Book of Common Prayer
1 यहोवा शासनकरता है, और धरती प्रसन्न हैं।
और सभी दूर के देश प्रसन्न हैं
2 यहोवा को काले गहरे बादल घेरे हुए हैं।
नेकी और न्याय उसके राज्य को दूढ़ किये हैं।
3 यहोवा के सामने आग चला करती है,
और वह उसके बैरियों का नाश करती है।
4 उसकी बिजली गगन में काँधा करती है।
लोग उसे देखते हैं और भयभीत रहते हैं।
5 यहोवा के सामने पहाड़ ऐसे पिघल जाते हैं, जैसे मोम पिघल जाती है।
वे धरती के स्वामी के सामने पिघल जाते हैं।
6 अम्बर उसकी नेकी का बखान करते हैं।
हर कोई परमेश्वर की महिमा देख ले।
7 लोग उनकी मूर्तियों की पूजा करते हैं।
वे अपने “देवताओं” की डींग हाँकते हैं।
लेकिन वे लोग लज्जित होंगे।
उनके “देवता” यहोवा के सामने झुकेंगे और उपासना करेंगे।
8 हे सिय्योन, सुन और प्रसन्न हो!
यहूदा के नगरों, प्रसन्न हो!
क्यों? क्योंकि यहोवा विवेकपूर्ण न्याय करता है।
9 हे सर्वोच्च यहोवा, सचमुच तू ही धरती पर शासन करता हैं।
तू दूसरे “देवताओं” से अधिक उत्तम है।
10 जो लोग यहोवा से प्रेम रखते हैं, वे पाप से घृणा करते हैं।
इसलिए परमेश्वर अपने अनुयायियों की रक्षा करता है। परमेश्वर अपने अनुयायियों को दुष्ट लोगों से बचाता है।
11 ज्योति और आनन्द
सज्जनों पर चमकते हैं।
12 हे सज्जनों परमेश्वर में प्रसन्न रहो!
उसके पवित्र नाम का आदर करते रहो!
1 यहोवा राजा है।
सो हे राष्ट्र, भय से काँप उठो।
परमेश्वर राजा के रूप में करूब दूतों पर विराजता है।
सो हे विश्व भय से काँप उठो।
2 यहोवा सिय्योन में महान है।
सारे मनुष्यों का वही महान राजा है।
3 सभी मनुष्य तेरे नाम का गुण गाएँ।
परमेश्वर का नाम भय विस्मय है।
परमेश्वर पवित्र है।
4 शक्तिशाली राजा को न्याय भाता है।
परमेश्वर तूने ही नेकी बनाया है।
तू ही याकूब (इस्राएल) के लिये खरापन और नेकी लाया।
5 यहोवा हमारे परमेश्वर का गुणगान करो,
और उसके पवित्र चरण चौकी की आराधना करो।
6 मूसा और हारुन परमेश्वर के याजक थे।
शमूएल परमेश्वर का नाम लेकर प्रार्थना करने वाला था।
उन्होंने यहोवा से विनती की
और यहोवा ने उनको उसका उत्तर दिया।
7 परमेश्वर ने ऊँचे उठे बादल में से बातें कीं।
उन्होंने उसके आदेशों को माना।
परमेश्वर ने उनको व्यवस्था का विधान दिया।
8 हमारे परमेश्वर यहोवा, तूने उनकी प्रार्थनाओं का उत्तर दिया।
तूने उन्हें यह दर्शाया कि तू क्षमा करने वाला परमेश्वर है,
और तू लोगों को उनके बुरे कर्मो के लिये दण्ड देता है।
9 हमारे परमेश्वर यहोवा के गुण गाओ।
उसके पवित्र पर्वत की ओर झुककर उसकी उपासना करो।
हमारा परमेश्वर यहोवा सचमुच पवित्र है।
धन्यवाद का एक गीत।
1 हे धरती, तुम यहोवा के लिये गाओ।
2 आनन्दित रहो जब तुम यहोवा की सेवा करो।
प्रसन्न गीतों के साथ यहोवा के सामने आओ।
3 तुम जान लो कि वह यहोवा ही परमेश्वर है।
उसने हमें रचा है और हम उसके भक्त हैं।
हम उसकी भेड़ हैं।
4 धन्यवाद के गीत संग लिये यहोवा के नगर में आओ,
गुणगान के गीत संग लिये यहोवा के मन्दिर में आओ।
उसका आदर करो और नाम धन्य करो।
5 यहोवा उत्तम है।
उसका प्रेम सदा सर्वदा है।
हम उस पर सदा सर्वदा के लिये भरोसा कर सकते हैं!
