Book of Common Prayer
संगीत निर्देशक को दाऊद का एक पद।
1 हे यहोवा, मैं तेरे भरोसे हूँ,
मुझे निराश मत कर।
मुझ पर कृपालु हो और मेरी रक्षा कर।
2 हे यहोवा, मेरी सुन,
और तू शीघ्र आकर मुझको बचा ले।
मेरी चट्टान बन जा, मेरा सुरक्षा बन।
मेरा गढ़ बन जा, मेरी रक्षा कर!
3 हे परमेश्वर, तू मेरी चट्टान है,
सो अपने निज नाम हेतु मुझको राह दिखा और मेरी अगुवाई कर।
4 मेरे लिए मेरे शत्रुओं ने जाल फैलाया है।
उनके फँदे से तू मुझको बचा ले, क्योंकि तू मेरा सुरक्षास्थल है।
5 हे परमेश्वर यहोवा, मैं तो तुझ पर भरोसा कर सकता हूँ।
मैं मेरा जीवन तेरे हाथ में सौपता हूँ।
मेरी रक्षा कर!
6 जो मिथ्या देवों को पूजते रहते हैं, उन लोगों से मुझे घृणा है।
मैं तो बस यहोवा में विश्वास रखता हूँ।
7 हे यहोवा, तेरी करुणा मुझको अति आनन्दित करती है।
तूने मेरे दु:खों को देख लिया
और तू मेरे पीड़ाओं के विषय में जानता है।
8 तू मेरे शत्रुओं को मुझ पर भारी पड़ने नहीं देगा।
तू मुझे उनके फँदों से छुडाएगा।
9 हे यहोवा, मुझ पर अनेक संकट हैं। सो मुझ पर कृपा कर।
मैं इतना व्याकुल हूँ कि मेरी आँखें दु:ख रही हैं।
मेरे गला और पेट पीड़ित हो रहे हैं।
10 मेरा जीवन का अंत दु:ख में हो रहा है।
मेरे वर्ष आहों में बीतते जाते हैं।
मेरी वेदनाएँ मेरी शक्ति को निचोड़ रही हैं।
मेरा बल मेरा साथ छोड़ता जा रहा है।
11 मेरे शत्रु मुझसे घृणा रखते हैं।
मेरे पड़ोसी मेरे बैरी बने हैं।
मेरे सभी सम्बन्धी मुझे राह में देख कर
मुझसे डर जाते हैं
और मुझसे वे सब कतराते हैं।
12 मुझको लोग पूरी तरह से भूल चुके हैं।
मैं तो किसी खोये औजार सा हो गया हूँ।
13 मैं उन भयंकर बातों को सुनता हूँ जो लोग मेरे विषय में करते हैं।
वे सभी लोग मेरे विरुद्ध हो गए हैं। वे मुझे मार डालने की योजनाएँ रचते हैं।
14 हे यहोवा, मेरा भरोसा तुझ पर है।
तू मेरा परमेश्वर है।
15 मेरा जीवन तेरे हाथों में है। मेरे शत्रुओं से मुझको बचा ले।
उन लोगों से मेरी रक्षा कर, जो मेरे पीछे पड़े हैं।
16 कृपा करके अपने दास को अपना ले।
मुझ पर दया कर और मेरी रक्षा कर!
17 हे यहोवा, मैंने तेरी विनती की।
इसलिए मैं निराश नहीं होऊँगा।
बुरे मनुष्य तो निराश हो जाएँगे।
और वे कब्र में नीरव चले जाएँगे।
18 दुर्जन डींग हाँकते हैं
और सज्जनों के विषय में झूठ बोलते हैं।
वे दुर्जन बहुत ही अभिमानी होते हैं।
किन्तु उनके होंठ जो झूठ बोलते रहते हैं, शब्द हीन होंगे।
19 हे परमेश्वर, तूने अपने भक्तों के लिए बहुत सी अदूभुत वस्तुएँ छिपा कर रखी हैं।
तू सबके सामने ऐसे मनुष्यों के लिए जो तेरे विश्वासी हैं, भले काम करता है।
20 दुर्जन सज्जनों को हानि पहुँचाने के लिए जुट जाते हैं।
वे दुर्जन लड़ाई भड़काने का जतन करते हैं।
किन्तु तू सज्जनों को उनसे छिपा लेता है, और उन्हें बचा लेता है। तू सज्जनों की रक्षा अपनी शरण में करता है।
21 यहोवा कि स्तुति करो! जब नगर को शत्रुओं ने घेर रखा था,
तब उसने अपना सच्चा प्रेम अद्भुत रीति से दिखाया।
22 मैं भयभीत था, और मैंने कहा था, “मैं तो ऐसे स्थान पर हूँ जहाँ मुझे परमेश्वर नहीं देख सकता है।”
किन्तु हे परमेश्वर, मैंने तुझसे विनती की और तूने मेरी सहायता की पुकार सुन ली।
23 परमेश्वर के भक्तों, तुम को यहोवा से प्रेम करना चाहिए!
