Book of Common Prayer
संगीत निर्देशक के लिये दाऊद का एक पद।
1 तेरी पुकार का यहोवा उत्तर दे, और जब तू विपति में हो
तो याकूब का परमेश्वर तेरे नाम को बढ़ायें।
2 परमेश्वर अपने पवित्रस्थान से तेरी सहायता करे।
वह तुझको सिय्योन से सहारा देवे।
3 परमेश्वर तेरी सब भेंटों को याद रखे,
और तेरे सब बलिदानों को स्वीकार करें।
4 परमेश्वर तुझे उन सभी वस्तुओं को देवे जिन्हें तू सचमुच चाहे।
वह तेरी सभी योजनाएँ पूरी करें।
5 परमेश्वर जब तेरी सहायता करे हम अति प्रसन्न हों
और हम परमेश्वर की बढ़ाई के गीत गायें।
जो कुछ भी तुम माँगों यहोवा तुम्हें उसे दे।
6 मैं अब जानता हूँ कि यहोवा सहायता करता है अपने उस राजा की जिसको उसने चुना।
परमेश्वर तो अपने पवित्र स्वर्ग में विराजा है और उसने अपने चुने हुए राजा को, उत्तर दिया
उस राजा की रक्षा करने के लिये परमेश्वर अपनी महाशक्ति को प्रयोग में लाता है।
7 कुछ को भरोसा अपने रथों पर है, और कुछ को निज सैनिकों पर भरोसा है
किन्तु हम तो अपने यहोवा परमेश्वर को स्मरण करते हैं।
8 किन्तु वे लोग तो पराजित और युद्ध में मारे गये
किन्तु हम जीते और हम विजयी रहे।
9 ऐसा कैसा हुआ? क्योंकि यहोवा ने अपने चुने हुए राजा की रक्षा की
उसने परमेश्वर को पुकारा था और परमेश्वर ने उसकी सुनी।
संगीत निर्देशक को दाऊद का एक पद।
1 हे यहोवा, तेरी महिमा राजा को प्रसन्न करती है, जब तू उसे बचाता है।
वह अति आनन्दित होता है।
2 तूने राजा को वे सब वस्तुएँ दी जो उसने चाहा,
राजा ने जो भी पाने की विनती की हे यहोवा, तूने मन वांछित उसे दे दिया।
3 हे यहोवा, सचमुच तूने बहुत आशीष राजा को दी।
उसके सिर पर तूने स्वर्ण मुकुट रख दिया।
4 उसने तुझ से जीवन की याचना की और तूने उसे यह दे दिया।
परमेश्वर, तूने सदा सर्वदा के लिये राजा को अमर जीवन दिया।
5 तूने रक्षा की तो राजा को महा वैभव मिला।
तूने उसे आदर और प्रशंसा दी।
6 हे परमेश्वर, सचमुच तूने राजा को सदा सर्वदा के लिये, आशिर्वाद दिये।
जब राजा को तेरा दर्शन मिलता है, तो वह अति प्रसन्न होता है।
7 राजा को सचमुच यहोवा पर भरोसा है,
सो परम परमेश्वर उसे निराश नहीं करेगा।
8 हे परमेश्वर! तू दिखा देगा अपने सभी शत्रुओं को कि तू सुदृढ़ शक्तिवान है।
जो तुझ से घृणा करते हैं तेरी शक्ति उन्हें पराजित करेगी।
9 हे यहोवा, जब तू राजा के साथ होता है
तो वह उस भभकते भाड़ सा बन जाता है,
जो सब कुछ भस्म करता है।
उसकी क्रोधाग्नि अपने सभी बैरियों को भस्म कर देती है।
10 परमेश्वर के बैरियों के वंश नष्ट हो जायेंगे,
धरती के ऊपर से वह सब मिटेंगे।
11 ऐसा क्यों हुआ? क्योंकि यहोवा, तेरे विरुद्ध उन लोगों ने षड़यन्त्र रचा था?
