Read the New Testament in 24 Weeks
मसीह की बलि—एक पर्याप्त बलि
10 व्यवस्था में आनेवाली उत्तम वस्तुओं की छाया मात्र है न कि उनका असली रूप; इसलिए वर्ष-प्रतिवर्ष, निरन्तर रूप से बलिदान के द्वारा यह आराधकों को सिद्ध कभी नहीं बना 2 सकता—नहीं तो बलियों का भेंट किया जाना समाप्त न हो जाता? क्योंकि एक बार शुद्ध हो जाने के बाद आराधकों में पाप का अहसास ही न रह जाता 3 वस्तुत: इन बलियों के द्वारा वर्ष-प्रतिवर्ष पाप को याद किया जाता है, 4 क्योंकि यह असम्भव है कि बैलों और बकरों का बलि-लहू पापों को हर ले. 5 इसलिए जब वह संसार में आए, उन्होंने कहा:
“बलि और भेंट की आपने इच्छा नहीं की,
परन्तु एक शरीर की, जो आपने मेरे लिए तैयार की है.
6 आप हवन बलि और पाप के लिए भेंट की गई बलियों से
संतुष्ट नहीं हुए.
7 तब मैंने कहा, ‘प्रभु परमेश्वर, मैं आ गया हूँ कि आपकी इच्छा पूरी करूँ.
पवित्रशास्त्र में यह मेरा ही वर्णन है.’”
8 उपरोक्त कथन के बाद उन्होंने पहले कहा: बलि तथा भेंटें, हवन-बलियों तथा पापबलियों की आपने इच्छा नहीं की और न आप उनसे संतुष्ट हुए. ये व्यवस्था के अनुसार ही भेंट किए जाते हैं. 9 तब उन्होंने कहा: लीजिए, मैं आ गया हूँ कि आपकी इच्छा पूरी करूँ. इस प्रकार वह पहिले को अस्वीकार कर द्वितीय को नियुक्त करते हैं. 10 इसी इच्छा के प्रभाव से हम मसीह येशु की देह-बलि के द्वारा उनके लिए अनन्त काल के लिए पाप से अलग कर दिए गए.
मसीह की बलि की क्षमता
11 हर एक याजक एक ही प्रकार की बलि दिन-प्रतिदिन भेंट किया करता है, जो पाप को हर ही नहीं सकती 12 किन्तु जब मसीह येशु पापों के लिए एक ही बार सदा-सर्वदा के लिए मात्र एक बलि भेंट कर चुके, वह परमेश्वर के दायें पक्ष में बैठ गए. 13 तब वहाँ वह उस समय की प्रतीक्षा करने लगे कि कब उनके शत्रु उनके अधीन बना दिए जाएँगे 14 क्योंकि एक ही बलि के द्वारा उन्होंने उन्हें सर्वदा के लिए सिद्ध बना दिया, जो उनके लिए अलग किए गए हैं.
15 पवित्रात्मा भी, जब वह यह कह चुके, यह गवाही देते हैं:
16 मैं उनके साथ यह वाचा बांधूंगा—यह प्रभु का कथन है—उन दिनों के बाद
मैं अपना नियम उनके हृदय में लिखूँगा
और उनके मस्तिष्क पर अंकित कर दूँगा.
17 वह आगे कहते हैं:
उनके पाप और उनके अधर्म के कामों को
मैं इसके बाद याद न रखूंगा.
18 जहाँ इन विषयों के लिए पाप की क्षमा है, वहाँ पाप के लिए किसी भी बलि की ज़रूरत नहीं रह जाती.
निरन्तर प्रयास की बुलाहट
19-21 इसलिए, प्रियजन, कि परमेश्वर के परिवार में हमारे लिए एक सबसे उत्तम याजक निर्धारित हैं तथा इसलिए कि मसीह येशु के लहू के द्वारा एक नए तथा जीवित मार्ग से, जिसे उन्होंने उस पर्दे—अपने शरीर—में से हमारे लिए अभिषेक किया है, हमें अति पवित्र स्थान में जाने के लिए साहस प्राप्त हुआ है, 22 हम अपने अशुद्ध विवेक से शुद्ध होने के लिए अपने हृदय को सींच कर, निर्मल जल से अपने शरीर को शुद्ध कर, विश्वास के पूरे आश्वासन के साथ, निष्कपट हृदय से परमेश्वर की उपस्थिति में प्रवेश करें. 23 अब हम बिना किसी शक के अपनी उस आशा में अटल रहें, जिसे हमने स्वीकार किया है क्योंकि जिन्होंने प्रतिज्ञा की है, वह विश्वासयोग्य हैं. 24 हम यह भी विशेष ध्यान रखें कि हम आपस में प्रेम और भले कामों में एक दूसरे को किस प्रकार प्रेरित करें 25 तथा हम आराधना सभाओं में लगातार इकट्ठा होने में सुस्त न हो जाएँ, जैसे कि कुछ हो ही चुके हैं. एक-दूसरे को प्रोत्साहित करते रहो और इस विषय में और भी अधिक नियमित हो जाओ, जैसा कि तुम देख ही रहे हो कि वह दिन पास आता जा रहा है.