1 हे यहोवा, तू ही एक परमेश्वर है जो लोगों को दण्ड देता है।
तू ही एक परमेश्वर है जो आता है और लोगों के लिये दण्ड लाता है।
2 तू ही समूची धरती का न्यायकर्ता है।
तू अभिमानी को वह दण्ड देता है जो उसे मिलना चाहिए।
3 हे यहोवा, दुष्ट जन कब तक मजे मारते रहेंगे
उन बुरे कर्मो की जो उन्होंने किये हैं।
4 वे अपराधी कब तक डींग मारते रहेंगे
उन बुरे कर्मो को जो उन्होंने किये हैं।
5 हे यहोवा, वे लोग तेरे भक्तों को दु:ख देते हैं।
वे तेरे भक्तों को सताया करते हैं।
6 वे दुष्ट लोग विधवाओं और उन अतिथियों की जो उनके देश में ठहरे हैं, हत्या करते हैं।
वे उन अनाथ बालकों की जिनके माता पिता नहीं हैं हत्या करते हैं।
7 वे कहा करते हैं, यहोवा उनको बुरे काम करते हुए देख नहीं सकता।
और कहते हैं, इस्राएल का परमेश्वर उन बातों को नहीं समझता है, जो घट रही हैं।
8 अरे ओ दुष्ट जनों तुम बुद्धिहीन हो।
तुम कब अपना पाठ सीखोगे?
अरे ओ दुर्जनों तुम कितने मूर्ख हो!
तुम्हें समझने का जतन करना चाहिए।
9 परमेश्वर ने हमारे कान बनाएँ हैं, और निश्चय ही उसके भी कान होंगे।
सो वह उन बातों को सुन सकता है, जो घटिन हो रहीं हैं।
परमेश्वर ने हमारी आँखें बनाई हैं, सो निश्चय ही उसकी भी आँख होंगी।
सो वह उन बातों को देख सकता है, जो घटित हो रही है।
10 परमेश्वर उन लोगों को अनुशासित करेगा।
परमेश्वर उन लोगों को उन सभी बातों की शिक्षा देगा जो उन्हें करनी चाहिए।
11 सो जिन बातों को लोग सोच रहे हैं, परमेश्वर जानता है,
और परमेश्वर यह जानता है कि लोग हवा की झोंके हैं।
12 वह मनुष्य जिसको यहोवा सुधारता, अति प्रसन्न होगा।
परमेश्वर उस व्यक्ति को खरी राह सिखायेगा।
13 हे परमेश्वर, जब उस जन पर दु:ख आयेंगे तब तू उस जन को शांत होने में सहायक होगा।
तू उसको शांत रहने में सहायता देगा जब तक दुष्ट लोग कब्र में नहीं रख दिये जायेंगे।
14 यहोवा निज भक्तों को कभी नहीं त्यागेगा।
वह बिन सहारे उसे रहने नहीं देगा।
15 न्याय लौटेगा और अपने साथ निष्पक्षता लायेगा,
और फिर लोग सच्चे होंगे और खरे बनेंगे।
16 मुझको दुष्टों के विरूद्ध युद्ध करने में किसी व्यक्ति ने सहारा नहीं दिया।
कुकर्मियों के विरूद्ध युद्ध करने में किसी ने मेरा साथ नहीं दिया।
17 यदि यहोवा मेरा सहायक नहीं होता,
तो मुझे शब्द हीन (चुपचुप) होना पड़ता।
18 मुझको पता है मैं गिरने को था,
किन्तु यहोवा ने भक्तों को सहारा दिया।
19 मैं बहुत चिंतित और व्याकुल था,
किन्तु यहोवा तूने मुझको चैन दिया और मुझको आनन्दित किया।
20 हे यहोवा, तू कुटिल न्यायाधीशों की सहायता नहीं करता।
वे बुरे न्यायाधीश नियम का उपयोग लोगों का जीवन कठिन बनाने में करते हैं।
21 वे न्यायाधीश सज्जनों पर प्रहार करते हैं।
वे कहते हैं कि निर्दोष जन अपराधी हैं। और वे उनको मार डालते हैं।
22 किन्तु यहोवा ऊँचे पर्वत पर मेरा सुरक्षास्थल है,
परमेश्वर मेरी चट्टान और मेरा शरणस्थल है।
23 परमेश्वर उन न्यायाधीशों को उनके बुरे कामों का दण्ड देगा।
परमेश्वर उनको नष्ट कर देगा। क्योंकि उन्होंने पाप किया है।
हमारा परमेश्वर यहोवा उन दुष्ट न्यायाधीशों को नष्ट कर देगा।
1 आओ हम यहोवा के गुण गाएं!
