Book of Common Prayer
1 यहोवा के गुण गाओ!
स्वर्ग के स्वर्गदूतों,
यहोवा की प्रशंसा स्वर्ग से करो!
2 हे सभी स्वर्गदूतों, यहोवा का यश गाओ!
ग्रहों और नक्षत्रों, उसका गुण गान करो!
3 सूर्य और चाँद, तुम यहोवा के गुण गाओ!
अम्बर के तारों और ज्योतियों, उसकी प्रशंसा करो!
4 यहोवा के गुण सर्वोच्च अम्बर में गाओ।
हे जल आकाश के ऊपर, उसका यशगान कर!
5 यहोवा के नाम का बखान करो।
क्यों? क्योंकि परमेश्वर ने आदेश दिया, और हम सब उसके रचे थे।
6 परमेश्वर ने इन सबको बनाया कि सदा—सदा बने रहें।
परमेश्वर ने विधान के विधि को बनाया, जिसका अंत नहीं होगा।
7 ओ हर वस्तु धरती की यहोवा का गुण गान करो!
ओ विशालकाय जल जन्तुओं, सागर के यहोवा के गुण गाओ।
8 परमेश्वर ने अग्नि और ओले को बनाया,
बर्फ और धुआँ तथा सभी तूफानी पवन उसने रचे।
9 परमेश्वर ने पर्वतों और पहाड़ों को बनाया,
फलदार पेड़ और देवदार के वृक्ष उसी ने रचे हैं।
10 परमेश्वर ने सारे बनैले पशु और सब मवेशी रचे हैं।
रेंगने वाले जीव और पक्षियों को उसने बनाया।
11 परमेश्वर ने राजा और राष्ट्रों की रचना धरती पर की।
परमेश्वर ने प्रमुखों और न्यायधीशों को बनाया।
12 परमेश्वर ने युवक और युवतियों को बनाया।
परमेश्वर ने बूढ़ों और बच्चों को रचा है।
13 यहोवा के नाम का गुण गाओ!
सदा उसके नाम का आदर करो!
हर वस्तु ओर धरती और व्योम,
उसका गुणगान करो!
14 परमेश्वर अपने भक्तों को दृढ़ करेगा।
लोग परमेश्वर के भक्तों की प्रशंसा करेंगे।
लोग इस्राएल के गुण गायेंगे, वे लोग है जिनके लिये परमेश्वर युद्ध करता है,
यहोवा की प्रशंसा करो।
1 यहोवा के गुण गाओ।
उन नयी बातों के विषय में एक नया गीत गाओ जिनको यहोवा ने किया है।
उसके भक्तों की मण्डली में उसका गुण गान करो।
2 परमेश्वर ने इस्राएल को बनाया। यहोवा के संग इस्राएल हर्ष मनाए।
सिय्योन के लोग अपने राजा के संग में आनन्द मनाएँ।
3 वे लोग परमेश्वर का यशगान नाचते बजाते
अपने तम्बुरों, वीणाओ से करें।
4 यहोवा निज भक्तों से प्रसन्न है।
परमेश्वर ने एक अद्भुत कर्म अपने विनीत जन के लिये किया।
उसने उनका उद्धार किया।
5 परमेश्वर के भक्तों, तुम निज विजय मनाओं!
यहाँ तक कि बिस्तर पर जाने के बाद भी तुम आनन्दित रहो।
6 लोग परमेश्वर का जयजयकार करें
और लोग निज तलवारें अपने हाथों में धारण करें।
7 वे अपने शत्रुओं को दण्ड देने जायें।
और दूसरे लोगों को वे दण्ड देने को जायें,
8 परमेश्वर के भक्त उन शासकों
और उन प्रमुखों को जंजीरो से बांधे।
9 परमेश्वर के भक्त अपने शत्रुओं को उसी तरह दण्ड देंगे,
जैसा परमेश्वर ने उनको आदेश दिया।
परमेश्वर के भक्तो यहोवा का आदरपूर्ण गुणगान करो।
1 यहोवा की प्रशंसा करो!