यहोवा उन लोगों को जो उसके प्रति सच्चे हैं, रक्षा करता है।
किन्तु यहोवा उनको जो अपनी ताकत की ढोल पीटते है।
उनको वह वैसा दण्ड देता है, जैसा दण्ड उनको मिलना चाहिए।
24 अरे ओ मनुष्यों जो यहोवा की सहायता की प्रतीक्षा करते हो, सुदृढ़ और साहसी बनो!
दाऊद को समर्पित।
1 हे यहोवा, मेरे मुकद्दमों को लड़।
मेरे युद्धों को लड़!
2 हे यहोवा, कवच और ढाल धारण कर,
खड़ा हो और मेरी रक्षा कर।
3 बरछी और भाला उठा,
और जो मेरे पीछे पड़े हैं उनसे युद्ध कर।
हे यहोवा, मेरी आत्मा से कह, “मैं तेरा उद्धार करुँगा।”
4 कुछ लोग मुझे मारने पीछे पड़े हैं।
उन्हें निराश और लज्जित कर।
उनको मोड़ दे और उन्हें भगा दे।
मुझे क्षति पहुँचाने का कुचक्र जो रचा रहे हैं
उन्हें असमंजस में डाल दे।
5 तू उनको ऐसा भूसे सा बना दे, जिसको पवन उड़ा ले जाती है।
उनके साथ ऐसा होने दे कि, उनके पीछे यहोवा के दूत पड़ें।
6 हे यहोवा, उनकी राह अन्धेरे और फिसलनी हो जाए।
यहोवा का दूत उनके पीछे पड़े।
7 मैंने तो कुछ भी बुरा नहीं किया है।
किन्तु वे मनुष्य मुझे बिना किसी कारण के, फँसाना चाहते हैं। वे मुझे फँसाना चाहते हैं।
8 सो, हे यहोवा, ऐसे लोगों को उनके अपने ही जाल में गिरने दे।
उनको अपने ही फंदो में पड़ने दे,
और कोई अज्ञात खतरा उन पर पड़ने दे।
9 फिर तो यहोवा मैं तुझ में आनन्द मनाऊँगा।
यहोवा के संरक्षण में मैं प्रसन्न होऊँगा।
10 मैं अपने सम्पूर्ण मन से कहूँगा,
हे “यहोवा, तेरे समान कोई नहीं है।
तू सबलों से दुर्बलों को बचाता है।
जो जन शक्तिशाली होते हैं, उनसे तू वस्तुओं को छीन लेता है और दीन और असहाय लोगों को देता है।”
11 एक झूठा साक्षी दल मुझको दु:ख देने को कुचक्र रच रहा है।
ये लोग मुझसे अनेक प्रश्न पूछेंगे। मैं नहीं जानता कि वे क्या बात कर रहे हैं।
12 मैंने तो बस भलाई ही भलाई की है। किन्तु वे मुझसे बुराई करेंगे।
हे यहोवा, मुझे वह उत्तम फल दे जो मुझे मिलना चाहिए।
13 उन पर जब दु:ख पड़ा, उनके लिए मैं दु:खी हुआ।
मैंने भोजन को त्याग कर अपना दु:ख व्यक्त किया।
जो मैंने उनके लिए प्रार्थना की, क्या मुझे यही मिलना चाहिए?