आओ हम उस चट्टान का जय जयकार करें जो हमारी रक्षा करता है।
2 आओ हम यहोवा के लिये धन्यवाद के गीत गाएं।
आओ हम उसके प्रशंसा के गीत आनन्दपूर्वक गायें।
3 क्यों? क्योंकि यहोवा महान परमेश्वर है।
वह महान राजा सभी अन्य “देवताओं” पर शासन करता है।
4 गहरी गुफाएँ और ऊँचे पर्वत यहोवा के हैं।
5 सागर उसका है, उसने उसे बनाया है।
परमेश्वर ने स्वयं अपने हाथों से धरती को बनाया है।
6 आओ, हम उसको प्रणाम करें और उसकी उपासना करें।
आओ हम परमेश्वर के गुण गाये जिसने हमें बनाया है।
7 वह हमारा परमेश्वर
और हम उसके भक्त हैं।
यदि हम उसकी सुने
तो हम आज उसकी भेड़ हैं।
8 परमेश्वर कहता है, “तुम जैसे मरिबा और मरूस्थल के मस्सा में कठोर थे
वैसे कठोर मत बनो।
9 तेरे पूर्वजों ने मुझको परखा था।
उन्होंने मुझे परखा, पर तब उन्होंने देखा कि मैं क्या कर सकता हूँ।
10 मैं उन लोगों के साथ चालीस वर्ष तक धीरज बनाये रखा।
मैं यह भी जानता था कि वे सच्चे नहीं हैं।
उन लोगों ने मेरी सीख पर चलने से नकारा।
11 सो मैं क्रोधित हुआ और मैंने प्रतिज्ञा की
वे मेरे विशाल कि धरती पर कभी प्रवेश नहीं कर पायेंगे।”
यहूदा का राजा हिजकिय्याह
29 हिजकिय्याह जब पच्चीस वर्ष का था, राजा हुआ। उसने उनतीस वर्ष तक यरूशलेम में शासन किया। उसकी माँ का नाम अबिय्याह था। अबिय्याह जकर्याह की पुत्री थी। 2 हिजकिय्याह ने वही किया जो यहोवा चाहता था कि वह करे। उसने अपने पूर्वज दाऊद की तरह, जो उचित था, वही किया।
3 हिजकिय्याह ने यहोवा के मन्दिर के दरवाजों को जोड़ा और उन्हें मजबूत किया। हिजकिय्याह ने मन्दिर को फिर खोला। उसने राजा होने के बाद, वर्ष के पहले महीन में यह किया।
हिजकिय्याह फसहपर्व मनाता है
30 हिजकिय्याह ने इस्राएल और यहूदा के सभी लोगों को सन्देश भेजा। उसने एप्रैम और मनश्शे के लोगों को भी पत्र लिखा। हिजकिय्याह ने उन सभी लोगों को यरूशलेम में यहोवा के मन्दिर में आने के लिये निमन्त्रित किया जिससे वे सभी फसहपर्व यहोवा, इस्राएल के परमेश्वर के लिये मना सकें। 2 हिजकिय्याह ने सभी अधिकारियों और यरूशलेम की सभा से यह सलाह की कि फसह पर्व दूसरे महीने में मनाया जाये। 3 वे फसह पर्व को नियमित समय से न मना सके। क्यों? क्योंकि याजक पर्याप्त संख्या में पवित्र सेवा के लिये अपने को तैयार न कर सके और दूसरा कारण यह था कि लोग यरूशलेम में इकट्ठे नहीं हो सके थे। 4 इस सुझाव ने राजा हिजकिय्याह और पूरी सभा को सन्तुष्ट किया। 5 इसलिये उन्होंने इस्राएल में बेर्शेबा नगर से लेकर लगातार दान नगर तक हर एक स्थान पर घोषणा की। उन्होंने लोगों से कहा कि वे यरूशलेम में यहोवा, इस्राएल के परमेश्वर के लिये फसह पर्व मनाने आऐं। इस्राएल के बहुत बड़े समूह ने बहुत समय से फसह पर्व उस प्रकार नहीं मनाया था, जिस प्रकार मूसा के नियमों ने इसे मनाने को कहा था। 6 इसलिये दूत राजा का पत्र पूरे इस्राएल औऱ यहूदा में ले गए। उन पत्रों में यह लिखा था:
