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Read the New Testament in 24 Weeks

A reading plan that walks through the entire New Testament in 24 weeks of daily readings.
Duration: 168 days
Saral Hindi Bible (SHB)
Version
लूकॉ 18

दुराग्रही विधवा

18 तब मसीह येशु ने शिष्यों को यह समझाने के उद्देश्य से कि हतोत्साहित हुए बिना निरन्तर प्रार्थना करते रहना ही सही है, यह दृष्टान्त प्रस्तुत किया. “किसी नगर में एक न्यायाधीश था. वह न तो परमेश्वर से डरता था और न किसी को कुछ समझता था. उसी नगर में एक विधवा भी थी, जो बार-बार उस न्यायाधीश के पास ‘आकर विनती करती थी कि उसे न्याय दिलाया जाए.’

“कुछ समय तक तो वह न्यायाधीश उसे टालता रहा किन्तु फिर उसने मन में विचार किया, ‘यद्यपि मैं न तो परमेश्वर से डरता हूँ और न लोगों से प्रभावित होता हूँ फिर भी यह विधवा आ-आकर मेरी नाक में दम किए दे रही है. इसलिए उत्तम यही होगा कि मैं इसका न्याय कर ही दूँ कि यह बार-बार आ कर मेरी नाक में दम तो न करे.’”

प्रभु ने आगे कहा, “उस अधर्मी न्यायाधीश के शब्दों पर ध्यान दो कि उसने क्या कहा. तब क्या परमेश्वर अपने उन चुने हुओं का न्याय न करेंगे, जो दिन-रात उनके नाम की दोहाई दिया करते हैं? क्या वह उनके सम्बन्ध में देर करेंगे? सच मानो, परमेश्वर बिना देर किए उनके पक्ष में सक्रिय हो जाएँगे. फिर भी, क्या मनुष्य के पुत्र के पुनरागमन पर विश्वास बना रहेगा?”

दो भिन्न प्रार्थनाएँ

तब मसीह येशु ने उनके लिए, जो स्वयं को तो धर्मी मानते थे परन्तु अन्यों को तुच्छ दृष्टि से देखते थे, यह दृष्टान्त प्रस्तुत किया.

10 “प्रार्थना करने दो व्यक्ति मन्दिर में गए, एक फ़रीसी था तथा दूसरा चुँगी लेने वाला. 11 फ़रीसी की प्रार्थना इस प्रकार थी: ‘परमेश्वर! मैं आपका आभारी हूँ कि मैं अन्य मनुष्यों जैसा नहीं हूँ—छली, अन्यायी, व्यभिचारी और न इस चुँगी लेने वाले के जैसा. 12 मैं सप्ताह में दो बार उपवास करता हूँ और अपनी सारी आय का दसवां अंश दिया करता हूँ.’ 13 किन्तु चुँगी लेने वाला दूर ही खड़ा रहा. उसने दृष्टि तक उठाने का साहस न किया, अपने सीने पर शोक में प्रहार करते हुए उसने कहा, ‘प्रभु परमेश्वर! कृपा कीजिए मुझ पापी पर!’

14 “विश्वास करो वास्तव में यही चुँगी लेने वाला (परमेश्वर से) धर्मी घोषित किया जा कर घर लौटा—न कि वह फ़रीसी. क्योंकि हर एक, जो स्वयं को बड़ा बनाता है, छोटा बना दिया जाएगा तथा जो व्यक्ति स्वयं नम्र हो जाता है, वह ऊँचा उठाया जाता है.”

मसीह येशु तथा बालक

(मत्ति 19:13-15; मारक 10:13-16)

15 लोग अपने बालकों को मसीह येशु के पास ला रहे थे कि मसीह येशु उन्हें स्पर्श मात्र कर दें. शिष्य यह देख उन्हें डाँटने लगे. 16 मसीह येशु ने बालकों को अपने पास बुलाते हुए कहा, “नन्हे बालकों को मेरे पास आने दो. मत रोको उन्हें! क्योंकि परमेश्वर का राज्य ऐसों ही का है. 17 वास्तव में जो परमेश्वर के राज्य को एक नन्हे बालक के भाव में ग्रहण नहीं करता, उसमें कभी प्रवेश न कर पाएगा.”

अनन्त काल के जीवन का अभिलाषी धनी युवक

(मत्ति 19:16-30; मारक 10:17-31)

18 एक प्रधान ने उनसे प्रश्न किया, “उत्तम गुरु! अनन्त काल के जीवन को पाने के लिए मेरे लिए क्या करना सही होगा?”

