Book of Common Prayer
आसाप का एक स्तुति गीत।
1 हे परमेश्वर, तू मौन मत रह!
अपने कानों को बंद मत कर!
हे परमेश्वर, कृपा करके कुछ बोल।
2 हे परमेश्वर, तेरे शत्रु तेरे विरोध में कुचक्र रच रहे हैं।
तेरे शत्रु शीघ्र ही वार करेंगे।
3 वे तेरे भक्तों के विरूद्ध षड़यन्त्र रचते हैं।
तेरे शत्रु उन लोगों के विरोध में जो तुझको प्यारे हैं योजनाएँ बना रहे हैं।
4 वे शत्रु कह रहे हैं, “आओ, हम उन लोगों को पूरी तरह मिटा डाले,
फिर कोई भी व्यक्ति ‘इस्राएल’ का नाम याद नहीं करेगा।”
5 हे परमेश्वर, वे सभी लोग तेरे विरोध में और तेरे उस वाचा के विरोध में जो तूने हमसे किया है,
युद्ध करने के लिये एक जुट हो गए।
6-7 ये शत्रु हमसे युद्ध करने के लिये एक जुट हुए हैं: एदोमी, इश्माएली, मोआबी और हाजिरा की संताने, गबाली
और अम्मोनि, अमालेकी और पलिश्ती के लोग, और सूर के निवासी लोग।
ये सभी लोग हमसे युद्ध करने जुट आये।
8 यहाँ तक कि अश्शूरी भी उन लोगों से मिल गये।
उन्होंने लूत के वंशजों को अति बलशाली बनाया।
9 हे परमेश्वर, तू शत्रु वैसे हरा
जैसे तूने मिद्यानी लोगों, सिसरा, याबीन को किशोन नदी के पास हराया।
10 तूने उन्हें एन्दोर में हराया।
उनकी लाशें धरती पर पड़ी सड़ती रहीं।
11 हे परमेश्वर, तू शत्रुओं के सेनापति को वैसे पराजित कर जैसे तूने ओरेब और जायेब के साथ किया था,
कर जैसे तूने जेबह और सलमुन्ना के साथ किया।
12 हे परमेश्वर, वे लोग हमको धरती छोड़ने के लिये दबाना चाहते थे!
13 उन लोगों को तू उखड़े हुए पौधा सा बना जिसको पवन उड़ा ले जाती है।
उन लोगों को ऐसे बिखेर दे जैसे भूसे को आँधी बिखेर देती है।
14 शत्रु को ऐसे नष्ट कर जैसे वन को आग नष्ट कर देती है,
और जंगली आग पहाड़ों को जला डालती है।
15 हे परमेश्वर, उन लोगों का पीछा कर भगा दे, जैसे आँधी से धूल उड़ जाती है।
उनको कँपा और फूँक में उड़ा दे जैसे चक्रवात करता है।
16 हे परमेश्वर, उनको ऐसा पाठ पढ़ा दे, कि उनको अहसास हो जाये कि वे सचमुच दुर्बल हैं।
तभी वे तेरे काम को पूजना चाहेंगे!
17 हे परमेश्वर, उन लोगों को भयभीत कर दे
और सदा के लिये अपमानित करके उन्हें नष्ट कर दे।
18 वे लोग तभी जानेंगे कि तू परमेश्वर है।
तभी वे जानेंगे तेरा नाम यहोवा है।
तभी वे जानेंगे
तू ही सारे जगत का परम परमेश्वर है!
दाऊद की एक प्रार्थना।
1 हे मेरे परमेश्वर, हे मेरे राजा, मैं तेरा गुण गाता हूँ!