परमेश्वर के मन्दिर में उसका गुणगान करो!
उसकी जो शक्ति स्वर्ग में है, उसके यशगीत गाओ!
2 उन बड़े कामों के लिये परमेश्वर की प्रशंसा करो, जिनको वह करता है!
उसकी गरिमा समूची के लिये उसका गुणगान करो!
3 तुरही फूँकते और नरसिंगे बजाते हुए उसकी स्तुति करो!
उसका गुणगान वीणा और सारंगी बजाते हुए करो!
4 परमेश्वर की स्तुति तम्बूरों और नृत्य से करो!
उसका यश उन पर जो तार से बजाते हैं और बांसुरी बजाते हुए गाओ!
5 तुम परमेश्वर का यश झंकारते झाँझे बजाते हुए गाओ!
उसकी प्रशंसा करो!
6 हे जीवों! यहोवा की स्तुति करो!
यहोवा की प्रशंसा करो!
1 इस्राएल ने मिस्र छोड़ा।
याकूब (इस्राएल) ने उस अनजान देश को छोड़ा।
2 उस समय यहूदा परमेश्वर का विशेष व्यक्ति बना,
इस्राएल उसका राज्य बन गया।
3 इसे लाल सागर देखा, वह भाग खड़ा हुआ।
यरदन नदी उलट कर बह चली।
4 पर्वत मेंढ़े के समान नाच उठे!
पहाड़ियाँ मेमनों जैसी नाची।
5 हे लाल सागर, तू क्यों भाग उठा हे यरदन नदी,
तू क्यों उलटी बही
6 पर्वतों, क्यों तुम मेंढ़े के जैसे नाचे
और पहाड़ियों, तुम क्यों मेमनों जैसी नाची
7 यकूब के परमेश्वर, स्वामी यहोवा के सामने धरती काँप उठी।
8 परमेश्वर ने ही चट्टानों को चीर के जल को बाहर बहाया।
परमेश्वर ने पक्की चट्टान से जल का झरना बहाया था।
1 यहोवा! हमको कोई गौरव ग्रहण नहीं करना चाहिये।
गौरव तो तेरा है।
तेरे प्रेम और निष्ठा के कारण गौरव तेरा है।
2 राष्ट्रों को क्यों अचरज हो कि
हमारा परमेश्वर कहाँ है?
3 परमेश्वर स्वर्ग में है।
जो कुछ वह चाहता है वही करता रहता है।
4 उन जातियों के “देवता” बस केवल पुतले हैं जो सोने चाँदी के बने है।
वह बस केवल पुतले हैं जो किसी मानव ने बनाये।
5 उन पुतलों के मुख है, पर वे बोल नहीं पाते।
उनकी आँखे हैं, पर वे देख नहीं पाते।
6 उनके कान हैं, पर वे सुन नहीं सकते।
उनकी पास नाक है, किन्तु वे सूँघ नहीं पाते।
7 उनके हाथ हैं, पर वे किसी वस्तु को छू नहीं सकते,
उनके पास पैर हैं, पर वे चल नहीं सकते।
उनके कंठो से स्वर फूटते नहीं हैं।
8 जो व्यक्ति इस पुतले को रखते
और उनमें विश्वास रखते हैं बिल्कुल इन पुतलों से बन जायेंगे!
9 ओ इस्राएल के लोगों, यहोवा में भरोसा रखो!
यहोवा इस्राएल को सहायता देता है और उसकी रक्षा करता है
10 ओ हारुन के घराने, यहोवा में भरोसा रखो!
हारुन के घराने को यहोवा सहारा देता है, और उसकी रक्षा करता है।
11 यहोवा की अनुयायिओं, यहोवा में भरोसा रखे!
