Read the New Testament in 24 Weeks
नया यरूशलेम
21 फिर मैंने एक नया स्वर्ग और नयी धरती देखी। क्योंकि पहला स्वर्ग और पहली धरती लुप्त हो चुके थे। और वह सागर भी अब नहीं रहा था। 2 मैंने यरूशलेम की वह पवित्र नगरी भी आकाश से बाहर निकल कर परमेश्वर की ओर से नीचे उतरते देखी। उस नगरी को ऐसे सजाया गया था जैसे मानों किसी दुल्हन को उसके पति के लिए सजाया गया हो।
3 तभी मैंने आकाश में एक ऊँची ध्वनि सुनी। वह कह रही थी, “देखो अब परमेश्वर का मन्दिर मनुष्यों के बीच है और वह उन्हीं के बीच घर बनाकर रहा करेगा। वे उसकी प्रजा होंगे और स्वयं परमेश्वर उनका परमेश्वर होगा। 4 उनकी आँख से वह हर आँसू पोंछ डालेगा। और वहाँ अब न कभी मृत्यु होगी, न शोक के कारण कोई रोना-धोना और नहीं कोई पीड़ा। क्योंकि ये सब पुरानी बातें अब समाप्त हो चुकी हैं।”
5 इस पर जो सिंहासन पर बैठा था, वह बोला, “देखो, मैं सब कुछ नया किए दे रहा हूँ।” उसने फिर कहा, “इसे लिख ले क्योंकि ये वचन विश्वास करने योग्य हैं और सत्य हैं।”
6 वह मुझसे फिर बोला, “सब कुछ पूरा हो चुका है। मैं ही अल्फा हूँ और मैं ही ओमेगा हूँ। मैं ही आदि हूँ और मैं ही अन्त हूँ। जो भी प्यासा है मैं उसे जीवन-जल के स्रोत से सेंत-मेंत में मुक्त भाव से जल पिलाऊँगा। 7 जो विजयी होगा, उस सब कुछ का मालिक बनेगा। मैं उसका परमेश्वर होऊँगा और वह मेरा पुत्र होगा। 8 किन्तु कायरों अविश्वासियों, दुर्बुद्धियों, हत्यारों, व्यभिचारियों, जादूटोना करने वालों मूर्तिपूजकों और सभी झूठ बोलने वालों को भभकती गंधक की जलती झील में अपना हिस्सा बँटाना होगा। यही दूसरी मृत्यु है।”
9 फिर उन सात दूतों में से जिनके पास सात अंतिम विनाशों से भरे कटोरे थे, एक आगे आया और मुझसे बोला, “यहाँ आ। मैं तुझे वह दुल्हिन दिखा दूँ जो मेमने की पत्नी है।” 10 अभी मैं आत्मा के आवेश में ही था कि वह मुझे एक विशाल और ऊँचे पर्वत पर ले गया। फिर उसने मुझे यरूशलेम की पवित्र नगरी का दर्शन कराया। वह परमेश्वर की ओर से आकाश से नीचे उतर रही थी।
11 वह परमेश्वर की महिमा से मण्डित थी। वह सर्वथा निर्मल यशब नामक महामूल्यवान रत्न के समान चमक रही थी। 12 नगरी के चारों ओर एक विशाल ऊँचा परकोटा था जिसमें बारह द्वार थे। उन बारहों द्वारों पर बारह स्वर्गदूत थे। तथा बारहों द्वारों पर इस्राएल के बारह कुलों के नाम अंकित थे। 13 इनमें से तीन द्वार पूर्व की ओर थे, तीन द्वार उत्तर की ओर, तीन द्वार दक्षिण की ओर, और तीन द्वार पश्चिम की ओर थे। 14 नगर का परकोटा बारह नीवों पर बनाया गया था तथा उन पर मेमने के बारह प्रेरितों के नाम अंकित थे।
