Book of Common Prayer
एक पीड़ित व्यक्ति की उस समय की प्रार्थना। जब वह अपने को टूटा हुआ अनुभव करता है और अपनी वेदनाओं कष्ट यहोवा से कह डालना चाहता है।
1 यहोवा मेरी प्रार्थना सुन!
तू मेरी सहायता के लिये मेरी पुकार सुन।
2 यहोवा जब मैं विपत्ति में होऊँ मुझ से मुख मत मोड़।
जब मैं सहायता पाने को पुकारूँ तू मेरी सुन ले, मुझे शीघ्र उत्तर दे।
3 मेरा जीवन वैसे बीत रहा जैसा उड़ जाता धुँआ।
मेरा जीवन ऐसे है जैसे धीरे धीरे बुझती आग।
4 मेरी शक्ति क्षीण हो चुकी है।
मैं वैसा ही हूँ जैसा सूखी मुरझाती घास।
अपनी वेदनाओं में मुझे भूख नहीं लगती।
5 निज दु:ख के कारण मेरा भार घट रहा है।
6 मैं अकेला हूँ जैसे कोई एकान्त निर्जन में उल्लू रहता हो।
मैं अकेला हूँ जैसे कोई पुराने खण्डर भवनों में उल्लू रहता हो।
7 मैं सो नहीं पाता
मैं उस अकेले पक्षी सा हो गया हूँ, जो धत पर हो।
8 मेरे शत्रु सदा मेरा अपमान करते है,
और लोग मेरा नाम लेकर मेरी हँसी उड़ाते हैं।
9 मेरा गहरा दु:ख बस मेरा भोजन है।
मेरे पेयों में मेरे आँसू गिर रहे हैं।
10 क्यों क्योंकि यहोवा तू मुझसे रूठ गया है।
तूने ही मुझे ऊपर उठाया था, और तूने ही मुझको फेंक दिया।
11 मेरे जीवन का लगभग अंत हो चुका है। वैसे ही जैसे शाम को लम्बी छायाएँ खो जाती है।
मैं वैसा ही हूँ जैसे सूखी और मुरझाती घास।
12 किन्तु हे यहोवा, तू तो सदा ही अमर रहेगा।
तेरा नाम सदा और सर्वदा बना ही रहेगा।
13 तेरा उत्थान होगा और तू सिय्योन को चैन देगा।
वह समय आ रहा है, जब तू सिय्योन पर कृपालु होगा।
14 तेरे भक्त, उसके (यरूशलेम के) पत्यरों से प्रेम करते हैं।
वह नगर उनको भाता है।
15 लोग यहोवा के नाम कि आराधना करेंगे।
हे परमेश्वर, धरती के सभी राजा तेरा आदर करेंगे।
16 क्यों? क्योंकि यहोवा फिर से सिय्योन को बनायेगा।
लोग फिर उसके (यरूशलेम के) वैभव को देखेंगे।
17 जिन लोगों को उसने जीवित छोड़ा है, परमेश्वर उनकी प्रार्थनाएँ सुनेगा।
परमेश्वर उनकी विनतियों का उत्तर देगा।
18 उन बातों को लिखो ताकि भविष्य के पीढ़ी पढ़े।
और वे लोग आने वाले समय में यहोवा के गुण गायेंगे।
19 यहोवा अपने ऊँचे पवित्र स्थान से नीचे झाँकेगा।
यहोवा स्वर्ग से नीचे धरती पर झाँकेगा।
20 वह बंदी की प्रार्थनाएँ सुनेगा।
वह उन व्यक्तियों को मुक्त करेगा जिनको मृत्युदण्ड दिया गया।
21 फिर सिय्योन में लोग यहोवा का बखान करेंगे।
यरूशलेम में लोग यहोवा का गुण गायेंगे।
22 ऐसा तब होगा जब यहोवा लोगों को फिर एकत्र करेगा,
ऐसा तब होगा जब राज्य यहोवा की सेवा करेंगे।
23 मेरी शक्ति ने मुझको बिसार दिया है।
यहोवा ने मेरा जीवन घटा दिया है।
24 इसलिए मैंने कहा, “मेरे प्राण छोटी उम्र में मत हरा।
हे परमेश्वर, तू सदा और सर्वदा अमर रहेगा।
25 बहुत समय पहले तूने संसार रचा!
तूने स्वयं अपने हाथों से आकाश रचा।
26 यह जगत और आकाश नष्ट हो जायेंगे,
किन्तु तू सदा ही जीवित रहेगा!