मैं सदा-सदा तेरे नाम को धन्य कहता हूँ।
2 मैं हर दिन तुझको सराहता हूँ।
मैं तेरे नाम की सदा-सदा प्रशंसा करता हूँ।
3 यहोवा महान है। लोग उसका बहुत गुणगान करते हैं।
वे अनगिनत महाकार्य जिनको वह करता है हम उनको नहीं गिन सकते।
4 हे यहोवा, लोग उन बातों की गरिमा बखानेंगे जिनको तू सदा और सर्वदा करता हैं।
दूसरे लोग, लोगों से उन अद्भुत कर्मो का बखान करेंगे जिनको तू करता है।
5 तेरे लोग अचरज भरे गौरव और महिमा को बखानेंगे।
मैं तेरे आश्चर्यपूर्ण कर्मों को बखानूँगा।
6 हे यहोवा, लोग उन अचरज भरी बातों को कहा करेंगे जिनको तू करता है।
मैं उन महान कर्मो को बखानूँगा जिनको तू करता है।
7 लोग उन भली बातों के विषय में कहेंगे जिनको तू करता है।
लोग तेरी धार्मिकता का गान किया करेंगे।
8 यहोवा दयालु है और करुणापूर्ण है।
यहोवा तू धैर्य और प्रेम से पूर्ण है।
9 यहोवा सब के लिये भला है।
परमेश्वर जो कुछ भी करता है उसी में निजकरुणा प्रकट करता है।
10 हे यहोवा, तेरे कर्मो से तुझे प्रशंसा मिलती है।
तुझको तेरे भक्त धन्य कहा करते हैं।
11 वे लोग तेरे महिमामय राज्य का बखान किया करते हैं।
तेरी महानता को वे बताया करते हैं।
12 ताकि अन्य लोग उन महान बातों को जाने जिनको तू करता है।
वे लोग तेरे महिमामय राज्य का मनन किया करते हैं।
13 हे यहोवा, तेरा राज्य सदा—सदा बना रहेगा
तू सर्वदा शासन करेगा।
14 यहोवा गिरे हुए लोगों को ऊपर उठाता है।
यहोवा विपदा में पड़े लोगों को सहारा देता है।
15 हे यहोवा, सभी प्राणी तेरी ओर खाना पाने को देखते हैं।
तू उनको ठीक समय पर उनका भोजन दिया करता है।
16 हे यहोवा, तू निज मुट्ठी खोलता है,
और तू सभी प्राणियों को वह हर एक वस्तु जिसकी उन्हें आवश्यकता देता है।
17 यहोवा जो भी करता है, अच्छा ही करता है।
यहोवा जो भी करता, उसमें निज सच्चा प्रेम प्रकट करता है।
18 जो लोग यहोवा की उपासना करते हैं, यहोवा उनके निकट रहता है।
सचमुच जो उसकी उपासना करते है, यहोवा हर उस व्यक्ति के निकट रहता है।
19 यहोवा के भक्त जो उससे करवाना चाहते हैं, वह उन बातों को करता है।
यहोवा अपने भक्तों की सुनता है।
वह उनकी प्रार्थनाओ का उत्तर देता है और उनकी रक्षा करता है।
20 जिसका भी यहोवा से प्रेम है, यहोवा हर उस व्यक्ति को बचाता है,
किन्तु यहोवा दुष्ट को नष्ट करता है।
21 मैं यहोवा के गुण गाऊँगा!
मेरी यह इच्छा है कि हर कोई उसके पवित्र नाम के गुण सदा और सर्वदा गाये।
संगीत निर्देशक के लिये कोरह वंशियों का एक स्तुति गीत।
1 हे यहोवा, तू अपने देश पर कृपालु हो।
विदेश में याकूब के लोग कैदी बने हैं। उन बंदियों को छुड़ाकर उनके देश में वापस ला।
2 हे यहोवा, अपने भक्तों के पापों को क्षमा कर।
तू उनके पाप मिटा दे।
3 हे यहोवा, कुपित होना त्याग।
आवेश से उन्मत मत हो।
4 हमारे परमेश्वर, हमारे संरक्षक, हम पर तू कुपित होना छोड़ दे
और फिर हमको स्वीकार कर ले।
5 क्या तू सदा के लिये हमसे कुपित रहेगा?
6 कृपा करके हमको फिर जिला दे!