विश्वास की शिक्षा को त्यागने के दुष्परिणाम
26 यदि सत्य ज्ञान की प्राप्ति के बाद भी हम जानबूझकर पाप करते जाएँ तो पाप के लिए कोई भी बलि बाकी नहीं रह जाती; 27 सिवाय न्याय-दण्ड की भयावह प्रतीक्षा तथा आग के क्रोध के, जो सभी विरोधियों को चट कर जाएगा.
28 जो कोई मोशेह की व्यवस्था की अवहेलना करता है, उसे दो या तीन प्रत्यक्षदर्शी गवाहों के आधार पर, बिना किसी कृपा के, मृत्युदण्ड दे दिया जाता है. 29 उस व्यक्ति के दण्ड की कठोरता के विषय में विचार करो, जिसने परमेश्वर के पुत्र को अपने पैरों से रौंदा तथा वाचा के लहू को अशुद्ध किया, जिसके द्वारा वह स्वयं अलग किया गया था तथा जिसने अनुग्रह के आत्मा का अपमान किया. 30 हम तो उन्हें जानते हैं, जिन्होंने यह धीरज दिया: बदला मैं लूँगा, यह ज़िम्मेदारी मेरी ही है तब यह भी: प्रभु ही अपनी प्रजा का न्याय करेंगे. 31 भयानक होती है जीवित परमेश्वर के हाथों में पड़ने की स्थिति!
लगातार प्रयास करने के उद्देश्य
32 उन प्रारम्भिक दिनों की स्थिति को याद न करो जब ज्ञानप्राप्त करने के बाद तुम कष्टों की स्थिति में संघर्ष करते रहे 33 कुछ तो सार्वजनिक रूप से उपहास पात्र बनाए जाकर निन्दा तथा कष्टों के द्वारा और कुछ इसी प्रकार के व्यवहार को सह रहे अन्य विश्वासियों का साथ देने के कारण. 34 तुमने उन पर सहानुभूति व्यक्त की, जो बन्दी बनाए गए थे तथा तुमने सम्पत्ति के छिन जाने को भी इसलिए सहर्ष स्वीकार कर लिया कि तुम्हें यह मालूम था कि निश्चित ही उत्तम और स्थायी है तुम्हारी सम्पदा.
35 इसलिए अपने दृढ़ विश्वास से दूर न हो जाओ जिसका प्रतिफल बड़ा है. 36 इस समय ज़रूरत है धीरज की कि जब तुम परमेश्वर की इच्छा पूरी कर चुको, तुम्हें वह प्राप्त हो जाए जिसकी प्रतिज्ञा की गई थी: 37 क्योंकि जल्द ही वह,
जो आनेवाला है, आ जाएगा. वह देर नहीं करेगा;
38 किन्तु जीवित वही रहेगा,
जिसने अपने विश्वास के द्वारा धार्मिकता प्राप्त की है
किन्तु यदि वह भयभीत हो पीछे हट जाए
तो उसमें मेरी प्रसन्नता न रह जाएगी.
39 हम उनमें से नहीं हैं, जो पीछे हट कर नाश हो जाते हैं परन्तु हम उनमें से हैं, जिनमें वह आत्मा का रक्षक विश्वास छिपा है.
11 और विश्वास उन तत्वों का निश्चय है, हमने जिनकी आशा की है, तथा उन तत्वों का प्रमाण है, जिन्हें हमने देखा नहीं है. 2 इसी के द्वारा प्राचीनों ने परमेश्वर की प्रशंसा प्राप्त की.
3 यह विश्वास ही है, जिसके द्वारा हमने यह जाना है कि परमेश्वर की आज्ञा मात्र से सारी सृष्टि अस्तित्व में आ गई. वह सब, जो दिखता है उसकी उत्पत्ति देखी हुई वस्तुओं से नहीं हुई.
प्राचीनों का अनुसरण करने योग्य विश्वास
4 यह विश्वास ही था, जिसके द्वारा हाबिल ने परमेश्वर को काइन की तुलना में बेहतर बलि भेंट की, जिसके कारण स्वयं परमेश्वर ने प्रशंसा के साथ हाबिल को धर्मी घोषित किया. परमेश्वर ने हाबिल की भेंट की प्रशंसा की. यद्यपि उनकी मृत्यु हो चुकी है, उनका यही विश्वास आज भी हमारे लिए गवाही है.