वे वस्त्रों के समान जीर्ण हो जायेंगे।
वस्त्रों के समान ही तू उन्हें बदलेगा। वे सभी बदल दिये जायेंगे।
27 हे परमेश्वर, किन्तु तू कभी नहीं बदलता:
तू सदा के लिये अमर रहेगा।
28 आज हम तेरे दास है,
हमारी संतान भविष्य में यही रहेंगी
और उनकी संताने यहीं तेरी उपासना करेंगी।”
पाँचवाँ भाग
(भजनसंहिता 107–150)
1 यहोवा का धन्यवाद करो, क्योंकि वह उत्तम है।
उसका प्रेम अमर है।
2 हर कोई ऐसा व्यक्ति जिसे यहोवा ने बचाया है, इन राष्ट्रों को कहे।
हर कोई ऐसा व्यक्ति जिसे यहोवा ने अपने शत्रुओं से छुड़ाया उसके गुण गाओ।
3 यहोवा ने निज भक्तों को बहुत से अलग अलग देशों से इकट्ठा किया है।
उसने उन्हें पूर्व और पश्चिम से, उत्तर और दक्षिण से जुटाया है।
4 कुछ लोग निर्जन मरूभूमि में भटकते रहे।
वे लोग ऐसे एक नगर की खोज में थे जहाँ वे रह सकें।
किन्तु उन्हें कोई ऐसा नगर नहीं मिला।
5 वे लोग भूखे थे और प्यासे थे
और वे दुर्बल होते जा रहे थे।
6 ऐसे उस संकट में सहारा पाने को उन्होंने यहोवा को पुकारा।
यहोवा ने उन सभी लोगों को उनके संकट से बचा लिया।
7 परमेश्वर उन्हें सीधा उन नगरों में ले गया जहाँ वे बसेंगे।
8 परमेश्वर का धन्यवाद करो उसके प्रेम के लिये
और उन अद्भुत कर्मों के लिये जिन्हें वह अपने लोगों के लिये करता है।
9 प्यासी आत्मा को परमेश्वर सन्तुष्ट करता है।
परमेश्वर उत्तम वस्तुओं से भूखी आत्मा का पेट भरता है।
10 परमेश्वर के कुछ भक्त बन्दी बने ऐसे बन्दीगृह में, वे तालों में बंद थे, जिसमें घना अंधकार था।
11 क्यों? क्योंकि उन लोगों ने उन बातों के विरूद्ध लड़ाईयाँ की थी जो परमेश्वर ने कहीं थी,
परम परमेश्वर की सम्मति को उन्होंने सुनने से नकारा था।
12 परमेश्वर ने उनके कर्मो के लिये जो उन्होंने किये थे उन लोगों के जीवन को कठिन बनाया।
उन्होंने ठोकर खाई और वे गिर पड़े, और उन्हें सहारा देने कोई भी नहीं मिला।
13 वे व्यक्ति संकट में थे, इसलिए सहारा पाने को यहोवा को पुकारा।
यहोवा ने उनके संकटों से उनकी रक्षा की।
14 परमेश्वर ने उनको उनके अंधेरे कारागारों से उबार लिया।
परमेश्वर ने वे रस्से काटे जिनसे उनको बाँधा गया था।
15 यहोवा का धन्यवाद करो।
उसके प्रेम के लिये और उन अद्भुत कामों के लिये जिन्हें वह लोगों के लिये करता है उसका धन्यवाद करो।
16 परमेश्वर हमारे शत्रुओं को हराने में हमें सहायता देता है। उनके काँसें के द्वारों को परमेश्वर तोड़ गिरा सकता है।
परमेश्वर उनके द्वारों पर लगी लोहे कि आगलें छिन्न—भिन्न कर सकता है।
17 कुछ लोग अपने अपराधों
और अपने पापों से जड़मति बने।
18 उन लोगों ने खाना छोड़ दिया
और वे मरे हुए से हो गये।
19 वे संकट में थे सो उन्होंने सहायता पाने को यहोवा को पुकारा।
यहोवा ने उन्हें उनके संकटों से बचा लिया।
20 परमेश्वर ने आदेश दिया और लोगों को चँगा किया।
इस प्रकार वे व्यक्ति कब्रों से बचाये गये।
21 उसके प्रेम के लिये यहोवा का धन्यवाद करो उसके वे अद्भुत कामों के लिये उसका धन्यवाद करो
जिन्हें वह लोगों के लिये करता है।
22 यहोवा को धन्यवाद देने बलि अर्पित करो, सभी कार्मो को जो उसने किये हैं।
यहोवा ने जिनको किया है, उन बातों को आनन्द के साथ बखानो।