अपने भक्तों को तू प्रसन्न कर दे।
7 हे यहोवा, तू हमें दिखा दे कि तू हमसे प्रेम करता है।
हमारी रक्षा कर।
8 जो परमेश्वर ने कहा, मैंने उस पर कान दिया।
यहोवा ने कहा कि उसके भक्तों के लिये वहाँ शांति होगी।
यदि वे अपने जीवन की मूर्खता की राह पर नहीं लौटेंगे तो वे शांति को पायेंगे।
9 परमेश्वर शीघ्र अपने अनुयायियों को बचाएगा।
अपने स्वदेश में हम शीघ्र ही आदर के साथ वास करेंगे।
10 परमेश्वर का सच्चा प्रेम उनके अनुयायियों को मिलेगा।
नेकी और शांति चुम्बन के साथ उनका स्वागत करेगी।
11 धरती पर बसे लोग परमेश्वर पर विश्वास करेंगे,
और स्वर्ग का परमेश्वर उनके लिये भला होगा।
12 यहोवा हमें बहुत सी उत्तम वस्तुएँ देगा।
धरती अनेक उत्तम फल उपजायेगी।
13 परमेश्वर के आगे आगे नेकी चलेगी,
और वह उसके लिये राह बनायेगी।
दाऊद की प्रार्थना।
1 मैं एक दीन, असहाय जन हूँ।
हे यहोवा, तू कृपा करके मेरी सुन ले, और तू मेरी विनती का उत्तर दे।
2 हे यहोवा, मैं तेरा भक्त हूँ।
कृपा करके मुझको बचा ले। मैं तेरा दास हूँ। तू मेरा परमेश्वर है।
मुझको तेरा भरोसा है, सो मेरी रक्षा कर।
3 मेरे स्वामी, मुझ पर दया कर।
मैं सारे दिन तेरी विनती करता रहा हूँ।
4 हे स्वामी, मैं अपना जीवन तेरे हाथ सौंपता हूँ।
मुझको तू सुखी बना मैं तेरा दास हूँ।
5 हे स्वामी, तू दयालु और खरा है।
तू सचमुच अपने उन भक्तों को प्रेम करता है, जो सहारा पाने को तुझको पुकारते हैं।
6 हे यहोवा, मेरी विनती सुन।
मैं दया के लिये जो प्रार्थना करता हूँ, उस पर तू कान दे।
7 हे यहोवा, अपने संकट की घड़ी में मैं तेरी विनती कर रहा हूँ।
मैं जानता हूँ तू मुझको उत्तर देगा।
8 हे परमेश्वर, तेरे समान कोई नहीं।
जैसे काम तूने किये हैं वैसा काम कोई भी नहीं कर सकता।
9 हे स्वामी, तूने ही सब लोगों को रचा है।
मेरी कामना यह है कि वे सभी लोग आयें और तेरी आराधना करें! वे सभी तेरे नाम का आदर करें!
10 हे परमेश्वर, तू महान है!
तु अद्भुत कर्म करता है! बस तू ही परमेश्वर है!
11 हे यहोवा, अपनी राहों की शिक्षा मुझको दे,।
मैं जीऊँगा और तेरे सत्य पर चलूँगा।
मेरी सहायता कर।
मेरे जीवन में सबसे महत्वपूर्ण यही है, कि मैं तेरे नाम की उपासना करूँ।
12 हे परमेश्वर, मेरे स्वमी, मैं सम्पूर्ण मन से तेरे गुण गाता हूँ।
मैं तेरे नाम का आदर सदा सर्वदा करूँगा।
13 हे परमेश्वर, तू मुझसे कितना अधिक प्रेम करता है।
तूने मुझे मृत्यु के गर्त से बचाया।
14 हे परमेश्वर, मुझ पर अभिमानी वार कर रहे हैं।
क्रूर जनों का दल मुझे मार डालने का यत्न कर रहे हैं, और वे मनुष्य तेरा आदर नहीं करते हैं।
15 हे स्वामी, तू दयालु और कृपापूर्ण परमेश्वर है।
तू धैर्यपूर्ण, विश्वासी और प्रेम से भरा हुआ हैं।
16 हे परमेश्वर, दिखा दे कि तू मेरी सुनता है, और मुझ पर कृपालु बन।
मैं तेरा दास हूँ। तू मुझको शक्ति दे।
मैं तेरा सेवक हूँ, मेरी रक्षा कर।
17 हे परमेश्वर, कुछ ऐसा कर जिससे यह प्रमाणित हो कि तू मेरी सहायता करेगा।
