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Read the New Testament in 24 Weeks

A reading plan that walks through the entire New Testament in 24 weeks of daily readings.
Duration: 168 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
इब्री 3-5

मसीह येशु विश्वासयोग्य तथा करुणामय याजक

इसलिए स्वर्गीय बुलाहट में भागीदार पवित्र प्रियजन, मसीह येशु पर ध्यान दो, जो हमारे लिए परमेश्वर के ईश्वरीय सुसमाचार के दूत तथा महापुरोहित हैं. वह अपने चुननेवाले के प्रति उसी प्रकार विश्वासयोग्य बने रहे, जिस प्रकार परमेश्वर के सारे परिवार में मोशेह. मसीह येशु मोशेह की तुलना में ऊँची महिमा के योग्य पाए गए, जिस प्रकार भवन की तुलना में भवन-निर्माता. हर एक भवन का निर्माण किसी न किसी के द्वारा ही किया जाता है किन्तु हर एक वस्तु के बनानेवाले परमेश्वर हैं. जिन विषयों का वर्णन भविष्य में होने पर था, उनकी घोषणा करने में परमेश्वर के सारे परिवार में मोशेह एक सेवक के रूप में विश्वास-योग्य थे, किन्तु मसीह एक पुत्र के रूप में अपने परिवार में विश्वासयोग्य हैं और वह परिवार हम स्वयं हैं—यदि हम दृढ़ विश्वास तथा अपने आशा के गौरव को अन्त तक दृढ़तापूर्वक थामे रहते हैं.

अविश्वास के प्रति चेतावनी

इसलिए ठीक जिस प्रकार पवित्रात्मा का कहना है:

“यदि आज, तुम उनकी आवाज़ सुनो,
    तो अपने हृदय कठोर न कर लेना,
जैसा तुमने मुझे उकसाते हुए जंगल,
    में परीक्षा के समय किया था.
वहाँ तुम्हारे पूर्वजों ने चालीस वर्षों तक,
    मेरे महान कामों को देखने के बाद भी चुनौती देते हुए मुझे परखा था.
10 इसलिए मैं उस पीढ़ी से क्रोधित रहा.
    मैंने उनसे कहा, ‘हमेशा ही उनका हृदय मुझ से दूर हो जाता है.
    उन्हें मेरे आदेशों का कोई अहसास नहीं है.’
11 इसलिए मैंने अपने क्रोध में शपथ ली,
    ‘मेरे विश्राम में उनका प्रवेश कभी न होगा.’”

12 प्रियजन, सावधान रहो कि तुम्हारे समाज में किसी भी व्यक्ति का ऐसा बुरा तथा अविश्वासी हृदय न हो, जो जीवित परमेश्वर से दूर हो जाता है. 13 परन्तु जब तक वह दिन, जिसे आज कहा जाता है, हमारे सामने है, हर दिन एक-दूसरे को प्रोत्साहित करते रहो, ऐसा न हो कि तुममें से कोई भी पाप के छलावे के द्वारा कठोर बन जाए. 14 यदि हम अपने पहले भरोसे को अन्त तक सुरक्षित बनाए रखते हैं, हम मसीह के सहभागी बने रहते हैं. 15 जैसा कि वर्णन किया गया है:

यदि आज तुम उनकी आवाज़ सुनो
    तो अपने हृदय कठोर न कर लेना,
    जैसा तुमने उस समय मुझे उकसाते हुए किया था.

16 कौन थे वे, जिन्होंने उनकी आवाज़ सुनने के बाद उन्हें उकसाया था? क्या वे सभी नहीं, जिन्हें मोशेह मिस्र देश से बाहर निकाल लाए थे? 17 और कौन थे वे, जिनसे वह चालीस वर्ष तक क्रोधित रहे? क्या वे ही नहीं, जिन्होंने पाप किया और जिनके शव जंगल में पड़े रहे? 18 और फिर कौन थे वे, जिनके सम्बन्ध में उन्होंने शपथ खाई थी कि वे लोग उनके विश्राम में प्रवेश नहीं पाएँगे? क्या ये सब वे ही नहीं थे, जिन्होंने आज्ञा नहीं मानी थी? 19 इसलिए यह स्पष्ट है कि अविश्वास के कारण वे प्रवेश नहीं पा सके.