23 कुछ लोग अपने काम करने को अपनी नावों से समुद्र पार कर गये।
24 उन लोगों ने ऐसी बातों को देखा है जिनको यहोवा कर सकता है।
उन्होंने उन अद्भुत बातों को देखा है जिन्हें यहोवा ने सागर पर किया है।
25 परमेश्वर ने आदेश दिया, फिर एक तीव्र पवन तभी चलने लगी।
बड़ी से बड़ी लहरे आकार लेने लगी।
26 लहरे इतनी ऊपर उठीं जितना आकाश हो
तूफान इतना भयानक था कि लोग भयभीत हो गये।
27 लोग लड़खड़ा रहे थे, गिरे जा रहे थे जैसे नशे में धुत हो।
खिवैया उनकी बुद्धि जैसे व्यर्थ हो गयी हो।
28 वे संकट में थे सो उन्होंने सहायता पाने को यहोवा को पुकारा।
तब यहोवा ने उनको संकटों से बचा लिया।
29 परमेश्वर ने तूफान को रोका
और लहरें शांत हो गयी।
30 खिवैया प्रसन्न थे कि सागर शांत हुआ था।
परमेश्वर उनको उसी सुरक्षित स्थान पर ले गया जहाँ वे जाना चाहते थे।
31 यहोवा का धन्यवाद करो उसके प्रेम के लिये धन्यवाद करो
उन अद्भुत कामों के लिये जिन्हें वह लोगों के लिये करता है।
32 महासभा के बीच उसका गुणगान करो।
जब बुजुर्ग नेता आपस में मिलते हों उसकी प्रशंसा करों।
मरियम मरी
20 इस्राएल के लोग सीन मरुभूमि में पहले महीने में पहुँचे। लोग कादेश में ठहरे। मरियम की मृत्यु हो गई और वह वहाँ दफनाई गई।
मूसा की गलती
2 उस स्थान पर लोगों के लिए पर्याप्त पानी नहीं था। इसलिए लोग मूसा और हारून के विरुद्ध शिकायत करने के लिए इकट्ठे हुए। 3 लोगों ने मूसा से बहस की। उन्होंने कहा, “क्या ही अच्छा होता हम अपने भाइयों की तरह यहोवा के सामने मर गए होते। 4 तुम यहोवा के लोगों को इस मरुभूमि में क्यों लाए? क्या तुम चाहते हो कि हम और हमारे जानवर यहाँ मर जाए? तुम हम लोगों को मिस्र से क्यों लाएय़ 5 तुम हम लोगों को इस बुरे स्थान पर क्यों लाए यहाँ कोई अन्न नहीं है, कोई अंजीर, अंगूर या अनार नहीं है और यहाँ पीने के लिए पानी नहीं है।”
6 इसलिए मूसा और हारून ने लोगों को छोड़ा और वे मिलापवाले तम्बू के द्वार पर पहुँचे। उन्होंने दण्डवत् (प्रणाम) किया और उन पर यहोवा का तेज प्रकाशित हुआ।
7 यहोवा ने मूसा से बात की। उसने कहा, 8 “अपने भाई हारून और लोगों की भीड़ को साथ लो और उस चट्टान तक जाओ। अपनी छड़ी को भी लो। लोगो के सामने चट्टान से बातें करो। तब चट्टान से पानी बहेगा और तुम वह पानी अपने लोगों और जानवरों को दे सकते हो।”
9 छड़ी यहोवा के सामने पवित्र तुम्बू में थी। मूसा ने यहोवा के कहने के अनुसार छड़ी ली। 10 तब उसने तथा हारून ने लोगों को चट्टान के सामने इकट्ठा होने को कहा। तब मूसा ने कहा, “तुम लोग सदा शिकायत करते हो। अब मेरी बात सुनो। हम इस चट्टान से पानी बहायेंगे।” 11 मूसा ने अपनी भुजा उठाई और दो बार चट्टान पर चोट की। चट्टान से पानी बहने लगा और लोगों तथा जानवरों ने पानी पिया।
12 किन्तु यहोवा ने मूसा और हारून से कहा, “इस्राएल के सभी लोग चारों ओर इकट्ठे थे। किन्तु तुमने मुझको सम्मान नहीं दिया। तुमने लोगों को नहीं दिखाया कि पानी निकालने की शक्ति मुझसे तुममें आई। तुमने लोगों को यह नहीं बताया कि तुमने मुझ पर विश्वास किया। मैं उन लोगों को वह देश दूँगा मैने जिसे देने का वचन दिया है। लेकिन तुम उस देश में उनको पहुँचाने वाले नहीं रहोगे।”