फिर इससे मेरे शत्रु निराश हो जायेंगे।
क्योंकि यहोवा इससे यह प्रकट होगा तेरी दया मुझ पर है और तूने मुझे सहारा दिया।
दाऊद बतशेबा से मिलता है
11 बसन्त में, जब राजा युद्ध पर निकलते हैं, दाऊद ने योआब उसके अधिकारियों और सभी इस्राएलियों को अम्मोनियों को नष्ट करने के लिये भेजा। योआब की सेना ने रब्बा (राजधानी) पर भी आक्रमण किया।
किन्तु दाऊद यरूशलेम में रुका। 2 शाम को वह अपने बिस्तर से उठा। वह राजमहल की छत पर चारों ओर घूमा। जब दाऊद छत पर था, उसने एक स्त्री को नहाते देखा। स्त्री बहुत सुन्दर थी। 3 इसलिये दाऊद ने अपने सेवकों को बुलाया और उनसे पूछा कि वह स्त्री कौन थी? एक सेवक ने उत्तर दिया, “वह स्त्री एलीआम की पुत्री बतशेबा है। वह हित्ती ऊरिय्याह की पत्नी है।”
4 दाऊद ने बतशेबा को अपने पास बुलाने के लिये दूत भेजे। जब वह दाऊद के पास आई तो उसने उसके साथ शारीरिक सम्बन्ध किया। उसने स्नान किया और वह अपने घर चली गई। 5 किन्तु बतशेबा गर्भवती हो गई। उसने दाऊद को सूचना भेजी। उसने उससे कहा, “मैं गर्भवती हूँ।”
दाऊद अपने पाप को छिपाना चाहता है
6 दाऊद ने योआब को सन्देश भेजा, “हित्ती ऊरिय्याह को मेरे पास भेजो।”
इसलिये योआब ने ऊरिय्याह को दाऊद के पास भेजा। 7 ऊरिय्याह दाऊद के पास आया। दाऊद ने ऊरिय्याह से बात की। दाऊद ने ऊरिय्याह से पूछा कि योआब कैसा है, सैनिक कैसे हैं और युद्ध कैसे चल रहा है। 8 तब दाऊद ने ऊरिय्याह से कहा, “घर जाओ और आराम करो।”
ऊरिय्याह ने राजा का महल छोड़ा। राजा ने ऊरिय्याह को एक भेंट भी भेजी। 9 किन्तु ऊरिय्याह अपने घर नहीं गया। ऊरिय्याह राजा के महल के बाहर द्वारा पर सोया। वह उसी प्रकार सोया जैसे राजा के अन्य सेवक सोये। 10 सेवकों ने दाऊद से कहा, “उरिय्याह अपने घर नहीं गया।”
तब दाऊद ने ऊरिय्याह से कहा, “तुम लम्बी यात्रा से आए। तुम घर क्यों नहीं गए?”
11 ऊरिय्याह ने दाऊद से कहा, “पवित्र सन्दूक तथा इस्राएल और यहूदा के सैनिक डेरों में ठहरे हैं। मेरे स्वामी योआब और मेरे स्वामी (दाऊद) के सेवक बाहर मैदानों में खेमा डाले पड़े हैं। इसलिये यह अच्छा नहीं कि मैं घर जाऊँ, खाऊँ, पीऊँ, और अपनी पत्नी के साथ सोऊँ।”
12 दाऊद ने ऊरिय्याह से कहा, “आज यहीं ठहरो। कल मैं तुम्हें युद्ध में वापस भेजूँगा।”
ऊरिय्याह उस दिन यरूशलेम में ठहरा। वह अगली सुबह तक रुका। 13 तब दाऊद ने उसे आने और खाने के लिये बुलाया। ऊरिय्याह ने दाऊद के साथ पीया और खाया। दाऊद ने ऊरिय्याह को नशे में कर दिया। किन्तु ऊरिय्याह, फिर भी घर नहीं गया। उस शाम को ऊरिय्याह राजा के सेवकों के साथ राजा के द्वार के बाहर सोया।
दाऊद ऊरिय्याह की मृत्यु की योजना बनाता है
14 अगले प्रातःकाल, दाऊद ने योआब के लिये एक पत्र लिखा। दाऊद ने ऊरिय्याह को वह पत्र ले जाने को दिया। 15 पत्र में दाऊद ने लिखा: “ऊरिय्याह को अग्रिम पंक्ति में रखो जहाँ युद्ध भयंकर हो। तब उसे अकेले छोड़ दो और उसे युद्ध में मारे जाने दो।”