परमेश्वर की प्रजा के लिए शब्बाथ-विश्राम

इसलिए हम इस विषय में विशेष सावधान रहें कि जब तक उनके विश्राम में प्रवेश की प्रतिज्ञा मान्य है, आप में से कोई भी उसमें प्रवेश से चूक न जाए. हमें भी ईश्वरीय सुसमाचार उसी प्रकार सुनाया गया था जैसे उन्हें, किन्तु सुना हुआ वह ईश्वरीय सुसमाचार उनके लिए लाभप्रद सिद्ध नहीं हुआ क्योंकि उन्होंने इसे विश्वास से ग्रहण नहीं किया था. हमने, जिन्होंने विश्वास किया, उस विश्राम में प्रवेश पाया, ठीक जैसा उनका कहना था:

जैसे मैंने अपने क्रोध में शपथ खाई,
    वे मेरे विश्राम में प्रवेश कभी न पाएँगे,

यद्यपि उनके काम सृष्टि के प्रारम्भ से ही पूरे हो चुके थे. उन्होंने सातवें दिन के सम्बन्ध में किसी स्थान पर इस प्रकार वर्णन किया था: तब सातवें दिन परमेश्वर ने अपने सभी कामों से विश्राम किया. एक बार फिर इसी भाग में, वे मेरे विश्राम में प्रवेश कभी न करेंगे.

इसलिए कि कुछ के लिए यह प्रवेश अब भी खुला आमन्त्रण है तथा उनके लिए भी, जिन्हें इसके पूर्व ईश्वरीय सुसमाचार सुनाया तो गया किन्तु वे अपनी अनाज्ञाकारिता के कारण प्रवेश न कर पाए, परमेश्वर ने एक दिन दोबारा तय किया: आज. इसी दिन के विषय में एक लम्बे समय के बाद उन्होंने दाविद के मुख से यह कहा था—ठीक जैसा कि पहले भी कहा था:

यदि आज तुम उनकी आवाज़ सुनो
    तो अपने हृदय कठोर न कर लेना.

यदि उन्हें यहोशू द्वारा विश्राम प्रदान किया गया होता तो परमेश्वर इसके बाद एक अन्य दिन का वर्णन न करते. इसलिए परमेश्वर की प्रजा के लिए अब भी एक शब्बाथ का विश्राम तय है. 10 क्योंकि वह, जो परमेश्वर के विश्राम में प्रवेश करता है, अपने कामों से भी विश्राम करता है, जिस प्रकार स्वयं परमेश्वर ने विश्राम किया था. 11 इसलिए हम उस विश्राम में प्रवेश का पूरे साहस से प्रयास करें, कि किसी को भी उसी प्रकार अनाज्ञाकारिता का दण्ड भोगना न पड़े.

परमेश्वर का वचन तथा याजक मसीह

12 परमेश्वर का वचन जीवित, सक्रिय तथा किसी भी दोधारी तलवार से कहीं अधिक धारदार है, जो हमारे भीतर में प्रवेश कर हमारी आत्मा, प्राण, जोड़ों तथा मज्जा को भेद देता है. यह हमारे हृदय के उद्धेश्यों तथा विचारों को पहचानने में सक्षम है. 13 जिन्हें हमें हिसाब देना है, उनकी दृष्टि से कोई भी प्राणी छिपा नहीं है—सभी वस्तुएं उनके सामने साफ़ और खुली हुई हैं.

