Book of Common Prayer
“नष्ट मत कर” नामक धुन पर संगीत निर्देशक के लिये आसाप का एक स्तुति गीत।
1 हे परमेश्वर, हम तेरी प्रशंसा करते हैं!
हम तेरे नाम का गुणगान करते हैं!
तू समीप है और लोग तेरे उन अद्भत कर्मो का जिनको तू करता है, बखान करते हैं।
2 परमेश्वर, कहता है, “मैंने न्याय का समय चुन लिया,
मैं निष्पक्ष होकर के न्याय करूँगा।
3 धरती और धरती की हर वस्तु डगमगा सकती है और गिरने को तैयार हो सकती है,
किन्तु मैं ही उसे स्थिर रखता हूँ।
4 “कुछ लोग बहुत ही अभिमानी होते हैं, वे सोचते रहते है कि वे बहुत शाक्तिशाली और महत्वपूर्ण है।
5 लेकिन उन लोगों को बता दो, ‘डींग मत हाँकों!’
‘इतने अभिमानी मत बने रह!’”
6 इस धरती पर सचुमच,
कोई भी मनुष्य नीच को महान नहीं बना सकता।
7 परमेश्वर न्याय करता है।
परमेश्वर इसका निर्णय करता है कि कौन व्यक्ति महान होगा।
परमेश्वर ही किसी व्यक्ति को महत्वपूर्ण पद पर बिठाता है। और किसी दूसरे को निची दशा में पहुँचाता है।
8 परमेश्वर दुष्टों को दण्ड देने को तत्पर है।
परमेश्वर के पास विष मिला हुआ मधु पात्र है।
परमेश्वर इस दाखमधु (दण्ड) को उण्डेलता है
और दुष्ट जन उसे अंतिम बूँद तक पीते हैं।
9 मैं लोगों से इन बातों का सदा बखान करूँगा।
मैं इस्राएल के परमेश्वर के गुण गाऊँगा।
10 मैं दुष्ट लोगों की शक्ति को छीन लूँगा,
और मैं सज्जनों को शक्ति दूँगा।
तार वाद्यों के संगीत निर्देशक के लिये आसाप का एक गीत।
1 यहूदा के लोग परमेश्वर को जानते हैं।
इस्राएल जानता है कि सचमुच परमेश्वर का नाम बड़ा है।
2 परमेश्वर का मन्दिर शालेम में स्थित है।
परमेश्वर का घर सिय्योन के पर्वत पर है।
3 उस जगह पर परमेश्वर ने धनुष—बाण, ढाल, तलवारे
और युद्ध के दूसरे शस्त्रों को तोड़ दिया।
4 हे परमेश्वर, जब तू उन पर्वतों से लौटता है,
जहाँ तूने अपने शत्रुओं को हरा दिया था, तू महिमा से मण्डित रहता है।
5 उन सैनिकों ने सोचा की वे बलशाली है। किन्तु वे अब रणक्षेत्रों में मरे पड़े हैं।
उनके शव जो कुछ भी उनके साथ था, उस सब कुछ के रहित पड़े हैं।
उन बलशाली सैनिकों में कोई ऐसा नहीं था, जो आप स्वयं की रक्षा कर पाता।
6 याकूब का परमेश्वर उन सैनिकों पर गरजा
और वह सेना रथों और अश्वों सहित गिरकर मर गयी।
7 हे परमेश्वर, तू भय विस्मयपूर्ण है!
