Book of Common Prayer
मित्तिथ की संगत पर संगीत निर्देशक के लिये कोरह वंशियों का एक स्तुति गीत।
1 सर्वशक्तिमान यहोवा, सचमुच तेरा मन्दिर कितना मनोहर है।
2 हे यहोवा, मैं तेरे मन्दिर में रहना चाहता हूँ।
मैं तेरी बाट जोहते थक गया हूँ!
मेरा अंग अंग जीवित यहोवा के संग होना चाहता है।
3 सर्वशक्तिमान यहोवा, मेरे राजा, मेरे परमेश्वर,
गौरेया और शूपाबेनी तक के अपने घोंसले होते हैं।
ये पक्षी तेरी वेदी के पास घोंसले बनाते हैं
और उन्हीं घोंसलों में उनके बच्चे होते हैं।
4 जो लोग तेरे मन्दिर में रहते हैं, अति प्रसन्न रहते हैं।
वे तो सदा ही तेरा गुण गाते हैं।
5 वे लोग अपने हृदय में गीतों के साथ जो तेरे मन्दिर मे आते हैं,
बहुत आनन्दित हैं।
6 वे प्रसन्न लोग बाका घाटी
जिसे परमेश्वर ने झरने सा बनाया है गुजरते हैं।
गर्मो की गिरती हुई वर्षा की बूँदे जल के सरोवर बनाती है।
7 लोग नगर नगर होते हुए सिय्योन पर्वत की यात्रा करते हैं
जहाँ वे अपने परमेश्वर से मिलेंगे।
8 सर्वशक्तिमान यहोवा परमेश्वर, मेरी प्रार्थना सुन!
याकूब के परमेश्वर तू मेरी सुन ले।
9 हे परमेश्वर, हमारे संरक्षक की रक्षा कर।
अपने चुने हुए राजा पर दयालु हो।
10 हे परमेश्वर, कहीं और हजार दिन ठहरने से
तेरे मन्दिर में एक दिन ठहरना उत्तम है।
दुष्ट लोगों के बीच वास करने से,
अपने परमेश्वर के मन्दिर के द्वार के पास खड़ा रहूँ यही उत्तम है।
11 यहोवा हमारा संरक्षक और हमारा तेजस्वी राजा है।
परमेश्वर हमें करूणा और महिमा के साथ आशीर्वद देता है।
जो लोग यहोवा का अनुसरण करते हैं
और उसकी आज्ञा का पालन करते हैं, उनको वह हर उत्तम वस्तु देता है।
12 सर्वशक्तिमान यहोवा, जो लोग तेरे भरोसे हैं वे सचमुच प्रसन्न हैं!
सीनै पर्वत पर एलिय्याह
19 राजा अहाब ने ईज़ेबेल को वे सभी बातें बताईं जो एलिय्याह ने कीं। अहाब ने उसे बताया कि एलिय्याह ने कैसे सभी नबियों को एक ही तलवार से मौत के घाट उतारा। 2 इसलिये ईज़ेबेल ने एलियाह के पास एक दूत भेजा। ईज़ेबेल ने कहा, “मैं प्रतिज्ञा करती हूँ कि इस समय से पहले कल मैं तुमको वैसे ही मारूँगी जैसे तुमने नबियों को मारा। यदि मैं सफल नहीं होती तो देवता मुझे मार डालें।”
3 जब एलिय्याह ने यह सुना तो वह डर गया। अत: वह अपनी जान बचाने के लिये भाग गया। वह अपने साथ अपने सेवक को ले गया। वे बेर्शेबा पहुँचे जो यहूदा में है। एलिय्याह ने अपने सेवक को बेर्शेबा में छोड़ा। 4 तब एलिय्याह पूरे दिन मरूभूमि में चला। एलिय्याह एक झाड़ी के नीचे बैठा। उसने मृत्यु की याचना की। एलिय्याह ने कहा, “यहोवा यह मेरे लिये बहुत है मुझे मरने दे। मैं अपने पूर्वजों से अधिक अच्छा नहीं हूँ।”
5 तब एलिय्याह पेड़ के नीचे लेट गया और सो गया। एक स्वर्गदूत एलिय्याह के पास आया और उसने उसका स्पर्श किया। स्वर्गदूत ने कहा, “उठो, खाओ!” 6 एलिय्याह ने देखा कि उसके बहुत निकट कोयले पर पका एक पुआ और पानी भरा घड़ा है। एलिय्याह ने खाया पीया। तब वह फिर सो गया।
7 बाद में, यहोवा का स्वर्गदूत उसके पास फिर आया। स्वर्गदूत ने कहा, “उठो खाओ! यदि तुम ऐसा नहीं करते तो तुम इतने शक्तिशाली नहीं होगे, जिससे तुम लम्बी यात्रा कर सको।” 8 अत: एलिय्याह उठा। उसने खाया, पिया। भोजन ने उसे इतना शक्तिशाली बना दिया कि वह चालीस दिन और रात यात्रा कर सके। वह होरेब पर्वत तक गया जो परमेश्वर का पर्वत है। 9 वहाँ एलिय्याह एक गुफा में घुसा और सारी रात ठहरा।
तब यहोवा ने एलिय्याह से बातें कीं। यहोवा ने कहा, “एलिय्याह, तुम यहाँ क्यों आए हो?”
