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Book of Common Prayer

Daily Old and New Testament readings based on the Book of Common Prayer.
Duration: 861 days
Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)
Version
भजन संहिता 95

आओ हम यहोवा के गुण गाएं!
    आओ हम उस चट्टान का जय जयकार करें जो हमारी रक्षा करता है।
आओ हम यहोवा के लिये धन्यवाद के गीत गाएं।
    आओ हम उसके प्रशंसा के गीत आनन्दपूर्वक गायें।
क्यों? क्योंकि यहोवा महान परमेश्वर है।
    वह महान राजा सभी अन्य “देवताओं” पर शासन करता है।
गहरी गुफाएँ और ऊँचे पर्वत यहोवा के हैं।
सागर उसका है, उसने उसे बनाया है।
    परमेश्वर ने स्वयं अपने हाथों से धरती को बनाया है।
आओ, हम उसको प्रणाम करें और उसकी उपासना करें।
    आओ हम परमेश्वर के गुण गाये जिसने हमें बनाया है।
वह हमारा परमेश्वर
    और हम उसके भक्त हैं।
    यदि हम उसकी सुने

तो हम आज उसकी भेड़ हैं।
परमेश्वर कहता है, “तुम जैसे मरिबा और मरूस्थल के मस्सा में कठोर थे
    वैसे कठोर मत बनो।
तेरे पूर्वजों ने मुझको परखा था।
    उन्होंने मुझे परखा, पर तब उन्होंने देखा कि मैं क्या कर सकता हूँ।
10 मैं उन लोगों के साथ चालीस वर्ष तक धीरज बनाये रखा।
    मैं यह भी जानता था कि वे सच्चे नहीं हैं।
    उन लोगों ने मेरी सीख पर चलने से नकारा।
11 सो मैं क्रोधित हुआ और मैंने प्रतिज्ञा की
    वे मेरे विशाल कि धरती पर कभी प्रवेश नहीं कर पायेंगे।”