14 उन लोगों के लिए मैंने शोक वस्त्र धारण किये। मैंने उन लोगों के साथ मित्र वरन भाई जैसा व्यवहार किया। मैं उस रोते मनुष्य सा दु:खी हुआ, जिसकी माता मर गई हो।
ऐसे लोगों से शोक प्रकट करने के लिए मैंने काले वस्त्र पहन लिए। मैं दु:ख में डूबा और सिर झुका कर चला।
15 पर जब मुझसे कोई एक चूक हो गई, उन लोगों ने मेरी हँसी उड़ाई।
वे लोग सचमुच मेरे मित्र नहीं थे।
मैं उन लोगोंको जानता तक नहीं। उन्होंने मुझको घेर लिया और मुझ पर प्रहार किया।
16 उन्होंने मुझको गालियाँ दीं और हँसी उड़ायी।
अपने दाँत पीसकर उन लोगों ने दर्शाया कि वे मुझ पर क्रुद्ध हैं।
17 मेरे स्वामी, तू कब तक यह सब बुरा होते हुए देखेगा ये लोग मुझे नाश करने का प्रयत्न कर रहे हैं।
हे यहोवा, मेरे प्राण बचा ले। मेरे प्रिय जीवन की रक्षा कर। वे सिंह जैसे बन गए हैं।
18 हे यहोवा, मैं महासभा में तेरी स्तुति करुँगा।
मैं बलशाली लोगों के संग रहते तेरा यश बखानूँगा।
19 मेरे मिथ्यावादी शत्रु हँसते नहीं रहेंगे।
सचमुच मेरे शत्रु अपनी छुपी योजनाओं के लिए दण्ड पाएँगे।
20 मेरे शत्रु सचमुच शांति की योजनाएँ नहीं रचते हैं।
वे इस देश के शांतिप्रिय लोगों के विरोध में छिपे छिपे बुरा करने का कुचक्र रच रहे हैं।
21 मेरे शत्रु मेरे लिए बुरी बातें कह रहे हैं।
वे झूठ बोलते हुए कह रहे हैं, “अहा! हम सब जानते हैं तुम क्या कर रहे हो!”
22 हे यहोवा, तू सचमुच देखता है कि क्या कुछ घट रहा है।
सो तू छुपा मत रह,
मुझको मत छोड़।
23 हे यहोवा, जाग! उठ खड़ा हो जा!
मेरे परमेश्वर यहोवा मेरी लड़ाई लड़, और मेरा न्याय कर।
24 हे मेरे परमेश्वर यहोवा, अपनी निष्पक्षता से मेरा न्याय कर,
तू उन लोगों को मुझ पर हँसने मत दे।
25 उन लोगों को ऐसे मत कहने दे, “अहा! हमें जो चाहिए था उसे पा लिया!”
हे यहोवा, उन्हें मत कहने दे, “हमने उसको नष्ट कर दिया।”
26 मैं आशा करता हूँ कि मेरे शत्रु निराश और लज्जित होंगे।
वे जन प्रसन्न थे जब मेरे साथ बुरी बातें घट रही थीं।
वे सोचा करते कि वे मुझसे श्रेष्ठ हैं!
सो ऐसे लोगों को लाज में डूबने दे।
27 कुछ लोग मेरा नेक चाहते हैं।
मैं आशा करता हूँ कि वे बहुत आनन्दित होंगे!
वे हमेशा कहते हैं, “यहोवा महान है! वह अपने सेवक की अच्छाई चाहता है।”
28 सो, हे यहोवा, मैं लोगों को तेरी अच्छाई बताऊँगा।
हर दिन, मैं तेरी स्तुति करुँगा।
—15—
19 मेरे पुत्र, सुन! और विवेकी बनजा और अपनी मन को नेकी की राह पर चला। 20 तू उनके साथ मत रह जो बहुत पियक्कड़ हैं, अथवा ऐसे, जो ठूंस—ठूंस माँस खाते हैं। 21 क्योंकि ये पियक्कड़ और ये पेटू दरिद्र हो जायेंगे, और यह उनकी खुमारी, उन्हें चिथड़े पहनायेगी।
—18—
29-30 कौन विपत्ति में है कौन दुःख में पड़ा है कौन झगड़े—टंटों में किसकी शिकायतें हैं कौन व्यर्थ चकना चूर किसकी आँखें लाल हैं वे जो निरन्तर दाखमधु पीते रहते हैं और जिसमें मिश्रित मधु की ललक होती है!