जब तू कुपित होता है तेरे सामने कोई व्यक्ति टिक नहीं सकता।
8-9 न्यायकर्ता के रूप में यहोवा ने खड़े होकर अपना निर्णय सुना दिया।
परमेश्वर ने धरती के नम्र लोगों को बचाया।
स्वर्ग से उसने अपना निर्णय दिया
और सम्पूर्ण धरती शब्द रहित और भयभीत हो गई।
10 हे परमेश्वर, जब तू दुष्टों को दण्ड देता है। लोग तेरा गुण गाते हैं।
तू अपना क्रोध प्रकट करता है और शेष बचे लोग बलशाली हो जाते हैं।
11 लोग परमेश्वर की मन्नतें मानेंगे
और वे उन वस्तुओं को जिनकी मन्नतें उन्होंने मानीं हैं,
यहोवा को अर्पण करेंगे।
लोग हर किसी स्थान से उस परमेश्वर को उपहार लायेंगे।
12 परमेश्वर बड़े बड़े सम्राटों को हराता है।
धरती के सभी शासकों उसका भय मानों।
दाऊद का एक पद।
1 यहोवा मेरा गडेरिया है।
जो कुछ भी मुझको अपेक्षित होगा, सदा मेरे पास रहेगा।
2 हरी भरी चरागाहों में मुझे सुख से वह रखता है।
वह मुझको शांत झीलों पर ले जाता है।
3 वह अपने नाम के निमित्त मेरी आत्मा को नयी शक्ति देता है।
वह मुझको अगुवाई करता है कि वह सचमुच उत्तम है।
4 मैं मृत्यु की अंधेरी घाटी से गुजरते भी नहीं डरुँगा,
क्योंकि यहोवा तू मेरे साथ है।
तेरी छड़ी, तेरा दण्ड मुझको सुख देते हैं।
5 हे यहोवा, तूने मेरे शत्रुओं के समक्ष मेरी खाने की मेज सजाई है।
तूने मेरे शीश पर तेल उँडेला है।
मेरा कटोरा भरा है और छलक रहा है।
6 नेकी और करुणा मेरे शेष जीवन तक मेरे साथ रहेंगी।
मैं यहोवा के मन्दिर में बहुत बहुत समय तक बैठा रहूँगा।
दाऊद को समर्पित।
1 हे यहोवा, तू मेरी ज्योति और मेरा उद्धारकर्ता है।
मुझे तो किसी से भी नहीं डरना चाहिए!
यहोवा मेरे जीवन के लिए सुरक्षित स्थान है।
सो मैं किसी भी व्यक्ति से नहीं डरुँगा।
2 सम्भव है, दुष्ट जन मुझ पर चढ़ाई करें।
सम्भव है, वे मेरे शरीर को नष्ट करने का यत्न करे।
सम्भव है मेरे शत्रु मुझे नष्ट करने को
मुझ पर आक्रमण का यत्न करें।
3 पर चाहे पूरी सेना मुझको घेर ले, मैं नहीं डरुँगा।
चाहे युद्धक्षेत्र में मुझ पर लोग प्रहार करे, मैं नहीं डरुँगा। क्योंकि मैं यहोवा पर भरोसा करता हूँ।
4 मैं यहोवा से केवल एक वर माँगना चाहता हूँ,
“मैं अपने जीवन भर यहोवा के मन्दिर में बैठा रहूँ,
ताकि मैं यहोवा की सुन्दरता को देखूँ,
और उसके मन्दिर में ध्यान करुँ।”
5 जब कभी कोई विपत्ति मुझे घेरेगी, यहोवा मेरी रक्षा करेगा।
वह मुझे अपने तम्बू मैं छिपा लेगा।
वह मुझे अपने सुरक्षित स्थान पर ऊपर उठा लेगा।
6 मुझे मेरे शत्रुओं ने घेर रखा है। किन्तु अब उन्हें पराजित करने में यहोवा मेरा सहायक होगा।
मैं उसके तम्बू में फिर भेंट चढ़ाऊँगा।
जय जयकार करके बलियाँ अर्पित करुँगा। मैं यहोवा की अभिवंदना में गीतों को गाऊँगा और बजाऊँगा।
7 हे यहोवा, मेरी पुकार सुन, मुझको उत्तर दे।
मुझ पर दयालु रह।
8 हे योहवा, मैं चाहता हूँ अपने हृदय से तुझसे बात करुँ।
हे यहोवा, मैं तुझसे बात करने तेरे सामने आया हूँ।
9 हे यहोवा, अपना मुख अपने सेवक से मत मोड़।
मेरी सहायता कर! मुझे तू मत ठुकरा! मेरा त्याग मत कर!
