दे और मैं तेरी शिक्षाओं के भीतर देखूँगा।
मैं उन अद्भुत बातों का अध्ययन करूँगा जिन्हें तूने किया है।
19 मैं इस धरती पर एक अनजाना परदेशी हूँ।
हे यहोवा, अपनी शिक्षाओं को मुझसे मत छिपा।
20 मैं हर समय तेरे निर्णयों का
पाठ करना चाहता हूँ।
21 हे यहोवा, तू अहंकारी जन की आलोचना करता है।
उन अहंकारी लोगों पर बुरी बातें घटित होंगी। वे तेरे आदेशों पर चलना नकारते हैं।
22 मुझे लज्जित मत होने दे, और मुझको असमंजस में मत डाल।
मैंने तेरी वाचा का पालन किया है।
23 यहाँ तक कि प्रमुखों ने भी मेरे लिये बुरी बातें की हैं।
किन्तु मैं तो तेरा दास हूँ।
मैं तेरे विधान का पाठ किया करता हूँ।
24 तेरी वाचा मेरा सर्वोत्तम मिस्र है।
यह मुझको अच्छी सलाह दिया करता है।
शौमिनिथ की संगत पर संगीत निर्देशक के लिये दाऊद का एक पद।
1 हे यहोवा, मेरी रक्षा कर!
खरे जन सभी चले गये हैं।
मनुष्यों की धरती में अब कोई भी सच्चा भक्त नहीं बचा है।
2 लोग अपने ही साथियों से झूठ बोलते हैं।
हर कोई अपने पड़ोसियों को झूठ बोलकर चापलूसी किया करता है।
3 यहोवा उन ओंठों को सी दे जो झूठ बोलते हैं।
हे यहोवा, उन जीभों को काट जो अपने ही विषय में डींग हाँकते हैं।
4 ऐसे जन सोचते है, “हमारी झूठें हमें बड़ा व्यक्ति बनायेंगी।
कोई भी व्यक्ति हमारी जीभ के कारण हमें जीत नहीं पायेगा।”
5 किन्तु यहोवा कहता है:
“बुरे मनुष्यों ने दीन दुर्बलों से वस्तुएँ चुरा ली हैं।
उन्होंने असहाय दीन जन से उनकी वस्तुएँ ले लीं।
किन्तु अब मैं उन हारे थके लोगों की रक्षा खड़ा होकर करुँगा।”
6 यहोवा के वचन सत्य हैं और इतने शुद्ध
जैसे आग में पिघलाई हुई श्वेत चाँदी।
वे वचन उस चाँदी की तरह शुद्ध हैं, जिसे पिघला पिघला कर सात बार शुद्ध बनाया गया है।
7 हे यहोवा, असहाय जन की सुधि ले।
उनकी रक्षा अब और सदा सर्वदा कर!
8 ये दुर्जन अकड़े और बने ठने घूमते हैं।
किन्तु वे ऐसे होते हैं जैसे कोई नकली आभूषण धारण करता है
जो देखने में मूल्यवान लगते हैं, किन्तु वास्तव में बहुत ही सस्ते होते हैं।
संगीत निर्देशक के लिये दाऊद का एक पद।
1 हे यहोवा, तू कब तक मुझ को भूला रहेगा?
क्या तू मुझे सदा सदा के लिये बिसरा देगा कब तक तू मुझको नहीं स्वीकारेगा?
2 तू मुझे भूल गया यह कब तक मैं सोचूँ?
अपने ह्रदय में कब तक यह दु:ख भोगूँ?
कब तक मेरे शत्रु मुझे जीतते रहेंगे?
3 हे यहोवा, मेरे परमेश्वर, मेरी सुधि ले! और तू मेरे प्रश्न का उत्तर दे!
मुझको उत्तर दे नहीं तो मैं मर जाऊँगा!
4 कदाचित् तब मेरे शत्रु यों कहने लगें, “मैंने उसे पीट दिया!”
मेरे शत्रु प्रसन्न होंगे कि मेरा अंत हो गया है।
5 हे यहोवा, मैंने तेरी करुणा पर सहायता पाने के लिये भरोसा रखा।
तूने मुझे बचा लिया और मुझको सुखी किया!
6 मैं यहोवा के लिये प्रसन्नता के गीत गाता हूँ,
क्योंकि उसने मेरे लिये बहुत सी अच्छी बातें की हैं।
संगीत निर्देशक के लिये दाऊद का पद।
1 मूर्ख अपने मनमें कहता है, “परमेश्वर नहीं है।”
मूर्ख जन तो ऐसे कार्य करते हैं जो भ्रष्ट और घृणित होते हैं।
उनमें से कोई भी भले काम नहीं करता है।
2 यहोवा आकाश से नीचे लोगों को देखता है,
कि कोई विवेकी जन उसे मिल जाये।
विवेकी मनुष्य परमेश्वर की ओर सहायता पाने के लिये मुड़ता है।
3 किन्तु परमेश्वर से मुड़ कर सभी दूर हो गये हैं।
आपस में मिल कर सभी लोग पापी हो गये हैं।
कोई भी जन अच्छे कर्म नहीं कर रहा है!