16 योआब ने नगर के घेरे बन्दी के समय यह देखा कि सबसे अधिक वीर अम्मोनी योद्धा कहाँ है। उसने ऊरिय्याह को उस स्थान पर जाने के लिये चुना। 17 नगर (रब्बा) के आदमी योआब के विरुद्ध लड़ने को आये। दाऊद के कुछ सैनिक मारे गये। हित्ती ऊरिय्याह उन लोगों में से एक था।
18 तब योआब ने दाऊद को युद्ध में जो हुआ, उसकी सूचना भेजी। 19 योआब ने दूत से कहा कि वह राजा दाऊद से कहे कि युद्ध में क्या हुआ। 20 “सम्भव है कि राजा क्रुद्ध हो। संभव है कि राजा पूछे, ‘योआब की सेना नगर के पास लड़ने क्यों गई? क्या तुम्हें मालूम नहीं कि लोग नगर के प्राचीर से भी बाण चला सकते हैं? 21 क्या तुम नहीं जानते कि यरूब्बेशेत के पुत्र अबीमेलेक को किसने मारा? वहाँ एक स्त्री नगर—दीवार पर थी जिसने अबीमेलेक के ऊपर चक्की का ऊपरी पाट फेंका। उस स्त्री ने उसे तेबेस में मार डाला। तुम दीवार के निकट क्यों गये?’ यदि राजा दाऊद यह पूछता है तो तुम्हें उत्तर देना चाहिये, ‘आपका सेवक हित्ती ऊरिय्याह भी मर गया।’”
22 दूत गया और उसने दाऊद को वह सब बताया जो उसे योआब ने कहने को कहा था। 23 दूत ने दाऊद से कहा, “अम्मोन के लोग जीत रहे थे बाहर आये तथा उन्होंने खुले मैदान में हम पर आक्रमण किया। किन्तु हम लोग उनसे नगर—द्वार पर लड़े। 24 नगर दीवार के सैनिकों ने आपके सेवकों पर बाण चलाये। आपके कुछ सेवक मारे गए। आपका सेवक हित्ती ऊरिय्याह भी मारा गया।”
25 दाऊद ने दूत से कहा, “तुम्हें योआब से यह कहना है: ‘इस परिणाम से परेशान न हो। हर युद्ध में कुछ लोग मारे जाते हैं यह किसी को नहीं मालूम कि कौन मारा जायेगा। रब्बा नगर पर भीषण आक्रमण करो। तब तुम उस नगर को नष्ट करोगे।’ योआब को इन शब्दों से प्रोत्साहित करो।”
दाऊद बतशेबा से विवाह करता है
26 बतशेबा ने सुना कि उसका पति ऊरिय्याह मर गया। तब वह अपने पति के लिये रोई। 27 जब उसने शोक का समय पूरा कर लिया, तब दाऊद ने उसे अपने घर में लाने के लिये सेवकों को भेजा। वह दाऊद की पत्नी हो गई, और उसने दाऊद के लिये एक पुत्र उत्पन्न किया। दाऊद ने जो बुरा काम किया यहोवा ने उसे पसन्द नहीं किया।
स्कीवा के बेटे
11 परमेश्वर पौलुस के हाथों अनहोने आश्चर्य कर्म कर रहा था। 12 यहाँ तक कि उसके छुए रूमालों और अँगोछों को रोगियों के पास ले जाया जाता और उन की बीमारियाँ दूर हो जातीं तथा दुष्टात्माएँ उनमें से निकल भागतीं।
13-14 कुछ यहूदी लोग, जो दुष्टात्माएँ उतारते इधर-उधर घूमा फिरा करते थे। यह करने लगे कि जिन लोगों में दुष्टात्माएँ समायी थीं, उन पर प्रभु यीशु के नाम का प्रयोग करने का यत्न करते और कहते, “मैं तुम्हें उस यीशु के नाम पर जिसका प्रचार पौलुस करता है, आदेश देता हूँ।” एक स्कीवा नाम के यहूदी महायाजक के सात पुत्र जब ऐसा कर रहे थे।
15 तो दुष्टात्मा ने (एक बार) उनसे कहा, “मैं यीशु को पहचानती हूँ और पौलुस के बारे में भी जानती हूँ, किन्तु तुम लोग कौन हो?”