मेरे परमेश्वर, तू मेरा उद्धारकर्ता है।
10 मेरी माता और मेरे पिता ने मुझको त्याग दिया,
पर यहोवा ने मुझे स्वीकारा और अपना बना लिया।
11 हे यहोवा, मेरे शत्रुओं के कारण, मुझे अपना मार्ग सिखा।
मुझे अच्छे कामों की शिक्षा दे।
12 मुझ पर मेरे शत्रुओं ने आक्रमण किया है।
उन्होंने मेरे लिए झूठ बोले हैं। वे मुझे हानि पहुँचाने के लिए झूठ बोले।
13 मुझे भरोसा है कि मरने से पहले मैं सचमुच यहोवा की धार्मिकता देखूँगा।
14 यहोवा से सहायता की बाट जोहते रहो!
साहसी और सुदृढ़ बने रहो
और यहोवा की सहायता की प्रतीक्षा करते रहो।
22 पलिश्ती फिर आये और रपाईम की घाटी में उन्होंने डेरा डाला।
23 दाऊद ने यहोवा से प्रार्थना की। इस समय यहोवा ने कहा, “वहाँ मत जाओ। उनके चारों ओर उनकी सेना के पीछे से जाओ। तूत वृक्षों के पास उन पर आक्रमण करो। 24 तूत वृक्षों की चोटी से तुम पलिश्तियों के सामरिक प्रमाण की ध्वनि को सुनोगे। तब तुम्हें शीघ्रता करनी चाहिये, क्योंकि उस समय यहोवा जायेगा और तुम्हारे लिये पलिश्तियों को हरा देगा।”
25 दाऊद ने वही किया जो करने के लिये यहोवा ने आदेश दिया था। उसने पलिश्तियों को हराया। उसने उनका पीछा लगातार गेबा से गेजेर तक किया।
परमेश्वर का पवित्र सन्दूक यरूशलेम लाया गया
6 दाऊद ने फिर इस्राएल के सभी चुने तीस हजार लोगों को इकट्ठा किया। 2 तब दाऊद और उसके सभी लोग यहूदा के बाले[a] में गये और परमेश्वर के पवित्र सन्दूक को यहूदा के बाले से लेकर उसे यरूशलेम में ले आए। लोग पवित्र सन्दूक के पास यहोवा की उपासना करने के लिये जाते हैं। पवित्र सन्दूक यहोवा के सिंहासन की तरह है। पवित्र सन्दूक के ऊपर करूब की मूर्तियाँ हैं, और यहोवा इन स्वर्गदूतों पर राजा की तरह बैठता है। 3 उन्होंने परमेश्वर के पवित्र सन्दूक को एक नई गाड़ी में रखा। वे गिबियाह में स्थित अबीनादाब के घर से पवित्र सन्दूक को ले जा रहे थे। उज्जा और अहह्यो नई गाड़ी चला रहे थे।
4 जब वे गिबियाह में अबीनादाब के घर से पवित्र सन्दूक ले जा रहे थे, तब उज्जा परमेश्वर के पवित्र सन्दूक सहित गाड़ी में बैठा था। अहह्यो पवित्र सन्दूक वाली गाड़ी के आगे आगे चल कर संचालन कर रहा था। 5 दाऊद और सभी इस्राएली यहोवा के सामने पूरे उत्साह के साथ नाच और गा रहे थे। ये संगीत वाद्य सनौवर लकड़ी के बने थे। वे वीणा, सितार, ढोल झांझ, और मंजीरा बजा रहे थे। 6 जब दाऊद के लोग नकोन खलिहान में आये तो बैल लड़खड़ा पड़े। परमेश्वर का पवित्र सन्दूक बन्द गाड़ी से गिरने लगा। उज्जा ने पवित्र सन्दूक को पकड़ लिया। 7 यहोवा उज्जा पर क्रोधित हुआ और उसे मार डाला।[b] उज्जा ने पवित्र सन्दूक को छूकर परमेश्वर के प्रति अश्रद्धा दिखाई। उज्जा वहाँ परमेश्वर के पवित्र सन्दूक के बगल में मरा। 8 दाऊद निराश हो गया क्योंकि यहोवा ने उज्जा को मार डाला था। दाऊद ने उस स्थान को “पेरेसुज्जा” कहा।