13 इस स्थान को मरीबा का पानी कहा जाता था। यही वह स्थान था जहाँ इस्राएल के लोगों ने यहोवा के साथ बहस की और यह वह स्थान था जहाँ यहोवा ने यह दिखाया कि वह पवित्र था।
आदम और यीशु
12 इसलिए एक व्यक्ति (आदम) के द्वारा जैसे धरती पर पाप आया और पाप से मृत्यु और इस प्रकार मृत्यु सब लोगों के लिए आयी क्योंकि सभी ने पाप किये थे। 13 अब देखो व्यवस्था के आने से पहले जगत में पाप था किन्तु जब तक कोई व्यवस्था नहीं होती किसी का भी पाप नहीं गिना जाता। 14 किन्तु आदम से लेकर मूसा के समय तक मौत सब पर राज करती रही। मौत उन पर भी वैसे ही हावी रही जिन्होंने पाप नहीं किये थे जैसे आदम पर।
आदम भी वैसा ही था जैसा वह जो (मसीह) आने वाला था। 15 किन्तु परमेश्वर का वरदान आदम के अपराध के जैसा नहीं था क्योंकि यदि उस एक व्यक्ति के अपराध के कारण सभी लोगों की मृत्यु हुई तो उस एक व्यक्ति यीशु मसीह की करुणा के कारण मिले परमेश्वर के अनुग्रह और वरदान तो सभी लोगों की भलाई के लिए कितना कुछ और अधिक है। 16 और यह वरदान भी उस पापी के द्वारा लाए गए परिणाम के समान नहीं है क्योंकि दण्ड के हेतु न्याय का आगमन एक अपराध के बाद हुआ था। किन्तु यह वरदान, जो दोष-मुक्ति की ओर ले जाता है, अनेक अपराधों के बाद आया था। 17 अतः यदि एक व्यक्ति के उस अपराध के कारण मृत्यु का शासन हो गया। तो जो परमेश्वर के अनुग्रह और उसके वरदान की प्रचुरता का—जिसमें धर्मी का निवास है—उपभोग कर रहे हैं—वे तो जीवन में उस एक व्यक्ति यीशु मसीह के द्वारा और भी अधिक शासन करेंगे।
18 सो जैसे एक अपराध के कारण सभी लोगों को दोषी ठहराया गया, वैसे ही एक धर्म के काम के द्वारा सब के लिए परिणाम में अनन्त जीवन प्रदान करने वाली धार्मिकता मिली। 19 अतः जैसे उस एक व्यक्ति के आज्ञा न मानने के कारण सब लोग पापी बना दिये गये वैसे ही उस एक व्यक्ति की आज्ञाकारिता के कारण सभी लोग धर्मी भी बना दिये जायेंगे। 20 व्यवस्था का आगमन इसलिए हुआ कि अपराध बढ़ पायें। किन्तु जहाँ पाप बढ़ा, वहाँ परमेश्वर का अनुग्रह और भी अधिक बढ़ा। 21 ताकि जैसे मृत्यु के द्वारा पाप ने राज्य किया ठीक वैसे ही हमारे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा अनन्त जीवन को लाने के लिये परमेश्वर की अनुग्रह धार्मिकता के द्वारा राज्य करे।
अंधों को आँखें
(मरकुस 10:46-52; लूका 18:35-43)
29 जब वे यरीहो नगर से जा रहे थे एक बड़ी भीड़ यीशु के पीछे हो ली। 30 वहाँ सड़क किनारे दो अंधे बैठे थे। जब उन्होंने सुना कि यीशु वहाँ से जा रहा है, वे चिल्लाये, “प्रभु, दाऊद के पुत्र, हम पर दया कर!”
31 इस पर भीड़ ने उन्हें धमकाते हुए चुप रहने को कहा पर वे और अधिक चिल्लाये, “प्रभु! दाऊद के पुत्र हम पर दया कर!”
32 फिर यीशु रुका और उनसे बोला, “तुम क्या चाहते हो, मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ?”
33 उन्होंने उससे कहा, “प्रभु, हम चाहते हैं कि हम देख सकें।”
34 यीशु को उन पर दया आयी। उसने उनकी आँखों को छुआ, और तुरंत ही वे फिर देखने लगे। वे उसके पीछे हो लिए।
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