यहोवा सहारा देता है और अपने अनुयायिओं की रक्षा करता है।
12 यहोवा हमें याद रखता है।
यहोवा हमें वरदान देगा,
यहोवा इस्राएल को धन्य करेगा।
यहोवा हारून के घराने को धन्य करेगा।
13 यहोवा अपने अनुयायिओं को, बड़ोंको
और छोटों को धन्य करेगा।
14 मुझे आशा है यहोवा तुम्हारी बढ़ोतरी करेगा
और मुझे आशा है, वह तुम्हारी संतानों को भी अधिकाधिक देगा।
15 यहोवा तुझको वरदान दिया करता है!
यहोवा ने ही स्वर्ग और धरती बनाये हैं!
16 स्वर्ग यहोवा का है।
किन्तु धरती उसने मनुष्यों को दे दिया।
17 मरे हुए लोग यहोवा का गुण नहीं गाते।
कब्र में पड़े लोग यहोवा का गुणगान नहीं करते।
18 किन्तु हम यहोवा का धन्यवाद करते हैं,
और हम उसका धन्यवाद सदा सदा करेंगे!
यहोवा के गुण गाओ!
एक पेड़ के बारे में नबूकदनेस्सर का स्वप्न
4 राजा नबूकदनेस्सर ने बहुत सी जातियों और दूसरी भाषा बोलने वाले लोगों को, जो सारी दुनिया में बसे हुये थे, यह पत्र भेजा।
शुभकामनाएँ:
2 परम प्रधान परमेश्वर ने मेरे साथ जो आश्चर्यजनक अद्भुत बातें की हैं, उनके बारे में तुम्हें बताते हुए मुझे बहुत प्रसन्नता है।
3 अद्भुत चमत्कार किये हैं!
परमेश्वर ने शक्ति पूर्ण चमत्कार किये हैं!
परमेश्वर का राज्य सदा टिका रहता है;
परमेश्वर का शासन पीढ़ी दर पीढ़ी बना रहता है।
4 मैं, नबूकदनेस्सर, अपने महल में था। मैं प्रसन्न और सफल था। 5 मैंने एक सपना देखा जिसने मुझे डरा दिया। मैं अपने बिस्तर में सो रहा था। मैंने दर्शनों को देखा। जो कुछ मैंने देखा था, उसने मुझे बहुत डरा दिया। 6 सो मैंने यह आज्ञा दी कि बाबुल के सभी बुद्धिमान लोगों को मेरे पास लाया जाये ताकि वे मुझे मेरे स्वप्न का फल बतायें। 7 जब तांत्रिक और कसदी लोग मेरे पास आये तो मैंने उन्हें अपने सपने के बारे में बताया। किन्तु वे लोग मुझे मेरे सपने का अर्थ नहीं बता पाये। 8 अंत में दानिय्येल मेरे पास आया (मैंने अपने ईश्वर को सम्मानित करने के लिये दानिय्येल को बेलतशस्सर नाम दिया था। पवित्र ईश्वरों की आत्मा का उसमें निवास है।) दानिय्येल को मैंने अपना सपना कह सुनाया। 9 मैंने उसे कहा, “हे बेलतशस्सर, तू सभी तांत्रिकों में सबसे बड़ा है। मुझे पता है कि तुझमें पवित्र ईश्वर की आत्मा वास करती है। मैं जानता हूँ कि किसी भी रहस्य को समझना तेरे लिये कठिन नहीं है। मैंने जो सपना देखा था, वह यह है। तू मझे इसका अर्थ समझा। 10 जब मैं अपने बिस्तर में लेटा हुआ था तो मैंने जो दिव्य दर्शन देखे, वे ये हैं। मैंने देखा कि मेरे सामने धरती के बीचों—बीच एक वृक्ष खड़ा है। वह वृक्ष बहुत लम्बा था। 11 वृक्ष बड़ा होता हुआ एक विशाल मज़बूत वृक्ष बन गया। वृक्ष की चोटी आकाश छूने लगी। उस वृक्ष को धरती पर कहीं से भी देखा जा सकता था। 12 वृक्ष की पत्तियाँ सुन्दर थीं। वृक्ष पर बहुत अच्छे फल बहुतायत में लगे थे और उस वृक्ष पर हर किसी के लिये भरपूर खाने को था। जंगली जानवर वृक्ष के नीचे आसरा पाये हुए थे और वृक्ष की शाखाओं पर चिड़ियों का बसेरा था। हर पशु पक्षी उस वृक्ष से ही भोजन पाता था।