10 एलिय्याह ने उत्तर दिया, “यहोवा सर्वशक्तिमान परमेश्वर, मैंने तेरी सेवा सदैव की है। मैंने तेरी सेवा सर्वोत्तम रुप में सदैव यथासम्भव की है। किन्तु इस्राएल के लोगों ने तेरे साथ की गई वाचा तोड़ी है। उन्होंने तेरी वेदियों को नष्ट किया है। उन्होंने तेरे नबियों को मार डाला है। मैं एकमात्र ऐसा नबी हूँ जो जीवित बचा हूँ और अब वे मुझे मार डालना चाहते हैं!”
11 तब यहोवा ने एलिय्याह से कहा, “जाओ, मेरे सामने पर्वत पर खड़े होओ। मैं तुम्हारे बगल से निकलूँगा।”[a] तब एक प्रचंड आँधी चली। आँधी ने पर्वतों को तोड़ गिराया। इसने यहोवा के सामने विशाल चट्टानों को तोड़ डाला। किन्तु वह आँधी यहोवा नहीं था। उस आँधी के बाद भूकम्प आया। किन्तु वह भूकम्प यहोवा नहीं था। 12 भूकम्प के बाद वहाँ अग्नि थी। किन्तु वह आग यहोवा नहीं थी। आग के बाद वहाँ एक शान्त और मद्धिम स्वर सुनाई पड़ा।
नयी वाचा के सेवक
3 इससे क्या ऐसा लगता है कि हम फिर से अपनी प्रशंसा अपने आप करने लगे हैं? अथवा क्या हमें तुम्हारे लिये या तुमसे परिचयपत्र लेने की आवश्यकता है? जैसा कि कुछ लोग करते हैं। निश्चय ही नहीं, 2 हमारा पत्र तो तुम स्वयं हो जो हमारे मन में लिखा है, जिसे सभी लोग जानते हैं और पढ़ते हैं 3 और तुम भी तो ऐसा ही दिखाते हो मानो तुम मसीह का पत्र हो। जो हमारी सेवा का परिणाम है। जिसे स्याही से नहीं बल्कि सजीव परमेश्वर की आत्मा से लिखा गया है। जिसे पथरीली शिलाओं[a] पर नहीं बल्कि मनुष्य के हृदय पटल पर लिखा गया है।
4 हमें मसीह के कारण परमेश्वर के सामने ऐसा दावा करने का भरोसा है। 5 ऐसा नहीं है कि हम अपने आप में इतने समर्थ हैं जो सोचने लगे हैं कि हम अपने आप से कुछ कर सकते हैं बल्कि हमें सामर्थ्य तो परमेश्वर से मिलता है। 6 उसी ने हमें एक नये करार का सेवक बनने योग्य ठहराया है। यह कोई लिखित संहिता नहीं है बल्कि आत्मा की वाचा है क्योंकि लिखित संहिता तो मारती है जबकि आत्मा जीवन देती है।
नया नियम महान महिम लाता है
7 किन्तु वह सेवा जो मृत्यु से युक्त थी यानी व्यवस्था का विधान जो पत्थरों पर अंकित किया गया था उसमें इतना तेज था कि इस्राएल के लोग मूसा के उस तेजस्वी मुख को एकटक न देख सके। (और यद्यपि उसका वह तेज बाद में क्षीण हो गया।) 8 फिर भला आत्मा से युक्त सेवा और अधिक तेजस्वी क्यों नहीं होगी। 9 और फिर जब दोषी ठहराने वाली सेवा में इतना तेज है तो उस सेवा में कितना अधिक तेज होगा जो धर्मी ठहराने वाली सेवा है।
18 सो हम सभी अपने खुले मुख के साथ दर्पण में प्रभु के तेज का जब ध्यान करते हैं तो हम भी वैसे ही होने लगते हैं और हमारा तेज अधिकाधिक बढ़ने लगता है। यह तेज उस प्रभु से ही प्राप्त होता है। यानी आत्मा से।
© 1995, 2010 Bible League International