31 जब दाखमधु लाल हो, और प्यालें में झिलमिलाती हो और धीरे—धीरे डाली जा रही हो, उसको ललचायी आँखों से मत देखो। 32 सर्प के समान वह डसती, अन्त में जहर भर देती है जैसे नाग भर देता है।
33 तेरी आँखों में विचित्र दृष्य तैरने लगेगें, तेरा मन उल्टी—सीधी बातों में उलझेगा। 34 तू ऐसा हो जायेगा, जैसे उफनते सागर पर सो रहा हो और जैसे मस्तूल की शिखर लेटा हो। 35 तू कहेगा, “उन्होंने मुझे मारा पर मुझे तो लगा ही नहीं। उन्होंने मुझे पीटा, पर मुझ को पता ही नहीं। मुझ से आता नहीं मुझे उठा दो और मुझे पीने को और दो।”
—19—
24 दुष्ट जन से तू कभी मत होड़कर। उनकी संगत की तू चाहत मत कर। 2 क्योंकि उनके मन हिंसा की योजनाएँ रचते और उनके होंठ दुःख देने की बातें करते हैं।
बुज़ुर्ग एवं अन्य बातों के बारे में
17 जो बुज़ुर्ग कलीसिया की उत्तम अगुआई करते हैं, वे दुगुने सम्मान के पात्र होने चाहिए। विशेष कर वे जिनका काम उपदेश देना और पढ़ाना है। 18 क्योंकि शास्त्र में कहा गया है, “बैल जब खलिहान में हो तो उसका मुँह मत बाँधो।”(A) तथा, “मज़दूर को अपनी मज़दूरी पाने का अधिकार है।”(B)
19 किसी बुज़ुर्ग पर लगाए गए किसी लांछन को तब तक स्वीकार मत करो जब तक दो या तीन गवाहियाँ न हों। 20 जो सदा पाप में लगे रहते हैं उन्हें सब के सामने डाँटो-फटकारो ताकि बाकी के लोग भी डरें।
21 परमेश्वर, यीशु मसीह और चुने हुए स्वर्गदूतों के सामने मैं सच्चाई के साथ आदेश देता हूँ कि तू बिना किसी पूर्वाग्रह के इन बातों का पालन कर। पक्षपात के साथ कोई काम मत कर।
22 बिना विचारे किसी को कलीसिया का मुखिया बनाने के लिए उस पर जल्दी में हाथ मत रख। किसी के पापों में भागीदार मत बन। अपने को सदा पवित्र रख।
23 केवल पानी ही मत पीता रह। बल्कि अपने हाज़में और बार-बार बीमार पड़ने से बचने के लिए थोड़ा सा दाखरस भी ले लिया कर।
24 कुछ लोगों के पाप स्पष्ट रूप से प्रकट हो जाते हैं और न्याय के लिए प्रस्तुत कर दिए जाते हैं किन्तु दूसरे लोगों के पाप बाद में प्रकट होते हैं। 25 इसी प्रकार भले कार्य भी स्पष्ट रूप से प्रकट हो जाते हैं किन्तु जो प्रकट नहीं होते वे भी छिपे नहीं रह सकते।
कई अन्य दृष्टान्त-कथाएँ
(मरकुस 4:30-34; लूका 13:18-21)
31 यीशु ने उनके सामने और दृष्टान्त-कथाएँ रखीं: “स्वर्ग का राज्य राई के छोटे से बीज के समान होता है, जिसे किसी ने लेकर खेत में बो दिया हो। 32 यह बीज छोटे से छोटा होता है किन्तु बड़ा होने पर यह बाग के सभी पौधों से बड़ा हो जाता है। यह पेड़ बनता है और आकाश के पक्षी आकर इसकी शाखाओं पर शरण लेते हैं।”
33 उसने उन्हें एक दृष्टान्त कथा और कही: “स्वर्ग का राज्य खमीर के समान है, जिसे किसी स्त्री ने तीन बार आटे में मिलाया और तब तक उसे रख छोड़ा जब तक वह सब का सब खमीर नहीं हो गया।”
34 यीशु ने लोगों से यह सब कुछ दृष्टान्त-कथाओं के द्वारा कहा। वास्तव में वह उनसे दृष्टान्त-कथाओं के बिना कुछ भी नहीं कहता था। 35 ऐसा इसलिये था कि परमेश्वर ने भविष्यवक्ता के द्वारा जो कुछ कहा था वह पूरा होः परमेश्वर ने कहा,
“मैं दृष्टान्त कथाओं के द्वारा अपना मुँह खोलूँगा।
सृष्टि के आदिकाल से जो बातें छिपी रही हैं, उन्हें उजागर करूँगा।”(A)
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