13 “अपने बिस्तर पर लेटे—लेटे दर्शन में मैं उन वस्तुओं को देख रहा था और तभी एक पवित्र स्वर्गदूत को मैंने स्वर्ग से नीचे उतरते हुए देखा। 14 वह बड़े ऊँचे स्वर में बोला। उसने कहा, ‘वृक्ष को काट फेंको। इसकी टहनियों को काट डालो। इसकी पत्तियों को नोच लो। इसके फलों को चारों ओर बिखेर दो। इस वृक्ष के नीचे आसरा पाये हुए पशु कहीं दूर भाग जायेंगे। इसकी शाखाओं पर बसेरा किये हुए पक्षी कहीं उड़ जायेंगे। 15 किन्तु इसके तने और इसकी जड़ों को धरती में रहने दो। इसके चारों ओर लोहे और काँसे का एक बंधेज बांध दो। अपने आस पास उगी घास के साथ इसका तना और इसकी जड़ें धरती में रहेंगी। जंगली पशुओं और पेड़ पौधों के बीच यह खेतों में रहेगा। ओस से वह नम हो जायेगा। 16 वह अधिक समय तक मनुष्य की तरह नहीं सोचेगा। उसका मन पशु के मन जैसा हो जायेगा। उसके ऐसा ही रहते हुए सातऋ तु चक्र (वर्ष) बीत जायेगा।’
17 “एक पवित्र स्वर्गदूत ने इस दण्ड की घोषणा की थी ताकि धरती के सभी लोगों को यह पता चल जाये कि मनुष्यों के राज्यों के ऊपर परम प्रधान परमेश्वर शासन करता है। परमेश्वर जिसे भी चाहता है। इन राज्यों को दे देता है और परमेश्वर उन राज्यों पर शासन करने के लिये विनम्र मनुष्यों को चुनता है।
18 “बस मैंने (राजा नबूकदनेस्सर ने) सपने में यही देखा है। अब हे बेलतशस्सर! तु मुझे यह बता कि इस सपने का अर्थ क्या है मेरे राज्य का कोई भी बुद्धिमान पुरूष मुझे यह सपने का फल नही बता पा रहा है। किन्तु हे बेलतशस्सर, तू मेरे इस सपने की व्याख्या कर सकता है क्योंकि तुझमें पवित्र परमेश्वर की आत्मा निवास करती है।”
अच्छे प्रबन्ध-कर्ता बनो
7 वह समय निकट है जब सब कुछ का अंत हो जाएगा। इसलिए समझदार बनो और अपने पर काबू रखो ताकि तुम्हें प्रार्थना करने में सहायता मिले। 8 और सबसे बड़ी बात यह है कि एक दूसरे के प्रति निरन्तर प्रेम बनाये रखो क्योंकि प्रेम से अनगिनत पापों का निवारण होता है। 9 बिना कुछ कहे सुने एक दूसरे का स्वागत सत्कार करो। 10 जिस किसी को परमेश्वर की ओर से जो भी वरदान मिला है, उसे चाहिए कि परमेश्वर के विविध अनुग्रह के उत्तम प्रबन्धकों के समान, एक दूसरे की सेवा के लिए उसे काम में लाए। 11 जो कोई प्रवचन करे वह ऐसे करे, जैसे मानो परमेश्वर से प्राप्त वचनों को ही सुना रहा हो। जो कोई सेवा करे, वह उस शक्ति के साथ करे, जिसे परमेश्वर प्रदान करता है ताकि सभी बातों में यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर की महिमा हो। महिमा और सामर्थ्य सदा सर्वदा उसी की है। आमीन!