4 मेरे लोगों को दुष्टों ने नष्ट कर दिया है। वे दुर्जन परमेश्वर को नहीं जानते हैं।
दुष्टों के पास खाने के लिये भरपूर भोजन है।
ये जन यहोवा की उपासना नहीं करते।
5 ये दुष्ट मनुष्य निर्धन की सम्मति सुनना नहीं चाहते।
ऐसा क्यों है? क्योंकि दीन जन तो परमेश्वर पर निर्भर है।
6 किन्तु दुष्ट लोगों पर भय छा गया है।
क्यों? क्योंकि परमेश्वर खरे लोगों के साथ है।
7 सिय्योन पर कौन जो इस्राएल को बचाता है? वह तो यहोवा है,
जो इस्राएल की रक्षा करता है!
यहोवा के लोगों को दूर ले जाया गया और उन्हें बलपूर्वक बन्दी बनाया गया।
किन्तु यहोवा अपने भक्तों को वापस छुड़ा लायेगा।
तब याकूब (इस्राएल) अति प्रसन्न होगा।
3 राजा सिदकिय्याह ने यहूकल नामक एक व्यक्ति और याजक सपन्याह को यिर्मयाह नबी के पास एक सन्देश लेकर भेजा। यहूकल शेलेम्याह का पुत्र था। याजक सपन्याह मासेयाह का पुत्र था। जो सन्देश वे यिर्मयाह के लिये लाये थे वह यह है: “यिर्मयाह, हमारे परमेश्वर यहोवा से हम लोगों के लिये प्रार्थना करो।”
4 (उस समय तक, यिर्मयाह बन्दीगृह में नहीं डाला गया था, अत: जहाँ कहीं वह जाना चाहता था, जा सकता था। 5 उस समय ही फिरौन की सेना मिस्र से यहूदा को प्रस्थान कर चुकी थी। बाबुल सेना ने पराजित करने के लिये, यरूशलेम नगर के चारों ओर घेरा डाल रखा था। तब उन्होंने मिस्र से उनकी ओर कूच कर चुकी हुई सेना के बारे में सुना था। अत: बाबुल की सेना मिस्र से आने वाली सेना से लड़ने के लिये, यरूशलेम से हट गई थी।)
6 यहोवा का सन्देश यिर्मयाह नबी को सन्देश मिला: 7 “इस्राएल के लोगों का परमेश्वर यहोवा जो कहता है, वह यह है: ‘यहूकल और सपन्याह मैं जानता हूँ कि यहूदा के राजा सिदकिय्याह ने तुम्हें मेरे पास प्रश्न पूछने को भेजा है। राजा सिदकिय्याह को यह उत्तर दो, फिरौन की सेना यहाँ आने और बाबुल की सेना के विरुद्ध तुम्हारी सहायता के लिये मिस्र से कूच कर चुकी है। किन्तु फिरौन की सेना मिस्र लौट जाएगी। 8 उसके बाद बाबुल की सेना यहाँ लौटेगी। यह यरूशलेम पर आक्रमण करेगी। तब बाबुल की वह सेना यरूशलेम पर अधिकार करेगी और उसे जला डालेगी।’ 9 यहोवा जो कहता है, वह यह है: ‘यरूशलेम के लोगों, अपने को मूर्ख मत बनाओ। तुम आपस में यह मत कहो, बाबुल की सेना निश्चय ही, हम लोगों को शान्त छोड़ देगी। वह नहीं छोड़ेगी। 10 यरूशलेम के लोगों, यदि तुम बाबुल की उस सारी सेना को ही क्यों न पराजित कर डालो जो तुम पर आक्रमण कर रही है, तो भी उनके डेरों में कुछ घायल व्यक्ति बच जाएंगे। वे थोड़े घायल व्यक्ति भी अपने डेरों से बाहर निकलेंगे और यरूशलेम को जलाकर राख कर देंगे।’”
11 जब बाबुल सेना ने मिस्र के फिरौन की सेना के साथ युद्ध करने के लिये यरूशलेम को छोड़ा, 12 तब यिर्मयाह यरूशलेम से बिन्यामीन प्रदेश की यात्रा करना चाहता था। वहाँ वह अपने परिवार की कुछ सम्पत्ति के विभाजन में भाग लेने जा रहा था। 13 किन्तु जब यिर्मयाह यरूशलेम के बिन्यामीन द्वार पर पहुँचा तब रक्षकों के अधिकारी कप्तान ने उसे बन्दी बना लिया। कप्तान का नाम यिरिय्याह था। यिरिय्याह शेलेम्याह का पुत्र था। शेलेम्याह हनन्याह का पुत्र था। इस प्रकार कप्तान यिरिय्याह ने यिर्मयाह को बन्दी बनाया और कहा, “यिर्मयाह, तुम हम लोगों को बाबुल पक्ष में मिलने के लिये, छोड़ रहे हो।”