भजन संहिता 69

“कुमुदिनी” नामक धुन पर संगीत निर्देशक के लिए दाऊद का एक भजन।

हे परमेश्वर, मुझको मेरी सब विपतियों से बचा!
    मेरे मुँह तक पानी चढ़ आया है।
कुछ भी नहीं है जिस पर मैं खड़ा हो जाऊँ।
    मैं दलदल के बीच नीचे धँसता ही चला जा रहा हूँ।
मैं नीचे धंस रहा हूँ।
    मैं अगाध जल में हूँ और मेरे चारों तरफ लहरें पछाड़ खा रही है। बस, मैं डूबने को हूँ।
सहायता को पुकारते मैं दुर्बल होता जा रहा हूँ।
    मेरा गला दु:ख रहा है।
मैं बाट जोह रहा हूँ तुझसे सहायता पाने
    और देखते—देखते मेरी आँखें दु:ख रही है।
मेरे शत्रु! मेरे सिर के बालों से भी अधिक हैं।
    वे मुझसे व्यर्थ बैर रखते हैं।
    वे मेरे विनाश की जुगत बहुत करते हैं।
मेरे शत्रु मेरे विषय में झूठी बातें बनातें हैं।
    उन्होंने मुझको झूठे ही चोर बताया।
    और उन वस्तुओं की भरपायी करने को मुझे विवश किया, जिनको मैंने चुराया नहीं था।
हे परमेश्वर, तू तो जानता है कि मैंने कुछ अनुचित नहीं किया।
    मैं अपने पाप तुझसे नहीं छिपा सकता।
हे मेरे स्वमी, हे सर्वशक्तिमान यहोवा, तू अपने भक्तों को मेरे कारण लज्जित मत होने दें।
    हे इस्राएल के परमेश्वर, ऐसे उन लोगों को मेरे लिए असमंजस में मत डाल जो तेरी उपासना करते हैं।
मेरा मुख लाज से झुक गया।
    यह लाज मैं तेरे लिए ढोता हूँ।
मेरे ही भाई, मेरे साथ यूँ ही बर्ताव करते हैं। जैसे बर्ताव किसी अजनबी से करते हों।
    मेरे ही सहोदर, मुझे पराया समझते है।
तेरे मन्दिर के प्रति मेरी तीव्र लगन ही मुझे जलाये डाल रही है।
    वे जो तेरा उपहास करते हैं वह मुझ पर आन पडा है।
10 मैं तो पुकारता हूँ और उपवास करता हूँ,
    इसलिए वे मेरी हँसी उड़ाते हैं।
11 मैं निज शोक दर्शाने के लिए मोटे वस्रों को पहनता हूँ,
    और लोग मेरा मजाक उड़ाते हैं।
12 वे जनता के बीच मेरी चर्चायें करतें,
    और पियक्कड़ मेरे गीत रचा करते हैं।
13 हे यहोवा, जहाँ तक मेरी बात है, मेरी तुझसे यह विनती है कि
    मैं चाहता हूँ; तू मुझे अपना ले!
हे परमेश्वर, मैं चाहता हूँ कि तू मुझको प्रेम भरा उत्तर दे।
    मैं जानता हूँ कि मैं तुझ पर सुरक्षा का भरोसा कर सकता हूँ।
14 मुझको दलदल से उबार ले।
    मुझको दलदल के बीच मत डूबने दे।
मुझको मेरे बैरी लोगों से तू बचा ले।
    तू मुझको इस गहरे पानी से बचा ले।
15 बाढ की लहरों को मुझे डुबाने न दे।
    गहराई को मुझे निगलने न दे।
    कब्र को मेरे ऊपर अपना मुँह बन्द न करने दे।
16 हे यहोवा, तेरी करूण खरी है। तू मुझको निज सम्पूर्ण प्रेम से उत्तर दे।
    मेरी सहायता के लिए अपनी सम्पूर्ण कृपा के साथ मेरी ओर मुख कर!
17 अपने दास से मत मुख मोड़।
    मैं संकट में पड़ा हूँ! मुझको शीघ्र सहारा दे।
18 आ, मेरे प्राण बचा ले।
    तू मुझको मेरे शत्रुओं से छुड़ा ले।
19 तू मेरा निरादर जानता है।
    तू जानता है कि मेरे शत्रुओं ने मुझे लज्जित किया है।
    उन्हें मेरे संग ऐसा करते तूने देखा है।
20 निन्दा ने मुझको चकनाचूर कर दिया है!
    बस निन्दा के कारण मैं मरने पर हूँ।
मैं सहानुभूति की बाट जोहता रहा, मैं सान्त्वना की बाट जोहता रहा,
    किन्तु मुझको तो कोई भी नहीं मिला।
21 उन्होंने मुझे विष दिया, भोजन नहीं दिया।
    सिरका मुझे दे दिया, दाखमधु नहीं दिया।
22 उनकी मेज खानों से भरी है वे इतना विशाल सहभागिता भोज कर रहे हैं।
    मैं आशा करता हूँ कि वे खाना उन्हें नष्ट करें।
23 वे अंधे हो जायें और उनकी कमर झुक कर दोहरी हो जाये।
24 ऐसे लगे कि उन पर
    तेरा भरपूर क्रोध टूट पड़ा है।
25 उनके घरों को तू खाली बना दे।
    वहाँ कोई जीवित न रहे।
26 उनको दण्ड दे, और वे दूर भाग जायें।
    फिर उनके पास, उनकी बातों के विषय में उनके दर्द और घाव हो।
27 उनके बुरे कर्मों का उनको दण्ड दे, जो उन्होंने किये हैं।
    उनको मत दिखला कि तू और कितना भला हो सकता है।
28 जीवन की पुस्तक से उनके नाम मिटा दे।
    सज्जनों के नामों के साथ तू उनके नाम उस पुस्तक में मत लिख।
29 मैं दु:खी हूँ और दर्द में हूँ।
    हे परमेश्वर, मुझको उबार ले। मेरी रक्षा कर!
30 मैं परमेश्वर के नाम का गुण गीतों में गाऊँगा।
    मैं उसका यश धन्यवाद के गीतों से गाऊँगा।
31 परमेश्वर इससे प्रसन्न हो जायेगा।
    ऐसा करना एक बैल की बलि या पूरे पशु की ही बलि चढ़ाने से अधिक उत्तम है।
32 अरे दीन जनों, तुम परमेश्वर की आराधना करने आये हो।
    अरे दीन लोगों! इन बातों को जानकर तुम प्रसन्न हो जाओगे।
33 यहोवा, दीनों और असहायों की सुना करता है।
    यहोवा उन्हें अब भी चाहता है, जो लोग बंधन में पड़े हैं।
34 हे स्वर्ग और हे धरती,
    हे सागर और इसके बीच जो भी समाया है। परमेश्वर की स्तुती करो!
35 यहोवा सिय्योन की रक्षा करेगा!
    यहोवा यहूदा के नगर का फिर निर्माण करेगा।
वे लोग जो इस धरती के स्वामी हैं, फिर वहाँ रहेंगे!
36     उसके सेवकों की संताने उस धरती को पायेगी।
    और ऐसे वे लोग निवास करेंगे जिन्हें उसका नाम प्यारा है।

