Book of Common Prayer
कोरह वंशियों के ओर से संगीत निर्देशक के लिये यातना पूर्ण व्याधि के विषय में एज्रा वंशी हेमान का एक कलापूर्ण स्तुति गीत।
1 हे परमेश्वर यहोवा, तू मेरा उद्धारकर्ता है।
मैं तेरी रात दिन विनती करता रहा हूँ।
2 कृपा करके मेरी प्रार्थनाओं पर ध्यान दे।
मुझ पर दया करने को मेरी प्रार्थनाएँ सुन।
3 मैं अपनी पीड़ाओं से तंग आ चुका हूँ।
बस मैं जल्दी ही मर जाऊँगा।
4 लोग मेरे साथ मुर्दे सा व्यवहार करने लगे हैं।
उस व्यक्ति की तरह जो जीवित रहने के लिये अति बलहीन हैं।
5 मेरे लिये मरे व्यक्तियों में ढूँढ़।
मैं उस मुर्दे सा हूँ जो कब्र में लेटा है,
और लोग उसके बारे में सब कुछ ही भूल गए।
6 हे यहोवा, तूने मुझे धरती के नीचे कब्र में सुला दिया।
तूने मुझे उस अँधेरी जगह में रख दिया।
7 हे परमेश्वर, तुझे मुझ पर क्रोध था,
और तूने मुझे दण्डित किया।
8 मुझको मेरे मित्रों ने त्याग दिया है।
वे मुझसे बचते फिरते हैं जैसे मैं कोई ऐसा व्यक्ति हूँ जिसको कोई भी छूना नहीं चाहता।
घर के ही भीतर बंदी बन गया हूँ। मैं बाहर तो जा ही नहीं सकता।
9 मेरे दु:खों के लिये रोते रोते मेरी आँखे सूज गई हैं।
हे यहोवा, मैं तुझसे निरतंर प्रार्थना करता हूँ।
तेरी ओर मैं अपने हाथ फैला रहा हूँ।
10 हे यहोवा, क्या तू अद्भुत कर्म केवल मृतकों के लिये करता है?
क्या भूत (मृत आत्माएँ) जी उठा करते हैं और तेरी स्तुति करते हैं? नहीं।
11 मरे हुए लोग अपनी कब्रों के बीच तेरे प्रेम की बातें नहीं कर सकते।
मरे हुए व्यक्ति मृत्युलोक के भीतर तेरी भक्ति की बातें नहीं कर सकते।
12 अंधकार में सोये हुए मरे व्यक्ति उन अद्भुत बातों को जिनको तू करता है, नहीं देख सकते हैं।
मरे हुए व्यक्ति भूले बिसरों के जगत में तेरे खरेपन की बातें नहीं कर सकते।
13 हे यहोवा, मेरी विनती है, मुझको सहारा दे!
हर अलख सुबह मैं तेरी प्रार्थना करता हूँ।
14 हे यहोवा, क्या तूने मुझको त्याग दिया?
तूने मुझ पर कान देना क्यों छोड़ दिया?
15 मैं दुर्बल और रोगी रहा हूँ।
मैंने बचपन से ही तेरे क्रोध को भोगा है। मेरा सहारा कोई भी नहीं रहा।
16 हे यहोवा, तू मुझ पर क्रोधित है
और तेरा दण्ड मुझको मार रहा है।
17 मुझे ऐसा लगता है, जैसे पीड़ा और यातनाएँ सदा मेरे संग रहती हैं।
मैं अपनी पीड़ाओं और यातनाओं में डूबा जा रहा हूँ।
18 हे यहोवा, तूने मेरे मित्रों और प्रिय लोगों को मुझे छोड़ चले जाने को विवश कर दिया।
मेरे संग बस केवल अंधकार रहता है।
1 तुम परम परमेश्वर की शरण में छिपने के लिये जा सकते हो।
तुम सर्वशक्तिमान परमेश्वर की शरण में संरक्षण पाने को जा सकते हो।
2 मैं यहोवा से विनती करता हूँ, “तू मेरा सुरक्षा स्थल है मेरा गढ़,
हे परमेश्वर, मैं तेरे भरोसे हूँ।”
3 परमेश्वर तुझको सभी छिपे खतरों से बचाएगा।
परमेश्वर तुझको सब भयानक व्याधियों से बचाएगा।
4 तुम परमेश्वर की शरण में संरक्षण पाने को जा सकते हो।
और वह तुम्हारी ऐसे रक्षा करेगा जैसे एक पक्षी अपने पंख फैला कर अपने बच्चों की रक्षा करता है।
परमेश्वर तुम्हारे लिये ढाल और दीवार सा तुम्हारी रक्षा करेगा।
5 रात में तुमको किसी का भय नहीं होगा,