उन्होंने बुरा करने को योजनाएँ रची थी, किन्तु वे उसमें सफल नहीं हुए।
12 किन्तु यहोवा तूने ऐसे लोगों को अपने अधीन किया, तूने उन्हें एक साथ रस्से से बाँध दिया, और रस्सियों का फँदा उनके गलों में डाला।
तूने उन्हें उनके मुँह के बल दासों सा गिराया।
13 यहोवा के और उसकी शक्ति के गुण गाओ
आओ हम गायें और उसके गीतों को बजायें जो उसकी गरिमा से जुड़े हुए हैं।
दाऊद का एक स्तुति गीत।
1 यहोवा ने मेरे स्वामी से कहा,
“तू मेरे दाहिने बैठ जा, जब तक कि मैं तेरे शत्रुओं को तेरे पाँव की चौकी नहीं कर दूँ।”
2 तेरे राज्य के विकास में यहोवा सहारा देगा। तेरे राज्य का आरम्भ सिय्योन पर होगा,
और उसका विकास तब तक होता रहेगा, जब तक तू अपने शत्रुओं पर उनके अपने ही देश में राज करेगा।
3 तेरे पराक्रम के दिन तेरी प्रजा के लोग स्वेच्छा वलि बनेंगे।
तेरे जवान पवित्रता से सुशोभित
भोर के गर्भ से जन्मी
ओस के समान तेरे पास है।
4 यहोवा ने एक वचन दिया, और यहोवा अपना मन नहीं बदलेगा: “तू नित्य याजक है।
किन्तु हारून के परिवार समूह से नहीं।
तेरी याजकी भिन्न है।
तू मेल्कीसेदेक के समूह की रीति का याजक है।”
5 मेरे स्वामी, तूने उस दिन अपना क्रोध प्रकट किया था।
अपने महाशक्ति को काम में लिया था और दूसरे राजाओं को तूने हरा दिया था।
6 परमेश्वर राष्ट्रों का न्याय करेगा।
परमेश्वर ने उस महान धरती पर शत्रुओं को हरा दिया।
उनकी मृत देहों से धरती फट गयी थी।
7 राह के झरने से जल पी के ही राजा अपना सिर उठायेगा
और सचमुच बलशाली होगा!
1 जब यहोवा मेरी प्रार्थनाएँ सुनता है
यह मुझे भाता है।
2 जब मै सहायता पाने उसको पुकारता हूँ वह मेरी सुनता है:
यह मुझे भाता है।
3 मैं लगभग मर चुका था।
मेरे चारों तरफ मौत के रस्से बंध चुके थे। कब्र मुझको निगल रही थी।
मैं भयभीत था और मैं चिंतित था।
4 तब मैंने यहोवा के नाम को पुकारा,
मैंने कहा, “यहोवा, मुझको बचा ले।”
5 यहोवा खरा है और दयापूर्ण है।
परमेश्वर करूणापूर्ण है।
6 यहोवा असहाय लोगों की सुध लेता है।
मैं असहाय था और यहोवा ने मुझे बचाया।
7 हे मेरे प्राण, शांत रह।
यहोवा तेरी सुधि रखता है।
8 हे परमेश्वर, तूने मेरे प्राण मृत्यु से बचाये।
मेरे आँसुओं को तूने रोका और गिरने से मुझको तूने थाम लिया।
9 जीवितों की धरती में मैं यहोवा की सेवा करता रहूँगा।
10 यहाँ तक मैंने विश्वास बनाये रखा जब मैंने कह दिया था,
“मैं बर्बाद हो गया!”
11 मैंने यहाँ तक विश्वास सम्भाले रखा जब कि मैं भयभीत था
और मैंने कहा, “सभी लोग झूठे हैं!”
12 मैं भला यहोवा को क्या अर्पित कर सकता हूँ
मेरे पास जो कुछ है वह सब यहोवा का दिया है!
13 मैं उसे पेय भेंट दूँगा
क्योंकि उसने मुझे बचाया है।
मैं यहोवा के नाम को पुकारूँगा।
14 जो कुछ मन्नतें मैंने मागी हैं वे सभी मैं यहोवा को अर्पित करूँगा,
और उसके सभी भक्तों के सामने अब जाऊँगा।
15 किसी एक की भी मृत्यु जो यहोवा का अनुयायी है, यहोवा के लिये अति महत्वपूर्ण है।
हे यहोवा, मैं तो तेरा एक सेवक हूँ!
16 मैं तेरा सेवक हूँ।
मैं तेरी किसी एक दासी का सन्तान हूँ।
यहोवा, तूने ही मुझको मेरे बंधनों से मुक्त किया!