19 “तुम मुझे उत्तम कह कर क्यों बुला रहे हो?” मसीह येशु ने कहा. “परमेश्वर के अलावा दूसरा कोई भी उत्तम नहीं. 20 आज्ञा तो तुम्हें मालूम ही हैं: व्यभिचार न करना, हत्या न करना, चोरी न करना, झूठी गवाही न देना, अपने माता-पिता का सम्मान करना.”

21 “इन सबका पालन तो मैं बचपन से करता आ रहा हूँ,” उसने उत्तर दिया.

22 यह सुन मसीह येशु ने उससे कहा, “एक कमी फिर भी है तुममें. अपनी सारी सम्पत्ति बेच कर निर्धनों में बांट दो. धन तुम्हें स्वर्ग में प्राप्त होगा. तब आ कर मेरे पीछे हो लो.” 23 यह सुन वह प्रधान बहुत दुःखी हो गया क्योंकि वह बहुत धनी था.

24 यह देख मसीह येशु ने कहा, “धनवानों का स्वर्ग-राज्य में प्रवेश कैसा कठिन है! 25 एक धनी के स्वर्ग-राज्य में प्रवेश करने की तुलना में सुई के छेद में से ऊँट का पार हो जाना सरल है.”

26 इस पर सुननेवाले पूछने लगे, “तब किसका उद्धार सम्भव है?” 27 मसीह येशु ने उत्तर दिया, “जो मनुष्य के लिए असम्भव है, वह परमेश्वर के लिए सम्भव है.”

28 पेतरॉस ने मसीह येशु से कहा, “हम तो अपना घरबार छोड़ कर आपके पीछे चल रहे हैं.”

29 मसीह येशु ने इसके उत्तर में कहा, “सच तो यह है कि ऐसा कोई भी नहीं, जिसने परमेश्वर के राज्य के लिए अपनी घर-गृहस्थी, पत्नी, भाई, बहन, माता-पिता या सन्तान का त्याग किया हो 30 और उसे इस समय में कई गुणा अधिक तथा आगामी युग में अनन्त काल का जीवन प्राप्त न हो.”

दुःखभोग और क्रूस की मृत्यु की तीसरी भविष्यवाणी

(मत्ति 20:17-19; मारक 10:32-34)

31 तब मसीह येशु ने बारहों शिष्यों को अलग ले जा कर उन पर प्रकट किया, “हम येरूशालेम नगर जा रहे हैं. भविष्यद्वक्ताओं द्वारा मनुष्य के पुत्र के विषय में जो भी लिखा गया है, वह पूरा होने पर है, 32 उसे अन्यजातियों को सौंप दिया जाएगा. उसका उपहास किया जाएगा, उसे अपमानित किया जाएगा, उस पर थूका जाएगा. 33 उसे कोड़े लगाने के बाद वे उसे मार डालेंगे और वह तीसरे दिन मरे हुओं में से जीवित हो जाएगा.”

34 शिष्यों को कुछ भी समझ में न आया. उनसे इसका अर्थ छिपाकर रखा गया था. इस विषय में मसीह येशु की कही बातें शिष्यों की समझ से परे थीं.

येरीख़ो नगर में अंधे व्यक्ति

(मत्ति 20:29-34; मारक 10:46-52)

35 जब मसीह येशु यरीख़ो नगर के पास पहुँचे, उन्हें एक अंधा मिला, जो मार्ग के किनारे बैठा हुआ भिक्षा माँग रहा था. 36 भीड़ का शोर सुनकर उसने जानना चाहा कि क्या हो रहा है. 37 उन्होंने उसे बताया, “नाज़रेथ के येशु यहाँ से होकर जा निकल रहें हैं.”

38 वह अंधा पुकार उठा, “येशु! दाविद की सन्तान! मुझ पर दया कीजिए!”

39 उन्होंने, जो आगे-आगे चल रहे थे, उसे डाँटा और उसे शान्त रहने की आज्ञा दी. इस पर वह और भी ऊँचे शब्द में पुकारने लगा, “दाविद के पुत्र! मुझ पर कृपा कीजिए!”

40 मसीह येशु रुक गए और उन्हें आज्ञा दी कि वह व्यक्ति उनके पास लाया जाए. जब वह उनके पास लाया गया, मसीह येशु ने उससे प्रश्न किया, 41 “क्या चाहते हो? मैं तुम्हारे लिए क्या करूँ?”

“प्रभु मैं देखना चाहता हूँ!” उसने उत्तर दिया.

42 मसीह येशु ने कहा, “रोशनी प्राप्त करो. तुम्हारे विश्वास ने तुम्हें स्वस्थ किया है.” 43 तत्काल ही वह देखने लगा. परमेश्वर की वन्दना करते हुए वह मसीह येशु के पीछे चलने लगा. यह देख सारी भीड़ भी परमेश्वर का धन्यवाद करने लगी.

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