और शत्रु के बाणों से तू दिन में भयभीत नहीं होगा।
6 तुझको अंधेरे में आने वाले रोगों
और उस भयानक रोग से जो दोपहर में आता है भय नहीं होगा।
7 तू हजार शत्रुओं को पराजित कर देगा।
तेरा स्वयं दाहिना हाथ दस हजार शत्रुओं को हरायेगा।
और तेरे शत्रु तुझको छू तक नहीं पायेंगे।
8 जरा देख, और तुझको दिखाई देगा
कि वे कुटिल व्यक्ति दण्डित हो चुके हैं।
9 क्यों? क्योंकि तू यहोवा के भरोसे है।
तूने परम परमेश्वर को अपना शरणस्थल बनाया है।
10 तेरे साथ कोई भी बुरी बात नहीं घटेगी।
कोई भी रोग तेरे घर में नहीं होगा।
11 क्योंकि परमेश्वर स्वर्गदूतों को तेरी रक्षा करने का आदेश देगा। तू जहाँ भी जाएगा वे तेरी रक्षा करेंगे।
12 परमेश्वर के दूत तुझको अपने हाथों पर ऊपर उठायेंगे।
ताकि तेरा पैर चट्टान से न टकराए।
13 तुझमें वह शक्ति होगी जिससे तू सिंहों को पछाडेगा
और विष नागों को कुचल देगा।
14 यहोवा कहता है, “यदि कोई जन मुझ में भरोसा रखता है तो मैं उसकी रक्षा करूँगा।
मैं उन भक्तों को जो मेरे नाम की आराधना करते हैं, संरक्षण दूँगा।”
15 मेरे भक्त मुझको सहारा पाने को पुकरेंगे और मैं उनकी सुनूँगा।
वे जब कष्ट में होंगे मैं उनके साथ रहूँगा।
मैं उनका उद्धार करूँगा और उन्हें आदर दूँगा।
16 मैं अपने अनुयायियों को एक लम्बी आयु दूँगा
और मैं उनकीरक्षा करूँगा।
सब्त के दिन के लिये एक स्तुति गीत।
1 यहोवा का गुण गाना उत्तम है।
हे परम परमेश्वर, तेरे नाम का गुणगान उत्तम है।
2 भोर में तेरे प्रेम के गीत गाना
और रात में तेरे भक्ति के गीत गाना उत्तम है।
3 हे परमेश्वर, तेरे लिये वीणा, दस तार वाद्य
और सांरगी पर संगीत बजाना उत्तम है।
4 हे यहोवा, तू सचमुच हमको अपने किये कर्मो से आनन्दित करता है।
हम आनन्द से भर कर उन गीतों को गाते हैं, जो कार्य तूने किये हैं।
5 हे यहोवा, तूने महान कार्य किये,
तेरे विचार हमारे लिये समझ पाने में गंभीर हैं।
6 तेरी तुलना में मनुष्य पशुओं जैसे हैं।
हम तो मूर्ख जैसे कुछ भी नहीं समझ पाते।
7 दुष्ट जन घास की तरह जीते और मरते हैं।
वे जो भी कुछ व्यर्थ कार्य करते हैं, उन्हें सदा सर्वदा के लिये मिटाया जायेगा।
8 किन्तु हे यहोवा, अनन्त काल तक तेरा आदर रहेगा।
9 हे यहोवा, तेरे सभी शत्रु मिटा दिये जायेंगे।
वे सभी व्यक्ति जो बुरा काम करते हैं, नष्ट किये जायेंगे।
10 किन्तु तू मुझको बलशाली बनाएगा।
मैं शक्तिशाली मेंढ़े सा बन जाऊँगा जिसके कड़े सिंग होते हैं।
तूने मुझे विशेष काम के लिए चुना है। तूने मुझ पर अपना तेल ऊँडेला है जो शीतलता देता है।
11 मैं अपने चारों ओर शत्रु देख रहा हूँ। वे ऐसे हैं जैसे विशालकाय सांड़ मुझ पर प्रहार करने को तत्पर है।
वे जो मेरे विषय में बाते करते हैं उनको मैं सुनता हूँ।
12 सज्जन लोग तो लबानोन के विशाल देवदार वृक्ष की तरह है
जो यहोवा के मन्दिर में रोपे गए हैं।
13 सज्जन लोग बढ़ते हुए ताड़ के पेड़ की तरह हैं,
जो यहोवा के मन्दिर के आँगन में फलवन्त हो रहे हैं।
14 वे जब तक बूढ़े होंगे तब तक वे फल देते रहेंगे।
वे हरे भरे स्वस्थ वृक्षों जैसे होंगे।
15 वे हर किसी को यह दिखाने के लिये वहाँ है
कि यहोवा उत्तम है।
वह मेरी चट्टान है!