17 मैं तुझको धन्यवाद बलि अर्पित करूँगा।
मैं यहोवा के नाम को पुकारूँगा।
18 मैं यहोवा को जो कुछ भी मन्नतें मानी है वे सभी अर्पित करूँगा,
और उसके सभी भक्तों के सामने अब जाऊँगा।
19 मैं मन्दिर में जाऊँगा
जो यरूशलेम में है।
यहोवा के गुण गाओ!
1 अरे ओ सब राष्ट्रों यहोवा कि प्रशंसा करो।
अरे ओ सब लोगों यहोवा के गुण गाओ।
2 परमेश्वर हमें बहुत प्रेम करता है!
परमेश्वर हमारे प्रति सदा सच्चा रहेगा!
यहोवा के गुण गाओ!
17 तीन दिन बाद पौलुस ने यहूदी नेताओं को बुलाया और उनके एकत्र हो जाने पर वह उनसे बोला, “हे भाईयों, चाहे मैंने अपनी जाति या अपने पूर्वजों के विधि-विधानके प्रतिकूल कुछ भी नहीं किया है, तो भी यरूशलेम में मुझे बंदी के रूप में रोमियों को सौंप दिया गया था। 18 उन्होंने मेरी जाँच पड़ताल की और मुझे छोड़ना चाहा क्योंकि ऐसाकुछ मैंने किया ही नहीं था जो मृत्युदण्ड के लायक होता 19 किन्तु जब यहूदियों नेआपत्ति की तो मैं कैसर से पुनर्विचार की प्रार्थना करने को विवश हो गया। इसलिये नहींकि मैं अपने ही लोगों पर कोई आरोप लगाना चाहता था। 20 यही कारण है जिससे मैं तुमसे मिलना और बातचीत करना चाहता था क्योंकि यह इस्राएल का वह भरोसा ही है जिसके कारण मैं ज़ंजीर में बँधा हूँ।”
21 यहूदी नेताओं ने पौलुस से कहा, “तुम्हारे बारे में यहूदिया से न तो कोई पत्र ही मिला है, और न ही वहाँ सेआने वाले किसी भी भाई ने तेरा कोई समाचार दिया और न तेरे बारे में कोई बुरी बात कही। 22 किन्तु तेरे विचार क्या हैं, यह हम तुझसे सुनना चाहते हैं क्योंकि हम जानते हैं कि लोग सब कहीं इस पंथ के विरोध में बोलते हैं।”
23 सो उन्होंने उसके साथ एक दिन निश्चित किया। और फिर जहाँ वह ठहरा था, बड़ी संख्या में आकार वे लोग एकत्र हो गये। मूसा की व्यवस्था और नबियों के ग्रंथों से यीशु के विषय में उन्हें समझाने का जतन करते हुए उसने परमेश्वर के राज्य के बारे में अपनी साक्षी दी और समझाया। वह सुबह से शाम तक इसी में लगा रहा। 24 उसने जो कुछ कहा था, उससे कुछ तो सहमत होगये किन्तु कुछ ने विश्वास नहीं किया। 25 फिर आपस में एक दूसरे से असहमत होते हुए वे वहाँ से जाने लगे। तब पौलुस ने एक यह बात और कही, “यशायाह भविष्यवक्ता के द्वारा पवित्र आत्मा ने तुम्हारे पूर्वजों से कितना ठीक कहा था,
26 ‘जाकर इन लोगों से कह दे:
तुम सुनोगे,
पर न समझोगे कदाचित्!
तुम बस देखते ही देखते रहोगे
पर न बूझोगे कभी भी!