15 जो स्वर्गदूत मुझसे बात कर रहा था, उसके पास सोने से बनी नापने की एक छड़ी थी जिससे वह उस नगर को, उसके द्वारों को और उसके परकोटे को नाप सकता था। 16 नगर को वर्गाकार में बसाया गया था। यह जितना लम्बा था उतना ही चौड़ा था। उस स्वर्गदूत ने उस छड़ी से उस नगरी को नापा। वह कोई बारह हज़ार स्टोडिया पायी गयी। उसकी लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई एक जैसी थी। 17 स्वर्गदूत ने फिर उसके परकोटे को नापा। वह कोई एक सौ चवालीस हाथ था। उसे मनुष्य के हाथों की लम्बाई से नापा गया था जो हाथ स्वर्गदूत का भी हाथ है। 18 नगर का परकोटा यशब नामक रत्न का बना था तथा नगर को काँच के समान चमकते शुद्ध सोने से बनाया गया था।
19 नगर के परकोटे की नीवें हर प्रकार के बहुमूल्य रत्नों से सजाई गयी थी। नींव का पहला पत्थर यशब का बना था, दूसरी नीलम से, तीसरी स्फटिक से, चौथी पन्ने से, 20 पाँचवीं गोमेद से, छठी मानक से, सातवीं पीत मणि से, आठवीं पेरोज से, नवीं पुखराज से, दसवीं लहसनिया से, ग्यारहवीं धूम्रकांत से और बारहवीं चन्द्रकाँत मणि से बनी थी। 21 बारहों द्वार बारह मोतियों से बने थे, हर द्वार एक-एक मोती से बना था। नगर की गलियाँ स्वच्छ काँच जैसे शुद्ध सोने की बनी थीं।
22 नगर में मुझे कोई मन्दिर दिखाई नहीं दिया। क्योंकि सर्वशक्तिमान प्रभु परमेश्वर और मेमना ही उसके मन्दिर थे। 23 उस नगर को किसी सूर्य या चन्द्रमा की कोई आवश्यकता नहीं है कि वे उसे प्रकाश दें, क्योंकि वह तो परमेश्वर के तेज से आलोकित था। और मेमना ही उस नगर का दीपक है।
24 सभी जातियों के लोग इसी दीपक के प्रकाश के सहारे आगे बढ़ेंगे। और इस धरती के राजा अपनी भव्यता को इस नगर में लायेंगे। 25 दिन के समय इसके द्वार कभी बंद नहीं होंगे और वहाँ रात तो कभी होगी ही नहीं। 26 जातियों के कोष और धन सम्पत्ति को उस नगर में लाया जायेगा। 27 कोई अपवित्र वस्तु तो उसमें प्रवेश तक नहीं कर पायेगी और न ही लज्जापूर्ण कार्य करने वाले और झूठ बोलने वाले उसमें प्रवेश कर पाएँगे उस नगरी में तो प्रवेश बस उन्हीं को मिलेगा जिनके नाम मेमने की जीवन की पुस्तक में लिखे हैं।
22 इसके पश्चात् उस स्वर्गदूत ने मुझे जीवन देने वाले जल की एक नदी दिखाई। वह नदी स्फटिक की तरह उज्ज्वल थी। वह परमेश्वर और मेमने के सिंहासन से निकलती हुई 2 नगर की गलियों के बीच से होती हुई बह रही थी। नदी के दोनों तटों पर जीवन वृक्ष उगे थे। उन पर हर साल बारह फसलें लगा करतीं थीं। इसके प्रत्येक वृक्ष पर प्रतिमास एक फसल लगती थी तथा इन वृक्षों की पत्तियाँ अनेक जातियों को निरोग करने के लिए थीं।
3 वहाँ किसी प्रकार का कोई अभिशाप नहीं होगा। परमेश्वर और मेमने का सिंहासन वहाँ बना रहेगा। तथा उसके सेवक उसकी उपासना करेंगे 4 तथा उसका नाम उनके माथों पर अंकित रहेगा। 5 वहाँ कभी रात नहीं होगी और न ही उन्हें सूर्य के अथवा दीपक के प्रकाश की कोई आवश्यकता रहेगी। क्योंकि उन पर प्रभु परमेश्वर अपना प्रकाश डालेगा और वे सदा सदा शासन करेंगे।