वह कभी बुरा नहीं करता।
अबीमेलेक राजा बना
9 अबीमेलेक यरुब्बाल (गिदोन) का पुत्र था। अबीमेलेक अपने उन मामाओं के पास गया जो शकेम नगर में रहते थे। उसने अपने मामाओं और माँ के परिवार से कहा 2 “शकेम नगर के प्रमुखों से यह प्रश्न पूछो: ‘यरूब्बाल के सत्तर पुत्रों से आप लोगों का शासित होना अच्छा है या किसी एक ही व्यक्ति से शासित होना? याद रखो, मैं तुम्हारा सम्बन्धी हूँ।’”
3 अबीमेलेक के मामाओं ने शकेम के प्रमुखों से बात की और उनसे वह प्रश्न किया। शकेम के प्रमुखों ने अबीमेलेक का अनुसरण करने का निश्चय किया। प्रमुखों ने कहा, “आखिरकार वह हमारा भाई है।” 4 इसलिए शकेम के प्रमुखों ने अबीमेलेक को सत्तर चाँदी के टुकड़े दिये। वह चाँदी बालबरोत देवता के मन्दिर की थी। अबीमेलेक ने चाँदी का उपयोग कुछ व्यक्तियों को काम पर लगाने के लिये किया। ये व्यक्ति खूँखार और बेकार थे। वे अबीमेलेक के पीछे, जहाँ कहीं वह गया, चलते रहे।
5 अबीमेलेक ओप्रा नगर को गया। ओप्रा उसके पिता का निवास स्थान था। उस नगर में अबीमेलेक ने अपने सत्तर भाईयों की हत्या कर दी। वे सत्तर भाई अबीमेलेक के पिता यरूब्बाल के पुत्र थे। उसने सभी को एक पत्थर पर मारा[a] किन्तु यरुब्बाल का सबसे छोटा पुत्र अबीमेलेक से दूर छिप गया और भाग निकला। सबसे छोटे पुत्र का नाम योताम था।
6 तब शकेम नगर के सभी प्रमुख और बेतमिल्लो के महल के सदस्य एक साथ आए। वे सभी लोग उस पाषाण—स्तम्भ के निकट के बड़े पेड़ के पास इकट्ठे हुए जो शकेम नगर में था और उन्होंने अबीमेलेक को अपना राजा बनाया।
योताम की कथा
7 योताम ने सुना कि शकेम के प्रमुखों ने अबीमेलेक को राजा बना दिया है। जब उसने यह सुना तो वह गया और गरिज्जीम पर्वत की चोटी पर खड़ा हुआ। योताम ने लोगों को यह कथा चिल्लाकर सुनाई।
“शकेम के लोगो, मेरी बात सुनो और तब आपकी बात परमेश्वर सुनेगा।
8 “एक दिन पेड़ों ने अपने ऊपर शासन करने के लिए एक राजा चुनने का निर्णय किया। पेड़ों ने जैतून के पेड़ से कहा, ‘तुम हमारे ऊपर राजा बनो।’
9 “किन्तु जैतून के पेड़ ने कहा, ‘मनुष्य और ईश्वर मेरी प्रशंसा मेरे तेल के लिये करते हैं। क्या मैं जाकर केवल अन्य पेड़ों पर सासन करने के लिये अपना तेल बनाना बन्द कर दूँ?’
10 “तब पेड़ों ने अंजीर के पेड़ से कहा, ‘आओ और हमारे राजा बनो।’
11 “किन्तु अंजीर के पेड़ ने उत्तर दिया, ‘क्या मैं केवल जाकर अन्य पेड़ों पर शासन करने के लिये अपने मीठे और अच्छे फल पैदा करने बन्द करदूँ?’