“इस्राएल की सन्तानों, इब्राहीम, इसहाक और इस्राएल (याकूब), जिस यहोवा, परमेश्वर की आज्ञा मानते थे उसके पास लौटो। तब यहोवा तुम लोगों के पास वापस आयेगा जो अश्शूर के राजा से बच गए हैं और अभी तक जीवित हैं। 7 अपने पिता और भाइयों की तरह न बनो। यहोवा उनका परमेश्वर था, किन्तु वे उसके विरुद्ध हो गए। इसलिये यहोवा ने उनके प्रति लोगों के हृदय में घृणा पैदा की और उनके बारे में बुरा कहलवाया। तुम स्वयं अपनी आँखों से देख सकते हो कि यह सत्य है। 8 अपने पूर्वजों की तरह हठी न बनो। अपितु सच्चे हृदय से यहोवा की आज्ञा मानो। सर्वार्धिक पवित्र स्थान पर आओ। यहोवा ने सर्वाधिक पवित्र स्थान को सदैव के लिये पवित्र बनाया है। अपने यहोवा, परमेश्वर की सेवा करो। तब यहोवा का डरावना क्रोध तुम पर से हट जाएगा। 9 यदि तुम लौटोगे और यहोवा की आज्ञा मानोगे तब तुम्हारे सम्बन्धी और बच्चे उन लोगों की कृपा पाएंगे जिन्होंने उन्हें बन्दी बनाया है और तुम्हारे सम्बन्धी और बच्चे इस देश में लौटेंगे। यहोवा, तुम्हारा परमेश्वर कृपालु है। यदि तुम उसके पास लौटोगे तो वह तुमसे दूर नहीं जायेगा।”
10 दूत एप्रैम और मनश्शे के क्षेत्रों के सभी नगरों में गए। वे लगातार पूरे जबूलून देश में गए। किन्तु लोगों ने दूतों की हँसी उड़ाई औऱ उनका मजाक उड़ाया। 11 किन्तु आशेर, मनश्शे और जबूलून देश के कुछ लोग विनम्र हुए और यरूशलेम गए। 12 यहूदा में परमेश्वर की शक्ति ने लोगों को संगठित किया ताकि वे राजा हिजकिय्याह औऱ उसके अधिकारियों की आज्ञा का पालन करें। इस तरह उन्होंने यहोवा की आज्ञा का पालन किया।
13 बहुत से लोग एक साथ यरूशलेम, दूसरे महीने में अखमीरी रोटी का उत्सव मनाने आए। यह बहुत बड़ी भीड़ थी। 14 उन लोगों ने यरूशलेम में असत्य देवताओं की वेदियों को हटा दिया। उन्होंने असत्य देवताओं के लिये सुगन्धि भेंट की वेदियों को भी हटा दिया। उन्होंने उन वेदियों को किद्रोन की घाटी में फेंक दिया। 15 तब उन्होंने फसह पर्व के मेमने को दूसरे महीने के चौदहवें दिन मारा। याजक और लेवीवंशी लज्जित हुए। उन्होंने अपने को पवित्र सेवा के लिये तैयार किया। याजक और लेवीवंशी होमबलि यहोवा के मन्दिर में ले आए। 16 मन्दिर में अपने लिए निर्धारित स्थान पर वे वैसे ही बैठे जैसा परमेश्वर के व्यक्ति मूसा के नियम में कहा गया था। लेवीवंशियों ने याजकों को खून दिया। तब याजकों ने खून को वेदी पर छिड़का। 17 उस समूह में बहुत से लोग ऐसे थे जिन्होंने अपने को पवित्र सेवा के लिये तैयार नहीं किया था अत: वे फसह पर्व के मेमने को मारने की स्वीकृति नहीं पा सके। यही कारण था कि लेवीवंशी उन सभी लोगों के लिए फसह पर्व के मेमने को मारने के उत्तरदायी थे जो शुद्ध नहीं थे। लेवीवंशी ने हर एक मेमने को यहोवा के लिये पवित्र बनाया।