16 फिर वह व्यक्ति जिस पर दुष्टात्मा सवार थीं, उन पर झपटा। उसने उन पर काबू पा कर उन दोनों को हरा दिया। इस तरह वे नंगे ही घायल होकर उस घर से निकल कर भाग गये।
17 इफिसुस में रहने वाले सभी यहूदियों और यूनानियों को इस बात का पता चल गया। वे सब लोग बहुत डर गये थे। इस प्रकार प्रभु यीशु के नाम का आदर और अधिक बढ़ गया। 18 उनमें से बहुत से जिन्होंने विश्वास ग्रहण किया था, अपने द्वारा किये गये बुरे कामों को सबके सामने स्वीकार करते हुए वहाँ आये। 19 जादू टोना करने वालों में से बहुतों ने अपनी अपनी पुस्तकें लाकर वहाँ इकट्ठी कर दीं और सब के सामने उन्हें जला दिया। उन पुस्तकों का मूल्य पचास हजार चाँदी के सिक्कों के बराबर था। 20 इस प्रकार प्रभु का वचन अधिक प्रभावशाली होते हुए दूर दूर तक फैलने लगा।
मूसा और एलिय्याह के साथ यीशु का दर्शन देना
(मत्ती 17:1-13; लूका 9:28-36)
2 छः दिन बाद यीशु केवल पतरस, याकूब और यूहन्ना को साथ लेकर, एक ऊँचे पहाड़ पर गया। वहाँ उनके सामने उसने अपना रूप बदल दिया। 3 उस के वस्त्र चमचमा रहे थे। एकदम उजले सफेद! धरती पर कोई भी धोबी जितना उजला नहीं धो सकता, उससे भी अधिक उजले सफेद। 4 एलिय्याह और मूसा भी उसके साथ प्रकट हुए। वे यीशु से बात कर रहे थे।
5 तब पतरस बोल उठा और उसने यीशु से कहा, “हे रब्बी, यह बहुत अच्छा हुआ कि हम यहाँ हैं। हमें तीन मण्डप बनाने दे-एक तेरे लिये, एक मूसा के लिए और एक एलिय्याह के लिये।” 6 पतरस ने यह इसलिये कहा कि वह नहीं समझ पा रहा था कि वह क्या कहे। वे बहुत डर गये थे।
7 तभी एक बादल आया और उन पर छा गया। बादल में से यह कहते एक वाणी निकली, “यह मेरा प्रिय पुत्र है, इसकी सुनो!”
8 और तत्काल उन्होंने जब चारों ओर देखा तो यीशु को छोड़ कर अपने साथ किसी और को नहीं पाया।
9 जब वे पहाड़ से नीचे उतर रहे थे तो यीशु ने उन्हें आज्ञा दी कि उन्होंने जो कुछ देखा है, उसे वे तब तक किसी को न बतायें जब तक मनुष्य का पुत्र मरे हुओं में से जी न उठे।
10 सो उन्होंने इस बात को अपने भीतर ही रखा। किन्तु वे सोच विचार कर रहे थे कि “मर कर जी उठने” का क्या अर्थ है? 11 फिर उन्होंने यीशु से पूछा, “धर्मशास्त्री क्यों कहते हैं कि एलिय्याह का पहले आना निश्चित है?”
12 यीशु ने उनसे कहा, “हाँ, सब बातों को ठीक से व्यवस्थित करने के लिए निश्चय ही एलिय्याह पहले आयेगा। किन्तु मनुष्य के पुत्र के बारे में यह क्यों लिखा गया है कि उसे बहुत सी यातनाएँ झेलनी होंगी और उसे घृणा के साथ नकारा जायेगा? 13 मैं तुम्हें कहता हूँ, एलिय्याह आ चुका है, और उन्होंने उसके साथ जो कुछ चाहा, किया। ठीक वैसा ही जैसा उसके विषय में लिखा हुआ है।”
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