5 यह विश्वास ही था कि हनोक उठा लिए गए कि वह मृत्यु का अनुभव न करें. उन्हें फिर देखा न गया—स्वयं परमेश्वर ने ही उन्हें अपने साथ ले लिया था. उन्हें उठाए जाने के पहले उनकी प्रशंसा की गई थी कि उन्होंने परमेश्वर को प्रसन्न किया था.
6 विश्वास की कमी में परमेश्वर को प्रसन्न करना असम्भव है क्योंकि परमेश्वर के पास आने वाले व्यक्ति के लिए यह ज़रूरी है कि वह यह विश्वास करे कि परमेश्वर हैं और यह भी कि वह उन्हें प्रतिफल देते हैं, जो उनकी खोज करते हैं.
7 यह विश्वास ही था कि अब तक अनदेखी वस्तुओं के विषय में नोहा को परमेश्वर से चेतावनी प्राप्त हुई और नोहा ने अत्यन्त भक्ति में अपने परिवार की सुरक्षा के लिए एक विशाल जलयान का निर्माण किया तथा विश्वास के द्वारा संसार को धिक्कारा और मीरास में उस धार्मिकता को प्राप्त किया, जो विश्वास से प्राप्त होता है.
8 यह विश्वास ही था, जिसके द्वारा अब्राहाम ने परमेश्वर के बुलाने पर घर-परिवार का त्याग कर एक अन्य देश को चले जाने के लिए उनकी आज्ञा का पालन किया—वह देश, जो परमेश्वर उन्हें मीरास में देने पर थे. वह यह जाने बिना ही चल पड़े कि वह कहाँ जा रहे थे. 9 वह विश्वास के द्वारा ही उस प्रतिज्ञा किए हुए देश में परदेशी बन कर रहे, मानो विदेश में. उन्होंने इसहाक और याक़ोब के साथ तम्बुओं में निवास किया, जो उसी प्रतिज्ञा के साथ वारिस थे. 10 उनकी दृष्टि उस स्थायी नगर की ओर थी, जिसके रचने वाले और बनाने वाले परमेश्वर हैं.
11 यह विश्वास ही था कि साराह ने भी गर्भधारण की सामर्थ प्राप्त की हालांकि उनकी अवस्था इस योग्य नहीं रह गई थी. उन्होंने विश्वास किया कि परमेश्वर, जिन्होंने इसकी प्रतिज्ञा की थी, विश्वासयोग्य हैं. 12 इस कारण उस व्यक्ति के द्वारा, जो मरे हुए से थे, इतने वंशज उत्पन्न हुए, जितने आकाश में तारे तथा समुद्र के किनारे पर रेत के कण हैं.
13 विश्वास की स्थिति में ही इन सब की मृत्यु हुई, यद्यपि उन्हें प्रतिज्ञा की हुई वस्तुएं प्राप्त नहीं हुई थीं, परन्तु उन्होंने उन तत्वों को दूर से पहचान कर इस अहसास के साथ उनका स्वागत किया कि वे स्वयं पृथ्वी पर परदेशी और बाहरी हैं. 14 इस प्रकार के भावों को प्रकट करने के द्वारा वे यह साफ़ कर देते हैं कि वे अपने ही देश की खोज में हैं. 15 वस्तुत:, यदि वे उस देश को याद कर रहे थे, जिससे वे निकल आए थे, तब उनके सामने वहाँ लौट जाने का सुअवसर भी होता 16 किन्तु सच्चाई यह है कि उन्हें एक बेहतर देश की इच्छा थी, जो स्वर्गीय है. इसलिए उन लोगों द्वारा परमेश्वर कहलाए जाने में परमेश्वर को किसी प्रकार की लज्जा नहीं है क्योंकि परमेश्वर ही ने उनके लिए एक नगर का निर्माण किया है.
17 यह विश्वास ही था कि अब्राहाम ने, जब उन्हें परखा गया, इसहाक को बलि के लिए भेंट कर दिया. वह, जिन्होंने प्रतिज्ञाओं को प्राप्त किया था वह अपने एकलौते पुत्र को भेंट कर रहे थे. 18 यह वही थे, जिनसे कहा गया था: तुम्हारे वंश की मान्यता इसहाक द्वारा ही होगी. 19 अब्राहाम यह समझ चुके थे कि परमेश्वर में मरे हुओं को जीवित करने की सामर्थ है. एक प्रकार से उन्होंने भी इसहाक को मरे हुओं में से जीवित प्राप्त किया.
20 यह विश्वास ही था कि इसहाक ने याक़ोब तथा एसाव को उनके आनेवाले जीवन के लिए आशीर्वाद दिया.
21 यह विश्वास ही था कि याक़ोब ने अपने मरते समय योसेफ़ के दोनों पुत्रों को अपनी लाठी का सहारा ले आशीर्वाद दिया और आराधना की.