12 “तब पेड़ों ने अंगूर की बेल से कहा, ‘आओ और हमरे राजा बनो।’
13 “किन्तु अंगूर की बेल ने उत्तर दिया, ‘मेरी दाखमधु मनुष्य और ईश्वर दोनों को प्रसन्न करती है। क्या मुझे केवल जाकर पेड़ों पर शासन करने के लिये अपनी दाखमधु पैदा करना बन्द कर देना चाहिए।’
14 “अन्त में पेड़ों ने कटीली झाड़ी से कहा, ‘आओ और हमारे राजा बनो।’
15 “किन्तु कटीली झाड़ी ने पेड़ों से कहा, ‘यदि तुम सचमुच मुझे अपने ऊपर राजा बनाना चाहते हो तो आओ और मेरी छाया में अपनी शरण बनाओ। यदि तुम ऐसा करना नहीं चाहते तो इस कटीली झाड़ी से आग निकलने दो, और उस आग को लबानोन के चीड़ के पेड़ों को भी जला देने दो।’
16 “यदि आप पूरी तरह उस समय ईमानदार थे जब आप लोगों ने अबीमेलेक को राजा बनाया, तो आप लोगों को उससे प्रसन्न होना चाहिए। यदि आप लोगों ने यरुब्बाल और उसके परिवार के लोगों के साथ उचित व्यवहार किया है तो, यह बहुत अच्छा है। यदि आपने यरुब्बाल के साथ वही व्यवहार किया है जो आपको करना चाहिये तो यही अच्छा है।
19 इसलिये यदि आज आप लोग पूरी तरह यरुब्बाल और उसके परिवार के प्रति ईमानदार रहे हैं, तब अबीमेलेक को अपना राजा मानकर आप प्रसन्न हो सकते हैं और वह भी आप लोगों से प्रसन्न हो सकता है। 20 किन्तु यदि आपने उचित नहीं किया है तो, अबीमेलेक शकेम नगर के सभी प्रमुखों और मिल्लो के महल को नष्ट कर डाले। शकेम नगर के प्रमुख भी अबीमेलेक को नष्ट कर डालें।”
21 योताम यह सब कहने के बाद भाग खड़ा हुआ। वह भागकर बेर नगर मे पहुँचा। योताम उस नगर मे रहता था, क्योंकि वह अपने भाई अबीमेलेक से भयभीत था।
13 उन्होंने जब पतरस और यूहन्ना की निर्भीकता को देखा और यह समझा कि वे बिना पढ़े लिखे और साधारण से मनुष्य हैं तो उन्हें बहुत आश्चर्य हुआ। फिर वे जान गये कि ये यीशु के साथ रह चुके लोग हैं। 14 और क्योंकि वे उस व्यक्ति को जो चंगा हुआ था, उन ही के साथ खड़ा देख पा रहे थे सो उनके पास कहने को कुछ नहीं रहा।
15 उन्होंने उनसे यहूदी महासभा से निकल जाने को कहा और फिर वे यह कहते हुए आपस में विचार-विमर्श करने लगे, 16 “इन लोगों के साथ कैसा व्यवहार किया जाये? क्योंकि यरूशलेम में रहने वाला हर कोई जानता है कि इनके द्वारा एक उल्लेखनीय आश्चर्यकर्म किया गया है और हम उसे नकार भी नहीं सकते। 17 किन्तु हम इन्हें चेतावनी दे दें कि वे इस नाम की चर्चा किसी और व्यक्ति से न करें ताकि लोगों में इस बात को और फैलने से रोका जा सके।”
18 सो उन्होंने उन्हें अन्दर बुलाया और आज्ञा दी कि यीशु के नाम पर वे न तो किसी से कोई ही चर्चा करें और न ही कोई उपदेश दें। 19 किन्तु पतरस और यूहन्ना ने उन्हें उत्तर दिया, “तुम ही बताओ, क्या परमेश्वर के सामने हमारे लिये यह उचित होगा कि परमेश्वर की न सुन कर हम तुम्हारी सुनें? 20 हम, जो कुछ हमने देखा है और सुना है, उसे बताने से नहीं चूक सकते।”
21-22 फिर उन्होंने उन्हें और धमकाने के बाद छोड़ दिया। उन्हें दण्ड देने का उन्हें कोई रास्ता नहीं मिल सका क्योंकि जो घटना घटी थी, उसके लिये सभी लोग परमेश्वर की स्तुति कर रहे थे। जिस व्यक्ति पर अच्छा करने का यह आश्चर्यकर्म किया गया था, उसकी आयु चालीस साल से ऊपर थी।
पतरस और यूहन्ना की वापसी
23 जब उन्हें छोड़ दिया गया तो वे अपने ही लोगों के पास आ गये और उनसे जो कुछ प्रमुख याजकों और बुजुर्ग यहूदी नेताओं ने कहा था, वह सब उन्हें कह सुनाया। 24 जब उन्होंने यह सुना तो मिल कर ऊँचे स्वर में वे परमेश्वर को पुकारते हुए बोले, “स्वामी, तूने ही आकाश, धरती, समुद्र और उनके अन्दर जो कुछ है, उसकी रचना की है। 25 तूने ही पवित्र आत्मा के द्वारा अपने सेवक, हमारे पूर्वज दाऊद के मुख से कहा था:
‘इन जातियों ने जाने क्यों अपना अहंकार दिखाया?