भजन संहिता 73

तीसरा भाग

(भजनसंहिता 73–89)

आसाप का स्तुति गीत।

सचमुच, इस्राएल के प्रति परमेश्वर भला है।
    परमेश्वर उन लोगों के लिए भला होता है जिनके हृदय स्वच्छ है।
मैं तो लगभग फिसल गया था
    और पाप करने लगा।
जब मैंने देखा कि पापी सफल हो रहे हैं
    और शांति से रह रहे हैं, तो उन अभिमानी लोगों से मुझको जलन हुयी।
वे लोग स्वस्थ हैं
    उन्हें जीवन के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ता है।
वे अभिमानी लोग पीड़ायें नहीं उठाते है।
    जैसे हम लोग दु:ख झेलते हैं, वैसे उनको औरों की तरह यातनाएँ नहीं होती।
इसलिए वे अहंकार से भरे रहते हैं।
    और वे घृणा से भरे हुए रहते हैं। ये वैसा ही साफ दिखता है, जैसे रत्न और वे सुन्दर वस्त्र जिनको वे पहने हैं।
वे लोग ऐसे है कि यदि कोई वस्तु देखते हैं और उनको पसन्द आ जाती है, तो उसे बढ़कर झपट लेते हैं।
    वे वैसे ही करते हैं, जैसे उन्हें भाता है।
वे दूसरों के बारें में क्रूर बातें और बुरी बुरी बातें कहते है। वे अहंकारी और हठी है।
    वे दूसरे लोगों से लाभ उठाने का रास्ता बनाते है।
अभिमानी मनुष्य सोचते हैं वे देवता हैं!
    वे अपने आप को धरती का शासक समझते हैं।
10 यहाँ तक कि परमेश्वर के जन, उन दुष्टों की ओर मुड़ते और जैसा वे कहते है,
    वैसा विश्वास कर लेते हैं।
11 वे दुष्ट जन कहते हैं, “हमारे उन कर्मो को परमेश्वर नहीं जानता!
    जिनकों हम कर रहे हैं!”

12 वे मनुष्य अभिमान और कुटिल हैं,
    किन्तु वे निरन्तर धनी और अधिक धनी होते जा रहे हैं।
13 सो मैं अपना मन पवित्र क्यों बनाता रहूँ?
    अपने हाथों को सदा निर्मल क्यों करता रहूँ?
14 हे परमेश्वर, मैं सारे ही दिन दु:ख भोगा करता हूँ।
    तू हर सुबह मुझको दण्ड देता है।

15 हे परमेश्वर, मैं ये बातें दूसरो को बताना चाहता था।
    किन्तु मैं जानता था और मैं ऐसे ही तेरे भक्तों के विरूद्ध हो जाता था।
16 इन बातों को समझने का, मैंने जतन किया
    किन्तु इनका समझना मेरे लिए बहुत कठिन था,
17 जब तक मैं तेरे मन्दिर में नहीं गया।
    मैं परमेश्वर के मन्दिर में गया और तब मैं समझा।
18 हे परमेश्वर, सचमुच तूने उन लोगों को भयंकर परिस्थिति में रखा है।
    उनका गिर जाना बहुत ही सरल है। उनका नष्ट हो जाना बहुत ही सरल है।
19 सहसा उन पर विपत्ति पड़ सकती है,
    और वे अहंकारी जन नष्ट हो जाते हैं।
उनके साथ भयंकर घटनाएँ घट सकती हैं,
    और फिर उनका अंत हो जाता है।
20 हे यहोवा, वे मनुष्य ऐसे होंगे
    जैसे स्वप्न जिसको हम जागते ही भुल जाते हैं।
तू ऐसे लोगों को हमारे स्वप्न के भयानक जन्तु की तरह
    अदृश्य कर दे।