18-19 एप्रैम, मनश्शे, इस्साकार और जबूलून के बहुत से लोगों ने फसह पर्व उत्सव के लिये अपने को ठीक प्रकार से तैयार नहीं किया था। उन्होंने फसह पर्व मूसा के नियम के अनुसार ठीक ढंग से नहीं मनाया। किन्तु हिजकिय्याह ने उन लोगों के लिए प्रार्थना की। इसलिये हिजकिय्याह ने यह प्रार्थना की, “यहोवा, परमेश्वर तू अच्छा है। ये लोग तेरी उपासना ठीक ढंग से करना चाहते थे, किन्तु वे अपने को नियम के अनुसार शुद्ध न कर सके, कृपया उन लोगों को क्षमा कर। तू परमेश्वर है जिसकी आज्ञा का पालन हमारे पूर्वजों ने किया। यदि किसी ने सर्वार्धिक पवित्र स्थान के नियम के अनुसार अपने को शुद्ध न किया तो भी क्षमा कर।” 20 यहोवा ने राजा हिजकिय्याह की प्रार्थना सुनी। यहोवा ने लोगों को क्षमा कर दिया। 21 इस्राएल की सन्तानों ने यरूशलेम में अखमीरी रोटी का उत्सव सात दिन तक मनाया। वे बहुत प्रसन्न थे। लेवीवंशी और याजकों ने अपनी पूरी शक्ति से हर एक दिन यहोवा की स्तुति की। 22 राजा हिजकिय्याह ने उन सभी लेवीवंशियों को उत्साहित किया जो अच्छी तरह समझ गये थे कि यहोवा की सेवा कैसे की जाती है। लोगों ने सात दिन तक पर्व मनाया और मेलबलि चढ़ाई। उन्होंने अपने पूर्वजों के यहोवा परमेश्वर को धन्यवाद दिया और उसकी स्तुति की।
23 सभी लोग सात दिन और ठहरने को सहमत हो गए। वे फसहपर्व मनाते समय सात दिन तक बड़े प्रसन्न रहे। 24 यहूदा के राजा हिजकिय्याह ने उस सभा को एक हज़ार बैल तथा सात हज़ार भेड़ें मारने और खाने के लिये दिये। प्रमुखों ने सभा को एक हज़ार बैल और दस हज़ार भेड़ें दीं। बहुत से याजकों ने पवित्र सेवा के लिये अपने को तैयार किया। 25 यहूदा की पूरी सभा, याजक, लेवीवंशी, इस्राएल से आने वाली पूरी सभा और वे यात्री जो इस्राएल से आए थे तथा यहूदा पहुँच गए थे, सभी लोग अत्यन्त प्रसन्न थे। 26 इस प्रकार यरूशलेम में बहुत आनन्द था। इस पर्व के समान कोई भी पर्व इस्राएल के राजा, दाऊद के पुत्र सुलैमान के समय के बाद से नहीं हुआ था। 27 याजक और लेवीवंशी खड़े हुए और यहोवा से लोगों को आशीर्वाद देने को कहा। परमेश्वर ने उनकी सुनी। उनकी प्रार्थना स्वर्ग में यहोवा के पवित्र निवास तक पहुँची।
32 मैं चाहता हूँ आप लोग चिंताओं से मुक्त रहें। एक अविवाहित व्यक्ति प्रभु सम्बन्धी विषयों के चिंतन में लगा रहता है कि वह प्रभु को कैसे प्रसन्न करे। 33 किन्तु एक विवाहित व्यक्ति सांसारिक विषयों में ही लिप्त रहता है कि वह अपनी पत्नी को कैसे प्रसन्न कर सकता है। 34 इस प्रकार उसका व्यक्तित्व बँट जाता है। और ऐसे ही किसी अविवाहित स्त्री या कुँवारी कन्या को जिसे बस प्रभु सम्बन्धी विषयों की ही चिंता रहती है। जिससे वह अपने शरीर और अपनी आत्मा से पवित्र हो सके। किन्तु एक विवाहित स्त्री सांसारिक विषयभोगों में इस प्रकार लिप्त रहती है कि वह अपने पति को रिझाती रह सके। 35 ये मैं तुमसे तुम्हारे भले के लिये ही कह रहा हूँ तुम पर प्रतिबन्ध लगाने के लिये नहीं। बल्कि अच्छी व्यवस्था को हित में और इसलिए भी कि तुम चित्त की चंचलता के बिना प्रभु को समर्पित हो सको।