9 दाऊद उस दिन यहोवा से डर गया। दाऊद ने कहा, “अब मैं यहोवा का पवित्र सन्दूक यहाँ कैसे ला सकता हूँ?” 10 इसलिये दाऊद यहोवा के पवित्र सन्दूक को दाऊद नगर में नहीं ले जाना चाहता था। दाऊद ने पवित्र सन्दूक को गत से आये हुये ओबेद—एदोम के घर में रखा। दाऊद पवित्र सन्दूक को सड़क से गत के ओबेद—एदोम के घर ले गया। 11 यहोवा का सन्दूक ओबेद—एदोम के घर में तीन महीने तक रहा। यहोवा ने ओबेद—एदोम और उसके सारे परिवार को आशीर्वाद दिया।
पौलुस एथेंस में
16 पौलुस एथेंस में तिमुथियुस और सिलास की प्रतीक्षा करते हुए नगर को मूर्तियों से भरा हुआ देखकर मन ही मन तिलमिला रहा था। 17 इसलिए हर दिन वह यहूदी आराधनालय में यहूदियों और यूनानी भक्तों से वाद-विवाद करता रहता था। वहाँ हाट-बाजार में जो कोई होता वह उससे भी हर दिन बहस करता रहता। 18 कुछ इपीकुरी और स्तोइकी दार्शनिक भी उससे शास्त्रार्थ करने लगे।
उनमें से कुछ ने कहा, “यह अंटशंट बोलने वाला कहना क्या चाहता है?” दूसरों ने कहा, “यह तो विदेशी देवताओं का प्रचारक मालूम होता है।” उन्होंने यह इसलिए कहा था कि वह यीशु के बारे में उपदेश देता था और उसके फिर से जी उठने का प्रचार करता था।
19 वे उसे पकड़कर अरियुपगुस[a] की सभा में अपने साथ ले गये और बोले, “क्या हम जान सकते हैं कि तू जिसे लोगों के सामने रख रहा है, वह नयी शिक्षा क्या है? 20 तू कुछ विचित्र बातें हमारे कानों में डाल रहा है, सो हम जानना चाहते हैं कि इन बातों का अर्थ क्या है?” 21 (वहाँ रह रहे एथेंस के सभी लोग और परदेसी केवल कुछ नया सुनने या उन्हीं बातों की चर्चा के अतिरिक्त किसी भी और बात में अपना समय नहीं लगाते थे।)
22 तब पौलुस ने अरियुपगुस के सामने खड़े होकर कहा, “हे एथेंस के लोगो! मैं देख रहा हूँ तुम हर प्रकार से धार्मिक हो। 23 घूमते फिरते तुम्हारी उपासना की वस्तुओं को देखते हुए मुझे एक ऐसी वेदी भी मिली जिस पर लिखा था, ‘अज्ञात परमेश्वर’ के लिये सो तुम बिना जाने ही जिस की उपासना करते हो, मैं तुम्हें उसी का वचन सुनाता हूँ।
24 “परमेश्वर, जिसने इस जगत की और इस जगत के भीतर जो कुछ है, उसकी रचना की वही धरती और आकाश का प्रभु है। वह हाथों से बनाये मन्दिरों में नहीं रहता। 25 उसे किसी वस्तु का अभाव नहीं है सो मनुष्य के हाथों से उसकी सेवा नहीं हो सकती। वही सब को जीवन, साँसें और अन्य सभी कुछ दिया करता है। 26 एक ही मनुष्य से उसने मनुष्य की सभी जातियों का निर्माण किया ताकि वे समूची धरती पर बस जायें और उसी ने लोगों का समय निश्चित कर दिया और उस स्थान की, जहाँ वे रहें सीमाएँ बाँध दीं।