21-22 मैं अज्ञान था।
    मैंने धनिकों और दुष्ट लोगों पर विचारा, और मैं व्याकुल हो गया।
हे परमेश्वर, मैं तुझ पर क्रोधित हुआ!
    मैं निर्बुद्धि जानवर सा व्यवहार किया।
23 वह सब कुछ मेरे पास है, जिसकी मुझे अपेक्षा है। मैं तेरे साथ हरदम हूँ।
    हे परमेश्वर, तू मेरा हाथ थामें है।
24 हे परमेश्वर, तू मुझे मार्ग दिखलाता, और मुझे सम्मति देता है।
    अंत में तू अपनी महिमा में मेरा नेतृत्व करेगा।
25 हे परमेश्वर, स्वर्ग में बस तू ही मेरा है,
    और धरती पर मुझे क्या चाहिए, जब तू मेरे साथ है
26 चाहे मेरा मन टूट जाये और मेरी काया नष्ट हो जाये
    किन्तु वह चट्टान मेरे पास है, जिसे मैं प्रेम करता हूँ।
    परमेश्वर मेरे पास सदा है!
27 परमेश्वर, जो लोग तुझको त्यागते हैं, वे नष्ट हो जाते है।
    जिनका विश्वास तुझमें नहीं तू उन लोगों को नष्ट कर देगा।
28 किन्तु, मैं परमेश्वर के निकट आया।
    मेरे साथ परमेश्वर भला है, मैंने अपना सुरक्षास्थान अपने स्वामी यहोवा को बनाया है।
    हे परमेश्वर, मैं उन सभी बातों का बखान करूँगा जिनको तूने किया है।

यिर्मयाह 5:1-9

यहूदा के लोगों के पाप

यहोवा कहता है, “यरूशलेम की सड़कों पर ऊपर नीचे जाओ। चारों ओर देखो और इन चीजों के बारे में सोचो। नगर के सार्वजनिक चौराहो को खोजो, पता करो कि क्या तुम किसी एक अच्छे व्यक्ति को पा सकते हो, ऐसे व्यक्ति को जो ईमानदारी से काम करता हो, ऐसा जो सत्य की खोज करता हो। यदि तुम एक अच्छे व्यक्ति को ढूँढ निकालोगे तो मैं यरूशलेम को क्षमा कर दूँगा! लोग प्रतिज्ञा करते हैं और कहते हैं, ‘जैसा कि यहोवा शाश्वत है।’ किन्तु वे सच्चाई से यही तात्पर्य नहीं रखते।”

हे यहोवा, मैं जानता हूँ कि तू लोगों में सच्चाई देखना चाहता है।
    तूने यहूदा के लोगों को चोट पहुँचाई, किन्तु उन्होंने किसी पीड़ा का अनुभव नहीं किया।
तूने उन्हें नष्ट किया, किन्तु उन्होंने अपना सबक सीखने से इन्करा कर दिया।
    वे बहुत हठी हो गए।
उन्होंने अपने पापों के लिये पछताने से इन्कार कर दिया।
किन्तु मैं (यिर्मयाह) ने अपने से कहा,
    “वे केवल गरीब लोग ही है जो उतने मूर्ख हैं।
ये वही लोग हैं जो यहोवा के मार्ग को नहीं सीख सके!
    गरीब लोग अपने परमेश्वर की शिक्षा को नहीं जानते।
इसलिये मैं यहूदा के लोगों के प्रमुखों के पास जाऊँगा।
    मैं उनसे बातें करूँगा।
निश्चय ही प्रमुख यहोवा के मार्ग को समझते हैं।
    मुझे विश्वास है कि वे अपने परमेश्वर के नियमों को जानते हैं।”
किन्तु सभी प्रमुख यहोवा की सेवा करने से इन्कार करने में एक साथ हो गए।
वे परमेश्वर के विरुद्ध हुए, अत: जंगल का एक सिंह उन पर आक्रमण करेगा।
    मरुभूमि में एक भेड़िया उन्हें मार डालेगा।
एक तेंदुआ उनके नगरों के पास घात लगाये है।
    नगरों के बाहर जाने वाले किसी को भी तेंदुआ टुकड़ों में चीर डालेगा।
यह होगा, क्यैं कि यहूदा के लोगों ने बार—बार पाप किये हैं।
    वे कई बार यहोवा से दूर भटक गए हैं।
परमेश्वर ने कहा, “यहूदा, मुझे कारण बताओ कि मुझे तुमको क्षमा क्यों कर देना चाहिये तुम्हारी सन्तानों ने मुछे त्याग दिया है।
उन्होंने उन देवमूर्तियों से प्रतिज्ञा की है जो परमेश्वर हैं ही नहीं।
    मैंने तुम्हारी सन्तानों को हर एक चीज़ दी जिसकी जरुरत उन्हें थी।
किन्तु फिर भी वे विश्वासघाती रहे!
    उन्होंने वेश्यालयों में बहुत समय बिताया।
वे उन घोड़ों जैसे रहे जिन्हें बहुत खाने को है, और जो जोड़ा बनाने को हो।
    वे उन घोड़ों जैसे रहे जो पड़ोसी कीर् पॅत्नयों पर हिन हिना रहे हैं।
क्या मुझे यहूदा के लोगों को ये काम करने के कारण, दण्ड देना चाहिए यह सन्देश यहोवा का है।
    हाँ! तुम जानते हो कि मुझे इस प्रकार के राष्ट्र को दण्ड देना चाहिये।
मुझे उन्हें वह दण्ड देना चाहिए जिसके वे पात्र हैं।