36 यदि कोई सोचता है कि वह अपनी युवा हो चुकी कुँवारी प्रिया के प्रति उचित नहीं कर रहा है और यदि उसकी कामभावना तीव्र है, तथा दोनों को ही आगे बढ़ कर विवाह कर लेने की आवश्यकता है, तो जैसा वह चाहता है, उसे आगे बढ़ कर वैसा कर लेना चाहिये। वह पाप नहीं कर रहा है। उन्हें विवाह कर लेना चाहिये। 37 किन्तु जो अपने मन में बहुत पक्का है और जिस पर कोई दबाव भी नहीं है, बल्कि जिसका अपनी इच्छाओं पर भी पूरा बस है और जिसने अपने मन में पूरा निश्चय कर लिया है कि वह अपनी प्रिया से विवाह नहीं करेगा तो वह अच्छा ही कर रहा है। 38 सो वह जो अपनी प्रिया से विवाह कर लेता है, अच्छा करता है और जो उससे विवाह नहीं करता, वह और भी अच्छा करता है।
39 जब तक किसी स्त्री का पति जीवित रहता है, तभी तक वह विवाह के बन्धन में बँधी होती है किन्तु यदि उसके पति देहान्त हो जाता है, तो जिसके साथ चाहे, विवाह करने, वह स्वतन्त्र है किन्तु केवल प्रभु में। 40 पर यदि जैसी वह है, वैसी ही रहती है तो अधिक प्रसन्न रहेगी। यह मेरा विचार है। और मैं सोचता हूँ कि मुझमें भी परमेश्वर के आत्मा का ही निवास है।
यीशु का वचन: दूसरों को दोषी ठहराने के प्रति
(लूका 6:37-38, 41-42)
7 “दूसरों पर दोष लगाने की आदत मत डालो ताकि तुम पर भी दोष न लगाया जाये। 2 क्योंकि तुम्हारा न्याय उसी फैसले के आधार पर होगा, जो फैसला तुमने दूसरों का न्याय करते हुए दिया था। और परमेश्वर तुम्हें उसी नाप से नापेगा जिससे तुमने दूसरों को नापा है।
3 “तू अपने भाई बंदों की आँख का तिनका तक क्यों देखता है? जबकि तुझे अपनी आँख का लट्ठा भी दिखाई नहीं देता। 4 जब तेरी अपनी आँख में लट्ठा समाया है तो तू अपने भाई से कैसे कह सकता है कि तू मुझे तेरी आँख का तिनका निकालने दे। 5 ओ कपटी! पहले तू अपनी आँख से लट्ठा निकाल, फिर तू ठीक तरह से देख पायेगा और अपने भाई की आँख का तिनका निकाल पायेगा।
6 “कुत्तों को पवित्र वस्तु मत दो। और सुअरों के आगे अपने मोती मत बिखेरो। नहीं तो वे सुअर उन्हें पैरों तले रौंद डालेंगे। और कुत्ते पलट कर तुम्हारी भी धज्जियाँ उड़ा देंगे।
जो कुछ चाहते हो, उसके लिये परमेश्वर से प्रार्थना करते रहो
(लूका 11:9-13)
7 “परमेश्वर से माँगते रहो, तुम्हें दिया जायेगा। खोजते रहो तुम्हें प्राप्त होगा खटखटाते रहो तुम्हारे लिए द्वार खोल दिया जायेगा। 8 क्योंकि हर कोई जो माँगता ही रहता है, प्राप्त करता है। जो खोजता है पा जाता है और जो खटखटाता ही रहता है उसके लिए द्वार खोल दिया जाएगा।
9 “तुम में से ऐसा पिता कौन सा है जिसका पुत्र उससे रोटी माँगे और वह उसे पत्थर दे? 10 या जब वह उससे मछली माँगे तो वह उसे साँप दे दे। बताओ क्या कोई देगा? ऐसा कोई नहीं करेगा। 11 इसलिये यदि चाहे तुम बुरे ही क्यों न हो, जानते हो कि अपने बच्चों को अच्छे उपहार कैसे दिये जाते हैं। सो निश्चय ही स्वर्ग में स्थित तुम्हारा परम-पिता माँगने वालों को अच्छी वस्तुएँ देगा।
व्यवस्था की सबसे बड़ी शिक्षा
12 “इसलिये जैसा व्यवहार अपने लिये तुम दूसरे लोगों से चाहते हो, वैसा ही व्यवहार तुम भी उनके साथ करो। व्यवस्था के विधि और भविष्यवक्ताओं के लिखे का यही सार है।
© 1995, 2010 Bible League International