लोगों ने व्यर्थ ही षड़यन्त्र क्यों रच डाले?
26 ‘धरती के राजाओं ने, उसके विरुद्ध युद्ध करने को तैयार किया।
और शासक प्रभु और उसके मसीह के विरोध में एकत्र हुए।’(A)
27 हाँ, हेरोदेस और पुन्तियुस पिलातुस भी इस नगर में ग़ैर यहूदियों और इस्राएलियों के साथ मिल कर तेरे पवित्र सेवक यीशु के विरोध में, जिसे तूने मसीह के रूप में अभिषिक्त किया था, वास्तव में एकजुट हो गये थे। 28 वे इकट्ठे हुए ताकि तेरी शक्ति और इच्छा के अनुसार जो कुछ पहले ही निश्चित हो चुका था, वह पूरा हो। 29 और अब हे प्रभु, उनकी धमकियों पर ध्यान दे और अपने सेवकों को निर्भयता के साथ तेरे वचन सुनाने की शक्ति दे। 30 जबकि चंगा करने के लिये तू अपना हाथ बढ़ाये और चिन्ह तथा अद्भुत कर्म तेरे पवित्र सेवकों द्वारा यीशु के नाम पर किये जा रहे हों।”
31 जब उन्होंने प्रार्थना पूरी की तो जिस स्थान पर वे एकत्र थे, वह हिल उठा और उन सब में पवित्र आत्मा समा गया, और वे निर्भयता के साथ परमेश्वर के वचन बोलने लगे।
काना में विवाह
2 गलील के काना में तीसरे दिन किसी के यहाँ विवाह था। यीशु की माँ भी मौजूद थी। 2 शादी में यीशु और उसके शिष्यों को भी बुलाया गया था। 3 वहाँ जब दाखरस खत्म हो गया, तो यीशु की माँ ने कहा, “उनके पास अब और दाखरस नहीं है।”
4 यीशु ने उससे कहा, “यह तू मुझसे क्यों कह रही है? मेरा समय अभी नहीं आया।”
5 फिर उसकी माँ ने सेवकों से कहा, “वही करो जो तुमसे यह कहता है।”
6 वहाँ पानी भरने के पत्थर के छह मटके रखे थे। ये मटके वैसे ही थे जैसे यहूदी पवित्र स्नान के लिये काम में लाते थे। हर मटके में कोई बीस से तीस गैलन तक पानी आता था।
7 यीशु ने सेवकों से कहा, “मटकों को पानी से भर दो।” और सेवकों ने मटकों को लबालब भर दिया।
8 फिर उसने उनसे कहा, “अब थोड़ा बाहर निकालो, और दावत का इन्तज़ाम कर रहे प्रधान के पास उसे ले जाओ।”
और वे उसे ले गये। 9 फिर दावत के प्रबन्धकर्ता ने उस पानी को चखा जो दाखरस बन गया था। उसे पता ही नहीं चला कि वह दाखरस कहाँ से आया। पर उन सेवकों को इसका पता था जिन्होंने पानी निकाला था। फिर दावत के प्रबन्धक ने दूल्हे को बुलाया। 10 और उससे कहा, “हर कोई पहले उत्तम दाखरस परोसता है और जब मेहमान काफ़ी तृप्त हो चुकते हैं तो फिर घटिया। पर तुमने तो उत्तम दाखरस अब तक बचा रखा है।”
11 यीशु ने गलील के काना में यह पहला आश्चर्यकर्म करके अपनी महिमा प्रकट की। जिससे उसके शिष्यों ने उसमें विश्वास किया।
12 इसके बाद यीशु अपनी माता, भाईयों और शिष्यों के साथ कफ़रनहूम चला गया जहाँ वे कुछ दिन ठहरे।
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