22 यह विश्वास ही था कि योसेफ़ ने अपनी मृत्यु के समय इस्राएलियों के निर्गमन जाने का वर्णन किया तथा अपनी अस्थियों के विषय में आज्ञा दीं.
23 यह विश्वास ही था कि जब मोशेह का जन्म हुआ, उनके माता-पिता ने उन्हें तीन माह तक छिपाए रखा. उन्होंने देखा कि शिशु सुन्दर है इसलिए वे राज-आज्ञा से भयभीत न हुए.
24 यह विश्वास ही था कि मोशेह ने बड़े होने पर फ़रोह की पुत्री की सन्तान कहलाना अस्वीकार कर दिया 25 और पाप के क्षण भर के सुखों के आनन्द की बजाय परमेश्वर की प्रजा के साथ दुःख सहना सही समझा. 26 उनकी दृष्टि में मसीह के लिए सही गई निन्दा मिस्र देश के भण्ड़ारों से कहीं अधिक कीमती थी क्योंकि उनकी आँखें उस ईनाम पर स्थिर थी. 27 यह विश्वास ही था कि मोशेह मिस्र देश को छोड़ कर चले गए. उन्हें फ़रोह के क्रोध का कोई भय न था. वह आगे ही बढ़ते चले गए मानो वह उन्हें देख रहे थे, जो अनदेखे हैं. 28 यह विश्वास ही था कि मोशेह ने इस्राएलियों को फ़सह-उत्सव मनाने तथा बलि लहू छिड़कने की आज्ञा दी कि वह, जो पहिलौठे पुत्रों का नाश कर रहा था, उनमें से किसी को स्पर्श न करे.
29 यह विश्वास ही था कि उन्होंने लाल सागर ऐसे पार कर लिया, मानो वे सूखी भूमि पर चल रहे हों किन्तु जब मिस्रवासियों ने वही करना चाहा तो डूब मरे.
30 यह विश्वास ही था जिसके द्वारा येरीख़ो नगर की दीवार उनके सात दिन तक परिक्रमा करने पर गिर पड़ी.
31 यह विश्वास ही था कि नगरवधू राख़ाब ने गुप्तचरों का स्वागत मैत्रीभाव में किया तथा आज्ञा न मानने वालों के साथ नाश नहीं हुई.
32 मैं और क्या कहूँ? समय की कमी मुझे आज्ञा नहीं देती कि मैं गिदौन, बाराक, शिमशोन, येफ़्ताह, दाविद, शमुएल तथा भविष्यद्वक्ताओं का वर्णन करूँ, 33 जो विश्वास से राज्यों पर विजयी हुए, जिन्होंने धार्मिकता में राज्य किया, जिन्हें प्रतिज्ञाओं का फल प्राप्त हुआ, जिन्होंने सिंहों के मुँह बान्ध दिए; 34 आग की लपटों को ठण्डा कर दिया, तलवार की धार से बच निकले; जिन्हें निर्बल से बलवन्त बना दिया गया; युद्ध में वीर साबित हुए; जिन्होंने विदेशी सेनाओं को खदेड़ दिया; 35 दोबारा जी उठने के द्वारा स्त्रियों को उनके मृतक दोबारा जीवित प्राप्त हो गए. कुछ अन्य थे, जिन्हें ताड़नाएं दी गईं और उन्होंने छुटकारा अस्वीकार कर दिया कि वे बेहतर पुनरुत्थान प्राप्त कर सकें. 36 कुछ अन्य थे, जिनकी परख उपहास, कोड़ों, बेड़ियों में जकड़े जाने और बन्दीगृह में डाले जाने के द्वारा हुई. 37 उनका पथराव किया गया, उन्हें चीर डाला गया, लालच दिया गया, तलवार से उनका वध किया गया, भेड़ों व बकरियों की खाल में मढ़ दिया गया, वे अभाव की स्थिति में थे, उन्हें यातनाएँ दी गईं तथा उनसे दुर्व्यवहार किया गया. 38 उनके लिए संसार सही स्थान साबित न हुआ. वे जंगल में, पर्वतों पर, गुफाओं में तथा भूमि के गड्ढों में भटकते-छिपते रहे.
39 ये सभी वे थे, जिन्होंने अपने विश्वास के द्वारा परमेश्वर का अनुग्रह प्राप्त किया किन्तु इन्होंने वह प्राप्त नहीं किया, जिसकी इनसे प्रतिज्ञा की गई थी 40 क्योंकि उनके लिए परमेश्वर के द्वारा कुछ बेहतर ही निर्धारित था कि हमारे साथ जुड़े बिना उन्हें सिद्धता प्राप्त न हो.
New Testament, Saral Hindi Bible (नए करार, सरल हिन्दी बाइबल) Copyright © 1978, 2009, 2016 by Biblica, Inc.® All rights reserved worldwide.