27 “उस का प्रयोजन यह था कि लोग परमेश्वर को खोजें। हो सकता है वे उसे उस तक पहुँच कर पा लें। इतना होने पर भी हममें से किसी से भी वह दूर नहीं हैं: 28 क्योंकि उसी में हम रहते हैं उसी में हमारी गति है और उसी में है हमारा अस्तित्व। इसी प्रकार स्वयं तुम्हारे ही कुछ लेखकों ने भी कहा है, ‘क्योंकि हम उसके ही बच्चे हैं।’
29 “और क्योंकि हम परमेश्वर की संतान हैं इसलिए हमें यह कभी नहीं सोचना चाहिए कि वह दिव्य अस्तित्व सोने या चाँदी या पत्थर की बनी मानव कल्पना या कारीगरी से बनी किसी मूर्ति जैसा है। 30 ऐसे अज्ञान के युग की परमेश्वर ने उपेक्षा कर दी है और अब हर कहीं के मनुष्यों को वह मन फिराव ने का आदेश दे रहा है। 31 उसने एक दिन निश्चित किया है जब वह अपने नियुक्त किये गये एक पुरुष के द्वारा न्याय के साथ जगत का निर्णय करेगा। मरे हुओं में से उसे जिलाकर उसने हर किसी को इस बात का प्रमाण दिया है।”
32 जब उन्होंने मरे हुओं में से जी उठने की बात सुनी तो उनमें से कुछ तो उसकी हँसी उड़ाने लगे किन्तु कुछ ने कहा, “हम इस विषय पर तेरा प्रवचन फिर कभी सुनेंगे।” 33 तब पौलुस उन्हें छोड़ कर चल दिया। 34 कुछ लोगों ने विश्वास ग्रहण कर लिया और उसके साथ हो लिये। इनमें अरियुपगुस का सदस्य दियुनुसियुस और दमरिस नामक एक महिला तथा उनके साथ के और लोग भी थे।
चार हज़ार को भोजन
(मत्ती 15:32-39)
8 उन्हीं दिनों एक दूसरे अवसर पर एक बड़ी भीड़ इकट्ठी हुई। उनके पास खाने को कुछ नहीं था। यीशु ने अपने शिष्यों को पास बुलाया और उनसे कहा, 2 “मुझे इन लोगों पर तरस आ रहा है क्योंकि इन लोगों को मेरे साथ तीन दिन हो चुके हैं और उनके पास खाने को कुछ नहीं है। 3 और यदि मैं इन्हें भूखा ही घर भेज देता हूँ तो वे मार्ग में ही ढेर हो जायेंगे। कुछ तो बहुत दूर से आये हैं।”
4 उसके शिष्यों ने उत्तर दिया, “इस जंगल में इन्हें खिलाने के लिये किसी को पर्याप्त भोजन कहाँ से मिल सकता है?”
5 फिर यीशु ने उनसे पूछा, “तुम्हारे पास कितनी रोटियाँ हैं?”
उन्होंने उत्तर दिया, “सात।”
6 फिर उसने भीड़ को धरती पर नीचे बैठ जाने की आज्ञा दी। और उसने वे सात रोटियाँ लीं, धन्यवाद किया और उन्हें तोड़ कर बाँटने के लिये अपने शिष्यों को दिया। और फिर उन्होंने भीड़ के लोगों में बाँट दिया। 7 उनके पास कुछ छोटी मछलियाँ भी थीं, उसने धन्यवाद करके उन्हें भी बाँट देने को कहा।
8 लोगों ने भर पेट भोजन किया और फिर उन्होंने बचे हुए टुकड़ों को इकट्ठा करके सात टोकरियाँ भरीं। 9 वहाँ कोई चार हज़ार पुरुष रहे होंगे। फिर यीशु ने उन्हें विदा किया। 10 और वह तत्काल अपने शिष्यों के साथ नाव में बैठ कर दलमनूता प्रदेश को चला गया।
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