रोमियों 2:25-3:18

25 यदि तुम व्यवस्था का पालन करते हो तभी ख़तने का महत्व है पर यदि तुम व्यवस्था को तोड़ते हो तो तुम्हारा ख़तना रहित होने के समान ठहरा। 26 यदि किसी का ख़तना नहीं हुआ है और वह व्यवस्था के पवित्र नियमों पर चलता है तो क्या उसके ख़तना रहित होने को भी ख़तना न गिना जाये? 27 वह मनुष्य जिसका शरीर से ख़तना नहीं हुआ है और जो व्यवस्था का पालन करता है, तुझे अपराधी ठहरायेगा। जिसके पास लिखित व्यवस्था का विधान है, और जिसका ख़तना भी हुआ है, और जो व्यवस्था को तोड़ता है,

28 जो बाहर से ही यहूदी है, वह वास्तव में यहूदी नहीं है। शरीर का ख़तना वास्तव में ख़तना नहीं है। 29 सच्चा यहूदी वही है जो भीतर से यहूदी है। सच्चा ख़तना आत्मा द्वारा मन का ख़तना है, न कि लिखित व्यवस्था का। ऐसे व्यक्ति की प्रशंसा मनुष्य नहीं बल्कि परमेश्वर की ओर से की जाती है।

सो यहूदी होने का क्या लाभ या ख़तने का क्या मूल्य? हर प्रकार से बहुत कुछ। क्योंकि सबसे पहले परमेश्वर का उपदेश तो उन्हें ही सौंपा गया। यदि उनमें से कुछ विश्वासघाती हो भी गये तो क्या है? क्या उनका विश्वासघातीपन परमेश्वर की विश्वासपूर्णता को बेकार कर देगा? निश्चय ही नहीं, यदि हर कोई झूठा भी है तो भी परमेश्वर सच्चा ठहरेगा। जैसा कि शास्त्र में लिखा है:

“ताकि जब तू कहे तू उचित सिद्ध हो
    और जब तेरा न्याय हो, तू विजय पाये।”(A)

सो यदि हमारी अधार्मिकता परमेश्वर की धार्मिकता सिद्ध करे तो हम क्या कहें? क्या यह कि वह अपना कोप हम पर प्रकट करके अन्याय नहीं करता? (मैं एक मनुष्य के रूप में अपनी बात कह रहा हूँ।) निश्चय ही नहीं, नहीं तो वह जगत का न्याय कैसे करेगा।

किन्तु तुम कह सकते हो: “जब मेरी मिथ्यापूर्णता से परमेश्वर की सत्यपूर्णता और अधिक उजागर होती है तो इससे उसकी महिमा ही होती है, फिर भी मैं दोषी करार क्यों दिया जाता हूँ?” और फिर क्यों न कहे: “आओ! बुरे काम करें ताकि भलाई प्रकट हो।” जैसा कि हमारे बारे में निन्दा करते हुए कुछ लोग हम पर आरोप लगाते हैं कि हम ऐसा कहते हैं। ऐसे लोग दोषी करार दिये जाने योग्य है। वे सभी दोषी हैं।

कोई भी धर्मी नहीं

तो फिर हम क्या कहें? क्या हम यहूदी ग़ैर यहूदियों से किसी भी तरह अच्छे है, नहीं बिल्कुल नहीं। क्योंकि हम यह दर्शा चुके है कि चाहे यहूदी हों, चाहे ग़ैर यहूदी सभी पाप के वश में हैं। 10 शास्त्र कहता है:

“कोई भी धर्मी नहीं, एक भी!
11     कोई समझदार नहीं, एक भी!
कोई ऐसा नहीं, जो प्रभु को खोजता!
12 सब भटक गए,
    वे सब ही निकम्मे बन गए,
साथ-साथ सब के सब, कोई भी यहाँ पर दया तो दिखाता नहीं, एक भी नहीं!”(B)