यीशु की पतरस से बातचीत
15 जब वे भोजन कर चुके तो यीशु ने शमौन पतरस से कहा, “यूहन्ना के पुत्र शमौन, जितना प्रेम ये मुझ से करते हैं, तू मुझसे उससे अधिक प्रेम करता है?”
पतरस ने यीशु से कहा, “हाँ प्रभु, तू जानता है कि मैं तुझे प्रेम करता हूँ।”
यीशु ने पतरस से कहा, “मेरे मेमनों[a] की रखवाली कर।”
16 वह उससे दोबारा बोला, “यूहन्ना के पुत्र शमौन, क्या तू मुझे प्रेम करता है?”
पतरस ने यीशु से कहा, “हाँ प्रभु, तू जानता है कि मैं तुझे प्रेम करता हूँ।”
यीशु ने पतरस से कहा, “मेरी भेड़ों की रखवाली कर।”
17 यीशु ने फिर तीसरी बार पतरस से कहा, “यूहन्ना के पुत्र शमौन, क्या तू मुझे प्रेम करता है?”
पतरस बहुत व्यथित हुआ कि यीशु ने उससे तीसरी बार यह पूछा, “क्या तू मुझसे प्रेम करता है?” सो पतरस ने यीशु से कहा, “हे प्रभु, तू सब कुछ जानता है, तू जानता है कि मैं तुझसे प्रेम करता हूँ।”
यीशु ने उससे कहा, “मेरी भेड़ों को चरा। 18 मैं तुझसे सत्य कहता हूँ, जब तू जवान था, तब तू अपनी कमर पर फेंटा कस कर, जहाँ चाहता था, चला जाता था। पर जब तू बूढा होगा, तो हाथ पसारेगा और कोई दूसरा तुझे बाँधकर जहाँ तू नहीं जाना चाहता, वहाँ ले जायेगा।” 19 (उसने यह दर्शाने के लिए ऐसा कहा कि वह कैसी मृत्यु से परमेश्वर की महिमा करेगा।) इतना कहकर उसने उससे कहा, “मेरे पीछे चला आ।”
20 पतरस पीछे मुड़ा और देखा कि वह शिष्य जिसे यीशु प्रेम करता था, उनके पीछे आ रहा है। (यह वही था जिसने भोजन करते समय उसकी छाती पर झुककर पूछा था, “हे प्रभु, वह कौन है, जो तुझे धोखे से पकड़वायेगा?”) 21 सो जब पतरस ने उसे देखा तो वह यीशु से बोला, “हे प्रभु, इसका क्या होगा?”
22 यीशु ने उससे कहा, “यदि मैं यह चाहूँ कि जब तक मैं आऊँ यह यहीं रहे, तो तुझे क्या? तू मेरे पीछे चला आ।”
23 इस तरह यह बात भाईयों में यहाँ तक फैल गयी कि वह शिष्य नहीं मरेगा। यीशु ने यह नहीं कहा था कि वह नहीं मरेगा। बल्कि यह कहा था, “यदि मैं यह चाहूँ कि जब तक मैं आऊँ, यह यहीं रहे, तो तुझे क्या?”
24 यही वह शिष्य है जो इन बातों की साक्षी देता है और जिसने ये बातें लिखी हैं। हम जानते हैं कि उसकी साक्षी सच है।
25 यीशु ने और भी बहुत से काम किये। यदि एक-एक करके वे सब लिखे जाते तो मैं सोचता हूँ कि जो पुस्तकें लिखी जातीं वे इतनी अधिक होतीं कि समूची धरती पर नहीं समा पातीं।
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