14 यिर्मयाह ने यिरिय्याह से कहा, “यह सच नहीं है। मैं कसदियों के साथ मिलने के लिये नहीं जा रहा हूँ।” किन्तु यिरिय्याह ने यिर्मयाह की एक न सुनी। यिरिय्याह ने यिर्मयाह को बन्दी बनाया और उसे यरूशलेम के राजकीय अधिकारियों के पास ले गया। 15 वे अधिकारी यिर्मयाह पर बहुत क्रोधित थे। उन्होंने यिर्मयाह को पीटने का आदेश दिया। तब उन्होंने यिर्मयाह को बन्दीगृह में डाल दिया। बन्दीगृह योनातान नामक व्यक्ति के घर में था। योनातान यहूदा के राजा का शास्त्री था। योनातान का घर बन्दीगृह बना दिया गया था। 16 उन लोगों ने यिर्मयाह को योनातान के घर की एक कोठरी में रखा। वह कोठरी जमीन के नीचे कूप—गृह थी। यिर्मयाह उसमें लम्बे समय तक रहा।
17 तब राजा सिदकिय्याह ने यिर्मयाह को बुलवाया और उसे राजमहल में लाया गया। सिदकिय्याह ने यिर्मयाह से एकान्त में बातें कीं। उसने यिर्मयाह से पूछा, “क्या यहोवा को कोई सन्देश है”
यिर्मयाह ने उत्तर दिया, “हाँ, यहोवा का सन्देश है। सिदकिय्याह, तुम बाबुल के राजा के हाथ में दे दिये जाओगे।” 18 तब यिर्मयाह ने राजा सिदकिय्याह से कहा, “मैंने कौन सा अपराध किया है मैंने कौन सा अपराध तुम्हारे, तुम्हारे अधिकारियों या यरूशलेम के विरुद्ध किया है तुमने मुझे बन्दीगृह में क्यों फेंका 19 राजा सिदकिय्याह, तुम्हारे नबी अब कहाँ है उन नबियों ने तुम्हें झूठा सन्देश दिया। उन्होंने कहा, ‘बाबुल का राजा तुम पर या यहूदा देश पर आक्रमण नहीं करेगा।’ 20 किन्तु अब मेरे यहोवा, यहूदा के राजा, कृपया मेरी सुन। कृपया मेरा निवेदन अपने तक पहुँचने दे। मैं आपसे इतना माँगता हूँ। शास्त्री योनातान के घर मुझे वापस न भेजें। यदि आप मुझे वहाँ भेजेंगे मैं वहीं मर जाऊँगा।”
21 अत: राजा सिदकिय्याह ने यिर्मयाह के लिये आँगन में रक्षकों के संरक्षण में रहने का आदेश दिया और उसने यह आदेश दिया कि यिर्मयाह को सड़क पर रोटी बनाने वालों से रोटियाँ दी जानीं चाहिये। यिर्मयाह को तब तक रोटी दी जाती रही जब तक नगर में रोटी समाप्त नहीं हुई। इस प्रकार यिर्मयाह आँगन में रक्षकों के संरक्षण में रहा।
13 परिणामस्वरूप जो दूसरी भाषा में बोलता है, उसे प्रार्थना करनी चाहिये कि वह अपने कहे का अर्थ भी बता सके। 14 क्योंकि यदि मैं किसी अन्य भाषा में प्रार्थना करूँ तो मेरी आत्मा तो प्रार्थना कर रही होती है किन्तु मेरी बुद्धि व्यर्थ रहती है। 15 तो फिर क्या करना चाहिये? मैं अपनी आत्मा से तो प्रार्थना करूँगा ही किन्तु साथ ही अपनी बुद्धि से भी प्रार्थना करूँगा। अपनी आत्मा से तो उसकी स्तुति करूँगा ही किन्तु अपनी बुद्धि से भी उसकी स्तुति करूँगा। 16 क्योंकि यदि तू केवल अपनी आत्मा से ही कोई आशीर्वाद दे तो वहाँ बैठा कोई व्यक्ति जो बस सुन रहा है, तेरे धन्यवाद पर “आमीन” कैसे कहेगा क्योंकि तू जो कह रहा है, उसे वह जानता ही नहीं। 17 अब देख तू तो चाहे भली-भाँति धन्यवाद दे रहा है किन्तु दूसरे व्यक्ति की तो उससे कोई आध्यात्मिक सुदृढ़ता नहीं होती।