6 फिर उस स्वर्गदूत ने मुझसे कहा, “ये वचन विश्वास करने योग्य और सत्य हैं। प्रभु ने जो नबियों की आत्माओं का परमेश्वर है, अपने सेवकों को, जो कुछ शीघ्र ही घटने वाला है, उसे जताने के लिए अपना स्वर्गदूत भेजा है। 7 ‘सुनो, मैं शीघ्र ही आ रहा हूँ! धन्य हैं वह जो इस पुस्तक में दिए गए उन वचनों का पालन करते हैं जो भविष्यवाणी हैं।’”
8 मैं यूहन्ना हूँ। मैंने ये बातें सुनी और देखी हैं। जब मैंने ये बातें देखीं सुनीं तो उस स्वर्गदूत के चरणों में गिर कर मैंने उसकी उपासना की जो मुझे ये बातें दिखाया करता था। 9 उसने मुझसे कहा, “सावधान, तू ऐसा मत कर। क्योंकि मैं तो तेरा, तेरे बंधु नबियों का जो इस पुस्तक में लिखे वचनों का पालन करते हैं, एक सह-सेवक हूँ। बस परमेश्वर की ही उपासना कर।”
10 उसने मुझसे फिर कहा, “इस पुस्तक में जो भविष्यवाणियाँ दी गयी हैं, उन्हें छुपा कर मत रख क्योंकि इन बातों के घटित होने का समय निकट ही है। 11 जो बुरा करते चले आ रहे हैं, वे बुरा करते रहें। जो अपवित्र बने हुए हैं, वे अपवित्र ही बने रहें। जो धर्मी हैं, वे धर्मी ही बना रहे। जो पवित्र हैं वे पवित्र बना रहे।”
12 “देखो, मैं शीघ्र ही आ रहा हूँ और अपने साथ तुम्हारे लिए प्रतिफल ला रहा हूँ। जिसने जैसे कर्म किये हैं, मैं उन्हें उसके अनुसार ही दूँगा। 13 मैं ही अल्फा हूँ और मैं ही ओमेगा हूँ। मैं ही पहला हूँ और मैं ही अन्तिम हूँ।” मैं ही आदि और मैं ही अन्त हूँ।
14 “धन्य हैं वह जो अपने वस्त्रों को धो लेते हैं। उन्हें जीवन-वृक्ष के फल खाने का अधिकार होगा। वे द्वार से होकर नगर में प्रवेश करने के अधिकारी होंगे। 15 किन्तु ‘कुत्ते,’ जादू-टोना करने वाले, व्यभिचारी, हत्यारे, मूर्तिपूजक, और प्रत्येक वह जो झूठ पर चलता है और झूठे को प्रेम करता है, बाहर ही पड़े रहेंगे।
16 “स्वयं मुझ यीशु ने तुम लोगों के लिए और कलीसियाओं के लिए, इन बातों की साक्षी देने को अपना स्वर्गदूत भेजा है। मैं दाऊद के परिवार का वंशज हूँ। मैं भोर का दमकता हुआ तारा हूँ।”
17 आत्मा और दुल्हिन कहती है, “आ!” और जो इसे सुनता है, वह भी कहे, “आ!” और जो प्यासा हो वह भी आये और जो चाहे वह भी इस जीवन दायी जल के उपहार को मुक्त भाव से ग्रहण करें।
18 मैं शपथ पूर्वक उन व्यक्तियों के लिए घोषणा कर रहा हूँ जो इस पुस्तक में लिखे भविष्यवाणी के वचनों को सुनते हैं, उनमें से यदि कोई भी उनमें कुछ भी और जोड़ेगा तो इस पुस्तक में लिखे विनाश परमेश्वर उस पर ढायेगा। 19 और यदि नबियों की इस पुस्तक में लिखे वचनों में से कोई कुछ घटायेगा तो परमेश्वर इस पुस्तक में लिखे जीवन-वृक्ष और पवित्र नगरी में से उसका भाग उससे छीन लेगा।
20 यीशु जो इन बातों का साक्षी है, वह कहता है, “हाँ! मैं शीघ्र ही आ रहा हूँ।”
आमीन। हे प्रभु यीशु आ!
21 प्रभु यीशु का अनुग्रह सबके साथ रहे! आमीन।
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