14 इसलिए कि वह, जो आकाशमण्डल में से होकर पहुँच गए, जब वह महायाजक—परमेश्वर-पुत्र, मसीह येशु—हमारी ओर हैं; हम अपने विश्वास में स्थिर बने रहें. 15 वह ऐसे महायाजक नहीं हैं, जो हमारी दुर्बलताओं में सहानुभूति न रख सकें परन्तु वह ऐसे महायाजक हैं, जो हरेक पक्ष में हमारे समान ही परखे गए फिर भी निष्पाप ही रहे; 16 इसलिए हम अनुग्रह के सिंहासन के सामने निड़र होकर जाएँ कि हमें ज़रूरत के अवसर पर कृपा तथा अनुग्रह प्राप्त हो.

सबसे अच्छा महायाजक

हर एक महापुरोहित मनुष्यों में से चुना जाता है और मनुष्यों के ही लिए परमेश्वर से सम्बन्धित संस्कारों के लिए चुना जाता है कि पापों के लिए भेंट तथा बलि दोनों चढ़ाया करे. उसमें अज्ञानों तथा भूले-भटकों के साथ नम्र व्यवहार करने की क्षमता होती है क्योंकि वह स्वयं भी निर्बलताओं के अधीन है. इसीलिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह पापों के लिए बलि चढ़ाया करे—लोगों के लिए तथा स्वयं अपने लिए. किसी भी व्यक्ति को यह सम्मान अपनी कोशिश से नहीं परन्तु परमेश्वर की बुलाहट द्वारा प्राप्त होती है, जैसे हारोन को.

इसी प्रकार मसीह ने भी महापुरोहित के पद पर बैठने के लिए स्वयं को ऊँचा नहीं किया परन्तु उन्होंने, जिन्होंने उनसे यह कहा:

“तुम मेरे पुत्र हो,
    आज मैं तुम्हारा पिता हुआ हूँ”;

जैसा उन्होंने दूसरी जगह भी कहा है,

तुम मेलख़ीत्सेदेक की शृंखला में
    एक अनन्त काल के याजक हो.

अपने देह में रहने के समय में उन्होंने ऊँचे शब्द में रोते हुए, आँसुओं के साथ उनके सामने प्रार्थनाएँ और विनती कीं, जो उन्हें मृत्यु से बचा सकते थे. उनकी परमेश्वर में भक्ति के कारण उनकी प्रार्थनाएँ स्वीकार की गईं. पुत्र होने पर भी उन्होंने अपने दुःख उठाने से आज्ञा मानने की शिक्षा ली. फिर सिद्ध घोषित किए जाने के बाद वह स्वयं उन सबके लिए, जो उनकी आज्ञाओं का पालन करते हैं, अनन्त काल उद्धार का कारण बन गए; 10 क्योंकि वह परमेश्वर द्वारा मेलख़ीत्सेदेक की श्रृंखला के महापुरोहित चुने गए थे.

शिक्षा में अपेक्षित प्रगति

11 हमारे पास इस विषय में कहने के लिए बहुत कुछ है तथा इसका वर्णन करना भी कठिन काम है क्योंकि तुम अपनी सुनने की क्षमता खो बैठे हो. 12 समय के अनुसार तो तुम्हें अब तक शिक्षक बन जाना चाहिए था किन्तु अब आवश्यक यह हो गया है कि कोई तुम्हें दोबारा परमेश्वर के ईश्वरीय वचनों के शुरु के सिद्धान्तों की शिक्षा दे. तुम्हें ठोस आहार नहीं, दूध की ज़रूरत हो गई है. 13 वह, जो मात्र दूध का सेवन करता है, धार्मिकता की शिक्षा से अपरिचित है, क्योंकि वह शिशु है. 14 ठोस आहार सयानों के लिए होता है, जिन्होंने लगातार अभ्यास के द्वारा अपनी ज्ञानेन्द्रियों को इसके प्रति निपुण बना लिया है कि क्या सही है और क्या गलत.

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