27 क्योंकि इनका ह्रदय जड़ता से भर गया
कान इनके कठिनता से श्रवण करते
और इन्होंने अपनी आँखे बंद कर ली
क्योंकि कभी ऐसा न हो जाए कि
ये अपनी आँख से देखें,
और कान से सुनें
और ह्रदय से समझे,
और कदाचित् लौटें मुझको स्वस्थ करना पड़े उनको।’(A)
28 “इसलिये तुम्हें जान लेना चाहिये कि परमेश्वर का यह उद्धार विधर्मियों के पास भेज दिया गया है। वे इसे सुनेंगे।” 29 [a]
30 वहाँ किराये के अपने मकान में पौलुस पूरे दो साल तक ठहरा। जो कोई भी उससे मिलने आता, वह उसका स्वागत करता। 31 वह परमेश्वर के राज्य का प्रचार करता और प्रभु यीशु मसीह के विषय में उपदेश देता। वह इस कार्य को पूरी निर्भयता और बिना कोई बाधा माने किया करता था।
लड़के को दुष्टात्मा से छुटकारा
(मत्ती 17:14-18; मरकुस 9:14-27)
37 अगले दिन ऐसा हुआ कि जब वे पहाड़ी से नीचे उतरे तो उन्हें एक बड़ी भीड़ मिली। 38 तभी भीड़ में से एक व्यक्ति चिल्ला उठा, “गुरु, मैं प्रार्थना करता हूँ कि मेरे बेटे पर अनुग्रह-दृष्टि कर। वह मेरी एकलौती सन्तान है। 39 अचानक एक दुष्ट आत्मा उसे जकड़ लेती है और वह चीख उठता है। उसे दुष्टात्मा ऐसे मरोड़ डालती है कि उसके मुँह से झाग निकलने लगता है। वह उसे कभी नहीं छोड़ती और सताए जा रही है। 40 मैंने तेरे शिष्यों से प्रार्थना की कि वह उसे बाहर निकाल दें किन्तु वे ऐसा नहीं कर सके।”
41 तब यीशु ने उत्तर दिया, “अरे अविश्वासियों और भटकाये गये लोगों, मैं और कितने दिन तुम्हारे साथ रहूँगा और कब तक तुम्हारे साथ रहूँगा? अपने बेटे को यहाँ ले आ।”
42 अभी वह लड़का आ ही रहा था कि दुष्टात्मा ने उसे पटकी दी और मरोड़ दिया। किन्तु यीशु ने दुष्ट आत्मा को फटकारा और लड़के को निरोग करके वापस उसके पिता को सौंप दिया। 43 वे सभी परमेश्वर की इस महानता से चकित हो उठे।
यीशु द्वारा अपनी मृत्यु की चर्चा
(मत्ती 17:22-23; मरकुस 9:30-32)
यीशु जो कुछ कर रहा था उसे देखकर लोग जब आश्चर्य कर रहे थे तभी यीशु ने अपने शिष्यों से कहा, 44 “अब जो मैं तुमसे कह रहा हूँ, उन बातों पर ध्यान दो। मनुष्य का पुत्र मनुष्य के हाथों पकड़वाया जाने वाला है।” 45 किन्तु वे इस बात को नहीं समझ सके। यह बात उनसे छुपी हुई थी। सो वे उसे जान नहीं पाये। और वे उस बात के विषय में उससे पूछने से डरते थे।
सबसे बड़ा कौन?
(मत्ती 18:1-5; मरकुस 9:33-37)
46 एक बार यीशु के शिष्यों के बीच इस बात पर विवाद छिड़ा कि उनमें सबसे बड़ा कौन है? 47 यीशु ने जान लिया कि उनके मन में क्या विचार हैं। सो उसने एक बच्चे को लिया और उसे अपने पास खड़ा करके 48 उनसे बोला, “जो कोई इस छोटे बच्चे का मेरे नाम में सत्कार करता है, वह मानों मेरा ही सत्कार कर रहा है। और जो कोई मेरा सत्कार करता है, वह उसका ही सत्कार कर रहा है जिसने मुझे भेजा है। इसीलिए जो तुममें सबसे छोटा है, वही सबसे बड़ा है।”
जो तुम्हारा विरोधी नहीं है, वह तुम्हारा ही है
(मरकुस 9:38-40)
49 यूहन्ना ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “स्वामी, हमने तेरे नाम पर एक व्यक्ति को दुष्टात्माएँ निकालते देखा है। हमने उसे रोकने का प्रयत्न किया, क्योंकि वह हममें से कोई नहीं है, जो तेरा अनुसरण करते हैं।”
50 इस पर यीशु ने यूहन्ना से कहा, “उसे रोक मत, क्योंकि जो तेरे विरोध में नहीं है, वह तेरे पक्ष में ही है।”
© 1995, 2010 Bible League International