13 “उनके मुँह खुली कब्र से बने हैं,
    वे अपनी जीभ से छल करते हैं।”(C)

“उनके होठों पर नाग विष रहता हैं।”(D)

14 “शाप से कटुता से मुँह भरे रहते है।”(E)

15 “हत्या करने को वे हरदम उतावले रहते है।
16     वे जहाँ कहीं जाते नाश ही करते हैं, संताप देते हैं।
17 उनको शांति के मार्ग का पता नहीं।”(F)

18 “उनकी आँखों में प्रभु का भय नहीं है।”(G)

यूहन्ना 5:30-47

30 “मैं स्वयं अपने आपसे कुछ नहीं कर सकता। मैं परमेश्वर से जो सुनता हूँ उसी के आधार पर न्याय करता हूँ और मेरा न्याय उचित है क्योंकि मैं अपनी इच्छा से कुछ नहीं करता बल्कि उसकी इच्छा से करता हूँ जिसने मुझे भेजा है।

यीशु का यहूदियों से कथन

31 “यदि मैं अपनी तरफ से साक्षी दूँ तो मेरी साक्षी सत्य नहीं है। 32 मेरी ओर से साक्षी देने वाला एक और है। और मैं जानता हूँ कि मेरी ओर से जो साक्षी वह देता है, सत्य है।

33 “तुमने लोगों को यूहन्ना के पास भेजा और उसने सत्य की साक्षी दी। 34 मैं मनुष्य की साक्षी पर निर्भर नहीं करता बल्कि यह मैं इसलिए कहता हूँ जिससे तुम्हारा उद्धार हो सके। 35 यूहन्ना उस दीपक की तरह था जो जलता है और प्रकाश देता है। और तुम कुछ समय के लिए उसके प्रकाश का आनन्द लेना चाहते थे।

36 “पर मेरी साक्षी यूहन्ना की साक्षी से बड़ी है क्योंकि परम पिता ने जो काम पूरे करने के लिए मुझे सौंपे हैं, मैं उन्हीं कामों को कर रहा हूँ और वे काम ही मेरे साक्षी हैं कि परम पिता ने मुझे भेजा है। 37 परम पिता ने जिसने मुझे भेजा है, मेरी साक्षी दी है। तुम लोगों ने उसका वचन कभी नहीं सुना और न तुमने उसका रूप देखा है। 38 और न ही तुम अपने भीतर उसका संदेश धारण करते हो। क्योंकि तुम उसमें विश्वास नहीं रखते हो जिसे परम पिता ने भेजा है। 39 तुम शास्त्रों का अध्ययन करते हो क्योंकि तुम्हारा विचार है कि तुम्हें उनके द्वारा अनन्त जीवन प्राप्त होगा। किन्तु ये सभी शास्त्र मेरी ही साक्षी देते हैं। 40 फिर भी तुम जीवन प्राप्त करने के लिये मेरे पास नहीं आना चाहते।

41 “मैं मनुष्य द्वारा की गयी प्रशंसा पर निर्भर नहीं करता। 42 किन्तु मैं जानता हूँ कि तुम्हारे भीतर परमेश्वर का प्रेम नहीं है। 43 मैं अपने पिता के नाम से आया हूँ फिर भी तुम मुझे स्वीकार नहीं करते किन्तु यदि कोई और अपने ही नाम से आए तो तुम उसे स्वीकार कर लोगे। 44 तुम मुझमें विश्वास कैसे कर सकते हो, क्योंकि तुम तो आपस में एक दूसरे से प्रशंसा स्वीकार करते हो। उस प्रशंसा की तरफ देखते तक नहीं जो एकमात्र परमेश्वर से आती है। 45 ऐसा मत सोचो कि मैं परम पिता के आगे तुम्हें दोषी ठहराऊँगा। जो तुम्हें दोषी सिद्ध करेगा वह तो मूसा होगा जिस पर तुमने अपनी आशाएँ टिकाई हुई हैं। यदि तुम वास्तव में मूसा में विश्वास करते 46 तो तुम मुझमें भी विश्वास करते क्योंकि उसने मेरे बारे में लिखा है। 47 जब तुम, जो उसने लिखा है उसी में विश्वास नहीं करते, तो मेरे वचन में विश्वास कैसे करोगे?”

Hindi Bible: Easy-to-Read Version (ERV-HI)

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