18 मैं परमेश्वर को धन्यवाद देता हूँ कि मैं तुम सब से बढ़कर विभिन्न भाषाएँ बोल सकता हूँ। 19 किन्तु कलीसिया सभा के बीच किसी दूसरी भाषा में दसियों हज़ार शब्द बोलने की अपेक्षा अपनी बुद्धि का उपयोग करते हुए बस पाँच शब्द बोलना अच्छा समझता हूँ ताकि दूसरों को भी शिक्षा दे सकूँ।
20 हे भाईयों, अपने विचारों में बचकाने मत रहो बल्कि बुराइयों के विषय में अबोध बच्चे जैसे बने रहो। किन्तु अपने चिन्तन में सयाने बनो। 21 जैसा कि शास्त्र कहता है:
“उनका उपयोग करते हुए
जो अन्य बोली बोलते हैं,
उनके मुखों का उपयोग करते हुए जो पराए हैं।
मैं इनसे बात करूँगा,
पर तब भी ये मेरी न सुनेंगे।”(A)
प्रभु ऐसा ही कहता है।
22 सो दूसरी भाषाएँ बोलने का वरदान अविश्वासियों के लिए संकेत है न कि विश्वासियों के लिये। जबकि परमेश्वर की ओर से बोलना अविश्वासियों के लिये नहीं, बल्कि विश्वासियों के लिये है। 23 सो यदि समूचा कलीसिया एकत्र हो और हर कोई दूसरी-दूसरी भाषाओं में बोल रहा हो तभी बाहर के लोग या अविश्वासी भीतर आ जायें तो क्या वे तुम्हें पागल नहीं कहेंगे। 24 किन्तु यदि हर कोई परमेश्वर की ओर से बोल रहा हो और तब तक कुछ अविश्वासी या बाहर के आ जाएँ तो क्या सब लोग उसे उसके पापों का बोध नहीं करा देंगे। सब लोग जो कह रहे हैं, उसी पर उसका न्याय होगा। 25 जब उसके मन के भीतर छिपे भेद खुल जायेंगे तब तक वह यह कहते हुए “सचमुच तुम्हारे बीच परमेश्वर है” दण्डवत प्रणाम करके परमेश्वर की उपासना करेगा।
24 “शिष्य अपने गुरु से बड़ा नहीं होता और न ही कोई दास अपने स्वामी से बड़ा होता है। 25 शिष्य को गुरु के बराबर होने में और दास को स्वामी के बराबर होने में ही संतोष करना चाहिये। जब वे घर के स्वामी को ही बैल्जा़बुल कहते हैं, तो उसके घर के दूसरे लोगों के साथ तो और भी बुरा व्यवहार करेंगे!
प्रभु से डरो, लोगों से नहीं
(लूका 12:2-7)
26 “इसलिये उनसे डरना मत क्योंकि जो कुछ छिपा है, सब उजागर होगा। और हर वह वस्तु जो गुप्त है, प्रकट की जायेगी। 27 मैं अँधेरे में जो कुछ तुमसे कहता हूँ, मैं चाहता हूँ, उसे तुम उजाले में कहो। मैंने जो कुछ तुम्हारे कानों में कहा है, तुम उसकी मकान की छतों पर चढ़कर, घोषणा करो।
28 “उनसे मत डरो जो तुम्हारे शरीर को नष्ट कर सकते हैं किन्तु तुम्हारी आत्मा को नहीं मार सकते। बस उस परमेश्वर से डरो जो तुम्हारे शरीर और तुम्हारी आत्मा को नरक में डालकर नष्ट कर सकता है। 29 एक पैसे की दो चिड़ियाओं में से भी एक तुम्हारे परम पिता के जाने बिना और उसकी इच्छा के बिना धरती पर नहीं गिर सकती। 30 अरे तुम्हारे तो सिर का एक एक बाल तक गिना हुआ है। 31 इसलिये डरो मत तुम्हारा मूल्य तो वैसी अनेक चिड़ियाओं से कहीं अधिक है।
यीशु में विश्वास
(लूका 12:8-9)
32 “जो कोई मुझे सब लोगों के सामने अपनायेगा, मैं भी उसे स्वर्ग में स्थित अपने परम-पिता के सामने अपनाऊँगा। 33 किन्तु जो कोई मुझे सब लोगों के सामने नकारेगा, मैं भी उसे स्वर्ग में स्थित परम-पिता के सामने नकारूँगा।
© 1995, 2010 Bible League International