व्यवस्था का विधान तो आने वाली उत्तम बातों की छाया मात्र प्रदान करता है। अपने आप में वे बातें यथार्थ नहीं हैं। इसलिए उन्हीं बलियों के द्वारा जिन्हें निरन्तर प्रति वर्ष अनन्त रूप से दिया जाता रहता है, उपासना के लिए निकट आने वालों को सदा-सदा के लिए सम्पूर्ण सिद्ध नहीं किया जा सकता।
व्यवस्था में आनेवाली उत्तम वस्तुओं की छाया मात्र है न कि उनका असली रूप; इसलिए वर्ष-प्रतिवर्ष, निरन्तर रूप से बलिदान के द्वारा यह आराधकों को सिद्ध कभी नहीं बना